November 23, 2024



समुदाय आधारित पर्यटन

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भरत पटवाल


पर्यटन न केवल उत्तराखंड बल्कि दुनिया के समस्त पर्वतीय क्षेत्र पर्यटकों के लिए आकर्षण के साथ-साथ स्थानीय लोगों की आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है।


वर्तमान में आधारभूत संरचना के विकास के फलस्वरूप सैलानियों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती ही जा रही है। बढ़ती पर्यटकों की संख्या जहां एक ओर स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न करती है वहीं पर्यावरणीय खतरों को भी बढ़ावा देती है। नीती-आयोग के अनुसार पर्यटन के क्षेत्र में 1 मिलियन अर्थात रू0 दस लाख का निवेश करने से 78 लोगों को रोजगार के अवसर मिलते है वहीं कृषि तथा मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में समान अनुपात में निवेश करने से क्रमशः 45 तथा 18 लोगों को रोजगार मिलता है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि किसी भी अन्य क्षेत्र में निवेश करने की तुलना में पर्यटन के क्षेत्र में निवेश करने से अधिक लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्रों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए पर्यटन ही एकमात्र ऐसा उद्योग है जो अधिकाधिक स्थानीय लोगों की आजीविका वृद्धि का जरिया बनता जा रहा है। उत्तराखंड में पिछले 02 वर्षों अर्थात 2015 एवं 2016 में पर्यटकों की संख्या निम्नवत दी गई है.


आंकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि उत्तराखंड में प्रत्येक वर्ष औसतन 3 करोड़ आने वाले पर्यटकों में से अकेले 2 करोड़ पर्यटक हरिद्वार तक ही सीमित रहे। शेष 1 करोड़ में से भी अधिकांश पर्यटकों का आवागमन चुनिंदा पर्यटक स्थलों यथा मसूरी, नैनीताल तथा चार धाम तक ही सीमित रहा। ऐसे में अब प्रश्न है कि अधिकांश पहाड़ी क्षेत्रों जहां पर पर्यटन गतिविधियां बहुत ही सीमित है, के लोगों का रोजगार सृजन कैसे होगा। यदि अधिकांश पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को पर्यटन सम्बन्धित रोजगार से जोड़ने हेतु प्रयास किये जायें तो उसके लिये नीतिकारों, पर्यटन विभाग को विशिष्ट रणनीति अपनानी होगी और ये विशिष्ठ रणनीति ग्रामीण पर्यटन को विकसित करने के रूप में हो सकती है।

उत्तराखंड का प्रत्येक गांव अपने आप में प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न है अर्थात लगभग प्रत्येक ग्राम को पर्यटक ग्राम के रूप में विकसित किया जा सकता है। ग्रामीण पर्यटन को विकसित करने हेतु प्रथम चरण में प्रत्येक जनपद में कुछ गांवों को चयनित कर आधारभूत सुविधायें जैसे सड़क, संचार, पानी, बिजली, शौचालय इत्यादि 24×7 की तर्ज पर विकसित किया जाना होगा। दूसरे चरण में पर्यटकों की सुविधा हेतु ग्रामीण परिवेश के अनुसार ही रहने, खाने तथा मनोरंजन की व्यवस्थायें विकसित की जानी होंगी। पर्यटकों से साक्षात्कार एवं लेखक के अनुभव के आधार पर यह तथ्य रेखांकित करना आवश्यक होगा कि पर्यटकों को लम्बे समय तक किसी स्थान विशेष पर रहने के लिए आकर्षित करना है तो हमें ग्रामीण स्तर पर विभिन्न प्रकार के उत्पाद जिन्हे पर्यटन की भाषा में आकर्षण कहा जाता है, विकसित करने होंगे। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए निम्नानुसार विभिन्न उत्पाद विकसित किये जा सकते है-


