उत्तराखंड को मिलेगी अंतराष्ट्रीय पहचान
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान
उत्तराखंड के सात उत्पादों को जीआई टैग प्रदान किया गया है। उत्तराखंड के लिए बहुत बड़े गौरव का विषय है कि यहां के मौलिक उत्पादों को वैश्विक पहचान मिलती जा रही है। अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो आनें वाले समय में आपको कुमाऊं की लोककला ऐपण, रिंगाल के उत्पाद, भोटिया दन, मुनस्यारी की राजमा भी आपको अंतरराष्ट्रीय बाजार में देखने को मिलेगी। भविष्य में आप उत्तराखंड के इन उत्पादों को विश्व के विभिन्न देशों में खरीद सकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में ये उत्पाद वैश्विक पहचान बनाने में सफल होंगे।
स्थानीय प्रोडक्ट के प्रचार-प्रसार में जीआई टैग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्थानीय प्रोडक्ट को देश के साथ ही इंटरनेशनल मार्केट में पहचान दिलाने मे जीआई टैग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। जीआई टैग मिलने के बाद न केवल उत्पादों को बाजार मिलेगा अपितु लोगों को रोजगार के अवसर। इन सात उत्पादों को मिला भौगोलिक संकेतांक (ज्योग्राफिकल इण्डिकेशन)
राज्य के सात उत्पादों कुमांऊ च्यूरा ऑयल, मुनस्यारी राजमा, उत्तराखण्ड का भोटिया दन, उत्तराखण्ड ऐंपण, उत्तराखण्ड रिंगाल क्राफ्ट, उत्तराखण्ड ताम्र उत्पाद एवं उत्तराखण्ड थुलमा) को भौगोलिक संकेतांक (ज्योग्राफिक इन्डिकेशन) प्रमाण पत्र वितरित किये गए। अभी तक तेजपत्ता प्रदेश का पहला जीआई टैग प्राप्त करने वाला उत्पाद था। उत्तराखण्ड सचिवालय स्थित वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली सभागार में बौद्विक सम्पदा भारत के अंतर्गत उत्तराखण्ड राज्य के उत्पादों के भौगोलिक संकेतांक (ज्योग्राफिकल इण्डिकेशन) का वितरण समारोह कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इन 11 कृर्षि उत्पादों को भी जीआई टैग लिए जानें की प्रक्रिया गतिमान!
उत्तराखण्ड लाल चावल, बेरीनाग चाय, उत्तराखण्ड गहत, उत्तराखण्ड मण्डुआ, उत्तराखण्ड झंगोरा, उत्तराखण्ड बुरांस सरबत, उत्तराखण्ड काला भट्ट, उत्तराखण्ड चौलाई/रामदाना, अल्मोड़ा लाखोरी मिर्च, उत्तराखण्ड पहाड़ी तोर दाल, उत्तराखण्ड माल्टा फ्रूट जैसे 11 कृषि उत्पादों का जीआई टैग लिये जाने का कार्य भी फाईल कर दिया गया है।
ये है जीआई टैग!
वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (WIPO) के मुताबिक जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है जिसमें किसी प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। ऐसा प्रोडक्ट जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठा मुख्य रूप से प्राकृति और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है। भारत में संसद की तरफ से सन् 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है। ये टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में पाई जाने वाली या फिर तैयार की जाने वाली वस्तुओं के दूसरे स्थानों पर गैर-कानूनी प्रयोग को रोकना है। भारत में डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड की तरफ से दिया जाता है जीआई टैग दिया जाता है.
भारत में ये टैग किसी खास फसल, प्राकृतिक और मैन्युफैक्चर्ड प्रॉडक्ट्स को दिया जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि एक से अधिक राज्यों में बराबर रूप से पाई जाने वाली फसल या किसी प्राकृतिक वस्तु को उन सभी राज्यों का मिला-जुला GI टैग दिया जाए। उदाहरण के लिए बासमती चावल जिस पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों का अधिकार है। भारत में वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड की तरफ से जीआई टैग दिया जाता है।
अब तक इन उत्पादों को मिला है जीआई टैग!
जीआई टैग को हासिल करने के लिए चेन्नई स्थित जीआई डेटाबेस में अप्लाई करना पड़ता है। इसके अधिकार व्यक्तियों, उत्पादकों और संस्थाओं को दिए जा सकते हैं, एक बार रजिस्ट्री हो जाने के बाद 10 सालों तक यह ये टैग मान्य होते हैं, जिसके बाद इन्हें फिर रिन्यू करवाना पड़ता है। पहला जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग चाय को मिला था। कड़कनाथ मुर्गे को मिलाकर भारत में अभी तक 272 वस्तुओं को जीआई टैग मिल चुका है।
भारत की 365 वस्तुओं को मिला टैग।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर WIPO की तरफ से जीआई टैग जारी किया जाता है। इस टैग वाली वस्तुओं पर कोई और देश अपना दावा नहीं ठोंक सकता है। भारत को अब तक 365 जीआई टैग्स मिल चुके हैं। जर्मनी के पास सबसे ज्यादा जीआई टैग्स हैं और उसने 9,499 वस्तुओं के लिए इस टैग को हासिल किया है। इसके बाद 7,566 जीआई टैग्स के साथ चीन दूसरे नंबर पर, 4,914 टैग्स के साथ यूरोपियन यूनियन तीसरे नंबर है। इसके अलावा 3,442 टैग्स के साथ मोल्डोवा चौथे नंबर पर और 3,147 जीआई टैग्स के साथ बोस्निया और हेरजेगोविना पांचवें नंबर पर हैं।