April 30, 2025



गांव की ब्यथा कथा

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महावीर सिंह जगवान 


हिमालय की गोद मे बसा मेरा गाँव विश्व मे अद्वितीय आकर्षक जीवन्त अनन्त सुकून और बेफिक्री की ओर अन्तस को खींचता और सींचता है।


यहाँ कल कल करते छोटे बड़े गाढ गदेरे, निर्झर बहते धवल झरने, स्वर्ण सदृश हिमशिखर, हिमालयी एवं प्रवासीय पक्षियों की मनभाव मधुर वीणा सदृश चहचहाहट, मखमली बुग्यालों और सुरम्य सरोवरों की अविरल श्रृँखला, गगन को छूती पर्वत श्रृंखलायें नित उत्सुकता के संग प्रेरणा के अटल द्योतक, बाँज बुराँश देवदार पदम के घने जंगलों से बहती हवाऔं और टपकती अमृत तुल्य बूँदे सदा स्वर्ग सदृश अहसास को आत्मसाक्षात्कार का अवसर देता है मेरा अतुलनीय पावन गाँव। इक्कीसवीं सदी भी मेरे गाँव की विरासत को सहजने मे पिछड़ती दिखती है, जो बार बार माथे पर बल डालती है। इसी विरासत को सहेजने के लिये हिमालय की वादियों से निकली आवाज और त्याग से समाधान की कुँजी के रूप मे उत्तराखण्ड राज्य बना। जन गण मन ने जो सपना बुना था राज्य का वो फलता फूलता नही दिखता। ऑल वेदर और रेल परियोजनाऔं का पहाड़ चढना भले ही शुरू हुआ है लेकिन यह यहाँ के आमजनमानस की विकट और दुरूह जीवन को दूर दूर तक सहज बनाये यह सम्भव नही दिखता। ऑल वेदर रोड और रेल नेटवर्क उन कस्बों और शहरों को छू रहे हैं जो दशकों से विकास और अवसरों के उच्चतम सूचकांक को छू चुके हैं, यहाँ फैलने और नये अवसरों की क्षमतायें क्षीर्ण हैं। जिसका बड़ा उदाहरण पर्वतीय क्षेत्र मे चमोली के गौचर मे दशको पुरानी हवाई पट्टी आज भी उपयोग की बाट जोह रही है। हाँ इसकी महत्वपूर्ण भूमिका सामरिक दृष्टि से है और इसमे भी कतई सन्देह नही ऑल वेदर रोड के साथ रेल नेटवर्क की भी बड़ी भूमिका सामरिक शुरक्षा से है। इसका सम्मान एवं राष्ट्र सर्वोपरि। चिन्ता इस बात की है जब पहाड़ो को अलविदा कर चुके लोंगो की शंख्या चालीस लाख को छू चुकी है और स्थितियाँ दूर दूर तक सुधरती नही दिखती।


आज उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपद सालाना पन्द्रह सौ करोड़ से अधिक कृषि उद्यान का नुकसान केवल बन्दरों और सुवरों से झेल रहे हैं। घुमक्कड़ हूँ तो दो दशक से भी अधिक समय से देखता हूँ मैदान से पहाड़ और पहाड़ से मैदान चढने और उतरने हेतु मात्र छ:से आठ घण्टे का ही परिवहन उपलब्ध है जो निसन्देह क्षेत्र की वीरानी की ब्यथा को स्पष्ट करता है। सुबह 10 बजे कुल्लू (हिमांचल) पहुँचना था चण्डीगढ से ग्यारह बजे बैठा और सुबह नौ बजे पहुँच गया, गजब का सार्वजनिक परिवहन है पर्वतीय विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य हिमांचल में। सायं 4 बजे ऋषिकेश पहुँचा हूँ अपने गाँव जाने के लिये कोई परिवहन नही। बड़ी जद्दोजहद के बाद एक बजे चलने वाली न्यूजपेपर (अखबार) की गाड़ी मे ब्यवस्था हुई। बड़ी अजब दास्तां है रात को करोड़ के आसपास की जनशंख्या वाले पर्वतीय जनपदों मे रात को परिवहन इसलिये बन्द है क्योंकि उत्तराखण्ड के सबसे बड़े न्यूज पेपर (अखबार) जो मैदान से डेढ दो रूपया महंगा अखबार पहाड़ों मे पहुँचाते हैं उनकी कई गाड़ियों को सवारियाँ उपलब्ध कराई जाती हैं, आश्चर्य होगा इस बात से आठ से दस सीटर गाड़ियाँ पाँच कुन्तल से अधिक वजन के अखबार के साथ दस दस सवारियाँ बिठाकर बहुत तेज गति से बैरियर सेटिंग एवं प्रिंट मीडिया की पावर के कारण रात्रि सेवा के रूप मे चलते हैं।

बड़ा सवाल और चिन्ता है इस बात की क्या इनमे सवार सवारियों और ड्राइवर की जान क्यों जोखिम मे डाली जाती है और यदि खतरा नही है तो रात्रि सेवायें क्यों नही शुरू की जाती है। मेरा निवेदन है पर्वतीय जनपदों के बुद्धिजीवियों नेताऔं और समाज सेवियों से रात्रि परिवहन सेवाऔं की अपरिहार्य जरूरत को शुरू करने की पहल करें। लचर स्वास्थ्य सुविधाऔं के कारण आपात स्थितियों मे 100 से 200 किलोमीटर के लिये 6000 से 10000 रूपये परिवहन की ब्यवस्था पर ब्यय होते हैं, राज्य के भाग्य विधाताऔं ने आम जनमानस को इतना विवस कर दिया विना देहरादून के काम नही चलता, दो चार घण्टे के काम के लिये भी एक दिन पहले और एक दिन बाद मे निकलना पड़ता है। यह सत्य है सड़क बनाने वाले विकास की मसाल को लेकर गाँव पहुँचते हैं, जबकि बढते सड़क जाल के वावजूद सार्वजनिक परिवहन ब्यवस्था और नियोजित परिवहन संशाधनों की अनुउपलब्धता के कारण सड़क के रूप मे विकास की पहुँची मशाल के उजाले को निरन्तर धूमिल कर दिया है। इसका स्पष्ट उदाहरण आप पहाड़ों मे देख सकते हैं शिक्षा स्वास्थ्य और अवसरों की जरूरत की पूर्ति हेतु लोग अपने प्रिय गाँवो से एक किलोमीटर सेबीस किलोमीटर दूरी पर भी किराये मे कमरे लेकर रह रहे हैं जो निसन्देह आर्थिकी और ग्रामीण शसक्तीकरण को क्षति पहुँचा रहा है। आयें मिलकर छोटे छोटे दिखने वाले बड़ी बड़ी अब्यवस्थाऔं को सुलझानी की छोटी छोटी पहल करें, ताकि अवसरों की समानता बढे, परिवहन की जरूरतों का नियोजन हो, समय का सदुपयोग हो साथ ही सम्पर्क से जुड़े रहें ।


लेखक सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं