April 29, 2025



पानी की कहानी

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महावीर सिंह जगवान 


दशकों से एक चर्चा है, पहाड़ की जवानी और पानी पहाड़ के काम नही आता।


यह एक ऐसा स्लोगन है जिसको सत्ता केन्द्र हों या जनता की नुमाइन्दी कर रहे लोग सभी ने मूक सहमति देकर इतिश्री करदी, जो निकट भविष्य मे स्वर्ग सदृश देव भूमि की संस्कृति परम्परा और वैभवता को क्षति पहुँचायेगी। भारत की संसद और विधान सभा मे जब हमारे प्रतिनिधि भारी जल संकट पर अपनी बात रखते हैं तो ठहाके लगते हैं, जीवनदायिनी माँ गंगा के मायके मे यह कैसी त्रासदी। आश्चर्य इस बात का है जल की परिपूर्णता की परिणति है यह प्रदेश जल विद्युत परियोजनाऔं के लिये स्वर्ग है और यहाँ की पहाड़ी ढलानो पर रचे बसे गाँवो के लिये जलविहीन भूक्षेत्र। उत्तराखण्ड के नौ पर्वतीय जनपदों के नब्बे फीसदी गाँव जल संकट से जूझ रहे हैं, अरबों की पेयजल एवं सिंचाई जल योजनायें अकुशल प्रबन्धन और भ्रष्टाचार के कारण अकाल मौत मर रही हैं। स्वच्छ भारत अभियान का बड़ा मुद्दा हर घर मे शौचालय तक विना पानी के संकट मे हैं। बहते जल की परिपूर्णता के वावजूद लिफ्टिंग, ड्रिलिंग, हैण्डपम्प और कैरेजिंग सहित अनगिनत प्रणालियों ने जल संकट को अधिक बढाया है। उत्तराखण्ड मे ऊँचाइयों पर निर्मित बाँधों के टाॅप लेबल से बहते जल का पाँच फीसदी जल पेय और सिंचाई के लिये संरक्षित कर पाते तो यहाँ जल संकट समाप्त हो जाता। गाड गदेरों और धारे नौलों के संरक्षण से जलश्रोतों की पर्याप्त उपलब्धता होती। विश्व मे इजराइल के साथ साथ जल संकट से जूझ रहे राष्ट्र औंस तक के पानी को संग्रह कर रहे हैं जबकि उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपद औसत से अधिक वर्षा वाले भू क्षेत्र हैं यहाँ वर्षा जल संवर्धन भी लाभकारी हो सकता है। 100 स्क्वायर मीटर वाली छतों से औसतन हर साल एक लाख लीटर से पाँच लाख लीटर तक पानी बहता है और यह पानी अपने साथ पहाड़ की अनमोल उपजाऊ मिट्टी को बहाकर यू ही पहाड़ों से बह जाता है। यदि इस जल का पचास फीसदी जल भी संरक्षित किया जाय तो निसन्देह घर की बड़ी जरूरतों के पानी का संकट देर होगि साथ ही दो नाली तक की साग भाजी हेतु पर्याप्त सिंचाई जल। पर्वतीय जनपदों मे जल की पर्याप्त उपलब्धता नये अवसरों को जन्म दे सकती है।


लेख़क सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं