November 23, 2024



संताप संवाद क्या अरण्य रोदन ही बन जायेगा

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वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली


भले ही कोई सत्ताशीन लोगों को प्रमाणों के साथ दोषी न ठहरा सके परन्तु जो दोषी हैं उनकी अंतरात्मा जरूर जानती होगी कि


एक राजनेता के रूप् में प्रशासनिक अधिकारी के रूप में या ठेकेदार या दलाल के रूप में अपने फायदे के लिए चाहे वो नाम का हो धन का हो या वोटों का हो जल विद्युत्त परियोजनाओं से घर परिवारों व उत्तराखंड के संवेदशील समुदाय में दुख संताप व कुछ न कर सकने का मानसिक अवसाद लाने के जिम्मेदार हैं। कुंद चेतना आत्मग्लानि नहीं बल्कि उस दौरान जबकि तपोवन ऋषिगंगा की त्रासदी में मृत व गुमशुदा लोगों की खेज जारी है ऐतहासिक डूबी टिहरी के ऊपर झील महोत्सव मना कर आल्हादित है तो लगता है. कि गौरा देवी और सुमन को हमने स्मृति में नहीं विस्मृति में रखने की राह पकड़ ली है । यह जो कुछ मैं लिख रहा हूं मैं 70 के दशक में राज्य के मद्य निषेध आन्दोलन, टिहरी बांध विरोधी आन्दोलन व उत्तराखंड विश्वविद्यालय आन्दोलन के अपने सक्रिय जुड़ाव के दौरान व बाद में अपने सामाजिक जीवन में आम जन के साथ के अनुभव के आधार पर लिख रहा हूं कि अति की इतिश्री आहट दे रही है।


मैं साथी विमल भाई के माटू जनसंगठन व्दारा भेजे गये मेल को पाकर  उनसे 17 फरवरी को धौली गंगा क्षेत्र से लौटते हुए बातचीत से उनकी अनुमति पाकर हूबहु उस विज्ञप्ति को प्रस्तुत कर रहा हूं जिसने मुझे इस लेख की शुरूआत के पहले के अंशों को लिखने के लिए विवश किया। यह सन्नाटा जरूर टूटेगा। बर्फ पिघलेगी तो प्रलय आयेगी। दिल्ली वाले इस त्रासदी के बाद पीने के लिए उने मटमैला दूषित पानी मिलने से बेचैन हैं। हम तो चाहेंगे कि हिमालयी दिवस की शपथ खोखली न रहें। उसका पानी बचायें अन्यथा सैलाब भारी पड़ेगा। 7 फरवरीए 2021 को तपोवन गांव स्थित बैराज के गेट बंद थे। जिस कारण से तेजी से बहता पानी गेट से टकराकर बांयी ओर स्थित हेडरेस्ट टनल में घुस गया। आज अपने ही मजदूर व कर्मचारियों के परिवारों के जीवन की बर्बादी की जिम्मेदार एनटीपीसी है।

यह दुर्घटना पूरी तरह सुरक्षा प्रबंधों की अवहेलना और आपराधिक लापरवाही का नतीजा है। हम ग्लेशियर टूटने या ग्लोबल वार्मिंग को दोष देकर लोकल वार्मिंग के मुद्दे को नहीं छुपा सकते।
अफसोस है कि उत्तराखंड में सरकार ने एक दिन का शोक तक नहीं घोषित किया. एनटीपीसी ने भी एक शोक प्रस्ताव का स्टेटमेंट तक नहीं निकाला। क्या मात्र 4 लाख रुपये पर इन मेहनतकश मज़दूरों की जिंदगियों की कीमत है, जिन बांधो को विकास कहकर प्रचारित किया जाता है उन्ही बांधो ने इन मज़दूरों की जान ली है। माटू जनसंगठन ने 9 तारीख को पहले ही स्टेटमेंट में इन शहीदों को श्रद्धांजलि दी थी। रोज़ निकल रहे शव शोक में डुबा रहे हैं। हमारे पास दुखित परिवारों को सांत्वना देने के लिए शब्द नही है। मृतकों को श्रद्धांजलि में आंखे नम है। हम नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स, आर्मी, आईटीबीपी, एसडीआरएफ व स्थानीय पुलिस के जवानों को सलाम करते हैं। उनकी कोशिशें सफल हो। जो लापता हैं वे सलामत मिले। साथ ही जोशीमठ के गुरुद्वारे प्रबंधक कमेटी को भी ज़िंदाबाद जो इन जवानों के लिए रहने व खाने की लगातार व्यवस्था दे रहे हैं।


