उत्तराखण्ड चीन के रडार पर
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
आजकल भारत और चीन के मध्य लगातार तनाव की खबरें है। जो देश के लिए बड़ी चिन्ता का विषय बनती जा रही है।
पिछले दिनों नाथुला के पास उत्तर-पूर्व के रास्ते कैलाश मानसरोवर जाने वाले यात्रियों के दल को चीन ने बैरंग वापस भेज दिया। बहाना सड़क मार्ग ठीक न होने का था। लेकिन यह मात्र बहाना ही था, क्योंकि कैलाश मानसरोवर जाने के लिए इससे दूसरा सुगम मार्ग और कोई हो भी नहीं सकता। इसके पीछे के कारण अब सामने आ रहे है। अशान्त माने जाने वाले चीन के तिब्बत व शिन जियांग प्रान्त में चीन ने सड़कां व रेल मार्ग का निर्माण कर यहाँ सैकड़ों टन युद्व सामग्री जुटा ली है व आजकल कई महीनों से इस इलाके में चीनी सैनिक युद्व का अभ्यास कर रहे हैं। सम्भवतः कैलास जाने वाले यात्री इन गति विधियों को न देख पाये इसिलिए चीन ने यात्रियों को इस मार्ग से जाने की अनुमति नहीं दी है। सूचनाओं के अनुसार युद्व सामग्री सिक्किम सीमा पर नहीं, बल्कि उत्तरी तिब्बत इलाके में जमा की जा रही है। यहाँ से मात्र 6 घण्टे में युद्व सामग्री बॉर्डर तक पहुँचायी जा रही है। इसे पहुँचाने में यादांग-ल्यासा तक फैले रेल व सड़क मार्ग तैयार है। चीन के विवादित इलाकों में भारत के 2 लाख सैनिक बॉर्डर पर तैनात हैं। दूसरी ओर चीन के इन इलाकां में सैनिकां की संख्या 15 गुना कम है। लेकिन सड़क रेल सुविधाएं भारत पर भारी पड़ने की विशेष चेतावनी दे रहे हैं। भारत चीन के इस विवाद का असर निश्चित रूप से उत्तर-पूर्व से लेकर उत्तराखण्ड तक में दिखने लगा है।
1939 में जब द्वितीय विश्व युद्व शुरू हुआ था। उस वक्त हमारा देश अंग्रेेजों के अधीन था। विश्व युद्व में भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों की ओर से कई देशों में युद्ध में भागेदारी की व कई विदेशी सनिकां को युद्धबंदियों के रूप में कैद कर भारत की अस्थाई जेलों में बंद रखा। देहरादून, विकासनगर व चकराता के इलाकों में तार बाढ़ युक्त व टैन्ट कालोनियां बनाकर जेले बनाई गई थी। इन्हीं कैदखानों में ऑष्ट्रिया के प्रसिद्व पर्वतारोही हैनरिक हैरर व पीटर आफसनेटर भी बंदी बनाये गये थे। दोनों ने पहली बार 10-15 कैदियों के साथ किसी तरह जेल तोडकर तिब्बत की ओर भागे, लेकिन राजशाही के सैनिकों ने इन्हें उत्तरकाशी के कोट बंगला चौकी में पकड़ लिया व पुनः देहरादून पहुंचा दिया। अगली बार दोनां पर्वतारोहियों ने किसी और कैदी को शामिल करने के बजाय चुपचाप तार-बाढ़ को काटकर जंगली रास्ते का उपयोग करते हुए नेलांग-जादुंग का रास्ता चुना, जहां उन्हें गर्तांग गली नामक खतरनाक लकड़ी के पुल को पार करना पड़ा। फिर वे सीमा पार कर तिब्बत स्थित थोलिंग मठ पहुचें। थाग-ला-संग-चोला जैसे दर्रों को पार कर दोनों तिब्बत की राजधानी ल्यासा पहुचे। दोनों के पास कम्पास व तिब्बत का एक कच्चा नक्शा भी था। बाद में दोनों 7 साल तक दलाई लामा के मेहमान बनकर तिब्बत की शिक्षा, कृषि, सिचाई, विद्युत, रेडियो जैसे अनेक विकास कार्यों में जुडे। कई साल बाद हेनरिक हैरर ने तिब्बती अनुभवों को किताब भी शक्ल दी। ‘‘सेवन इयर्स इन तिब्बत’’ पुस्तक तिब्बत के बारे में जानने वाले शौकीनों के लिए किसी बाईबिल में कम नहीं है। इसी पुस्तक को आधार बनाकर हॉलीवुड की प्रसिद्व फिल्म का निमार्ण किया गया। जिसके मुख्य अभिनेता ब्रेड पिट थे। चीन ने तब इस फिल्म को अपने देश में दिखाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। यहां तक कि फिल्म के हीरो ब्रेड पिट को भी चीन आने की अनुमति कई वर्षों तक प्रदान नहीं की गई।
उपरोक्त विवरण से पाठकों को इस बात का आभास हो जायेगा कि उत्तराखण्ड में 356 किमी0 की तिब्बत सीमा सामरिक दृष्टि से कितनी अहमियत रखती है। उत्तरकाशी के भटवाड़़ी विकासखण्ड के हरसिल इलाके में बगोरी गाँव में जाड़, भोटिया समुदाय निवास करता है। 1962 के युद्व इस समुदाय को इसके मूल गाँवों नेलांग व जादुंग से विस्थापित कर सुरक्षित स्थानों में भेजा गया था। आज ये गाँव सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। हाल ही में उत्तराखण्ड सरकार ने नेलांग घाटी में पर्यटक गतिविधियों को बढ़ावा देने के मकसद से इसे पर्यटकां के लिए खोल दिया गया है। एक दिन में 250 पर्यटक जिला प्रशासन की अनुमति से इस अनछुए इलाके का भ्रमण कर सकते है। ये दोनों गाँव अब भारतीय सुरक्षा बलों की महत्वपूर्ण चौकियां है। अन्तिम गाँवों के बाद तिब्बत के पठार शुरू हो जाते है। जबकि भारतीय इलाका अत्यन्त दुर्गम है। यहां पर चीन के लिए भारतीय सैनिकां के मुकाबले ज्यादा सुगम इलाके है। भारत की सड़कां की हालत व उत्तरकाशी से गंगोत्री मार्ग की जो स्थिति है वह अत्यन्त दयनीय है। इसीलिए इस सीमा पर हवाई सेवा ही कारगर साबित होगी। चिन्यालीसौड़ में भरतीय वायु सेना लगातार अपने लड़ाकू विमानों से कई बार युद्धाभ्यास कर चुकी है। उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी के पश्चात् चमोली जनपद में नीती व माणा घाटियां तथा पिथौरागढ़ जनपद तिब्बत सीमा से जुडा है। यहाँ भी भारतीय सैनिकों की चौकियां स्थित है। मूलतः इन चौकियों की रक्षा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के हवाले है। लेकिन भारतीय सेना हर वक्त बैकअप के लिए तैयार है।
चमोली जनपद स्थित नीती घाटी में अधिकतर विवाद बना रहता है। यहां कई बार भारतीय सुरक्षा बल व चीनी सैनिकां के मध्य नोक-झोक के कई वाकिये सामने आये है। मलारी से आगे भारत व तिब्बत सीमा पर 51 वर्ग किमी में फैला विशाल बुग्याल है, जो सदियों से दोनों इलाकां के चरवाहां का स्वर्ग माना जाता है। बड़ाहोती नामक इस बुग्याल में भेड़ पालकों, याकों, घोड़े खच्चरों का बर्फ पिघलने के बाद पूरे गर्मी के मौसम में डेरा रहता है। यहां पूर्व में आपस में व्यापारिक गतिविधियां भी होती थी दोनों इलाके के लोगों के बीच अच्छे सम्बन्ध थे। यहां तक की रिस्तेदारी भी थी। लेकिन 1962 के युद्व के पश्चात् उत्तराखण्ड की सीमाओं से लगे भोटिया, जाड, तोलछा, मरछा जनजातियों ने अपने गाँव लगभग खाली कर दिये व निचले इलाको के सुरक्षित जगहो में बस गये इन जनजातियों को आरक्षण मिलने से इन्होंने अच्छी शिक्षा प्राप्त की व देश की महत्वपूर्ण नौकरियों में सेवायें प्रदान की। आज ये जनजातियां उत्तराखण्ड की सबसे प्रगतिशील समुदायों की श्रेणी में आता है। सीमावर्ती गाँवों को खाली करने का निर्णय आज देश में भारी पड़ रहा है। इन गाँवों में पलायन के कारण मानव शक्ति सीमाओं पर नहीं मिलने से आपातकालीन परिस्थितियों में दिक्कतें आती है। अब सरकारें इन इलाकों में पर्यटक गतिविधियां बढ़ाकर इस कमी को पूरा करने का प्रयास कर रही है। खाली पड़े इन इलाकों को चीन कई बार इन्हें अपने अधीनस्थ क्षेत्र घोषित करने का षड़यंत्र कर चुका है। चीन भारत के तनाव के मद्देनजर उत्तराखण्ड की सीमाओं पर चौकसी बढ़ाने की जरूरत है।
(यह लेख आप युगवाणी के अगस्त अंक में भी देख सकते हैं)
फोटो सौजन्य – तिलक सोनी, गूगल