मैं हूं बंजारा
मनीष ओली
रुद्रप्रयाग की समुद्र तल से ऊंचाई है 670 मीटर और 3300 मीटर की ऊंचाई पर है बदरीनाथ। मेरे लिए यह समझना वाकई में मुश्किल है कि उन तीन लड़कों ने रुद्रप्रयाग से बदरीनाथ साइकिल से जाने का निर्णय आखिर कैसे ले लिया, जिनकी जेब में सिर्फ 175 रुपए थे और उन्हें ये तक पता नहीं था कि रात गुजारने के लिए कोई ठिकाना मिलेगा भी या नहीं।
कैसे उन्होंने टूटे पतीले में आटे का टांका लगाकर खिचड़ी बनाई और किस तरह मुफ्त में रात गुजारने का जुगाड़ किया…। इस सब का आनन्द आपको मिलेगा पत्रकार, डाक्यूमेंट्री निर्माता, घुम्मकड़ और बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’ की पुस्तक “मैं हूं बंजारा” में।
जेपी के विभिन्न यात्रा वृतांतों को संजोए हुए जो पुस्तक “मैं हूं बंजारा” के रूप में सामने आई है, वास्तव में लाजवाब है। अगर आप पहाड़ को बेहद करीब से समझना व जानना चाहते हैं और यहां की संस्कृति से रूबरू होना चाहते हैं तो ये पुस्तक आपके लिए ही लिखी गई है। पुस्तक में जेपी की कई यात्राओं को शामिल किया गया है, जिसमें विश्व प्रसिद्ध नंदादेवी राजजात यात्रा भी है। 19 पड़ावों से होते हुए 280 किलोमीटर की इस यात्रा को जेपी ने बेहद खूबसूरती से सामने रखा है। इसी यात्रा के बीच में है रूपकुंड, जो अनेक रहस्यों को समेटे हुए पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है।
रुद्रप्रयाग से बदरीनाथ की साइकिल यात्रा, केदारनाथ, तुंगनाथ, मदमहेश्वर, यमुना-टौंस घाटी की यात्रा, पुरोला से कोटी बनाल, देहरादून से नार्थ कार्बेट, हरियाली देवी का यात्रा आदि को पुस्तक में शामिल किया गया है। पूरे यात्रा वृतांत में खूबसूरत फोटो भी लगी हुई हैं, जिनमें कभी-कभी कैप्सन की कमी महसूस होती है। पुस्तक पढ़ने पर ही मुझे पता चल सका कि रुद्रप्रयाग जिले में दो तुंगनाथ और दो चोपता हैं। ऐसी कई नई जानकारियां पुस्तक पढ़ने के साथ आपको मिलती रहेगी। जिस अंदाज में जेपी ने पुस्तक लिखी है, उससे कभी ऐसा लगता ही नहीं कि आप पुस्तक पढ़ रहे हों, हमेशा लेखक के साथ स्वयं यात्रा करने का जैसा अनुभव होता है।
जेपी की नजर से हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, भौगोलिक संरचना, रीति-रिवाज, प्राकृतिक संसाधनों को देखना वाकई में दिलचस्प है। और सबसे अधिक प्रभावित करता है जेपी का बंजारापन। वास्तव में जेपी भाई, आप बंजारे थे, बंजारे हो और बंजारे ही रहोगे। आपके इस बंजारेपन को मेरा सलाम।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
पाठकों की सोशल मीडिया पर प्रतिकिर्यायें
डॉ महेश भट्ट – जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’ भाई द्वारा लिखित पुस्तक “मैं हूं बंजारा” 2 दिन पहले ही प्राप्त हुई। पिछले 2 दिनों में 60% पुस्तक पढ़ चुका हूं, पुस्तक में लेखक के यात्रा वृतांत रोचक हैं, जो कि पाठक को बांधे रखते हैं। इसके साथ ही कई नई रोचक एवं ज्ञानवर्धक सामग्री भी इस पुस्तक में मुझे मिली। जेपी भाई को पुस्तक उपलब्ध करवाने के लिए धन्यवाद एवं शुभकामनाएं। पहला अध्याय ‘हरियाली देवी यात्रा’ मुझे जैसे मेरे बचपन की यादों में ले गया। Must read for everyone, I am sure everybody will find this book interesting and useful. You can get this book directly from JP.
अनिल उनियाल – सर्वप्रथम जेपी भाई को “मैं हूं बंजारा ” पुस्तक के प्रकाशन के लिए बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं। कॉलेज के दिनों से ही आप में एक लेखक दीप्तिमान था। कुछ हट कर करने का कौशल को काफी करीब से देखने और समझने का सौभाग्य मुझे भी एक सहपाठी के रूप में प्राप्त हुआ। निश्चित तौर पर मैं भी आपकी घुम्मकड़ी यात्रा वृतांत के रोमांच को पढ़ना चाहूँगा।
Dinesh Sati – Congratulations for bringing out your true story!
सोनिया नौटियाल गैरोला – कल शाम जिनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, उनके बारे में कुछकहने के लिए न मेरी क़लम न ही मेरी बुद्धि इतनी काबिलियत रखती है। फिर भी मन है कि आप सबसे अपना अनुभव साझा करूँ। श्री जयप्रकाश पँवार जी चैनल माउन्टेन कम्युनिकेशंस के संस्थापक, प्रतिष्ठित रचनाकार, पत्रकार, निर्देशक, चित्रकार तो हैं ही और न जाने कितने गुण से मैं अन्जान। उनका सहज और सरल व्यक्तित्व अपनी जन्मभूमिके प्रति लगाव और जिम्मेदारी का निवर्हन वे जिस प्रकार से कर रहे हैं, प्रेरणीय है। उनकी लिखित दो पुस्तकें “मैं हूँ बन्जारा” और “गैरसैण” मुझे प्राप्त हुई इस हेतु पंवार जी का हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएँ। “मैं हूँ बन्जारा” उनकी यात्राओं और घुमक्कड़ी प्रवृत्ति से निकले अनेक वृतांतों, संस्कृति, भौगोलिक संरचना और प्राकृतिक सौन्दर्य को सजीवता के साथ प्रस्तुत करता है।पुस्तक “गैरसैण”पुस्तक की एक पंक्ति ‘कहानी गाँव से दूर-दूर क्यों / नदी पास है मगर पानी दूर-दूर क्यों ? समूचे पहाड़ के संघर्षों, ज्वलंत प्रश्नों को लेकर व्यवस्था, राजनैतिक पार्टियों द्वारा सत्ता के खेल को दर्शाती है और आम जनता का आह्वान करती है कि उदासीनता छोड़ो, चुप्पी तोड़ो और हल्ला बोलो।
पाठकों हेतु सूचना
पाठकों को यह पुस्तक डाक से प्राप्त हो सकती है. जो पाठक इच्छुक हों किर्पया अपना पता, मोबाइल लेखक के व्हाट्स एप (Mobile No. 09411530755) नंबर पर भेज सकते हैं. पुस्तक का मूल्य 299 रुपये व 50 रुपये स्पीड पोस्ट. अपनी सहयोग राशि आप Jayprakash Panwar, Account No. 32341461365 IFSC Code – SBINOO12897, SBI, Harrawala, Dehradun पर ऑनलाइन ट्रांसफर कर सकते हैं. आपके प्रोत्साहन और सहयोग हेतु लेखक हिर्दय से आभार ब्यक्त करता है.