देहरादून की नहरें

विजय भट्ट
दून घाटी का प्राकृतिक सौन्दर्य सबका मन मोह लेता है। घाटी के उत्तर में मसूरी धनोल्टी कद्दूखाल काणाताल की पहाड़ियां हैं
जो हिमालय की निचली पर्वत श्रंखलाओं में आती है और दक्षिण में शिवालिक की पहाड़ियां हैं। इन पहाड़ियों में बरसने वाला पानी और जल के प्राकृतिक स्रोत इस घाटी में कई छोटी बड़ी नदियों को जन्म देती हैं। इनमं से कुछ बारहमासी नदियां हैं और कुछ बरसाती नदी नाले खाले हैं। उच्च हिमालय के ग्लेशियर से निकलने वाली उत्तर भारत की दो पवित्र नदियां भी इस जिले के दोनो छोर पर बहती हैं। देहरादून के पूर्वी छोर पर गोमुख से निकलने वाली गंगा नदी और पश्चिमी छोर पर यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना नदी बहती है। ये सभी पहाड़ियां, नदियां , जंगल, दून घाटी को प्राकृतिक वैभवता प्रदान करती हुई यहां की भूमि को हरा भरा और उपजाऊ बनाती हैं।
जो हिमालय की निचली पर्वत श्रंखलाओं में आती है और दक्षिण में शिवालिक की पहाड़ियां हैं। इन पहाड़ियों में बरसने वाला पानी और जल के प्राकृतिक स्रोत इस घाटी में कई छोटी बड़ी नदियों को जन्म देती हैं। इनमं से कुछ बारहमासी नदियां हैं और कुछ बरसाती नदी नाले खाले हैं। उच्च हिमालय के ग्लेशियर से निकलने वाली उत्तर भारत की दो पवित्र नदियां भी इस जिले के दोनो छोर पर बहती हैं। देहरादून के पूर्वी छोर पर गोमुख से निकलने वाली गंगा नदी और पश्चिमी छोर पर यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना नदी बहती है। ये सभी पहाड़ियां, नदियां , जंगल, दून घाटी को प्राकृतिक वैभवता प्रदान करती हुई यहां की भूमि को हरा भरा और उपजाऊ बनाती हैं।
सन् 1815 में देहरा ब्रिटिश शासन के अधीन आ चुका था। ब्रितानिया हकूमत को राज काज चलाने के लिये राजस्व चाहिये था। उस समय दून में राजस्व का अधार खेती ही हो सकता था। खेती में मुनाफा बढ़ाने के लिये खेतों की सिंचाई का स्थाई इंतजाम करना जरूरी था जो काम तालाबों से नही हो सकता था। देहरा में उन्होंने रिस्पना राव से निकलने वाली प्राचीन राजपूर नहर को देख ही लिया था जो यहां के तालाबों में पानी भरती व बाग बगीचों को सींचती थी। इस नहर का पानी पीने के काम भी आता था। जिले के राजस्व को बढ़ाने के लिये यहां खेती को विकसित करना और खेती को प्रोत्साहन देने के लिये अनुदान की व्यवस्था करना जरूरी था। जो उन्होंने किया। पानी के प्राकृतिक स्रोत और नदियां तो यहां उपलब्ध थी ही लेकिन नहरों का निर्माण किये बिना इन नदियों के बहते पानी का इस्तेमाल खेती के लिये नही हो सकता था। यही कारण रहा कि 1823 में नहरें बनाने के लिये सर्वेक्षण का उत्तरदायित्व लेफिटीनेन्ट डेबुड को दिया गया। बाद में कर्नल यंग के प्रशासनिक काल के दौरान केप्टन थामस काॅटली को यह काम हस्तांतरित किया गया। थामस काॅटली एक उत्कृष्ट श्रेणी के इंजीनियर थे। रूड़की वाली गंग नहर भी इन्हीं की उपज थी। थामस काॅटली को बाद में सर की उपाघि से भी नवाजा गया था।

कालसी आते जाते इस नहर को कई बार देखा तो था पर इस नहर के किनारे किनारे चल कर इसके हैड को देखने की इच्छा काफी दिनों से मन में थी। साथी इन्द्रेश नौटियाल से यहां चलने के बारे में कई बार बात हुई थी। आखिर 18 जून 2020 बृहस्पतिवार को वहां जाने का संयोग बन ही गया और हम बाईक से निकल पड़े कटा पत्थर नहर का हैड देखने के लिये। बरसात का मौसम भी बना हुआ था इसलिये साथ में बरसाती भी रख ली। देहरादून से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी तय कर बाड़वाला के बाद कालसी की तरफ जाने वाली सड़क पर यमुना पुल से पहले इस नहर के दर्शन हो जाते हैं। यहां से उत्तर की तरफ मुड़कर नहर के किनारे किनारे तीन साढ़े तीन किलोमीटर तक पक्की सड़क है। बीच बीच में फास्ट फूड के रेस्तरां भी हैं जो आजकल कोरोना महामारी के चलते वीरान से पड़े हैं। आगें सिंचाई विभाग का एक पार्क है जो आजकल बंद है। बाईक को यहां खड़ा कर हम पैदल चल पडे़। कुछ ही समय में हम नहर के हैड पर पहुंच गये। कच्ची कूल सी बनाकर नदी के पानी को मोड़कर यहां तक लाया गया था। यह कूल नदी से एक निश्चित सी दूरी पर है।

नहर के विषय में तथ्यात्क जानकारी का स्रोतः-’’वाल्टसन का गजेटियर आफ देहरादून’’
घुमक्क्ड- विजय भट्ट व इंन्द्रेश नौटियाल
लेखक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता है