November 22, 2024



मानसून में खूबसूरत लोनावाला

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बिमल रतूड़ी


अगर आप को महाराष्ट्र को एक्स्प्लोर करना है तो मानसून से खूबसूरत कोई वक़्त नहीं है. इस सन्डे एक छोटा सा फैमिली ट्रिप प्लान किया लोनावला का, पहले लोनावला के टाइगर पॉइंट पहुँचे हो सकता है. बहुत लोगों के लिए ये एक्साइट करने वाली जगह हो पर शायद मैंने पहाड़ों को नजीद्क से देखा तो मुझे उतना मजा नहीं आया, एक बहुत बड़े ग्राउंड में लोगों कि भीड़ और उतनी ही भीड़ सामान बेचने वालों की. खैर कुछ देर रहे हम वहां तो कहीं से पता चला कि यहाँ से कुछ आगे कोरीगढ़ फोर्ट है तो हम ने गाडी उधर दौड़ा दी.

जब हम उस जगह पहुँचे तो वो गाँव काफी खुबसूरत था सड़क के एक तरफ गाड़ी खड़ी की और ऊपर दिख रहे किले कि तरफ बढ़ना शुरू किया, मौसम सुबह से खुला हुआ था रेनकोट रखने की नहीं सोची थी पर चंदन भैया ने 2 छाते और 2 रेन कोट रखे थे तो इन्हीं के साथ आगे बढ़ना शुरू हुआ. कोई मुझ से जब पूछता कि आप को ट्रैकिंग कैसी लगती है तो मेरा पहला जवाब होता है कि जिस रस्ते पे बाहर वाले ट्रैक करते हैं उसी रस्ते पे पहाड़ में लोग घर जाते हैं, स्कूल जाते हैं, जानवरों को चराने ले जाते हैं, इसी को मैंने बचपन से देखा है हाँ बाहर आने के बाद समझ आया कि घर जाने के रस्ते को अब ट्रैकिंग रूट कहा जाने लगा है.


खैर हम चढ़ने लगे शायद पहाड़ चढ़ने का उतना अभ्यास न होने की वजह से अंजली और भैया थकने लगे पर नई नवेली भाभी पहाड़ चढ़ने के लिए खूब एक्साइटेड थी और उतनी ही एक्साइटेड वो उन मूमेंट्स को कैप्चर करने के लिए भी थी. हम सभी एक दूसरे को मोटीवेट करते हुए फोर्ट पर पहुँचे, वो फोर्ट उस वक़्त बादलों कि ओट में छुपा हुआ था पर जैसे ही बदल छ्टे वो जगह आँखों को सुकून देने वाली थी.


फोर्ट तो अब नहीं था पर दीवारें बाकी थी उस के अलावा वहां शिव जी का मंदिर था और उसी प्रांगण में कई सारी तोपें रखी थी, वहां 2 काफी बड़े तालाब बने हुए हैं और उस फोर्ट की बाउंड्री वाल काफी बड़ी है . हमने इसके चारों और घूमना शुरू किया, पहाड़ कि चोटी से नीचे बसे गांवों को देखने बड़ा ही मजेदार रहा. कुछ देर शांत रह के हम ने उस जगह को महसूस किया, मुझे एहसास हुआ कि इंटरनेट के युग में हम ने इस शांति को कितना खो दिया है.

मुझे हमेशा से ही शहर को पहाड़ कि चोटी से देखना अच्छा लगता है, बादलों की आँख मिचोली जारी थी उसी में कभी तो पूरा फोर्ट एक साथ देखता कभी 2 कदम देखना भी मुश्किल होता,  तक़रीबन डेढ़ घंटा वहां रहने के बाद हम वहां से उतर आये.


एक बात जो मुझे उस फोर्ट से जुडी लगी जब मैं उस पहाड़ को नीचे से देख रहा था तो वो पहाड़ ऐसा लग रहा था कि उसे क्राफ्ट किया गया हो ताकि उस पर कोई चढ़ न सके, और किला सुरक्षित रहे, मुझे पुरानी जगहों को देख कर हमेशा से ही यह महसूस होता है कि उन लोगों के विज़न हम से कितने आगे थे उन्हें सच में दूरदर्शी कहा जा सकता है.

लेखक युवा सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं.