November 21, 2024



केदार बाबा की ब्यथा कथा

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ब्यूरो 


केदारनाथ आपदा के बाद से ही यह प्रमुख धाम राजनीती का भी प्रमुख अड्डा बन चूका है. पिछली सरकार से लेकर बर्तमान सरकारों ने केदारनाथ की आपदा को भुनानें का काम किया.


देश के प्रधानमंत्री की विशेष रूचि होने से यह धाम राजनीतिक प्रयोगशाला बन चुकी है. गौरतलब है कि केदार धाम जैसे अनेकों स्थान शांति प्रदान करने वाले है यहाँ स्रधालु शांति की ख़ोज में आते रहे हैं अनावश्यक अशांति के परिणाम से सब वाकिफ़ हैं. लाउड स्पीकर, हेलीकॉप्टर की शोर सराबे से ग्लेशियर टूटते है. यह भी केदार आपदा का प्रमुख बैज्ञानिक कारण रहा है. यहाँ हैली सेवावों की जरुरत नहीं है. पैदल कस्ट काटकर ऐसे धामों की यात्रा का महातम्य इतिहास में वर्णित है. अभी हाल ही में केदारनाथ में लेजर और साउंड शो का आयोजन किया गया जिसे स्रधालुओं ने यहाँ की आस्था के बिरुध कार्य बताया. स्थानीय लोगों को भी यह शो समझ में नहीं आया. केदार की यात्रा प्रारंभ हो चुकी है. प्रस्तुत है केदार की ब्यथा कथा.


महावीर सिंह जगवान           

ऊँ नम:शिवाय्:। श्री केदारनाथ जी जयते।आज सायं चार बजे बाबा केदार के दर्शन कर गाँव लौटा, हर साल की तरह बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली के संग गौरीकुण्ड से केदार पहुँचा और आज सुबह द्वादशज्योर्तिंग बाबा केदार के दर्शन कर गाँव लौट आया। विगत कई सालों के रिकार्ड तोड़ते हुये आज प्रथम दिन ही पच्चीस हजार यात्रियों ने बाबा केदार के दर्शन कर पुण्य अर्जित किया। एक बड़ी चिंता है जितनी भीड़ भक्त जनो की है सुविधायें आधी से कम ही लगती हैं, रास्ते भर इतनी फिसलन ही थोड़ी सी चूक बड़े खतरे का कारण बन सकती है, जैसा कि पूर्व मे भी बताया गया था वर्षा की संभावना अधिक है यात्रा मार्ग मे अधिक से अधिक यात्री विश्राम सैल्टर बने, दस से अधिक सैल्टर बनने वाले हैं लेकिन अभी शुरंआत तक नहीं हुई जबकि जरूरत सौ से अधिक की है, यात्रा सैल्टर जो पुराने बने हैं उनमे यात्रियों के बैठने की ब्यवस्था भी ठीक नही है, जोखिम वाले स्थानो पर न तो पुलिस है और नही अन्य ब्यवस्था हाँ सुरक्षित स्थानो पर जरूर दिखते हैं जो घटना से बचाव के बजाय घटना घटित होने पर भले ही सहायक हों, केदार पुरी मे तत्काल दो हजार लोंगो के ठहरने की अतिरिक्त ब्यवस्था करनी होगी, मंदिर समिति रात्री को सत्संग भवन मे गरीब यात्रियों के विश्राम की ब्यवस्था करे, यात्रियों की बढती शंख्या को देखकर मंदिर प्राँगण मे भी तात्कालिक सैड की जरूरत है क्योंकि भक्तों को तीन से छ: घण्टे लाइन मे रहने के बाद दर्शन का अवसर मिल रहा है ऊपर से मौसम खराब चल रहा है वह भीगने से बचेंगे और ठण्ड से बचने से जानमाल के नुकसान से सुरक्षित हो पायेंगे, पुलिस और अन्य सहयोगी जवानो को अधिक चुस्त दुरूस्त रखने की जरूरत है, जैसा कि आज पट खुलते ही हुई भारी भीड़ धक्कामुक्की मे पुलिस लाचार दिखी। स्वयं सहायता समूह द्वारा विकसित केदारनाथ के प्रसाद वितरण केंद्रो को बढाना होगा अन्यथा पाँच लाख के सापेक्ष एक प्रसाद के पैकेट जो स्वयं सहायता समूहों ने विकसित किये हैं उनकी खपत नहीं हो पायेगी। भीमबली और लिनचोली मे विश्राम ब्यवस्था बढानी जरूरी है। मंदिर समिति और पुलिस संयुक्त रूप से बेस कैंप से केदारपुरी तक सायं दस बजे तक यह सुनिश्चित करे कोई यात्री रास्ते मे या मंदिर परिसर मे ठण्ड मे बाहर न रहे। जल प्रबन्धन की ब्यवस्थायें और मूत्रालय एवं सौचालयों की स्थिति तत्काल सुधारी जाय एवं बढाई जा। रास्तों मे यह सुनिश्चित हो निकल रहा पानी को काट दिया जाय ताकि फैलने से बचे। आशा ही नहीं पूर्ण भरोसा है सबकुछ समय पर ठीक होगा। जय केदार।


