बिराणी – परायी अमानत
महावीर सिंह जगवान
कथा की नायिका है बिराणी, जिसका लोक भाषा मे शाब्दिक अर्थ है परायी अमानत।
मै बिराणी नब्बे बसंत पार कर चुकी हूँ, मेरी आँखे कान और मस्तिष्क स्वस्थ हैं मै पैदल घूम फिर सकती हूँ मुझे बच्चे पसंद हैं उनके साथ बतियाना और कानाफूसी करना खूब भाता है, मै शान्त प्रकृति की और शान्ति पसंद हूँ। प्रकृति की हर रचना का सम्मान करती हूँ, अपने से जो भी बन पाता है मानव के साथ पेड़ पशु पच्छियों और कीट पतंगों तक की सेवा करती हूँ, किसी भी विकट परिस्थिति से सिद्दत से जूझना मेरी आदत है और सुख को सहजता से अंगीकार करना स्वभाव है, मेरे गाँव मुहल्ले मे सबकी जुबाँ पर एक शब्द है बिराणी न जाने किस मिट्टी की बनी है काश हमारे बच्चे भी कुछ सीख पाते। सेवा मे सुकून और मेहनत मे आनंद यही मेरे सबसे अनमोल गुण और धन हैं।
बीती रात से न जाने क्यों बार बार मेरी नींद टूट रही है और मैं भावुक होकर कभी दृढ तो कभी कमजोर महसूस कर रही हूँ रात चौथे पहर मुझे नींदियी रानी ने स्वप्निल सपनों की सैर करायी और बचपन के अनमोल लम्हें मेरी चौखट पर अवतरित हो गये, बाबा माँ को देखकर स्मृति के हिलोरों के सम्मुख अश्रु धारा बह रही है। मेरे बाबा छ:भाई थे उनमे तीसरे नम्बर के मेरे बाबा सोणू सबकी नजर मे मंद बुद्धि के थे, बचपन मे घर का सारे काम मे बाबा हाथ बटाते थे जब मेरे बाबा तेरह साल के थे तब उनकी शादी हो गयी थी और कई वर्षों तक मेरे बाबा और माँ ने परिवार की सेवा की, अचानक दादी ने फैसला सुनाया सौणू और उसकी पत्नी घर से दूर जंगल मे रहेंगे उन्हे कुछ पशु देकर घास फूस की झोपड़ी मे भेज दिया, मै आज तक नहीं समझ सकी मेरी दादी को यह निर्णय क्यों लेना पड़ा, फिर सोचती हूँ सायद दादी का निर्णय सही रहा होगा, मैने तो अपनी दादी को देखा ही नहीं हाँ माँ कहती थी जब मै पैदा हुई दादी आयी थी, दादी ने ही मेरा नामकरण किया था बिराणी।
मेरी माँ कहती है बाबा के भाई और दादी कहते थे तेरा बाबा मंद बद्धि का है लेकिन मेहनती है नंगी धरती मे सबकुछ करने की हिम्मत रखता है, माँ कहती थी इतना समझदार और तहजीब पसंद आदमी युगों युगों तक नहीं होगा, हाँ मुझे भी याद है मेरी माँ और बाबा दुनियाँ के सर्वोत्तम पति पत्नी थे, एक दूसरे का सम्मान और सहयोग की ही परिणति थी जंगल मे मंगल कर दिया। मुझे याद है मैं माँ बाबा की इकलौती संतान थी उन्हे लगता था इसको बचपन मे साथी चाहिये वैसें तो वो दोस्तों की तरह ही मेरा लालन पालन करते थे।
एक दिन मैं बाबा की गोद मे बैठी हूँ माँ मुझे स्नैह भरे हाथों से रोटी और मक्खन खिला रही है, बाबा कहते वो सामने हिमालय है न, जिसे हम चौखम्बा के नाम से जानते हैं तू अपने को कभी अकेला मत समझना, वहाँ तुम्हारी बहिन गंगा है, मै उत्सुकता से कहती बाबा माँ मुझे तो वहाँ कुछ भी नहीं दिखता, बाबा कहते बेटी गंगा पहले स्वर्ग मे रहती थी, भगीरथ के तप से भगवान शंकर की जटा से होते हुये धरती पर आयी, यह सामने जो चौखंबा हिमालय दिख रहा है इसमे चाँदी सदृश चमकती परतें ही गंगा का रूप है जिसे बर्फ कहते हैं इसी से गंगा की छोटी छोटी धारायें निकलती हैं और फिर गंगा धरा और धरा के मानव के लिये जीवनदायिनी बनती है। जब मे छोटी थी तब से आज तक हिमालय से बतियाती हूँ साहस प्रेम बटोरती हूँ सदैव अपनी अदृष्य बहिन गंगा की उज्जवलता और समृद्धता के लिये हिमालय चौखंबा को बर्फ से ढका देखकर आनन्दित होती हूँ।
