November 23, 2024



घूमते – फिरते

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विजय भट्ट


वर्षा ऋतु में प्रकृति अपने यौवन के सभी श्रंगार कर तरो ताजा सी दिखती हुई हम सभी के मन को आकर्षित कर जाती है। यही कारण है कि अगस्त सितम्बर के महिने पहाड़ों पर घूमने का एक जबरदस्त आर्कषण रहता है। हरे भरे पहाड़ों पर नहा धोकर खडे पेड पोधे झाड़ियां उन पर फूदकते चहचाहट करते नाना प्रकार के पक्षी, रास्ते में जगह जगह झर झर बहते झरने, कल कल करती नदियां, सड़क के किनारे लवण रस का पान करती रंग बिरंगी तितलियां हमें रोक कर निहारने के लिये विवश कर देती हैं। मन को अच्छे लगने वाले किसी सृजनात्मक आयोजन में शामिल होने का अनऔपचारिक आमंत्रण भी हो और साथ ही प्रकृति को देखने निहारने का कोई अवसर भी, तो कोन अभागा होगा जो अकारण ही इस आयोजन में शामिल होने का अवसर हाथ से निकने देगा।

तो जनाब 2-3 अक्तूबर 2021 को ’’ग्रामीण युवाओं के लिये साहित्य संवाद’’ कार्यक्रम का आयोजन ’’जन जागृति संस्थान खाड़ी, टिहरी गढ़वाल’’ में किया गया था। इस कार्यक्रम की सूचना और सभी के लिये खुला निमंत्रण साथी गीता गैरोला की फेसबुक पेस्ट में देखा था। बस पोस्ट को देखकर इसमें शामिल होने का इरादा कर लिया। मैने साथी इन्द्रेश नौटियाल से चलने के लिये कहा तो वह भी बिना लागलपेट के चलने के लिये सहर्ष तैयार हो गया। दो अक्तूबर की सुबह चाय नाश्ता निपटाकर हमने अठ्ठारह साल पुरानी टीवीएस बाईक पर अपना सफर शुरू किया। पहाड़ की तलहटी में बनी रायपुर – थानों बड़कोट वाली सड़क पर हमारी बाइक हौले हौले चलने लगी। ऋषिकेश जाते हुये सात मोड़ पहिले बड़कोट से बाईं ओर नरेन्द्र नगर के लिये एक सड़क बनी हुई हैं, हमने इसी सड़क से जाना तय किया क्योंकि यह प्रकृति के बीच में से होकर गुजरती है। इस सड़क से बहती हुई चन्द्रभागा नदी का बहुत खूबसूरत नजारा नजर आता है।


गुजराड़ा से पहिले एक जगह जंगली हाथियों पर नजर रखने के लिये पक्का वाच टावर बना हुआ है। इस पर चढ़कर हमने भी एक सौ अस्सी डिग्री नजर घुमाकर जंगल नदी के फैलाव को देखा। रास्ते में कुछ जगहों पर नदी व झरनों के खूबसूरत दृश्यों को रूक कर देखा। कुछ तस्तवीर कैमरे में कैद की। रास्ते में दो तीन जगहों पर आया मलवा इस बरसात में हुये भंयकर भूस्खलन की दासतां बयां कर रहा था। नरेन्द्रनगर व हिंडोलाखाल के पश्चिमी ढलान से निकलने वाली छोटी छोटी चार नदियां धोड़ा पानी, संगडी भैंसराखाला, भारतखाला और अमेल्डी मिलकर आगे चन्द्रभागा नदी बनाती हैं। चन्द्रभागा ऋषिकेश में गंगा से मिल जाती है।