एनटीपीसी को 8 फरवरी 2005 में तपोवन विष्णुगाड परियोजना बनाने के लिए पर्यावरण स्वीकृति मिली थी। 2011 में यह परियोजना के पूरा होने की संभावित तारीख थी। किंतु परियोजना लगातार क्षेत्र की नाजुक पर्यावरणीय स्थितियों के कारण रूकती रही है। सन 2011, 2012 व 2013 में काफर डैम टूटा, बैराज को कई बार नुकसान पहुंचा। सन 2009 में हैड रेस्ट टनल को बनाने के लिए लाई गई 200 करोड़ की टनल बोरिंग मशीन टनल में ही अटक गई। फिर 2016 में दोबारा अटक गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी तक वही खड़ी है। इसी दौरान जोशीमठ के नीचे से टनल बोरिंग के कारण एक बहुत बड़ा पानी का स्त्रोत फूटा जो कि जोशीमठ के नीचे के जल भंडार को खत्म कर रहा है। इस दौरान संभवत कंपनी में टनल का डिजाइन भी बदला है। जिसकी कोई आकलन रिपोर्ट सामने नहीं आई है। परियोजना की लागत लगातार बढ़ती जा रही है। पर्यावरणीय परिस्थितियां परियोजना को नकार रही है। याद रहे 1979 में प्रशासन स्थानीय प्रशासन द्वारा सड़क निर्माण पर भी आपत्ति जताई गई थी। क्योंकि जोशीमठ एक बड़े लैंडस्लाइड पर बसा हुआ शहर है। अभी यहां बड़े निर्माण कार्य तेजी से चालू है। तो क्या हम मात्र प्राकृतिक आपदा को दोष देकर अपनी ज़िम्मेदारी से अलग हटेंगे। इतनी बड़ी परियोजनाओं में कोई सुरक्षा प्रबंधए अर्ली वार्निंग देने का कोई सिस्टम का ना होना।

उत्तराखंड राज्य बनते ही जल विद्युत परियोजनाओं और पर्यटन को आमदनी का स्त्रोत और विकास का द्योतक माना गया। मगर इन परियोजनाओं की लाभ हानि को तो एक तरफ कीजिए बल्कि इन बांध परियोजनाओं की स्वयं की सुरक्षा और इन परियोजनाओं में काम करने वाले मजदूरों और बांधो के टूटने की दशा में क्या हो या बांध संबंधी अन्य दुर्घटनाओं के बारे में कोई सुरक्षा प्रणाली अब तक नहीं बनाई गई। टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन 2010 में टिहरी बांध को संभालने में नाकामयाब रही। उसकी टनल में मजदूरों के मारे जाने की कितनी ही घटनाएं हुई। 2012 में अस्सी गंगा में बादल फटने पर भी कोई अलार्म सिस्टम नहीं था। कल्दी गाड परियोजना और मनेरी भाली चरण-2 दोनों ही उत्तराखंड जल विद्युत निगम की परियोजनाएं थी। मगर पानी कल्दीगाड से मनेरी भाली तक पानी को आने में घंटे भर से भी ज्यादा समय लगा। मगर तब भी मनेरी भाली दो के गेट नहीं खुल पाए थे। 2006 में भी मनेरी भाली परियोजनाओ से 6 लोग मारे गए। अचानक से पानी छोड़ने के कारण। 2013 की आपदा ने उत्तराखंड सहित पूरे देश को हिला दिया था। संसार भर में से हर तरह की राहत यहां पहुंची। अफसोस अर्ली अलार्म सिस्टम तब भी मौजूद नहीं रहा और 7 फरवरी 2021 को भी नही था। तो इसका दोषी कौन है ।
सवेदनशील मानव चेतना की अंतरात्मा तो यह जरूर चाहेगी कि हमारा संताप संवाद अरण्य रोदन ही न बन रह जाये।




फोटो सौजन्य – डॉ ऍम.पी.एस. बिष्ट 

लेख़क – वरिष्ठ पत्रकार, भू -भौतिकीविद , पर्यावरण चिन्तक एवं  समाजसेवी है.
मो 9358107716 ,7579192320