तकनीकी शिक्षा से मानविकी की ओर
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
देश में तकनीकी शिक्षा के प्रति रुझान कम होना चिंता का विषय है. आजकल तकनीकी शिक्षा प्रदान करने वाले अनेक संस्थान बंद होने के कगार पर है.
इसके पीछे यह कारण बताया जा रहा है कि शिक्षा गुणवत्ता मैं कमी व अच्छी फैकल्टी न होने से इन प्राइवेट संस्थानों से निकलने वाले 75 फीसदी बच्चे बेरोजगार घूम रहे है. अमेरिका, इंग्लैंड व अन्य देशों ने अपने वीजा नियमों को कठोर बनाने से भारत की तकनीकी मानव सम्पदा की खपत मैं भारी गिरावट देखी गयी हैं. सरकार इस हेतु काफी चिंतित है. इसीलिए स्टार्टअप व स्किल इंडिया पर विशेष अभियान चलाया जा रहा है. इस सबके विपरीत मानविकी व सामाजिक विषयों के प्रति तेजी से रुझान बढ रहा है. रास्ट्रीय व अन्तरास्ट्रीय स्तर पर मानविकी विषय विसेषग्यों की मांग बढ़ रही है. यही कारण है कि अधिकांस विस्वविध्यालयों व संस्थानों ने मानविकी व सामाजिक विषयों पर अपना फोकस बढ़ा दिया है. मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर भी इसमें काफी रूचि दिखाते रहे हैं.
उत्तराखंड के विस्वविध्यालयों व संस्थानों ने भी इस बात के मददेनजर मानविकी व सामाजिक विषयों को प्रारम्भ करने का बीड़ा उठा दिया है. जहा पूर्व में मानवविज्ञान स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर सिर्फ हेमवती नन्दन गढ़वाल विस्वविध्यालय श्रीनगर में पढ़ाया जाता था अब दून विस्वविध्यालय में इसके स्नातकोत्तर (ऍमए) में भी पढ़ाने का निर्णय लिया गया है. उलेखनीय है की कभी सिविल सेवाओं में मानवविज्ञान को अहम् विषय माना जाता रहा है. इस विषय की दुनिया सहित भारत मैं अनेक क्षेत्रों खासकर विकास और सामाजिक, कॉर्पोरेट सोसिअल रिस्पोंसिबिलिटी (सी एस आर) मैं काफी माँग बढ़ गयी है. फोरेन्सिक मानव विज्ञानं की आजकल साइबर अपराधों को सुलझाने मैं एक महत्वपूर्ण भूमिका हो गयी है. जब भारत मैं अंग्रेजों का शाशन था अधिकांस डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर और अधिकारी मानवविज्ञानी ही हुआ करते थे. आज भी भारत के बहुत कम विस्वविध्यालयों मैं मानव विज्ञानं के अध्ययन की ब्यवस्था है. यह एक आश्चर्य का विषय है. दून विस्वविध्यालय की इस ऐतिहासिक पहल का स्वागत किया ही जाना चाहिए. इसी प्रकार मनोविज्ञान जैसा अति महत्वपूर्ण विषय की पढाई श्रीनगर व डी ए वी देहरादून मैं ही हुआ करती थी, जबकि इस विषय की मांग लगातार बढ़ती जा रही है अब दून, ग्राफ़िक एरा, श्री गुरुराम विस्वविध्यालयों ने इस विषय के अध्ययन की सुरुआत कर ली है. आज आपदा प्रबंधन, सोसल वर्क, इ कौमर्ष, इ -एकाउंटिंग, ऑनलाइन बिज़नस, स्टार्टअप विषय, पैरा मेडिकल, चिकित्स्य मनोविज्ञान, साइबर लॉ जैसे विषयों के अध्ययन की भारी मांग व जरुरत बढ़ गयी है.
समय के साथ- साथ विस्वविध्यालयों ने फटाफट तकनीकी विषयों को तो खोला लेकिन गुणवत्ता व फैकल्टी कमजोर होने से आज अधिकांस सीटें खाली है, वहीँ मानविकी व सामाजिक विषयों की अनदेखी हुयी. यह स्तिथि पुरे देश की है. बच्चों को उनकी रूचि के विपरीत जबरदस्ती इंजिनियर डॉक्टर बनाने के परिणाम है की काफी पैसा फुकने के बाद भी 75 फीसदी आज बेरोजगार घूम रहे है. अधिकांस तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे विषयगत ज्ञान न होने व पीछा छुड़ाने के लिए एम् बी ए की सरण में जा चुके है उन्हें अपना कैरिएर बदलने को मजबूर होना पढ़ रहा है.