अब हम गंगोत्री राजमार्ग पर आ गये थे। इस राजमार्ग की देखभाल व निर्माण पहले तो बीआरओ के अन्र्तगत होता था पर आजकल केन्द्रीय सरकार की आल वेदर रोड योजना के नाम पर इसका चैड़ीकरण किया जा रहा है। वैसे तो इसका नाम तो आल वेदर रोड रखा गया था पर यह तो एक वेदर भी पूरा न झेल पाई और पर्यावरण के साथ पारिस्थितिकी का जो नुकसान हुआ वो अलग से। हिंडोलाखाल से आगे तो सड़क मोड़ पर अत्यधिक संकरी हो गई है । दुआधार पर पहाड़ धंस सा रहा है। आगराखाल के आगे सड़क धंस कर गायब हो गइ है किनारे से वैकल्पिक इंतजाम किया गया है।

एक जगह सुंदर जल प्रपात दो भागों में बंटकर खूबसूरत नजारा पेश कर रहा है, जिसे देखकर आने जाने वाले यात्री अभीभूत हो रहे हैं। कुछ रूक कर फोटो खींच रहे हैं। यहां हरियाणा प्रदेश की दो गाड़ियां भी खड़ी थी, जिस पर जाम सजे हुये थे। हरियाणा के युवा डेक के संगीत पर मद मस्त होकर थीरक रहे हैं। हमने जलप्रपात को निहारा कुछ फोटू ली और आगे बढ़ गये। कुछ ही देर में हम खाडी पहुंच गये। यहां एक जगह कार्यक्रम का बैनर लगा देखा तो हम वही रूक गये। यह माउंटेन फूड कनेक्ट ’’समूण’’ का केन्द्र है। यहां खड़ी एक महिला ने हमें कार्यक्रम स्थल जाने वाले रास्ते से अवगत कराया। बाइक सड़क के किनारे खड़ी कर हम जन जागृति संस्थान में पहुंच गये।


खाड़ी सर्वोदय आंदोलन का एक केन्द्र रहा है। क्षेत्र के गांधीवादी विचारक वरीष्ठ समाजसेवी धूम सिंह नेगी गुरूजी , बीज बचाओ आंदोलन से जुड़े विजय जड़धारी, के साथी व सर्वोदय आंदोलन के प्रमुख सिपाही पत्रकार साहित्यकार प्रताप शिखर जी द्वारा स्थापित जन जागृति संस्थान में प्रवेश करना एक आश्रम में प्रवेश करने जैसा एहसास करा जाता है। भाई अरण्य रंजन वर्तमान में अपने पिता प्रताप शिखर जी के काम को आगे बढा रहे हैं। इसी संस्थान में युवा साहित्य संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। गीता गैरोला, दीपा कुशलम, उमा भट्ट, चन्द्रा, आरिफा, महीपाल नेगी, मोहन चोहान, डा. जितेन्द्र भारती, गार्गी प्रकाशन के भाई दिगंबर, संभावना प्रकाशन के अभिषेक अग्रवाल, साहबसिंह सजवाण, गोपाल भाई, विकास नारायण आदि लब्धप्रतिष्ठित विभूतियां पहले से ही उपस्थित थी। कविता का पहला सत्र समाप्त हो चुका था।

दोपहर भोजन के बाद कहानी पर दूसरा सत्र शुरू हुआ जिसमें हमने भी अपनी हाजरी लगाई। यहां कस्तूरबा गांधी विद्यालय के छात्रायें भी उपस्थित थी। कहानी को लेकर चर्चा हुई, कहानी सुनाई भी गयी और छात्राओं ने सामुहिक रूप से बिल्ली को लेकर कहानी रचने की कोशिश भी की। बच्चों से बात करते हुये यह भी पता चला कि हमारी शिक्षा व्यवस्था कहानी को लेकर बंघे बधाये सीख वाली कहानी के स्टोरियोटाइप फ्रेम को तोड़ने में असफल सी रही है। समाज में व्याप्त अंधविश्वास से भी छात्र व युवा पीढ़ी अछूती नही है। महिपाल भाई बड़े लगन व उत्साह के साथ युवा पीढ़ी को गीत सीखा रहे हैं अपनी मधुर धुन में गीत भी गा रहे हैं। गोपाल भाई ने मांगल की तर्ज पर जो गीत सुनाया उसने तो मन मोह ही लिया। इस गीत में लोकधुन का इस्तेमाल करते हुये पर्यावरण जागरूकता के साथ प्रकृति के बहुत ही सुंदर बिंब खींचे गये थे।




