November 22, 2024



श्री राम शर्मा ‘प्रेम’ स्मरण

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जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’


तुम स्वतन्त्रता के लिए लड़े, मिल गई तुम्हें। अब समानता के लिए लड़ो, मिल जाएगी।


यह एक महान स्वतन्त्रता सैनानी कवि का शताब्दी वर्ष है। स्वाधीना संग्राम सेनानी और राष्ट्रीय धारा के प्रमुख कवि श्री राम शर्मा ‘‘प्रेम’’ ने ब्रिटिश सरकार की जड़े हिला दी थी। यूं तो प्रेम जी का जन्म 22 फरवरी 1915 को सुल्तानपुर उत्तरप्रदेश के दोस्तपुर गांव में हुआ था, लेकिन 15 वर्ष की अल्पआयु में इन्होंने घर छोड़ दिया और स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। 1942 के ऐतिहासिक ‘‘अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन’’ में वे गिरफ्तार हो गये और इन्हें कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। यह बात 26 जनवरी 1944 की है जब श्री राम शर्मा ‘‘प्रेम’’ ने सेन्ट्रल सेक्रेटिएट नई दिल्ली में वायसराय के दफ्तर पर तिरंगा फहराने का साहसिक कदम उठाया। महान शैलीकार कन्हैया लाल मिश्र ‘‘प्रभाकर’’ ने सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग की पुस्तिका में श्री राम शर्मा ‘‘प्रेम’’ द्वारा अंजाम दी गयी इस घटना का वर्णन किया था। प्रभाकर जी ने 1969 के नवभारत टाइम्स में श्री राम शर्मा ‘‘प्रेम’’ की जीवनी और देशभक्ति की दास्तां लिखी। भक्त दर्शन जी की पुस्तक ‘‘गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां’’ और डा0 शेखर पाठक द्वारा संपादित पुस्तक ‘‘सरफरोशी की तमन्ना’’ में श्री राम शर्मा ‘‘प्रेम’’ का गौरवशाली जिक्र किया गया है। इनकी कहानी त्याग, भक्ति और जेल में लिखी इनकी कविताओं की जीती जागती मिसाल है। प्रेम जी 1940 में देहरादून आकर बस गये और यहीं पर पूरा जीवन बिताया। इनकी कविता ‘‘अमर शहीद श्री देव सुमन’’ बी0ए0 द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती हैं।


 

शहीद-यतीन्द्र-पथ-पथी तुझे शत्-शत् प्रणाम! शतशः प्रणाम।


ओ भारत के मेक्स्विनी तुझे शत्-शत् प्रणाम! शतशः प्रणाम।।

 




श्री राम शर्मा ‘‘प्रेम’’ जी लगातार जेल की काल कोठरियों में भी कविताएं लिखते रहे-

मेरा यौवन आज चला है,

लहरों से टकराने,

मेरा यौवन आज चला है,

खतरों को अपनाने।

मेरा यौवन उबल चला है,

मिटने और मिटाने,

मेरा यौवन मचल चला है पाने या खो जाने।

मेरा भला बिगाड़ सकेगा क्या सागर तूफानी,

जग कहता यह नादानी।

आजादी के बाद भी प्रेम जी विषमताओं के विरूद्ध आवाज उठाते रहे।

 

वादों की रंगीन सुनहरी दुनियां कहा मिली,

आश्वासन की यह अफीम अब तक हमने निगली।

लेकिन नींद तोड़ने वाली,

नभ पर घटा घिरी है काली,

क्या जाने कब हम पर,

तुम पर, कड़केगी बिजली।

घाटी तुम्हें पुकार रही है,

शिखरों से उतरो,

दर्द देश का गले लगाओ,

प्यारे मित्रवरों।

प्रेम जी का परिवार आज भी इनके आदर्शों पर चल रहा है। पत्नी स्व0 श्रीमती रमा शर्मा व पुत्री स्व0 रीता शर्मा के बाद रंजना शर्मा और रेखा शर्मा साहित्य साधनारत है। श्रीमती उषा व आशा इनकी पुत्रियां है। इनके पुत्र जनकवि डा0 अतुल शर्मा ने विभिन्न आन्दोलनों को जनगीत दिये और उनकी अमिट पहचान लोगों के दिलों में है। वे आज भी पहाड़ की संवेदनाओं के साथ दिल से जुड़े है। शताब्दी के महान जन कवि स्वाधीनता सेनानी व कवि श्री राम शर्मा ‘‘प्रेम’’ की सौ वर्षीय जयन्ती के अवसर पर उनके सहज स्वभाव और महान आदर्शों को आज भी कौशानी, पौड़ी, सहारनपुर, मेरठ आदि में याद किया जाता है।
श्रीराम शर्मा प्रेम के समकालीनों में बाबा राघवदास, महन्त इन्द्रेश चरण दास, भक्त दर्शन, महावीर त्यागी, नरदेव शास्त्री, बीजू पटनायक, मास्टर राम स्वरूप, त्रिलोचन शास्त्री, राहुल सांस्कृत्यायन, क्षेम चन्द्र सुमन, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, दिनकर, ऋषिराम नौटियाल, सोहनलाल द्विवेदी, अज्ञेय, विष्णु प्रभाकर, शशि प्रभा शास्त्री, शेरजंग गर्ग, विष्णुदत्त राकेश सोम ठाकुर, भारत भूषण, धनश्याम शैलानी, वेद प्रकाश बटुक, नई पीढ़ी में डा0 हरिमोहन, अमिताभ शर्मा, हरिजीवन ब्रह्मचारी, धर्मदेव शास्त्री, शक्ति प्रपन शर्मा, जय प्रकाश उत्तराखण्ड़ी, डा0 गिरिजा व्यास, रमेश कुड़ियाल, पवन रावत, मुनिराम सकलानी, अर्पित मिश्रा, अखिलेश प्रभाकर आदि लम्बी सूची है। श्रीराम शर्मा प्रेम के बारे में महान साहित्यकारों ने नवभारत टाइम्स, धर्मयुग, सारिका, कादिम्बिनी, आजकल, दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक हिन्दुस्तान, युगवाणी, दूरदर्शन व आकाशवाणी से लेख, संस्मरण, साक्षात्कार निरन्तर प्रकाशित व प्रसारित किये। श्री राम शर्मा ‘‘प्रेम’’ शताब्दी के एक ऐसे जन कवि है जिनकी कविताएं कालजयी है। सौ वर्ष पूर्व भी लिखी कविताएं आज भी समकालीन है। इस महान कवि से आज की नईं पीढ़ी भी प्रेरणा ले रही है। उत्तराखण्ड के स्वाधीनता संग्राम सेनानी व राष्ट्र कवि श्रीराम शर्मा ‘‘प्रेम’’ को शत्-शत् नमन व सादर श्रद्धांजलि।

करो राष्ट्र निर्माण,

बनाओ मिट्टी से सोना,

बिना राष्ट्र निर्माण,

राष्ट्र कल्याण नहीं हो सकता।