November 22, 2024



जल संरक्षण हेतु बांध जरुरी

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एम. पी. एस. बिष्ट   


दोस्तो पिछले एक हफ़्ते से नयार घाटी के भ्रमण पर था ।


एक महत्व पूर्ण मिशन में “ उत्तराखण्ड के बर्षा जल आधारित नदियों के जल संचय एवं जल संवर्धन हेतु प्रदेश के मुख्यमन्त्री जी का विशेष प्रयास“ कुछ महत्वपूर्ण चीज़ें सामने आई सोचा आप सभी से साझा करूँ तो जिन्हें पता नहीं कि, काश ! वो होजाता जो १९३६ में एक अंग्रेज़ भू बैज्ञानिक जे.वी. ऑडन ने अपने सर्वेक्षण के पश्चात सोचा था, तो शायद उत्तराखण्ड का यह भू भाग पलायन का यह दंश न झेल रहा होता । नयार नदी, पूर्वी नयार ९६ कि.मी. और पश्चिमी नयार लगभग ५२ कि.मी. दूरी तय करने के पश्चात सतपुली-बांघाट के मध्य मिलकर लगभग ३ कि.मी. आगे बहती हुयी व्यासघाट में गंगा नदी से मिलती है। पौड़ी ज़िला, जिसके १० विकास खण्डों को जोड़ने वाली यह नदी वैसे तो इसका इतिहास बहुत लम्बा है परन्तु विकास की दृष्टि से देखें तो दो विशेष बातें नज़र आती है. 


एक, तब (१९३६) चयनित किया गया मरोड़ा डाम स्थल जिसका छायाचित्र व प्रथम टेस्ट एडिट/सुरंग निम्नवत है, का उस वक़्त की परिस्थितियों में न बनना जब जनसंख्या बहुत कम व पानी अधिक था। तथा दूसरा, स्वामीराम जी द्वारा बड़े मेडिकल संस्थान का न बन पाना। सोचता हूँ कि काश ! ये दोनों कार्य उस समय हो गये होते तो ये सूखी हुई बंजड सी दिखने वाली घाटी की रौनक़ ही कुछ और होती।
पर थोड़ा सन्तुष्ट हूँ इस बात से कि देर से ही सही पर कोई तो आया माटी का लाल इस घाटी की सुध लेने। पहले श्री हंस फ़ाउंडेशन द्वारा निर्मित बांघाट में विशाल अस्पताल और फिर माननीय मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी द्वारा दुनाव में जल विद्युत परियोजना का शिलान्यास करना। ये उनकी सोच का ही परिणाम है कि पूरी घाटी को सुन्दर और जीवन्त रखने के लिये सात अलग अलग स्थानों का चयन multiple run of the reservoirs का निर्माण शीघ्रता से किया जा रहा है। मेरा मानना है कि सोच अच्छी है तो परिणाम भी अच्छा होगा।

डॉ दिनेश सती – My mentor late Prof. S.P. Nautiyal was involved in DPR investigations of the referred Marora Dam! I did go through some of the investigation reports and drawings during initial phase of my research career but could not retain these reports with me! Hope you may get all those investigation details from Records of the GSI!


एम. पी. एस. बिष्ट – Yes brother I am trying hard to get it but till to date unable to get it . I got feed back from BM Gairola ji GSI and a 77 year old person from nearby village. And during my Wadia time the great Guruji Prof. Nautiyal told us when he started his job at GSI he visited this site along with Auden..???, But he definitely told that he did the preliminary survey work but due to lack of proper report I was unable to write it. The work was continued up to 1950. People said total 84 villages was under submerged area including village of present CM, Khairasain and Satpuli township. But very unfortunate to continue it.

डॉ दिनेश सती – Dr. J.B. Auden and Prof Nautiyal were working together on that project besides some others and they were great friends, this i know personally as i could judge it from exchange of their letters. in fact Dr. Auden was supposed to examine my Ph.D. dissertation but because of his failing vision at that point of time he could not. i was also tracing back the investigation reports on Marora dam but so far there is no good progress. Just gone through some cross referred lines from a book “Development of the Hill areas: A case Study of Pauri Garhwal District by Shri G.L. Dobhal” where it is mentioned that ‘The construction of a 655 feet high gravity concrete dam at Marora, at an estimated cost of Rs. 23.96 crores was envisaged in 1947 to exploit the potentialities of the Nayar valley for storage of water for irrigation and hydroelectric power generation. the work had, however, to be stopped in 1949, on technical grounds’.




एक बात की ख़ुशी है कि जो मित्र आजतक बांधों और जल विद्युत परियोजनाओं (hydro projects) का विरोध करते रहे हैं, उनका हृदय परिवर्तन हो रहा है! शुभ संकेत है। पानी की उपलब्धता न होने से किस तरह छेत्र का विकास रुक गया और लोगों का शहरों की तरफ़ पलायन इस कदर रहा कि गांव के गांव खाली हो गए। समय से चेते तो बहुत अच्छे। वर्षा के पानी को रोकना और संचयित करना बहुत जरूरी है, और जलाशयों/बांधों के अलावा कोई विकल्प साधन/structure है नहीं। हमें नहीं भूलना चाहिए हम अभी developing nation हैं, प्राकृतिक संसाधनों का sustainable use, without stressing on the ecology/environment, कर के ही हम विकशित राष्ट्र बन सकते हैं।

जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’ – जब उत्तराखंड के जमीन से जुड़े बैज्ञानिक अपनी धरती पर काम करना सुरु करते हैं तो कुछ आशा की किरण नजर आती है. सरकार को अपने लोगों पर भरोशा करना ही होगा तभी राज्य का विकाश संभव है. राज्य का सर्वागीण विकाश इसी कमी व पोलिटिकल विल न होने की वजह से नहीं हो पा रहा. नयार, रामगंगा, कमल नदी, आटा गाड, रिस्पना, सरयू, कोसी जहाँ भी संभावना है उस पर काम जरुरी. विस्थापन न के बराबर हो.