जंगल मे घास की झोपड़ी पर ही हम रहते थे, अंदर बाहर दो कमरे थे साथ ही गौशाला, जब मै पैदा हुयी माँ कहती है बाबा ने ही खेती बाड़ी पशुधन और हमारा ख्याल रखा जैसे ही मै साल डेढ साल की हुई माँ बाबा मेरा एक पाँव बाँधकर कमरे मे बंद करते थे और फिर खेती बाड़ी के लिये जाते थे, मेरे साथ बकरी के बच्चे होते थे पाँव बाँधने के पीछे चूल्हे से सुरक्षा थी। उस जमाने मे स्कूल दूर थी और मेरी माँ बाबा मुझे विद्यालय भेजने मे असमर्थ थे। फिर भी उनसे सुनी कहानियों ने मुझे जीवन जीने के लिये जरूरी पूरा ज्ञान मिला, मेरे बाबा और माँ की हर कहानी शिक्षाप्रद और जीवन जीने की कसौटी मे खरी उतरती है यहाँ तक चार दशक बाद भी उनकी हर बातों का पूरा पूरा मोल है।
मुझे याद है जब मैं तेरह साल की थी एक दिन हम सब सो रखे थे मुझे भी नींद नही आ रही थी लेकिन माँ बाबा को लगा बेटी सो गई है आपस मे बतियाने लगे हमारी बिराणी भी अब बड़ी हो गई कुछ सालों में इसकी शादी होगी और हम फिर क्या अपनी बिटियारानी के जी सकेंगे, शायद नहीं माँ फफक कर रो पड़ी बाबा कहते हैं चुप रह बेटी उठगे तो वह भी रो पड़ेगी। शायद मै बहुत कुछ तो नहीं समझ पायी लेकिन माँ को रोता देख माँ के सीने से चिपक गई। कुछ ही सालों मे भेड़ बकरी गाय भैंस और खेत खलिहान से हम सम्मपन्न हो गये, मै भी बड़ी हो रही थी, माँ बाबा की मेहनत तौर तरीकों बात विचार का कोषों दूर तक खूब चर्चे थे, मेरी माँ और बाबा अनपढ जरूर थे लेकिन उनका पेड़ पौधों वन्य जीव जन्तुऔं कीट पतंगों मधुमख्खियों और पशुपच्छियों के साथ अगाध स्नैह और प्रेम था, साथ ही माँ बाबा को पता होता था जंगलों मे पानी और भोजन की कब कमी होती है उस समय वह पत्थरों से बनाये वर्तनों मे पानी और अनाज डालते थे ताकि उसे पशु पच्छी जानवर खा सकें, कई बार विछुड़े असहाय पशु पच्छी कई दिन तक हमारी शरण मे रहते थे, घुरड़ बारह सिंगा भी हमारी बकरियों के साथ घर आते और सुबह फिर जंगल चले जाते, कौतूहल से भरा था मेरा बचपन, उस जमाने मे हम चीनी की जगह शहद ही प्रयोग करते थे, मिट्टी का चूल्हा होता था उसके ऊपर लकड़ी बँधी होती थी मालू की डोर से, बगल मे मक्का का गुच्छा बीज के लिये लटकता था, मेरी माँ कपड़े के चीथड़ों पर नाना प्रकार की साग सब्जियों के बीज बाँध कर रखती थी, मिट्टी के घड़े घीं और मक्खन से भरे होते थे, लकड़ी की कोठार अन्न से और बाग बगीचा मौसमी फलों से लकदक, हम हर बार के बने भोजन मे ईष्ट देव, अग्निदेव, पशुपच्छियों का हिस्सा अलग रखते थे, मेरी माँ के मायके वाले सम्मपन्न थे और हमारी गरीबी के कारण वो कम ही आते थे। धीरे धीरे सबकुछ ठीक होने लगा और मैं सोलह साल की हो गई नानी का रैबार (मैसेज) आया मेरी माँ को एक दिन के लिये मायके बुलाया है साथ ही मुझे भी।
पहली बार बाबा उस दिन घर मे अकेले थे हम दोनो ननिहाल गये नानी ने कहा अब बिराणी बड़ी हो गई है फलानी जगह रिश्ते मे लड़का है खूब मेहनती है खूब पशुधन और जमीन है मेहनत करेगी ऐश से रहेगी। मेरे लिये नई बात थी और उसदिन शायं हम घर लौट आये सारी रात मै यह नहीं समझ पा रही थी मेरे माँ बाबा मुझे दूसरे को दे देंगे और यदि दिया तो कैसें रहेंगे बस मै उदास रहने लगी और हर दिन माँ बाबा मुझे ढाँढस देते यह रीति है यही जीवन है। एक दिन सायं को एक अधेड़ उम्र का ब्यक्ति मेरे बाबा का नाम लेकर पुकारता है सौणू का मकान यही है और माँ कहती है हाँ वह परिचय देता है और माँ बाबा उनको प्रणाम कहते हैं। हम लोग रात को भोजन जल्दी करते थे और सुबह हमेशा जल्दी उठते थे।
माँ ने दो प्रकार की सब्जी, दाल रोटी और चावल बनाया फिर बाबा और उस आये मेहमान को दो थाली पर दो कटोरे सब्जी, दाल, एक कटोरी घीं एक कटोरी मक्खन, घीं मे चुपड़ी रोटी, पके चावल और एक भरा गिला स दूध रखा और देने को कहा, पहली बार मेरे बाबा ने दूसरे के संग खाना खाया और मै और मेरी माँ और मैने विना बाबा के खाना खाया। खाने खाने के बाद चूल्हे में बाँज के कोयले जल रहे थे मै माँ से चिपकर एक छोर दूसरी ओर बाबा और अनजान ब्यक्ति बैठा था, वह अनजान ब्यक्ति बाबा और माँ से कहता है लड़कियों की कमी नहीं लेकिन जितनी आपकी गुड़िया बिराणी की प्रशंसा की जाय कम ही है और मेरा सौभाग्य होगा आपकी लाडली हमारी बहू बनेगी उसका ख्याल हम आप से भी अधिक रखेंगे बाबा हाँ मे हाँ मिलाते हैं और माँ कसकर पकड़ती है सुबह वो चले जाते हैं अब माँ भी भावुक होने लगी है और बाबा माँ को ढाँढस देकर समझाते हैं यह रीति है इसे बदल नहीं सकतेहैं और मुझे माँ बाबा की अकेले की चिन्ता सता रही थी। कुछ दिन बाद शादी की बात पक्की हो गयी और मुझसे पूछा गया आपकी कोई ईच्छा मेरा बस एक ही जबाब था मै हर दस पन्द्रह दिन मे एक दिन अपने माँ बाबा के पास रहूँगी और जब वह असमर्थ होंगे तो उन्हें अपनी ससुराल मे ही रखूँगी खुशी खुशी ससुराल पक्ष की सहमति बन गई,और कुछ दिन बाद मेरी शादी हो गई।
ससुराल मे वृद्ध ससुर मेरे पति और भरी पूरी जमीन और पशुधन।मै खुशी से ससुराल मे रहती और हर दस पंद्रह दिनो मे मायके जाकर माँ बाबा का हाल चाल जानकर वापस लौट जाती धीरे धीरे समय गुजरता गया, खेती और पशुधन तो हमारे पास बहुत था लेकिन बदलते जमाने की बड़ी जरूरत रूपया न था इसलिये पति दूर दूर गाँवों मे मेहनत मजदूरी करते थे और मै घर मे सोलह सोलह घण्टे मेहनत करती थी। हर बार की तरह बैसाख के महीने मै मायके गई वहाँ सभी रो रहे थे माँ कमरे के अंदर सिसक रही थी माँ से पूछा बाबा कहाँ है माँ जोर जोर से रोने लगी बोली जो पेड़ तेरे बाबा ने थुनेर देवदार पदम बाँज के लगाये थे वहाँ रात को जंगल की आग पहुँची और उसे बुझाने पेड़ों को बचाने की कोशिष मे तेरे बाबा झुलस गये सदा के लिये मुझे अकेले छोड़कर चले गये, मै समझ गई सब कुछ उजड़ गया अब माँ कैसे रहेगी।
संस्कार और बचपन की कहानियों की सीख के बलबूते त्वरित निर्णय लेती है घर के अधिकतर अन्नधन से बाबा के क्रियाकर्म को सम्मपन्न करती है, गरीबों को पशुधन दान कर खेती बाड़ी की जबादेही भी भूमिहीनों को सौपती है, और माँ को अपने साथ ससुराल लेकर आती है उसके दो छोटे छोटे बच्चे हैं एक नाम रामू और दूसरे का नाम श्यामू है। फिर अपनी दिनचर्या मे रमती है माँ का पूरा ख्याल रखती है।
कुछ दिनो मे माँ कहती है बेटी मुझे अपनी कर्म भूमि की याद आ रही है, सपने मे तेरे बाबा आये थे कह रहे थे तू कहीं बेटी पर बोझ तो नहीं बन गई, हमने जिस जगह पर साथ साथ मेहनत की समय गुजारा उसी जगह पर तू रहेगी तभी तो शान्ति मिलेगी, बेटी बहुत समझाती है लेकिन माँ नहीं मानती, श्रावण का महीना है बेटी इस बात पर सहमत हुई एक दो दिन वहाँ रूकेगी फिर लौट आयेगी, माँ के लिये जरूरी दो दिन का सामान लेकर माँ को मायके छोड़ती है और कहती है माँ तेरी जिद मै मिन गई, दो दिन बाद आऊँगी और फिर वापस लेकर चलूँगी माँ सहमति देती हैं, बिराणी वापस अपने बच्चों के पास ससुराल पहुँच गई है रात को भारी वर्षा होती है, बादलों की कड़कड़ाहट और भीषण भय, इधर बिराणी को माँ की चिन्ता सताती है। फिर वह दो दिन बाद वहाँ पहुँचती है जहाँ माँ का घर खेत खलिहान था वहाँ नियति ने तबाही मचायी थी वहाँ बादल फटा और सबकुछ मिट्टी मे दफन हो गया, माँ सदा सदा के लिये बाबा के साथ चली गई असहनीय दु:खों का पहाड़ टूट गया। बिराणी फिर अपनी माँ का सम्मानजनक क्रियाक्रम कर वापस ससुराल लौट जाती है, यहाँ उसका रामू पाँच साल का हो गया है और श्यामू तीन साल का वह दिन भर मेहनत से अपने परिवार को सँवार रही है भले ही रात मे जब सब सो जाते हैं उसकी नींद टूटती है और वह माँ बाबा की याद में फफक कर रो पड़ती है, फिर उसका पति ढाँढस देता है बच्चे भी उठ जाते हैं और सीने से चिपक जाते हैं फिर वह साहस बटोरती है और अपने द्रवित मन को ढाँढस देती है।
समय बीतता गया पहाड़ का जीवन पहाड़ जैसा होता है पति दूर गाँव मे मजदूरी पर जा रखे हैं बिराणी अकेले घर मे दो गाय दो भैंस एक जोड़ी बैल खेत और दो छोटे बच्चों की देखभाल कर रही है अब उसके ससुर जी भी गुजर चुके हैं, बिराणी ने अपने ससुर के देहवासन पर श्रीमद भागवत का आयोजन किया बड़ा भण्डारा लगाया खूब दान धर्म किया था लेकिन नियति के सम्मुख दाता भी लाचार हो जाता है, जो उसने माथे पर लिखा है उसे मिटाने की ताकत भला किसमें। कुछ दिनों से बच्चे बीमार पड़े हुये हैं बिराणी इतनी ब्यस्त है कि फुर्सत चाहकर भी वह बच्चों की अतिरिक्त देखभाल नहीं कर पा रही है, वह उनको खाना देती है लेकिन अस्वस्थता के कारण वह खा नही पाते और बिराणी समझ नहीं पा रही है, सायं के चार बज रहे हैं और उसके बच्चे बदहवास अपना बदन ढीला छोड़ रखें हैं, और वह समझ नही पा रही है क्या करूँ पति दूर काम पर गये हैं वह दौड़ती