युवाओं के लिए उद्यमिता की मिशाल
अरुण कुकशाल
25 साल का सफल उद्यमीय सफर ‘संजीव भगत’ पहाड़ के युवाओं के लिए उद्यमिता की मिशाल हैं।
‘सुख, सम्पन्नता और सफलता से भरपूर जीवन जीने के लिए युवाओं के पास स्वः उद्यम के अतिरिक्त अन्य कोई प्रभावी विकल्प नहीं है। नौकरी तो गुलामी की मानसिकता का प्रतीक है, उसमें व्यक्तित्व विकास के अवसर बहुत सीमित हैं। स्वयं के उद्यम में अपने मन-मस्तिष्क के अनुकूल काम करने की पूरी स्वतन्त्रता होती है, साथ ही पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन भी ज्यादा बेहतर और सुविधाजनक ढंग से हो जाता है।’ मशहूर ब्रांड ‘फ्रुटेज’ के संचालक और उद्यमी ‘संजीव भगत’ उन युवाओं में है जिन्होने किताबों में लिखी इन विचारों पर मात्र चिंतन-मनन ही नहीं किया वरन् उसे व्यवहारिक धरातल पर भी जीवन्त करके दिखाया है।
आज के ही दिन 8 अप्रैल,1993 को नैनीताल से 15 किमी. दूर भीमताल मार्ग पर फरसाली गांव में ‘नैनीताल फ्रुट प्रोडक्ट्स’ के नाम से कुटीर उद्योग की शुरुआत संजीव ने अपने पिता स्वः नंद किशोर भगत के मार्गदर्शन में की थी। नंद किशोर भगत जो कि ‘भगतदा’ के नाम से लोकप्रिय रहे ने ही संजीव को नौकरी के बजाय स्वः उद्यम की ओर प्रेरित किया। नैनीताल में वर्ष 1991 में पत्रकारिता से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले संजीव ने ‘उद्यमिता विकास कार्यक्रम’ के माध्यम से उद्यम स्थापना की जानकारियां हासिल की और तुरंत अपनी फल प्रसंस्करण परियोजना को अपने गांव फरसाली से व्यवहारिक रूप में अपनाया।
आज ‘नैनीताल फ्रुट प्रोडक्टस’ के ‘फ्रुटेज’ ब्रांड से स्थानीय फल, फूल, जड़ी-बूटी, सब्जी और मसालों से निर्मित जूस, अचार, मुरब्बा, स्क्वैस एवं अन्य रूपों में 45 उत्पाद 85 पैकेजिंग में देश-विदेश के बाजारों में उपलब्ध हैं। वर्तमान में सालाना ₹ 80 लाख का कारोबार करने वाले संजीव भगत के उद्यम में 25 स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है, जिसमें 18 महिलाएं हैं। संजीव उत्तराखंड में उन युवाओं के अग्रणी एवं मार्गदर्शी हैं जो अपने गांव में रह उद्यमिता की अलख को बनाये हुए हैं।
चंद्रशेखर तिवारी – संजीव को इस कार्य पर बधाई देने की बात जरूर बनती है। निरंतरता, अथक मेहनत व लगन के बूते संजीव ने इस उद्यमिता के कारण जो सफलता पाई है वह निश्चित ही प्रेरणादायी होने के साथ ही प्रशंसनीय है। अपने पिता स्व.नंदकिशोर भगत जी की दृष्टि को आज सच में संजीव ने साकार कर दिखाया है। नैनीताल समाचार से जुड़े और हमारे मित्र ‘भगतदा’ का इस रोजगारपरक उद्यम के पीछे वाकई बहुत बड़ा योगदान रहा है। 90 के दशक के आसपास से ही वे स्थानीय फल प्रसस्करण पर आधारित उद्यम को अपने स्तर पर स्थापित करने के लिए निरंतर सक्रीय हो चुके थे। जब हम लोग (सांसद प्रदीप, अरुण कुकसाल,मंगलसिंह, दीवान नगरकोटी, मोहन उपाध्याय आदि)लखनऊ में थे। तब उन्होंने एक दो बार अर्थशास्त्री डॉ. चंद्रेश शास्त्री व हम साथी लोंगो से इस बावत गहराई से विचार विमर्ष भी किया था। फ्रूटेज प्रतिष्ठान के रजत जयंती पर संजीव और उनकी टीम को अनन्त शुभकामनाएं हैं। डॉ. कुकसाल जी को इस सक्सेस स्टोरी को सामने लाने के लिए साधुवाद।
निर्मल नियोलिया – स्वरोजगार हमारी सरकारों का ऐसा शिगूफा है जो जनता की रोजगार संबंधी जरूरतों को पूरा न कर सकने की असमर्थता का प्रतीक बन चुका है। यदि रोजगार व रोजगार के अवसर पैदा कर सकने लायक संरचना का विकास से भी हाथ खींच लिए गए तो फिर स्वरोजगार का प्रचार प्रसार करने की फॉर्मेलिटी की भी जरूरत नहीं है लोग खुद ही स्वरोजगार खोज लेंगे।