गाथा एक गीत की

जयप्रकाश पंवार ‘जेपी ‘
यह बात 1989 के आस-पास की है जब मेरी मनु से पहली मुलाकात हुई। मैं श्रीनगर बस अड्डे पर भवाली जाने वाली रोडवेज की पहली सीट पर बैठा मनु का इन्तजार कर रहा था।पत्रों के सिलसिले से ही यह सूचना मिली थी कि फला तिथि को मनु पौड़ी से सुबह-सुबह श्रीनगर पहॅुचेंगे व फिर हम दोनों भवाली होते नैनीताल पहॅुचेंगे।
नियत समय पर मनु पहुॅच गया तो खुशी का कोई ठिकाना न रहा। लम्बी दूर यात्रा करने के अनुभवों का यह पहला-पहला सिलसिला था। श्रीनगर में बी0 एस0 सी0 की पढ़ाई के दौरान ही लिखने-पढ़ने व पत्रकारिता का शौक जोर मारने लगा था। छुट-पुट लेखन 2-3 साल से चल ही रहा था। लेखन के कारण ही मनु जैसे अनेक मित्रों से मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा। उस दौरान पत्रकारिता का कोर्स केवल श्रीनगर में ही होता था। आज की तरह हर गली में पत्रकारिता करवाने वाले न संस्थान थे न कोई विश्वविद्यालय। यहॉ तक कि कुमॉऊ विश्वविद्यालय में भी पत्रकारिता का कोई विभाग नहीं था। लेकिन नैनीताल समाचार था जो डिग्री बॉटने के बजाय हम जैसे युवाओं को एक पूरी पीढ़ी की पत्रकारिता के गुर सिखाने का कार्य कर रहा था। वहीं गढ़वाल में ‘युगवाणी‘ ऐसी ही भूमिका निभा रहा था। मनु और मैं नैनीताल समाचार के सक्रीय संवाददाताओं में थे व नैनीताल में समाचार की वार्षिक बैठक में शामिल हो रहे थे। रात को नैनीताल के बस अड्डे पर उतरे तो चारों ओर कोहरा लगा हुआ था। ठंड से हालत खराब थी। लोगों से अशोक होटल तल्ली ताल का अता पता पूछा और पहॅुच गये वहॉ जहॉ बुर्जुग व अधेड़ किस्म के लोग हमारे स्वागत के लिए खड़े थे। जैसे ही मनु व मैंने अपना परिचय दिया तो वे सब चौंक पड़े। दो किशोरवय किस्म के बच्चे पत्रकार उनके समक्ष थे। मनु तो मुझसे 2-3 वर्ष छोटा ही रहा होगा 15 या 17 साल का। सबसे पहले गले लगाने वालों में से एक थे गिर्दा वो मजाक करते कहने लगे तुम लोग तो ऐसा लिखते हो जैसे कोई घघाड़ बूढ़े पत्रकार होंगे, फिर उन्होंने दिल से गले लगाया। गोविन्द पंत ‘राजू‘, महेश जोशी, तरूण जोशी, हरीश नैनवाल, पूरन बिष्ट, डॉ0 शेखर पाठक, व राजीव लोचन साह सभी से पहली साक्षात मुलाकात हुई। सबसे खराब लगा कि रमेश पाण्डे ‘‘कृषक‘‘ नहीं दिखे। कृषक ने ही मुझे नैनीताल समाचार से जोड़ने में पहली भूमिका निभाई थी। एक-दो दिन की बैठक फिर सॉय को नैनीताल की सैर, नैनीताल से श्रीनगर आने जाने के मध्य दिवालीखाल-गैरसैंण की चाय छोले व गैरसैंण की 3-4 दुकानों का गॉव सब मन में स्मरण के रूप में आज भी तैर रहा है। मनु और मैं आज भी नैनीताल समाचार, पहाड़ जैसे लेखकीय प्रतिवद्वताओं के साथ अपने को शामिल रखते हैं। मनु को लेखन व पत्रकारिता की बुलन्दियों पर पहुॅचते हुऐ देखना मन को शकून देता है। छोटे पत्र-पत्रिकाओं में लिखते-लिखते अमर उजाला, सहारा समय, स्टार न्यूज व अब इंडिया टीवी में सीनियर प्रोड्यूसर होने के साथ मनु आज राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्व व्यंग्य लेखक के रूप में उभर रहे नये सितारे हैं। मनु की व्यंग्य पर कुछ पुस्तकें भी सामने आयी