एक पहाड़ी पत्रकार डा0 प्रकाश थपलियाल
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी ‘
भारत में टेलीविजन के लम्बे धारावाहिकों के संकल्पनाकर, कहानिकार, लेखक व उपन्यासकार मनोहर श्याम जोशी जी का आपने नाम अवश्य सुना होगा। हम लोग व बुनियाद जैसे टी.वी. सीरियल आज भी लोग याद करते हैं।
दूरदर्शन से सेवानिवृत होने के बाद उनकी कुर्सी टेबल पर बैठने का एक सौभाग्य भारतीय सूचना सेवा के नये नवेले ऑफिसर को मिला था। जब यह युवक पहली बार उस स्थान पर बैठा तो कई वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें सौभाग्यशाली करार देकर उस कुर्सी टेबल की प्रतिष्ठा को भी बरकरार रखने की बात की।
यह अधिकारी और कोई नहीं डॉ0 प्रकाश थपलियाल थे, जो हिमालय गजेटियर सहित कई महत्वपूर्ण पुस्तकों के अनुवादक व लेखक हैं। हाल ही में थपलियाल जी की एक महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित हुई है। जिसका शीर्षक है ‘‘उत्तराखण्उ रिंगसाइड व्यू ऑफ ए जर्नलिस्ट‘‘। प्रकाश थपलियाल वर्तमान में प्रेस इन्फोरमेशन ब्यूरो ;च्प्ठद्ध के उपनिदेशक हैं व देहरादून में रहते हैं। यह पुस्तक विशेष तौर पर पत्रकारों व पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए एक प्रेक्टिकल गाईड बुक है। प्रकाश थपलियाल ने आकाशवाणी के संवाददाता व समाचार सम्पादक के रूप में व बाद में विकास संचार क्षेत्र प्रचार अधिकारी रहते अपने अनेकों अनुभवों को इस पुस्तक में लिखा है। पांच अध्यायों में प्रथम अध्याय उत्तराखण्ड को समर्पित है। जिसमें उन्होंने उत्तराखण्ड आन्दोलन, भूकम्प, जंगलों में लगी आग, कुम्भ मेला, बांध, नन्दा देवी राजजात, केदारनाथ आपदा, प्राकृतिक आपदाओं के साथ आकाशवाणी संवाददाता के बतौर लिखी तथ्य परख रिर्पोटों का विस्तार से जिक्र किया है। आगे के अध्यायों पर लिखने से पूर्व पुस्तक लेखक के मन्तव्य पर कुछ कहना ठीक रहेगा। 1987 में दिल्ली आकाशवाणी में हिन्दी समाचार सम्पादक के रूप में कार्य करते हुए अचानक प्रकाश थपलियाल ने एक अनोखा निर्णय लिया, उन्हांने अपना स्थानान्तरण उत्तराखण्ड के सीमांत जनपद में करने का आग्रह किया तो सारे अधिकारी भौंचक्के रह गये। कहां तो लोग दिल्ली के मुख्यालय से हिलने का नाम नहीं लेते वहीं थपलियाल सारी आधुनिक सुख सुविधाओं को छोड़कर गोपेश्वर चले आये, जहां तब ना बिजली आपूर्ति ठीक थी न टेलीविजन थे, न बच्चों के पढ़ने-लिखने की पर्याप्त सुविधायें। दोनों बच्चों को लेकर जब उन्होंने दिल्ली छोड़ी तो लोगों ने उन्हें पागल तक करार दे दिया। थपलियाल लिखते हैं कि उनका पहाड़ प्रेम उन्हें गोपेश्वर ले आया जहां जिलाधिकारी भी पैट्रोमैक्स की रोशनी में काम करते थे। यहीं से प्रकाश थपलियाल को हर रोज आकाशवाणी व दूरदर्शन के लिए रात दिन रिर्पोंटिंग व समाचार भेजने पड़ते थे। दिल्ली आकाशवाणी में उन दिनों उनके कई साथी सेलिब्रिटिज बन चुके थे, समाचार वाचकों को लोग किसी हीरो से कम नहीं देखते थे। राजेन्द्र धस्माना, अजीज हसन, देवकीनन्दन पाण्डे जैसे अनेक प्रसिद्व नाम हर रोज उनके साथी थे। मीडिया के ग्लेमर से दूर थपलियाल क्यों पहाड़ आये इसका पता धीरे-धीरे पाठकों को होने लगा है। अगर प्रकाश थपलियाल पहाड़ न आते तो हमारी पीढ़ी को ई. टी. एटकिन्सन के अंग्रेजी भाषा में लिखे हिमालय गजेटियर के चार भागों का अनुवाद ग्रन्थ नहीं मिल पाता। इसी तरह जिम कार्बेट की प्रसिद्व पुस्तक ‘‘मैन ईटिंग लिओर्पाड ऑफ रूद्रप्रयाग‘‘ का हिन्दी अनुवाद ‘‘रूद्रप्रयाग का आदमखोर बाघ‘‘, जिम कार्बेट की जीवनी, गोरा साधु ऑस्कर वाइल्ट की प्रसिद्व कहानियों का हिन्दी अनुवाद पुस्तिका, जी. ए. ग्रिअरसन की लिखी ‘‘लैंग्वेजेज ऑफ गढ़वाली, कुंमाउनी, नेपाली और जॉनसारी‘‘ का हिन्दी अनुवाद भी पढ़ने को नहीं मिलता। इसी तरह आई. सी. एस. पन्ना लाल की अंग्रेजी पुस्तक ‘कस्टमरी लॉ ऑफ कुमॉऊ‘ का भी अनुवाद नहीं हो पाता। उपरोक्त महत्वपूर्ण पुस्तकों के हिन्दी अनुवाद से प्रसिद्व अंग्रेजी लेखकों के रचना संसार से हिन्दी भाषी पाठकां को एक नया स्वाद मिला, वहीं शोधकर्ताओं का कार्य काफी आसान हो गया है। डा0 प्रकाश थपलियाल ने न सिर्फ अनुवाद किया बल्कि अनेक पुस्तकों की भी रचना की है। राजकमल प्रकाशन ने उनकी दो पुस्तकों ‘‘पहाड़ की पगडण्डियां‘‘ कहानी पुस्तक व ‘‘कविता का गणित‘‘ कविता पुस्तक का प्रकाशन किया। पत्रकारिता को समर्पित उनकी एक महत्वपूर्ण पुस्तक कुछ वर्षों पहले ‘‘प्रेस मीडिया और जनसंचार‘‘ प्रकाशित हुई थी।
उत्तराखण्ड रिंगसाइड व्यू ऑफ ए जर्नलिस्ट इस कड़ी में उनकी दूसरी पुस्तक है जो उनके पत्रकारिता सरोकारों को समर्पित है। उत्तराखण्ड के पत्रकारिता इतिहास पर पिछले कुछ वर्षों में सीमित संख्या में पुस्तके आयी हैं लेकिन उनमें पत्रकारिता को लेकर एक ही तरह की सामग्री है जैसे पहला कौन समाचार पत्र था, उस समय के पत्रकार, अखबारों की सूची आदि, पर पत्रकारिता के अनुभवों पर आधारित उनकी यह पुस्तक अनोखी व अलग है। इस लिहाज से पत्रकारों को अवश्य इस पुस्तक का पाठन करना चाहिये व पत्रकारिता पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों व संस्थानों में यह अनिवार्य रूप से पढ़ाये जाने लायक किताब है। पुस्तक का दूसरा अध्याय ‘‘फेस इन द क्राउड‘‘ है। चिपको की महान नेत्री गौरा देवी से उनके घर में हुई अनोखी मुलाकात का स्वाद देती है, जहां कड़वाहट भी घुली हुई है। गौरा देवी के परिवार व गांव के लोगों का खुलेआम कुछ चिपको नेताओं का नाम लेकर यह कहा जाना कि काम उन्होंने किया लेकिन पुरस्कार कोई और उड़ा ले गया। लेकिन प्रकाश थपलियाल जी ने अपने लेख में बड़ी समझदारी से उक्त कथित व्यक्तियों के नाम का जिक्र नहीं किया। भीड़ के बीच से वे उभरते गायक किसन महिपाल की कहानी व संघर्ष को उठाते हैं तो वहीं हेमलता बहिन की जीजिविषा को भी एक पहचान दिलाते हैं। प्रसिद्व कहानीकार बल्लभ डोभाल के साथ गुजारे उनके किशोरावस्था व बाद में संघर्षों का जिक्र करना भी नहीं भूलते। लोक जन कवि गिरिदा, प्रसिद्व इतिहासकार डॉ0 शिव प्रसाद डबराल ‘चारण‘, चन्द्रकुवंर बर्तवाल, प्रसिद्व गौचर मेला के संस्थापक भोटिया जनजाति के बाला सिंह पाल के साथ वे जिम कार्बेट के जीवनवृत, संघर्षों का रेखा चित्र बड़ी खूबी से खींचते हैं।
तीसरा महत्वपूर्ण अध्याय मीडिया को समर्पित है। जिसमें पत्रकारिता मिशन पत्रकारों की मान्यता व मान्यता की आड़ में ब्लैक मैलिंग, ठेकेदारी, गलेदारी, शोषण को भी उठाते है। सामुदायिक रेडियो की महत्ता के साथ आकाशवाणी में हिन्दी न्यूज पूल सैक्सन के निर्माण के सस्मरणों को रोचकता से लिखते हैं। टेलीविजन चैनलों की टी. आर. पी. का सत्य व स्व प्रतिबन्ध तथा पेड न्यूज जैसे विषयों को बड़ी गम्भीरता से उठाते हैं। चौथे अध्याय में उनके कई व्यंग्य लेख सामिल हैं। तो अन्तिम अध्याय विविध में हिन्दी राष्ट्र भाषा सत्य है या कहानी व पारिस्थितिक पर्यटन की संभावनाओं पर भी बात करते हैं कुल मिलाकर ‘‘उत्तराखण्ड रिंगसाइड व्यू ऑफ ए जर्नलिस्ट‘‘ पुस्तक न सिर्फ पत्रकारों बल्कि उत्तराखण्ड के बारे में उत्सुकता रखने वाले पाठकों के लिए भी उतनी ही रूचिपूर्ण है। पुस्तक में सम्मिलित अधिकांश लेख समय समय पर अंग्रेजी पत्र पत्रिकाआें में पूर्व में भी प्रकाशित होते रहे हैं। प्रत्येक लेख में दिनांक व सन लिखने से सभी लेखों की प्रामाणिकता और भी बढ़ जाती है। इस महत्वपूर्ण पुस्तक को मुझे सौंपते हुए डा0 प्रकाश थपलियाल ऑटोग्राफ में लिखते हैं। मेरे प्रिय मित्र जयप्रकाश पंवार जेपी को सप्रेम जो मुझे इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए काफी लम्बे समय से जोर दे रहे थे। आखिरकार पुस्तक पाठकों के हाथ में पहुॅच ही गई। डा0 थपलियाल को ढेरों बधाई व शुभकामनायें।