1. होम स्टे सुविधा– दुनिया भर में होम स्टे धीरे-धीरे पर्यटकों हेतु नये आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बनता जा रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में विशिष्ठ स्थानीय शैली के भवन/मकानों को पुर्नजीवित कर पर्यटकों के रहने के लिए विकसित किया जाना जरूरी है। पलायन के कारण बड़ी संख्या में पुरानी भवन शैली वाले मकान विलुप्त होते जा रहे है। ऐसी अवस्था में गांव के बेरोजगार इन जीर्णशीर्ण मकानों को पुनः मरम्मत कर अपनी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करने के साथ-साथ रोजगार सृजन कर सकते है। वर्तमान में समूचे उत्तराखंड के ग्रामीण अंचल से मात्र 205 परिवारों द्वारा होम स्टे के अन्तर्गत पंजीकरण किया गया है। पुराने भवनों को पुनः मरम्मत कर पर्यटकों के रहने लायक बनाने का नायाब उदाहरण प्रस्तुत किया है पूर्व राजदूत श्री चंद्रमोहन भण्डारी ग्राम मावड़ा जनपद अल्मोड़ा द्वारा। श्री भण्डारी जी द्वारा भारतीय 
विदेश सेवा से रिटायर होने के बाद अपने गांव में योग, स्थानीय खान-पान, रहन-सहन के माध्यम से बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित कर रहे है।

2. स्थानीय भोजन व्यजंन– उत्तराखंड के समूचे पहाड़ी अंचल में परम्परागत रूप से प्राकृतिक अथवा आर्गेनिक कृषि की संस्कृति रही है। स्थानीय कृषि उत्पादों से निर्मित जैविक भोज्य पदार्थ पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख साधन बन सकता है। ग्राम सौड़, मोरी उत्तराखंड में श्री बलबीर सिंह द्वारा संचालित होम स्टे में पर्यटकों को अनिवार्य रूप से स्थानीय व्यंजन ही उपलब्ध करवाये जा रहे है, जिसकी वजह से स्थानीय तथा बाहरी पर्यटक बड़ी संख्या में जैविक एवं स्थानीय उत्पाद का अनुभव प्राप्त करने हेतू भ्रमण कर रहे है।




3. स्थानीय लोक नृत्य/संगीत/मेले/जात– उत्तराखंड के विशिष्ठ सांस्कृतिक विरासत के विभिन्न आयामां का मंचन एवं प्रदर्शन बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है। कमलव्यू, चक्रव्यू, मास्क डांस, सरैं नृत्यु, छोलिया नृत्य, अभिज्ञान शाकुन्तलम इत्यादि तथा विभिन्न प्रकार के लोकनृत्यों का आयोजन पर्यटकों के मनोरंजन हेतु करने से न केवल स्थानीय संस्कृति का संरक्षण हो सकेगा बल्कि कलाकारों को भी सीमित मात्रा में ही सही मानदेय भी प्राप्त होगा। लोक संस्कृति आधारित पैकेज टूर विकसित करने तथा मार्केटिंग से ग्रामीण पर्यटन को स्थायी रूप से बढ़ावा मिलेगा।

4. सोविनियर आइटम– दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि उत्तराखंड राज्य बनने के इतने वर्षों बाद भी राज्य सोविनियर आइटम विकसित करने के क्षेत्र में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया। रिंगाल, ऐपण के छुटमुट उत्पादों के अतिरिक्ति राज्य में आने वाले पर्यटक अपने साथ ऐसा कोई आइटम नहीं ले जा पाते जो कि उनके लिए यादगार बन सके। जिस प्रकार हिमाचल की टोपी, फलों के मूल्य सम्बर्धित उत्पाद पर्यटकों के लिये खास आकर्षक है वैसी पहचान उत्तराखंड को बनानी बाकि है। इस क्षेत्र में विशेष शोध के बाद मार्केटेबल उत्पादों को विकसित करना तथा इसको बनाने में स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करना रोजगार सृजन में सहायक हो सकता है। आज भी तमाम धार्मिक पर्यटक स्थलों पर प्रसाद के रूप में इलायची दाना ही विक्रय किया जा रहा है।