पहले दिन के कार्यक्रम की समाप्ति के बाद गप्प शप्प का दौर जो चला तो मजा ही आ गया। समाज धर्म अध्यात्म से लेकर भूतपुराण तक गप्पबाजी का विषय रहा। चैकी पर बैठकर रात्रि भोजन किया और विश्राम करने चले गये। दिन भर शानदार रहा सोते सोते नींद आने तक साथी मोहन चोहान से बातें होती रही। कब नींद आयी और कब सुबह हो गई पता ही न चला।

अगले दिन अपने दैनिक काम निपटा कर चाय नाश्ता खा पीकर हम तैयार हो गये। अपना पिठ्ठु तैयार कर लिया था क्योंकि हमें आज सुबह ही निजी काम से आगे जाना था। बहार बैठा ही था कि सामने से युवा कवि साथी संजीत समवेत आ गये। इनसे परिचय हुआ पहले ही परिचय में ये अपने हो गये। कुछ ही देर सत्र में उपस्थित होकर हमने आगे चलने के लिये इजाजत मांग ली और शानदार स्मृतियों को साथ में लेकर साथियों को अलविदा कह वहां से निकल आये। यह प्रवास नये पुराने साथियों से मेल मुलाकात के साथ मेरे लिये प्रेरणास्पद रहा।

खाड़ी से आगे चम्बा की ओर हमारी बाइक चल पड़ी। आठ नो किलोमीटर चलने पर साबली गांव आ जाता है इसी का एक मजरा है कैमसैण । कैमसैण पहाड़ी के उपर बसा है जहां छ सात मवासे रहते हैं। यहां मुझे रिश्तेदारी मे हुई आकस्मिक मौत पर शोकसंवेदना व्यक्त करने जाना था। सड़क के किनारे बाइक खड़ी की और हम पहाडी चढ़ने लगे। लगभग डेढ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई वाला पैदल रास्ता वहां तक जाता है जहां हमे जाना था। चींड के जंगलो के बीच इन्द्रेश से बातें करते चढ़ाई चढ़ते हुये हम कैमसैण पहुंच गये। यहां मेरे अनुज का ससुराल है। शोक संतप्त परिवार के दुख में अपने को शामिल किया, कुछ देर बैठे और फिर नीचे सड़क पर उतर आये। वैसे तो आज ही हमें वापिस आना था पर हमने आगे जाने का मन बना लिया। वहां से चंबा होते हए हम पुरानी टेहरी जाने वाले रास्ते पर आगे बढ़ गये।

जाख जसपुर के आगे एक रास्ता बाईं ओर मुड़ता है जो मरोड़ा होता हुआ प्रताप नगर के लिये जाता है। हमने यही रास्ता पकड़ लिया। आगे चलकर यहां से टिहरी झील के दर्शन हो जाते हैं । झील देखकर जलासमाधिस्थ दुबाटा, टिहरी, पड्यार गांव, मालीदेवल आदि गांव की तस्वीर मष्तिष्क के पटल पर उभर आती हैं। देश के विकास के नाम पर कुर्बान हुये टिहरी बाजर और उससे जुड़े तमाम गांव के खेत खलिहान घर गोठ गोठ्यारों को डूबो कर बनी विशाल झील दिखाई दे रही है। झील पर दौड़ती मोटर बोट और उनमें सवार सैलानी आनंद लेते दिखाई दे रहे हैं। पर्वत राज हिमालय से उत्पन्न भागीरथी व भिलंगना के संगम पर दो जंगम नदियों के अविरल प्रवाह को बांध कर बनी यह झील राजशाही व टिहरी जनक्रांति के ऐतिहासिक गवाहियों के सबूतों को अपने में समेटे, सैलानियों का भरपूर मनोरंजन कर रही है।

