तीरथ पर दांव – लाये तीरथ बनें आये तीरथ
वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
2022 के होने वाले उत्तराखंड विधान सभा चुनावों में तो भाजपा यह अवश्य चाहेगी कि उन चुनावों में एक बार भाजपा एक बार कांग्रेस का सत्ता में आने का क्रम टूट जाये।
वैसे ऐसे भी लोग होंगे कि जो चाहें सिलसिला तो टूटे पर ये दोनों दल न आयें। भले ही चार साल पूरा करते करते हटाये गये मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत कहें कि उनके कारण जानने के लिए दिल्ली जाना होगा। किन्तु तीरथ सिंह तो जानते ही उन्हे ही क्यों सांसद रहते हुए मुख्य मंत्री बनने के लिए देहरादून भेजा गया है। दूनअतः भाजपा तो चाहेगी यह क्रम इस बार टूटे। संभवतः इसके लिए भी भाजपा ने कुछ सोच कर अपने लगभग चार साल के मुख्यमंत्री को पदच्युत किया होगा। पूर्व मुख्यमंत्री बी सी खंडूड़ी तो नहीं लाये जा सकते थे पर तीरथ सिंह रावत को लाकर उन जैसा एहसास तो देने की कोशिश की ही है। एक साफ सुथरे व सरल व्यक्ति की छवि तो है ही उनकी। परन्तु पौलीटिकली इनकरेक्ट या सीमित जानकारी के कारण व जैसे वे सोचते थे वैसे साफ साफ बोलकर उन्होने सेल्फ गोल तो राष्ट्रीय स्तर पर बैड पब्लिसिटी पा कर ही दिये हैं। कुंभ भी मोदी है तो मुमकिन है का उदघोष कर भी भव्य नहीं हो पाया। उनके बयानों से केन्द्रीय नेतृत्व भी असहज हुआ होगा। बदलाव से एक फायदा तो हो ही जाता है। आम जन में यह भाव तो पैदा किया ही जा सकता ये तो अभी अभी आये हैं इनको काम का मौका दिया जाना चाहिए। और कुछ नही तो पुराने मुख्य मंत्री के विवादास्पद फैसतों पर स्थगन या उनको रदद करवाने का काम तो करवा ही लिया गया है।
अंदेशा तो यही है कि अगला चुनाव में विकास के मुददे पर खासकर चार साल के जीरो वर्क के टैग से भाजपा बढ़त नहीं ले सकती है। डबल इंजन के विकास से ज्यादा डबल इंजन की आपदाओं से लड़ने की तस्वीर मुख्य रहेगी। हो यह भी सकता है कि जैसे लेख लिखने तक मोदी सरकार की कोरोना संक्रमण से निपटने में किरकिरी हो रही है तो उसका खामियाजा भी राज्य सरकार को भुगतना पड़ सकता है। गांव गांव में कोरोना प्रसार के जोखिमों के बीच अनुमानतः कोरोना की दूसरी लहर में एक लाख से ज्यादा प्रवासी उत्तराखंड लौट सकते हैं। गैरसैण में बिचली गांव खनसर पटटी आइसोलेशन। पर्वतीय दुर्गम गांवों में भी जगह जगह कंटेनमेंट जोन बनाने की व वहां सामान पहुंचाने की सरकार को जिम्मेदारी संभालना आसन न होगा। डाक्टरों की सेवा पहले ही अंतरालों तक नहीं थी। अब डाक्टरों और फ्रंट लाइन पैरा मेडिकल कार्यकर्ताओं के भी संक्रमित होने से स्थितियाँ और ही मुश्किल होंगी। जून से अगस्त का महिना वैसे भी राज्य के लिए बरसाती आपदाओं व बादल विस्फोटों का भी समय होता है। जान माल का भारी नुकसान होता है।
भाजपा के भीतरी मांग व दबावों जैसे लाल बत्तियों के आबंटन या दायित्वधारियों का मनोनयन के प्रबंधन के बजाये राज्य के आपदाओं के प्रबंधन की मुख्यमंत्री की साख निश्चित करेगी व उनके अपने दल के बाहर आम जन में समर्थकों को पैदा करेगी। क्हीं मैने पढ़ा था कि मुख्यमंत्री ने कहा था कि अभी मेरी पहली प्राथमिकता महाकुंभ ठीक से करवाना है और मैने अभी दायित्वधारियों पर सोचा नहीं है। दल हित में दायित्वधारियों को बनाना आवश्यक लग सकता है किन्तु राज्य वितिय हित में ऐसा नहीं है। उनके निर्वाचित होने के लिए विधान सभा सीट की तलाश की चिंता पार्टी को करना चाहिए यदि वे इन्हें इसी उददेश्य से लाये हैं कि वे आगामी विधान सभा चुनावों के बाद फिर भाजपा को सत्ता दिलायें। इसका आशय यह भी है कि कुंभ में भी तीरथ सरकार की असफलता हुई है। वैसे इसमें दिक्कत नहीं होनी चाहिए क्योंकि उप चुनाव के बाद बचे कम दिनों में ही आगामी विधान सभा चुनावों की घोषणा हो जायेगी। इसके साथ ही यदि कोई कैबिनेट मंत्री भी मुख्यमंत्री के लिए सीट छोड़ता है तो उसके बाद भी वो बिना निर्वाचित हुए छ माह तक रह सकता है।
इस समय तो मुख्यमंत्री को कोरोना प्रबंधन और चार घाम यात्रा के संचालन व व्यवधानों की दशा में राजकीय व पारिवारिक आर्थिकी की वैकल्पिक क्षतिपूर्ति के मिशनरी काम में जुटे रहने के लिए दलीय समस्याओ से मुक्त स्वतंत्र छोड़ना चाहिए। अभी चार धाम यात्रा शुरू नहीं हुई किन्तु अंदेशा यही है कि जैसे भी चलेगी वह यात्राओं पर निर्भर ग्रामीणों व विभिन्न सेक्टर के कारोबारियों को धर या बिना घाटे के व्यवसाय चलाने लायक आय नहीं दे पायेगी अभी तक राज्य सरकार का वैकल्पिक पैकेज व बी प्लान आ आ जाना चाहिए था। जिससे जो दस्तावेज जुटाये जाने हैं जो आवेदन करने हैं या उस प्लान में जो संशोधन करने हैं उन पर विमर्श होता। जो दिख नहीं रहा है। तो सार में आदेश निर्देष समौखिक से काम नहीं।
21 अप्रैल 2021 अपेल को इन दोनो मुददों को जोड़ते हुए नैलीताल हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश वाली दो सदस्यीय बेंच अपनी तीखी मौखिक टिप्पणी मुख्य सचिव को सुना चुकी है। बेंच का कहना था कि हम चार धाम यात्रा को दूसरा कुंभ नहीं बनने दे सकते हैं। हमें चार धाम यात्रा की एस ओ पी बताइये। अर्थात कोर्ट भी सेचता है कि महाकुंभ में आपदा प्रबंधन ठीक नहीं था। यदि दोनो जगह चूके तो आगामी विधानसभा चुनावों में इन मुददों पर जबाब देना मुश्किल हो जायेगा। आदेश नहीं काम बोलेंगे। कोविड केयर सेंटर व अस्पतालों का निरिक्षण जैसी जमीनी पहल जमीनी काम के उदाहरण हैं। वे इसके लिए अंतराल में भी प्रवास कर सकते हैं। जैसे उन्होने महाकुंभ में अपनी शपथ लेने के बाद हरिव्दार में कहा था कि यदि जरूरत हो तो मैं यहाँ रहने के लिए तैयार हूं वैसे ही उन्हे अंतराल की समस्याओं के समाधान के लिए भी कहना चाहिए। उत्तराखंड नकली दवाइयों का भी हब रहा है। इसके अलावा किडनी प्रत्यारोपण से जुड़े अवांछनिय कांड भी यहां हुए हैं। कोरोना आपदा में दवाइयों, प्रोटेक्शन किटों, व आक्सीजन सिलेण्डरों, बेडों में काला बाजारी, दलाली व पीपीपी मोड के अस्पतालों पर यकीनन जीरो टोलरेंस होनी चाहिए। ऐसे ही एक अस्पताल के बारे में एक पूर्व मंत्री ने कहा कि जब वे वैक्सीनेशन के लिए वहां गये तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया।
राज्य को आपदा की परिरिस्थितियों से बचाना मुख्य मंत्री की साख बनायेगा। कोरोना संक्रमण की सुनामी व उसकी लहरों में आईं कहरो के बावजूद बाहर के राज्य से आने वालों के बिना भी काम नहीं चलेगा क्योंकि तीर्थाटन पर्यटन ही नही नहीं शिक्षण संस्था व राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों के कारण आवाजाही तो लचीली रखना ही ही होगी। ऐसे में भी कोरोना प्रसार प्रबंधन पर असरकारी होना आवश्यक रहेगा।
भविष्य मे कोरोना जनित आर्थिक सामाजिक मुश्किलों से निपटने की प्रथम चरणीय तात्कालिक सोच व रणनीति सरकार की एस ओ पी यानि मानक कार्यवाही प्रक्रिया में यह परिलक्षित होनी चाहिए। पलायन आयोग व उपनल के इस संबंध में आने वाले एक लाख से ज्यादा प्रवासियों के बीच बहुत काम करना पड़ेगा। अभी तो ये धूमिल छवि को ढो रहें हैं। इन दोनो संगठनों को उनके दायित्व में जिन समस्याओ का समाधान होना है वे मुख्यतया के बजाये जिला स्तर की रण नीतियों से सुलझेगी। चकबंदी व कृषि सुधारों व नशे के प्रसार को रोकना इसके औजार हो सकते हैं। भ्रष्टाचार कम करने में ई गवर्नेंस की महत्वपूर्ण भूमिका है। परन्तु यह कथा सब जानते हैं कि उत्तराखंड की कई महत्वपूमर्ण ई साइटें महिनों महिनों अपडेटेड नहीं होता है। डिजिटल गवर्नेंस के लिए डाटा से अपडेट तो करना ही होगा। नये मुख्यमंत्री एक छोटी सी बात तो कर ही सकते हैं कि दस ग्यारह विभाग जो अपने पास रखें हैं स्वयं ही आमजन की तरह उनके वैबसाइटों पर पहुंच कर देखें कि वे अपडेटेड हैं कि नहीं।
फरवरी 2021 में आई ऋषिगंगा, घौलीगंगा तपोवन त्रासदी की बात करें तो दोषी परियोजना वालों पर नकेल कसने का पिछली सरकार का बहुत अच्छा रिकार्ड नहीं रहा है। और न ही अब तक इस पर तीरथ सरकार ने कोई नया प्रभावी कार्य किया है। कभी लिखीत आदेश का आधिकारिक उदाहरण नहीं आता है ऐसा वे सभी मुख्यमंत्रियों के साथ करते हैं। हादसे पर कोई बयान नहीं। सुरंग में जो फंसे सो फंसे। उस घटना केबाद के प्रभाव अभी भी जारी हैं। घटना के दो महिने बाद भी श्रीनगर के नागरिकों के हर घर नल में गंदा जल आता रहा तो जबाब अभियंता से मिला कि ऋषि गंगा धौली गंगा की आपदाओं के बाद पानी में इतनी मिटटी आ रही है कि फि!ल्टर भी काम नहीं कर रहें हैं। आपदा नियंत्रण में ज्यादा से ज्यादा मदद करनी चाहिए जैसे जंगल की ब आग के नियंत्राण परन्तु अंततः बैशाखियां नहीं अपने ही संसाधन काम आयेंगे। राज्य के गैर सरकारी व निजी संस्थनों को यदि वे सरकार का साथ देने के के लिए धन मानव संसाधन व मदद के लिए प्रेरित कर सकें परन्तु इसके लिए अधिकारियों को ऐटीटयूड बदलने को कहना होगा।
राज्य की छवि सुधारने का भी दायित्व बहुत दायित्व है उनके कंधो पर। जैसे आम धारणा है कि जैसा तैसा शासन तो राज्य सरकार चलाती है किन्तु राज्य में सुशासन तो नैनीताल हाईकोर्ट चलवाता है। आमूल चूल ये धारणा बदलनी चाहिए। खुद शासन को ऐसे काम करनं चाहिए। औली में गुप्ता बंधुओं के परिवार की शादी संवेदनशील औली में प्रतिबंधों में हाईकोर्ट करवाता है। जंगलों की आग बुझवाने का काम भी कोर्ट करवाता है। 2013 की केदारनाथ आपदा के लापतों कोॅ ढूंढवाने का काम भी कोर्ट करवाता है। कुंभ में कोरोना के प्रतिदिन की जांच की संख्या भी कोर्ट तय करवाता है। कूड़ा भी कोर्ट उठवाता है तो आरोपित मंत्रियों के बार बार अपराधिक मुकदमों को वापस लेने की बार बार की मण्डलीय आदेशों को कोर्ट ही रदद करता है। नवीनतम सख्त मौखिक टिप्पणी जो 21 अप्रैल 2021 की थी चर्चा तो हो ही गई है। इसमें सरकार से पूछा गया था कि आगामी मई से होने वाली चार धम यात्राओं की क्या तैयारी है। क्या उसके लिए कोई ऐस ओ पी बनाई है। हम उसे दूसरा कुंभ हुआ नहीं देखना चाहतक हैं। गंगोत्री ग्लेशियर्स गोमुख के पास गंदगी हटाने का आदेश भी हाईकोर्ट ही देता है। सितम्बर 2016 में उराखंड उच्च न्यायलय ने राज्य सरकार को यह आदेश दिया था, कि चार धाम यात्रा को दृष्टिगत रखते हुए शराब का बीयर समेत रखना, वितरण करना, संग्रहण करना , बिक्री और खरीद करना या उसका सेवन करना, उत्रकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिले मे पूरी तरह प्रतिबधित किया जाये। इस निर्णय को 1 अप्रैल 2017 से लागू किया जाना था। संभवतया इस पर तब स्थगन लिया गया था। कोर्ट बार बार मुख्य सचिवों सचिवों व अन्य अधिकारियों को उनके व्दारा आदेशों के न पालन होने पर या जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष या सरकारी कार्यवाहियों या निष्क्रियता के लिए तलब करता रहा है। खुद भ्रष्टाचारी न होना बड़ी मिसाल है। किन्तु केवल उससे राज्य में भ्रष्टाचार कम नहीं किया जा सकता है। भ्रष्टाचारियें को सजा देना दिलवाना एक दूसरा पहलू है। परन्तु ऐसा वातावरण पैदा करना जिससे कोई भ्रष्टाचार की हिम्मत न करे या लोगों को भ्रष्टाचार व दलाल के माध्यम से काम न करवाना पड़े लक्ष्य तो यह होना चाहिए। नये मुख्यमंत्री के काल में ही एक निदेशक स्तर का अधिकारी आयुर्वेद प्रैक्टिस करने के लिए एक आयुर्वेद डीप्लोमा धारी से घूस लेता पकड़ा गया है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार व पर्वतीय चिन्तक हैं.