5. लोकसंस्कृति संग्रहालयों की स्थापना– लोक संस्कृति संग्रहालय की जगह-जगह स्थापना भी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण करने के साथ स्थानीय लोगों की आय का स्त्रोत बन सकता है। भीमताल में श्री यशोधर मठपाल द्वारा स्थापित लोक संस्कृति संग्रहालय बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है जो न केवल स्थानीय परम्परा, इतिहास से पर्यटकों को रूबरू करवाता है बल्कि आय का एक साधन भी है। टिहरी बांध के फलस्वरूप एक गौरवशाली इतिहास भी हमेशा के लिए दफन हो गया। डूब क्षेत्र के इतिहास एवं संस्कृति को दर्शाता संग्रहालय ग्रामीणों द्वारा संचालित करने से स्थानीय लोगों के साथ-साथ बाहरी लोग भी इतिहास से परिचित हो सकेगे तथा ग्रामीणों की आय में भी वृद्धि होगी।

6. ट्री हाउस का निर्माण– गांवों में अथवा गांव से लगे वनो में ट्री-हाउस का निर्माण भारी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है। इस तरह के प्रयोग अभी तक उत्तराखंड में नहीं किये गये है। ट्री हाउस में रहने का विशिष्ठ अनुभव पर्यटकों के लिए यादगार बन सकता है। कर्नाटक में सरकार द्वारा का ढांचा विकसित कर नया प्रयोग किया गया है जो कि पर्यटकों को भारी संख्या में आकर्षित कर रहा है। गांव के आस-पास के जंगलों में इस तरह के ढांचागत विकास से वनों के संरक्षण में स्थानीय लोगों की ओर अधिक सक्रिय भागीदारी भी सुनिश्चित की जा सकेगी।

7. स्थानीय लोगों का कौशल विकसित करना– वर्तमान परिदृश्य में पर्यटन सम्बन्धित सेवायें उपलब्ध करवाने वाले होटल, ढाबा, रेस्टोरेंट, टैक्सी, बस, कैब संचालक, गाइड इत्यादि को सेवा क्षेत्र के उच्च मानकों के अनुरूप दक्ष किये जाने की आवश्यकता है। भ्वेचपजंसपजलए बेसिक हेल्थ इन्टरपिटेशन में गुणवतायुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजन किये जाने से स्थानीय लोगों का कौशल विकसित किया जा सकता है। वर्ड वाचिंग तथा गाइडिंग के क्षेत्र में कौशल विकसित किये जाने की नितान्त आवश्यकता है। कुशल गाइडस द्वारा क्षेत्र की पर्यावरणीय एवं सांस्कृतिक विशिष्ठताओं को उत्कृष्ठ ढंग से पर्यटकों को परिचित करवाया जा सकेगा। उत्तराखंड का वर्तमान पर्यटन अधिकांशतया सीजनल तथा चुनिंदा स्थानों तक ही सीमित है। समुदाय आधारित अर्थात ग्रामीण पर्यटन को समुचित रूप से विकसित करने से पलायन पर अकुंश के साथ-साथ स्थानीय लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिल सकेगा।

समुदाय आधारित पर्यटनः केस स्टडी

समुदाय आधारित पर्यटन का तात्पर्य ऐसे पर्यटन से है जिसमें समुदाय के लोग स्वयं ही पर्यटन स्थलों का प्रबन्धन, रख-रखाव करते है तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन करते हैं। सरकार द्वारा पर्यटक स्थल टाइगर फॉल, चकराता में पर्यटकों के सुविधा हेतु आधारभूत ढांचा जैसे वाशरूम, कियोस्क, पार्किंग, रैलिंग, ट्रेकिंग रूट इत्यादि विकसित कर स्थानीय स्तर पर गठित टाइगर फॉल बहुउद्देशीय पर्यटन विकास समिति को समस्त सृजित सम्पतियां हस्तान्तरित की गई। तत्पश्चात आई0डी0एस0 द्वारा समिति के साथ मिलकर प्रबंधन एवं रख-रखाव हेतु विस्तृत कार्ययोजना तैयार की। कार्ययोजना क्रियान्वयन के फलस्वरूप समिति को पिछले 1 साल में रू 10 लाख की आय हुई, जिसमें से संपत्ति के रख-रखाव एवं अन्य व्ययों पर कुल 4 लाख तक खर्च करने के पश्चात भी रू0 6 लाख शुद्ध लाभ हुआ तथा साथ ही समिति द्वारा 06 व्यक्तियों को रोजगार भी उपलब्ध करवाया जा रहा है।

लेखक इन्स्टीट्यूट फॉर डेवलप्मेंट सपोर्ट (आई0डी0एस0) के निदेशक हैं