नंदा की चिंता-4
महावीर सिंह जगवान
नंदा और नैना पीढियों से से सदाबहार प्राकृतिक श्रोत को सूखा देखकर चिंतित हैं, नजदीकी घर से पानी पीकर आगे बढते हैं, कुछ ही दूरी पर एक भवन है जिसका मुख्य गेट रास्ते पर है.
गेट पर मोर का छायाचित्र दिख रहा है और एक ओर हल्का सा गौर से पढने पर दिखता है शिक्षार्थ आइये, बस आगे तो दूसरी ओर गेट ही लुढक रखा है। नैना पूछती है नंदा क्या यह किसी का घर है या स्कूल था। नंदा कहती है दीदी यह स्कूल था, हमारे गाँव मे तीन प्राथमिक विद्यालय थे, उनमे से एक यह भी है, दादा जी कहते थे जब इन नयें दो विद्यालयों की स्वीकृति हुई थी तब दादा जी ने आपत्ति की थी लेकिन नेता लोंगो ने कहा अभी मौका है, बनने दो बाद की बाद मे देखी जायेगी। पहले वाले विद्यालय मे तब पचास बच्चे थे पूरे जनपद मे यह सबसे अब्बल विद्यालय था। यहाँ दो शिक्षक और एक शिक्षिका थी। जब गाँव मे तीन विद्यालय खुल गये तो पहले वाले स्कूल मे तीस बच्चे बच गये और दूसरे वाले मे पंद्रह और तीसरे वाले मे पाँच बच्चे ही शेष रहे, नयें गुरूजन तो आये नहीं इसी विद्यालय से प्रत्येक स्कूल मे एक एक गुरूजी चले गये, अब जिस स्कूल की साख पूरे जिले मे अब्बल थी वहाँ भी एकल शिक्षक की वजह से शिक्षा मे प्रभाव पड़ने लगा, दूसरे स्कूलों मे छात्र शंख्या घटने से प्रतिस्पर्धा घट गई और वहाँ भी एकल शिक्षकों की वजह से गुणवत्ता प्रभावित होने लगी। कुछ ही महीने बाद जिस विद्यालय मे पंद्रह छात्र छात्रा थी वहाँ की शिक्षिका सेवानिवृत्त हो गई कई दिनो तक वहाँ बच्चे स्कूल जाते और घर आ जाते जो अभिवाहक जागरूक थे, वे बिना शिक्षक के कारण अपने बच्चों को नजदीकी बाजार मे पब्लिक स्कूल मे ले गये, कुछ दिन बाद जब दादा जी देखा बच्चे स्कूल मे हैं और शिक्षक ही नहीं फिर दादा जी की कोशिष से बाकी बच्चों का फिर से एडमिशन पुराने विद्यालय मे हो करवाया गया और अगले साल उस नये दूसरे विद्यालय के गुरूजी का स्थानान्तरण हो गया फिर वह भी बंदी की कगार पर पहुँच गया, अब गाँव मे एक ही पुरानी वाली स्कूल बची है।
गाँव के अधिकतर लोग देखा देखी कर अपने बच्चों के भविष्य के खातिर शहर जा चुके हैं। नंदा कहती है,हमारे विद्यालय मे कक्षा – 1 मे मात्र 2 विद्यार्थी हैं, कक्षा – 2 रिक्त है, कक्षा – 3 मे केवल मै ही हूँ, कक्षा – 4 मे मात्र 6 विद्यार्थी हैं, कक्षा – 5 मे 9 विद्यार्थी हैं। हमारी स्कूल पूरे जनपद मे अब्बल है साथ ही एक मात्र राजकीय प्राथमिक विद्यालय है जिसमे अंग्रेजी माध्यम से पढाई होती है। हफ्ते मे एक दिन जो भी हमारे विषय हैं उन्हें लोकभाषा मे समझाया जाता है, खेल ,सांस्कृतिक क्रियाकलाप, निबन्ध, कविता, विज्ञान प्रतियोगिता होती रहती हैं ,हमारे विद्यालय का मासिक अखबार और षटमासिक पुस्तक भी निकलती है, मेरा सदैव सबसे लंबा लेख सदैव दादाजी की यादों के नाम से छपता है। जो कभी कभी दैनिक अखबारों मे भी छपता है। हमारी स्कूल मे त्रैमासिक शैक्षणिक भ्रमण भी होता है, अबकी बार हम बधाणी तगाँव स्थित बधाणी ताल देखने गये थे, हम सभी आश्चर्य चकित थे ऊँची चोटी की गोद मे बसा सुन्दर गाँव और उसमे इतना बड़ा जलाशय। यहाँ रंगीन मछलियाँ हैं, हमारे यहाँ गर्मी हो रही थी जबकि बधाणी गाँव मे ठंड लग रही थी। हमारी स्कूल मे ई लर्निंग क्लास चलती हैं, कक्षा 1 से कंप्यूटर शिक्षा अनिवार्य है। हम प्रत्येक बच्चे का जन्मदिन मनाते हैं। हमारे विद्यालय की सबसे बड़ी विशेषता यह भी है हर विद्यार्थी अपने से छोटी कक्षा को बेहतर पढा सकता है। हमारे स्कूल मे कलक्टर साहब भी आते हैं, गुरूजी ने मेरी खूब तारीफ की। कलक्टर साहब ने पूछा आप क्या बनना चाहती हो, मेरा जबाब था मै भी कलक्टर बनना चाहती हूँ, जब कलक्टर साहब ने पूछा फिर क्या करोगी, मेरा जबाब था अपने दादा जी की सोच को जमीन पर उतारकर इन पहाड़ों को स्वर्ग से भी सुन्दर बनाऊँगी। कलक्टर साहब ने गुरूजी से कहा है पन्द्रह अगस्त को नंदा को जिला मुख्यालय पर अपनी सहायक अध्यापिका के साथ भेजना। नैना अति प्रशन्नचित है, कहती है नंदा आपके जैसा विद्यालय तो शहरों मे भी नहीं, मै ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ जरूर नंदा एक दिन कलक्टर बनेगी।