आगे सड़क के किनारे मरोड़ा गांव आ जाता है। यह वयोवृद्ध वामपंथी नेता कामरेड बचीराम कौंसवाल का गांव है। यहीं सड़क के किनारे उनके सुपुत्र मदन कौंसवाल ने ’’अपना गांव’’ नाम से होम स्टे बनाया हुआ है। वापसी में यहां रूकने की सोचकर हम आगे चल पड़े। सड़क से झाील के सुंदर दृश्य दिखाई दे रहे हैं। थोड़ा आगे चलकर डोबरा चांठी का पुल दिखाई देने लगा है। कुछ ही देर बाद हमारी बाइक डोबरा चांठी पुल पर प्रवेश कर गई। भारत के सबसे लंबे झूला पुल को बाइक से पार करते हुये रोमांच का अनुभव हो रहा था। पुल के उस पार चाय पकोड़े बेचने वालों के खोखे लगे हैं। यह चांठी है। हमने अपनी बाइक सड़क के किनारे लगा दी।

अब पैदल इस झूलापुल पर टहलने लगे। भागीरथी नदी में बनी झील के उपर बना यह झूला पुल भारत का सबसे लंबा झूला पुल है। इसके एक तरफ डोबरा है और दूसरी ओर चांठी इसीलिये इसे डोबरा चांठी पुल कहा जाता है। जनता के लंबे संघर्षों के बाद सन् 2006 तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के शासन काल में इस डोबरा चांठी पुल के निर्माण की स्वीकृति मिली थी।

चौदह वर्षों के लंबे उतार चढ़ाव के बाद आठ नवंबर 2020 को इसे जनता के आवागमन के लिये खोला गया था। सात मीटर की चैड़ाई वाले इस पुल की लंबाई 725 मीटर है। इसके निर्माण में 295.92 करोड़ रूपये खर्च हुए है। चार पांच करोड़ की तो इसमें फसाट लाईट लगी है, जिसकी सतरंगी रोशनी में रात को दो घंटे के लिये यह पुल जगमगा उठता है। इसकी लाईट शाम केा सात से नो बजे तक जलती है और अभी शाम के पांच बजे हैं। इतनी दूर आकर इसकी जगमगाहट देखे बिना यहां से जाने का मन नही हुआ। बस चाय वाले के पास आकर बैठ गये । चाय पकोड़़ी खाते चाय वाले से गप्प लगाते हुये समय बिताने लगे। चाय वाला मोदी सरकार से खिन्न था कांग्रेस को जिताने की बात कर रहा था।

सूर्य अस्तांचल को जा रहे थे। थोड़ी देर में सड़क की लाइट जल गयी। ठीक सात बजे इस झूलापुल पर धीरे धीरे करके फसाट लाइट अपना जादू बिखेरने लगी। नीला हरा लाल पीला बैंगनी आदि प्रकाश के परावर्तित रंगो से डोबराचांठी पुल बहुत ही खूबसूरत नजर आने लगा था। इसके दोनों किनारों पर बने 58 मीटर की उंचाई वाले दो दो टावर रोशनी में जगमगा रहे थे। इस नजारे को देखने के लिये कई पर्यटक भी मौजूद थे। हमने झूला पुल के रंगीन दृश्यों को अपने केमरे में कैद किया और वापिस चल पड़े।आठ बजे हम मरोड़ा ’’अपना गांव’’ होम स्टे पहुंच गये। यहां भाई मदन कौंसवाल ने हमारा गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। हमारे खाने पीने का बेहतरीन इंतजाम किया। रात को संगीत की महफिल जमी। मदन भाई हारमोनियम की तान पर हमें बेहतरीन गजल और पुराने बिसरे सदाबहार गीत सुनाये जा रहे थे। इन्द्रेश ने भी गीत गाये। मैं तो दाद ही देता रहा। कब रात के ढाई बज गये पता ही न चला। अब तीन बजे के लगभग हम सो गये।

विजय भट्ट साथ में इन्द्रेश नौटियाल