लेजर शो पर टिप्पणियां 

मनोज रावत, विधायक – केदारनाथ 




28 अप्रैल की शाम। पैदल मार्ग से केदारनाथ पंहुचे, तो तीर्थ पुरोहितों से लेकर केदारपुरी के निवासियों को 3-4 दिनों से ट्रायल पर चल रहे, लेज़र शो को लेकर बहुत आपत्तियां थी। उन्हें लग रहा था कि उनके अराध्य उनके जीवन के आधार बाबा केदार की उनके मन में अंकित छवि से अलग रूप में प्रदर्षित कर रहे है, धाम की मर्यादा को कलुषित किया जा रहा है, मंदिर और उसकी परंपराओं के साथ छेड़-छाड़ की जा रही है। साथ ही उनको कष्ठ था कि केदारनाथ आपदा के बाद केदारनाथ धाम व उसके आस – पास हुए पुनर्निर्माण का पूरा श्रेय माननीय प्रधानमंत्री मोदी साहब और 1 साल से मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र रावत को देते हुए लगभग 5 मिनट के विज्ञापन भी इस शो का हिस्सा बनाया गया है। इस कान – फोड़ू कथित लेज़र फ़िल्म के प्रदर्शन के लिए पर्दे के रूप में श्री केदारनाथ जी के मंदिर की दीवार को बनाने से उन्हें बहुत कष्ठ था। मंदिर परिसर में अनेक स्थानों पर भीमकाय राक्षस की तरह काले तिरपालों में स्पीकर और लाइट से संबंधित यंत्र रखे थे।

रात्रि 7 बजे हमें भी शो में बुलाया गया। हम भी उत्सुक थे लेज़र शो क्या होता है, देखने के लिए। पर मैंने और श्री गणेश गोदियाल जी, पूर्व विधायक, श्रीनगर विधानसभा और अध्यक्ष, श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ओर तीर्थ पुरोहित पंचायत के पदाधिकारियों ने राजनीतिक लोगों के विज्ञापन को मंदिर की दीवार पर दिखाने पर शो का बहिष्कार और विरोध की चेतावनी दी, तो आयोजकों (गुजरात से आये कोई सुहाग मोदी जी ) ने उस हिस्से को हटाने का आश्वासन दिया। शो शुरू हुआ तो पता चला कि वह गलतियों के भरमार वाली बेहद घटिया दर्जे की लाइट एंड साउंड प्रोग्राम वाली प्रस्तुति है। आधा हिस्सा गलतियों सहित उन कहानियों का था जिन्हें केदारनाथ और केदारघाटी ही नही उत्तराखंड का बच्चा-बच्चा जानता था। देश के धार्मिक लोग भी श्रुत परंपरा में पुराणों आदि के इन प्रसंगों को सुनते-सुनाते रहते हैं। आधे हिस्से में भगवान का तांडव था। उस समय ऐसी भयंकर ध्वनि हो रही थी कि मानों कोई नई आपदा आ गयी हो। शो को लेकर हमारी 3 आपत्ति थी।
1- ग़लत समय, 2- गलत स्थान, 3- गलत सिद्धान्त।