हैं। इसी महीने की 16 तारीख को मनु का ह्वाट्स एप पर एक संदेश आया कि उसकी नई किताब ‘‘गाथा एक गीत की‘‘ का विमोचन देहरादून में हो रहा है लेकिन पहाड़ों की कन्दराओं में होने के कारण यह संदेश नहीं मिला लेकिन 17 तारीख को जब देहरादून आना हुआ तो सॉय को एक सरपराईज फोन आया कि मैं मनु बोल रहा हुॅ, कल आपको पहुॅचना ही है। अब भला मैं अपने को कहॉ रोक पाता एक मित्र को मिलने, एक छोटे भाई को मिलने लगभग 24 साल बाद।
‘‘गाथा एक गीत की‘‘
बहुत समय के बाद एक ऐसी पुस्तक व विषय सामने आया जिस पर कोई सोच भी नहीं सकता था। भला एक गीत पर पूरी शोध परक पुस्तक आ सकती है। लेकिन इस असंभव से विचार को पुस्तक के रूप में अगर कोई सुधी लेखक व जागरूक पत्रकार सामने ला सकता था वह मेहरबान पंवार ‘मनु‘ ही हो सकता था। प्रसिद्व लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी की कालजयी रचना जिसने पहाड़ी राज्य की राजनीति में भूचाल खड़ा कर दिया था। जिस गीत ने उत्तराखण्ड की राजनीति की चूलें हिलाकर सत्ता को उखाड़ फेंकने का काम किया था। ऐसे गीत पर शोध परक विवेचना समय की जरूरत थी। लेकिन पहाड़ी राज्य व यहॉ के लोगों की मनोस्थिति, कार्यप्रणाली व मनोदशा का एक मनोविज्ञान हमेशा रहा है। लोग आन्दोलन करने के बाद जल्दी बातों को भुला भी देते हैं। चिपको आन्दोलन चला, बहुत काम हुऐ फिर लोग भूलकर आगे बढ़ गये। उत्तराखण्ड आन्दोलन हुआ राज्य भी मिल गया फिर भूल गये। सत्तायें आयी, जिनका आन्दोलन से कोई लेना देना नहीं रहा, जो जीवन भर पृथक राज्य का विरोध करते रहे वे ही यहॉ के मुखिया बन बैठे। अपने नाते रिस्तेदारों, सगे सम्बन्धियों को सत्ता के प्रबन्धन में बिठा गये। भ्रष्टाचार चरम पर पहॅुचा। राज्य को बेच दिया गया लेकिन कोई सामने नहीं आया। लेकिन सदा की भॉति इस असमंजस की स्थिति को तोड़ने का एक बार फिर वक्त आया जब ‘‘नौछमी नारेण‘‘ गीत से नरेन्द्र सिंह नेगी ने सत्ता को उखाड़ फेंका लेकिन जल्दी ही लोग भूल गये। कोई उपाय कोई विकल्प नहीं देखा तो सत्ताओं को बदलने का काम किया लेकिन चोर-चोर मौसेरे भाईयों में ही सत्ता का बॅटवारा होता रहा। आज की स्थिति यह कि राज्य के लोगों को आगे की कोई राह नहीं दिखाई दे रही है। ‘‘गाथा एक गीत की‘‘ पुस्तक ठीक ऐसे ही समय पर आयी है जब पहाड़ी राज्य के लोगों को पुनः राज्य की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक समीक्षा करने की जरूरत है। यह पुस्तक एक आशा जगाती है। मनु ने इस पुस्तक को लिखने में एक संवेदनशील शोध छात्र होने का परिचय भी दिया है। पी0 एच0 डी0 के मानकों व नियमों का पालन कर मनु ने प्रत्येक भाग में सन्दर्भो की सूची भी दी है जो इस पुस्तक की विश्वसनीयता को और भी मजबूती देती है। और भविष्य में आने वाले शोधार्थियों व छात्रों के लिए एक अतिमहत्वपूर्ण सन्दर्भ पुस्तक भी बना देती है। एक गीत को पुस्तक बनते देखना एक अनुभव से गुजरने जैसा है। गीत की पृष्ठभूमि से लेकर वर्तमान तक हुई पल-पल की घटनाओं को रूचिपूर्ण व शोधपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करना ‘मनु‘ की लेखकीय क्षमताओं को ही दर्शाता