कुछ आगे बढते ही नैना देखती है एक सूखा नाला है उससे पाँछ छ:नहरों जुड़ी हैं, नैना पूछती है यह कैसे नाले मे पानी भी नहीं और नहरें भी नाले से बहुत ऊँचाई पर, फिर यदि साल मे दस दिन भी नाले मे पानी आयेगा तो वह भी नहर मे नहीं चढ सकता। नंदा कहती है जब यह नहरें बन रही थी तब दादा जी ने इस काम को रोका था, क्योंकि जिन खेतों के लिये यह नहरें बनी हैं वहाँ पीढियों से बंजर चरागाह है, दादा जी ने कहा था जो सिंचाई के खेत हैं वहाँ नहरें पुरानी और टूटी हुई हैं, वहाँ जरूरी हैं लेकिन प्रधान जी और ठेकेदार ने कहाँ वहाँ नहर बनाने के लियेन तो पत्थर हैं और न ही बजरी, हम तो नहर वहाँ बनायेंगे जहाँ मेटिरियल मिल जाय। बस क्या था दादा जी मौन हो गये, और उन्होंने अपनी मर्जी कर सरकारी रूपया ठिकाने लगा दिया।
थोड़ा आगे बढे तो पति पत्नी आपस मे लड़ाई कर रहे हैं, नंदा ने कहा जल्दी जल्दी आगे चलो फिर बताती हूँ। कुछ दूरी पर चलकर नंदा कहती है दीदी जी वह जो शराब पीकर अपनी पत्नी की पिटाई कर रहा था वह काम तो कूछ नहीं करता लेकिन उसकी चलती बहुत है, विधायक मंत्री मुख्यमंत्री तक पहुच है उसकी, जो गाँव के बाजार मे शराब की दुकान खुली है वहाँ से उसे हर दिन एक बोतल शराब फ्री मे मिलती है, गाँव की महिलाऔं ने साठ दिन तक हड़ताल की लेकिन इलाके के सब नेता बिक गये, और दस पंद्रह गाँवों मे ऐसे प्रत्येक गाँव मे दो चार हैं जिन्हें हर दिन फ्री मे शराब मिलती है, गाँव मे कहते हैं इसकी इतनी चलती है यह बाजार मे ही गाँव को बेच देता है, नैना कहती है कैंसे, नंदा का जबाब आधा से अधिक विकास की योजना बाजार मे ही बैठकर पूरी हो जाती हैं इसके पास तो मनरेगा की बीस किताब हैं, मेटिरियल का पैंसा साहब लोग खा लेते हैं और महात्मा गाँधी की योजना मे मिलने वाले गाँधी के फोटो के नोट यह गटक जाता है, रोजगार के कार्ड स्वामियों को फ्री मे शराब पिलाता है सब खुश, कई योजना तो ऐसी हैं जो एक बार भी नहीं बनी और दस दस बार चढ चुकी हैं। नैना कहती है तभी तो सोचती हूँ, गाँव मे भी दीमक लगे हैं। नंदा कहती है छोड़ो ये बातें मेरे दादा जी कहते थे सदैव सकारात्मक रहना चाहिये, इन सबका एक ही समाधान है यदि सकारात्मक रहकर तुम कामयाब हो गये तो स्थितियाँ बदल जायेंगी। फिर आराम से दोनो आगे बढती हैं।
अब नंदा और नैना गाँव की सबसे ऊँची जगह पर पहुँच गये हैं, यहाँ पर पीपल के दो विशाल वृक्ष हैं और इनके किनारे से नहर नुमा गहरा सांचा दिखता है, नंदा और नैना यहाँ पर पीपल के पेड़ के चारों ओर बनी चौंर (बैठने की ब्यवस्थित जगह) पर बैठती हैं, नंदा अति प्रशन्नचित भी है और भावुक भी।नंदा कहती है मैं हर इतवार के दिन दादा की अंगुली पकड़ कर यहाँ पर आती थी, दादा जी कुदरत से संवाद करते थे और असीम ऊर्जा प्राप्त करते थे। नंदा कहती है मेरे दादा जी के लिये यह जगह तीर्थ से कतई कम न थी। यह जो दो पीपल के विशाल वृक्ष दिखाई दे रहे हैं यह मेरे दादा जी ने सोलहवें वर्ष मे अपने प्रिय भाई की स्मृति मे लगाये थे, नैना कहती है बहिन आपने तो कहा था मेरे दादाजी अकेले भाई थे, इसलिये घर से बाहर नहीं निकल सके। नंदा कहती है ठीक तो कहा था, बहुत पुरानी बात है मेरे दादाजी की माता जी जंगल मे पशुओं के चारे के लिये आई थी तब उनके पेट मे आठ माह का बच्चा था.