गलत समय – शो की तैयारी कपाट खुलने से 4-5 दिन पहले से हो रही थी। कपाट बंद होते समय भगवान की “समाधि पूजा” होती है। याने इस पूजा के बाद भगवान 6 माह के शीत काल के लिए समाधि में चले जाते हैं। जिस दिन कपाट खुलते हैं उस दिन रावल जी और प्रधान पुजारी जी की पूजा के बाद ही कोई यात्री ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकता है। मान्यता है कि, कपाट बंद होने के काल में देवताओं के प्रतिनिधि के रूप में नारद भगवान की अर्चना करते हैं। कपाट बंद होने के बाद बाबा समाधि याने ध्यान की गहन अवस्था में विराजमान होते हैं। इस लिए कपाट खुलने से पहले केदारनाथ में अनावश्यक शोर और हस्तक्षेप पाप होता है। पर कपाट खुलने से 5 दिनों से चल रहा। हजारों डेसिबल के शोर और तरह तरह की रोशनियों से हमें गहन आपत्ति है।

गलत स्थान – इस शो के लिए पर्दे के रूप में केदारनाथ जी के मंदिर की दीवार को किया गया। जो अक्षम्य है।

गलत सिद्धान्त – केदारनाथ में बाबा शान्त रूप में जगत कल्याण के लिए ध्यान या समाधि में हैं। बाबा को स्फटिक की भांति श्वेत रंग प्रिय है। जो शांति ओर ध्यान का प्रतीक है। वंहा बाबा के मंदिर को गुलाबी रंग जो काम व वासना का प्रतीक है के अलावा कही किस्म की रंगिनियो से सरोबार कर दिया। परंपरा से केदारनाथ के रावल जी और पुजारी, दखिन भारत के, वीर शैव लिंगायत जंगम होते हैं। केदारनाथ के रावल जी वीर शैव लिंगायत जंगमों के “केदार जगत गुरु” होते हैं और इस पीठ को वैराग्य पीठ मानते हैं। पीठ के आचार्य और भक्तों के लिए कर्म ध्यान माना गया है। वर्तमान रावल श्री श्री श्री 1008 भीमाशंकर लिंग जी 324 वें रावल (संदर्भ श्री हरिकृष्ण रतूड़ी का गढ़वाल का इतिहास) हैं। 

हम पहाड़ वासी जिस भी रूप में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जाते हैं, कभी ऊंची आवाज में भी बात नही करते। ऐसे में डर कर कम्पायमान करने वाली डरावनी ध्वनियों के साथ रंगीन रोशनी में हुए तांडव ओर बाकी कार्यक्रम सिद्धांत, परंपरा और केदारनाथ की महिमा के विरुद्ध था। सिद्धान्त और परंपरा के विपरीत कई गलतियां भी शो में थी, जिन पर गुणी-ज्ञानी, यात्री ओर भक्त हंसः रहे थे।

अब इस कथित शो की गुणवत्ता पर

शो निहायत कमतर दर्जे की बच्चों की एनिमेशन फ़िल्म जैसी थी। जिसमें 10 अक्षम्य गलतियां थी। जिनमें से –

1- पांडवों को दर्शन न देने के उद्देश्य से भगवान बैल के रूप में बैलों के झुंड में बैल के रूप में छुप गए थे। जबकि केदारनाथ का बच्चा बच्चा जनता है कि भगवान महिष याने भैंसे के रूप में भैंसों के झुंड में छिपे और पहचाने जाने पर केदार याने दलदली भूमि में धंस गए। भीम केवल पार्श्व भाग को पकड़ पाए। जो केदारनाथ जी में ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित है।

