November 24, 2024



जिन्हें पहाड़ों से प्यार नहीं

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रमेश पांडे


ये पहाड़ जहां के तुम हो और जहां पर तुम हो वो तुम्हारे हैं भी कि नही!


इन पहाड़ों पर तुम्हारी सभ्यता तभी तक सुरक्षित है जब जक ये पहाड हैं, खेत हैं , खेती है, नौले धारे-गधेरे हैं, नदियां हैं, हिमालय है। क्या तुम को अपनी सभ्यता पर नाज है। तुम्हारे झोड़े, तुम्हारी चाचरियां, तुम्हारे गीत, तुम्हारा संगीत, तुम्हारे किस्से, तुम्हारी कहानियां तुम्हारी ही हंै। सायद तुम इन्हें अपना मानते ही नही हो। यदि तुम इन्हें अपना मानते होते तो तो किसकी मजाल थी कि तुम्हरे खेतों को बड़ी बड़ी खदानों में बदल देता। यदि तुम्हें इन पहाड़ों , इन नदियों , इन गांवों, नौलों, धारों, गधेरों, अपने गीतों, अपने संगीत, अपने बोलों से प्यार होता तो तुम्हारी नदियां नही बिकती और तुम्हें जबरन प्रवासी बनने के लिये मजबूर नही किया जा रहा होता। अगर तुम्हें अपने से प्यार होता तो तुम्हारे वोटों से चुने गये प्रतिनिधियों की कोई मजाल नही होती कि वो कानून की आड़ में कोई भी ऐसा काम करते जो तुम्हारे वजूद को झकझोर रहा हैं। घर घर तक कम्पनियों की महंगी पर जान लेवा शराब पहुचाने का काम कौन किस के इसारे पर और क्यों कर रहा है। अमीरों को और अमीर बनाने के लिये इन कमजोर पहाड़ों पर बड़े बड़े विनाशकारी बांघ कौन किस के इसारे पर किस के लिये बना रहा है। उन्हें अमीर और अमीर बनने के लिये बिजली बनानी है, वे अपने लिये बिजली बनाने के लिये तुम्हारे झोड़े, तुम्हारी चाचरियां, तुम्हारे गीत, तुम्हारा संगीत, तुम्हारे किस्से, तुम्हारी कहानियां तूम से छीन लेना चाहते हैं, सायद तुम इन्हें अपना मानते ही नही हो। यदि तुम इन्हें अपना मानते होते तो तो किसकी मजाल थी कि तुम्हरे खेतों को तुम से छीन लेते। इस छीना झपटी में तुम्हारे वोटों से जीत कर सरकार बन गये लोग तुम्हारे साथ नही वरन तुम्हारे खिलाफ खड़े हैं। वो तुमने जिन्हें कानून बनाने की शक्ति दी वो अपनी खुशी के लिये तुम्हारे हलक तक मीठा जहर पहुंचाने के लिये नेशनल हाई वे को जिला सड़क बना देते हैं। तुम्हारे झोड़े, तुम्हारी चाचरियां, तुम्हारे गीत, तुम्हारा संगीत, तुम्हारे किस्से, तुम्हारी कहानियां तुम्हारी हैं ही नही। सायद तुम इन्हें अपना मानते ही नही हो। यदि तुम इन्हें अपना मानते होते तो तो किसकी मजाल थी कि वो ऐसे ऐसे कानून बना देते हैं कि जंगल के खूंखार जानवर तुम्हारे खेतों तुम्हारे गांवों पर कब्जा कर लेते हैं। तुम खूंखार जानवर के रूप में स्थापित करवा दिये गये अपने दुशमन को मार भी नही सकते हो। तुम समझना ही नही चाहते हो कि तुम्हारी तुम्हारी सबसे बड़ी समस्या तुम्हारी आस्था है जिसे उन्होने अपनी ताकत बना लिया है। जब तक तुम अपनी आस्था को उन से मुक्त नही करवाते हो तब तक मैं कैसे मान लूं कि तुम्हें अपने आप से और अपने इन पहाड़ों , इन नदियों , इन गांवों, नौलों, धारों, गधेरों, अपने गीतों, अपने संगीत, अपने बोलों से प्यार। जिस दिन तुम अपनी आस्था को आजाद करवा लोगे उस दिन तुम वोट दोगे नही वरन डालोगे। जिस दिन तुम वोट की ताकत को स्वहित में समझ जाओगे उस दिन सब सफ सीधा हो जायेगा और जो कुछ तुम्हारा है वह तुम्हारा हो जायेगा।


लेख़क वरिष्ठ पत्रकार हैं 

फ़ोटो – मुकेश पंवार