अचानक भीषण वर्षा आई और गाँव के ऊपरी जंगल से पानी की बड़ी धारा निकली जिसमे वह कुछ दूरी तक बह गये, उनकी जान तो बच गई लेकिन पेट मे पल रहा बच्चा चोट लगने से मर चुका था, वह भी बालक था तभी तो दादा जी ने पीपल के पेड़ के रूप मे यहाँ जो दो वृक्ष लगाये उसके पीछे यही मानते थे इस मानव जीवन में तो हम मिल न सके लेकिन वृक्ष रूप मे सदियों तक दोनो भाई साथ रहेंगे, मेरे दादा जी कहते थे जब भी मेरी याद आयेगी इन पेड़ों से बतियाना, तारों से बतियाना मेरा स्नैह और आशीष सदा तुम अपने सन्निकट अहसास करोगी, दो बूँदी मोती सी आँखो से लुढकती हैं और पीपल की जड़ को छूते ही पत्ते भी भावुक होकर फड़फड़ाने लगते हैं और फिर ठंडी हवा मानो दादा की छुवन नंदा को सहला रही है, वह क्षण भर के लिये मौन रहने के बाद आगे कहती है दीदी नंदा जो यह नहर नुमा तुम्हें दिख रहा है, वह दादा जी ने अपने हाथों से तीन वर्ष मे बनाया जब वह इक्कीस साल के थे, उन्हे पता था अचानक वर्षा से गाँव और जंगल मे बाढ जैसी आ जाती है, मेरी माँ जैसी वेदना कोई न झेले इसलिये, दादा जी ने गाँव और जंगल के ऊपर डेढ किलोमीटर लंबी नहर बनाकर वर्षा के पानी को गाँवों के दोनो ओर के सूखे गदेरों की ओर मोड़ा, गाँव के बुजुर्ग कहते हैं छ:दशक हो गये आज तक उस नहर से पानी कट जाता है और गाँव और गाँव के ऊपर स्थित जंगल कटाव से बच पाया है, आज तक कोई दुर्घटना भी नहीं हुई। इससे पहले हर साल वर्षा मे कइयों को चोंटे और जान तक चली जाती थी, यह सब नंदा के दादा का संकल्प विजन और आशीष का परिणाम है। नैना, नंदा की बातें टक टकी लगाये सुन रही है और कहती है अब तो यह नहर खराब और पुरानी हो रही है, सरकारों को ध्यान देना चाहिये। नंदा कहती है वह कौन सी योजना है जिस पर सरकार रूपये खर्च नहीं करती लेकिन जब से सरकारी धन आया तब से स्थितियाँ बिगड़ी हैं, क्योंकि विकास की कमर तो भ्रष्टाचार तोड़ देता है, और जो बड़ी बड़ी कुर्सी में बैठे हैं उनका गाँव तो है ही नहीं और यदि है भी तो कराह रहा है अपनो को देखने की आस मे, उन्हें क्या लगी गाँव बचाने की वह तो सब ढोंग करते हैंऔर इस ढोंग के कारण खूब मलाई खाते हैं जैसे हजार वर्ष जिंदा रहना होगा। नैना कहती है नंदा तुम इतनी चिंता क्यों करती हो, नंदा कहती है जब तक मुझे चिंता रहेगी तब तक मै दादा जी के संकल्प की रक्षा कर पाऊँगीऔर बड़ी होकर इन सभी चिंताऔं का समाधान।
क्रमश: जारी