2- शो में बताया गया है कि, केदारनाथ जी के कपाट हर साल अक्षय तृतीया के दिन खुलते हैं। जबकि सत्य ये है कि कपाट खुलने का दिन शिवरात्रि के दिन ऊखीमठ में तय होता है। जो हर साल अलग दिन होता है। बाकी 8 गलतियां समय आने पर बताएंगे।

कुछ आशंकाएं

1- शो को बनाने वाली कंपनी के मालिक कोई गुजरात के सुहाग मोदी जी बताए जा रहे हैं। जिन्हें करोड़ों रुपए दिए गए हैं। किसने दिए ये सरकार साफ करे। 

2- लॉजिस्टिक सपोर्ट जिसमे MI-17 द्वारा कही दिनों तक 30 टन समान ढोया गया, उत्तराखंड सरकार का था। सेना के ये हेलीकॉप्टर कठिन सैन्य अभियानों या अति आवश्यक महत्ता के अभियानों में प्रयोग होते हैं। ऐसे में गुजरात के सुहाग मोदी जी के व्यापारिक शो के लिए किसने अनुमति दी इनकी इसका अंदाज कोई भी लगा सकता है।

3- इस शो का संबंध संस्कृति, धर्मस्व व पर्यटन मंत्रालय से था। उसके मंत्री प्रसिद्ध धर्मगुरु सतपाल महाराज जी हैं। उन्होंने इस शो को यदि देखा और उसकी अक्षम्म गलतियों को नही पकड़ पाए ये आश्चर्य है। मेरा पूरा भरोसा है कि या तो उन्हें इस शो की दिखाया ही नही गया अथवा पार्टी अनुशासन के भय से कंपित माननीय मंत्री महाराज जी ओर काम के बोझ से दबे अधिकारियो को – “मोदी जी के प्रचार के लिए प्रायोजित गुजरात के सुहाग मोदी”, के चमत्कारी शो की गलतियों को बताने की हिम्मत नही हुई।

4- इस शो के प्रायोजक राष्ट्रीय अंत्योदय संघ, RSS से जुड़ा एक NGO है। धर्म के नाम पर दुनिया भर में कार्यक्रम करने वाले इस संघटन के कर्ता- धर्ता यदि हमारे बच्चों से कम ज्ञान रखते हैं या प्रचार करते हैं तो भगवान ही जाने दुनिया में किस हिंदुत्व को प्रचारित कर रहे होंगे। आयोजकों ने उस दिन ही हमसे गलतियों को सुधार कर ही शो चलने का वादा किया था। पर अभी भी केदारनाथ में गलतियों के साथ इस शो को दिखा रहे हैं। उत्तराखंड के ब्राह्मण गुजरात सहित कही प्रदेशों में अपने पांडित्य, ज्ञान, कर्मकांड ओर ज्योतिष की धूम मचा रहे हैं। ऐसे में अज्ञानी, मूर्ख ओर मूढ़ गुजराती सुहाग मोदी की, “गलतियों के सागर” वाली इस एनिमेशन फ़िल्म को दिखाने और उस पर पानी की तरह पैसा बहाने की सरकार की क्या मजबूरी है ये समझ में नही आता। हम सब जानते हैं कि, हर यात्री केदारनाथ यात्रा से पहले देवभूमि से संबंधित कथा – कहानी पड़-सुन कर आता है। वे इन गलत तथ्यों पर खूब हंस रहे हैं। पर धर्म के नाम पर हर काम करने वाली सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर क्यों उत्तराखंड को अज्ञानी – कुपण्डित्य वाले राज्य की श्रेणी में रखने को आतुर है ये भी एक रहस्य है।