है। इसमें मुझे कोई शक शंका भले कैसे हो सकती है। उत्तराखण्ड के लोक मानस में बिखरे गीतों का संग्रह व विवेचना पर पहाड़ के विद्वानों ने समय-समय पर वृहद अध्ययन व विवेचन किया है। लेकिन सिर्फ एक गीत को लेकर लगभग 248 पृष्ठों की पुस्तक तैयार करना किसी चुनौती से कम नहीं है। गीत के शीर्षक की गहरी पड़ताल से लेकर गीतों से आन्दोलन बनने की कहानी, सत्ता परिवर्तन व सत्ता सुख भोगते लोगों की बदलती निष्ठायें, संस्थाओं का बदलता चरित्र सभी कुछ पुस्तक ने खोल कर रख दिया है। पुस्तक की विशेषता है कि कहीं भी मनु ने इसमें अपने विचार व भावनाओं को थोपा नहीं है। एक शुधी लेखक व प्रोफेशनल पत्रकार के तौर पर घटनाओं को उसी रूप में सामने रखा है जैसी वो घटी थी, लिखी गई थी इस लिहाज से ‘‘गाथा एक गीत की‘‘ पुस्तक सत्य व ईमानदारी से लिखा गया एक गीत का महाग्रन्थ है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सत्ता की चाटुकारिता करने, लिखने वाले लोगों के लिए मनु ने यह भी संदेश दिया है कि मनु ने नरेन्द्र सिंह नेगी के गीत की न तो चाटुकारिता की, न प्रसंशा की न ही उन्हें भगवान ठहराने की कोशिश की। मनु ने अपनी लेखकीय निष्पक्षता के साथ ‘‘नौछमी नारैण‘‘ की एक गाथा लिखी है। जिसमें नौछमी नारैण गीत की उत्पत्ति उसके प्रभावों पर लिखने, पढ़ने, गाने, आन्दोलन करने वाले, फोटो व कार्टून बनाने वाले, टीका टिप्पणी करने वाले, शोध व अध्ययन करने वाले स्थानीय, राज्य, देश व अर्न्तराष्ट्रीय लोगों के विचारों को समग्र रूप में प्रस्तुत करने का कार्य किया है। ‘‘गाथा एक गीत की‘‘ पुस्तक रोचक बन पड़ी है। एक बार पढ़ना शुरू करोगे तो अन्त तक पढ़ते ही रहोगे। यह पुस्तक पहाड़ी राज्य की दुर्दशा पर उभरते जन आक्रोश को स्वर देने का कार्य करेगा व निश्चित तौर पर पहाड़ के लोकप्रिय, जनप्रिय, लोकगीत लेखक व लोक गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी को भी संजीवनी देने व उत्प्रेरित करने का कार्य करेगा। पुस्तक विमोचन के अवसर पर सभी ने नरेन्द्र सिंह नेगी जी की अनुपस्थिति शिद्दत से महसूस की। सड़कों के क्षतिग्रस्त होने के कारण वे विमोचन समारोह में उपस्थित नहीं हो पाये। लेकिन ‘‘गाथा एक गीत की‘‘ पुस्तक पर गीत के सृजनकर्ता, गायक व गीत के प्रभावों को प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष, परोक्ष व अपरोक्ष रूप से भुक्त भोगी जन प्रिय लोक गायक की क्या राय है यह तब तक रहस्य ही रहेगा जब तक नरेन्द्र सिंह नेगी पुस्तक के बारे में कुछ नहीं कहते?
मनु की अनुपम भेंट ‘‘गाथा एक गीत की- द इन साइड स्टोरी ऑफ नौछमी नारैण‘‘ वर्तमान समय की एक अलग धारा पहाड़ के सराकारों से जुड़े लोगों को यह एक नया रास्ता सुझाती है कि कैसे एक गीत लोगों की जीवन धारा को बदल सकता है, सत्ता को उखाड़ फेंक सकता है और यह भी ईशारा करता है कि चीजें बहुत ज्यादा नहीं बदली हैं। पहाड़ी राज्य की वर्तमान दशा दिशा बदलने के लिए एक नये गीत की आवश्यकता है एक नये आन्दोलन की जरूरत है, फिर एक नई धारा की जरूरत है। भुला मनु को पुस्तक के सफल प्रकाशन पर ढेर सारी बधाईयॉ व प्यार।