एक कष्ठ – हम केदारनाथ में या बाबा से संबंधित मामलों में विवाद या प्रचार नही चाहते। पर क्या करें, इस शो का विरोध नही करते तो आप और आने वाली पीढ़ियां पूछती उस दिन किस भय से आपके ओंठ सिल गए थे। बाकी बाबा का काम बाबा जाने, उनसे मजाक करने वाले, उनका किसी भी रूप में अनावश्यक प्रयोग करने वाले आधे निपट लिए – आधे निपट जाएंगे।

देव सिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार 

हर जगह राजनीति नहीं होनी चाहिए। केदारनाथ भगवान शिव का परम दिव्य धाम है। सनातनियों की श्रद्धा का सर्वोच्च धाम है। यह किसी दल या व्यक्ति का प्रचार स्थान नहीं है। यहां पर इसको बनाने वाले पाण्डवों या शंकरांचार्य का भी प्रचार नहीं होता केवल भगवान शिव के दिव्य रूप का। लेजर शो से इस धाम की पावनता व मर्यादा का हनन नहीं होना चाहिए। यह कोई अक्षर या कृतिम धाम नहीं यहां स्वयं सदाशिव विराजमान है। भगवान शिव के केवल उसी रूप की पूजा होती है। लेजर शो से मंदिर के पर्यावरण को नुकसान पंहुचेगा। किसी भी व्यक्ति, संगठन व सरकार को अधिकार नहीं कि वे श्रद्धा के ऐसे पावन धामों में अपनी अंध सत्तालोलुपता के लिए कलुषित करो। भगवान शिव तो अपने परमभक्त लंकापति महाबली रावण का अंध अहंकार को भी स्वीकार नहीं करते और उसके अहंकार को भगवान राम से दमन कराते हैं। पाप की भागी बनी उत्तराखण्ड सरकार। भगवान शिव व विष्णु के स्वागत में खडा न होके। उत्तराखण्ड सरकार व उसके मुखिया का अहंकार देखों भगवान बदरी केदार नाथ के कपाट खुलते समय शीष झुकाकर प्रदेश की खुशहाली का आशीर्वाद लेने के बजाय सत्ता के गरूर में देहरादून में ही डटे रहे। अगर अभी प्रधानमंत्री या भाजपा का अध्यक्ष बदरी केदार धाम के दर्शन को जाते तो तो वहां पर कालनेमी बन कर दण्डवत करते नजर आते। धन्यवाद मनोज भाई, आपने बखुबी से अपने दायित्व का निर्वहन किया। काश प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र में आप जैसे जनहितों व उत्तराखण्ड के हक हकूकों के लिए समर्पित विधायक होते तो प्रदेश की ऐसी दुर्दशा न हो कर हिमाचल की तरह विकसित राज्य होता। मंदिर समिति के अध्यक्ष गोदियाल व आपने संयुक्त रूप से केदारनाथ की पवित्रता की रक्षा करने के दायित्व का निर्वहन किया। मोदी जी को सोचना चाहिए कि भगवान सदाशिव के आशीर्वाद के बिना न भगवान राम ने लंका फतह की थी व नहीं मर्यादा पुरूषोत्तम बन पाये थे। देश व जनता के हित में कार्य करो, तभी सदाशिव प्रसन्न होंगे।

शैलेन्द्र भंडारी 

मुझे भी ये लेजर शो एक आडंबर से ज्यादा कुछ नहीं लगा, बल्कि मंदिर की पवित्रता कलुषित कर दी गई किस मूर्ख के दिमाग की उपज है ये, उत्तराखंड में इसका विरोध होना चाहिए ।

भानु प्रताप 

केदारनाथ आपदा वैज्ञानिक दृष्टि से देखी जाए तो प्राकृतिक आपदा थी और आस्था की दृष्टि से देखा जाय तो मानवजनित आपदा थी। अब अगर वर्तमान में आस्था की दृष्टि से देखा जाए जो कि लाज़िमी है तभी तो करोड़ों लोग वहां जा रहे हैं तो अगर भविष्य में किसी भी प्रकार दी बड़ी दुर्घटना होती है तो इस प्रकार के कार्यक्रम, धार्मिक स्थल को पर्यटन के लिए इस्तेमाल और हैलीकॉप्टर का अत्यधिक प्रयोग सब जिम्मेदार होंगे। ये मेरी व्यक्तिगत राय है। बाबा केदार के मामले में कोई राजनीति नहीं जब कांग्रेस थी तब भी हमारे यही सुर थे और जो गलत है वो गलत है।

मनोज प्रसाद 

ऐसे रंगीन लाइट लगाने से कोई ज्यादा कृपा नहीं आने वाली उस से अच्छा उस पैसे को किसी विकास कार्यों में लगाओ जिस से लोग आपके गुण गाये भगवान कभी ऐसे नहीं बोलते की मुझे लेज़र से चमकाओ.

महेंद्र सिंह बर्त्वाल 

ऐसे ही कारनामें भविष्य में इतिहास बन जाते हैं मूल इतिहास खो जाता है। जैसें की भगवान बदरी नारायण जी की आरती के बारे में हुवा है.

मुकेश नेगी

कम से कम हमारी धार्मिक मान्यताओं और हमारे पौराणिक केदारनाथ मंदिर के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ तो ना हो.

डॉ. डी.आर. पुरोहित 

ये प्रयोग केदारनाथ धाम की गरिमा के विपरीत है। हां पुनर्संचरना का कार्यक्रम ठीक है। केदारनाथ में तो हाइडेसिबल लाउडस्पीकर भी प्र्तिबन्धित होने चाहिए।

समीर रतूड़ी 

श्री केदारनाथ आदि काल से ज्योतिर्लिंग – तपोभूमि – तीर्थस्थल के रूप में पूज्यनीय। अब पर्यटन स्थल होने की ओर अग्रसर! ये है हमारी देव भूमि – देव भूमि का रट्टा लगाने वाली सभी सरकारों (कांग्रेस/ भाजपा) की उपलब्धि किसी ने हेलिकॉप्टरों के शोर से घाटी की सुरम्य शांति छीनी। कभी कपाट बंद होने के बाद राजनेता नये साल को ढोल बजा कर सेलिब्रेट करते दिखाई देते! अब एक नया शगूफा : लेज़र शो! विंटर टूरिज्म! कौन है ये महान ‘विजिनरी’ पालिसी मेकर, भाई ये सब करने के लिए उत्तराखंड मे अनगिनत सुंदर स्थल बिखरे पड़ें हैं, वहां पर्यटकों को रिझाइये और नोट कमाइये। तमाम उपेक्षित किंतु सुंदर स्थल आपकी 18 साल से राह देख रहे हैं वहां कुछ करिये जिससे रोजगार सृजन हो पलायन रुके। कृपया तीर्थस्थानों को बख्श दें उन्हें सामान्य श्रद्धालू , साधक, तीर्थ यात्रियों के लिहाज से सुलभ और सुरक्षित बनायें बड़ी कृपा होगी। न ध्यान देने वालों कहीं शिव तांडव तुम्हारे जीवन में न हो, मेरी कोई पहुँच नहीं है। आप सबसे निवेदन है कि कुछ करिये। पिछले 40 सालों मे श्री केदारनाथ धाम की अनेक यात्राएँ की। कितने श्रावण मास एकांत – साधना मे व्यतीत हुए. आप गौरी कुंड से पगडंडियों पर शिव का स्मरण करते आगे बढ़ते, जब थकते तो किनारे बने किसी छप्पर के नीचे एक गरम चाय। आस पास दो तरह की आवाजें या तो पानी की कल कल या चिड़ियों की। जब तक निढाल हो गंतव्य तक पहुँचते आप शिवोमय हो चुके होते थे। मगर अब वो एक सपना है…