है और बीस किलोमीटर दूर से पति को बुलाती है सारी रात दोनो बच्चों को गोद मे रखकर पैदल इलाज के लिये दौड़ते हैं, रात भर चलकर पचास किलोमीटर की दूरी तय कर सरकारी दवाखाने तक पहुँचते हैं सुबह आठ बजे तक छोटा श्यामू दम तोड़ देता है और सायं चार बजे बड़ा रामू भी धोखा दे देता है बदहवास घर पहुँचते हैं आज बौराणी के पास का सब कुछ लुट गया वो फिर से ऐसे चौराहे पर खड़ी हो गयी जिसके आगे भी अंधेरा और पीछे भी अंधेरा। वह अपने पति के साथ ऊँची चोटी पर पहुँचती है और सम्मुख चौखंबा के दर्शन करती है कहती है मेरे बाबा कहते थे तेरी एक बहिन गंगा है जिसका वास हिमालय है जरूर तुझे शक्ति और हिम्मत देगी।
न खाने का मन और न जीने का मन बिराणी और उसके पति बेसुध जमीन पर लेटे हैं। उनके सम्मुख गंगा अवतरित होती है गंगा जोर से कहती है उठ बिराणी उठ मुझे देख मै हिमाललय के चौखंबा से आई हूँ तुझे याद है तेरे बाबा कहते थे तेरी एक बहिन हिमलय मे है उसका नाम गंगा है, बिराणी उठती है सकपकाकर फूट फूट कर रोती है चिल्लाती है दीदी किसके सहारे और क्यों जीयूँगी सबकुछ खत्म हो गया, गंगा ढाँढस देती है कहती है उठ जाग मै और मेरा आशीष तेरे साथ है तुझे एक बेटी होगी जो तेरा नाम रोशन तो करेगी ही साथ तुझे जीवन का अर्थ समझने मे सहायक होगी, तेरी जरूरत तेरी आने वाली लाडली को है तेरे हाथों पृथ्वी मे सुख का संचार होगा तू उठ जाग।
कुछ ही दिनों मे बिराणी हिम्मत बाँधती है और उसकी दिनचर्या सामान्य होने लगती है उसके घर एक कन्या जन्म लेती है वह उसे गंगा का आर्शीवाद मानती है और उसका ख्याल रखती है, फिर कई सालों बाद बिराणी के घर हँसी लौटी है वह दुखी तो हैं लेकिन इस नन्हीं सी परी ने आशा की किरण जगायी है। विराणी अपनी लाडली का नाम भी गंगा रखती है, गंगा जैसे पाँच साल की होती है उसके पापा यानि विराणी के पति बीमार रहने लगते हैं, धीरे धीरे बीमारी बढती है और जब एक दिन दूर सरकारी अस्पताल मे विराणी के पति की जाँच होती है तब वहाँ बड़ी लेडी डाॅक्टर कहती हैं घर लेकर जाऔ कुछ दिनो के मेहमान हैं, साथ ही कहती है तुम पहाड़ी जब मरने को होते हैं तब अस्पताल का रास्ता ढूँढते हैं, गंगा की माँ बिराणी स्वाभिमानी है पीछे मुड़कर लेडी डाॅक्टर से पूछती है पहाड़ियों की इन हालतों मे बदलाव कब और कैंसे आयेगा, लेडी डाॅक्टर पूछती है आपकी बेटी का नाम क्या है बिराणी फिर भावुक होकर कहती है मेरी बेटी का नाम गंगा है, लेडी डाॅक्टर अचंभित होकर कहती है मेरा नाम भी गंगा है और जब तुम्हारी बेटी मेरी तरह बड़ी डाॅक्टर बनेगी तभी हालात बदलेंगे।
समझा बुझाकर लेडी डाॅक्टर बिराणी और उसके पति के साथ लाडली गंगा को घर भेजती है और उनसे नाम पता पूछती है और नोट करती है, बिराणी कभी अपने पति को देखती है और अपनी गंगा को और नम आँखो से छोटे छोटे कदमो से घर वापसी की ओर बढती है। कुछ ही महीनो मे गंगा के पिता स्वर्गवासी हो गये अब बिराणी और उसकी सपनो की परी गंगा दोनो माँ बेटी घर पर हैं आज ही दसवीं का रिजल्ट आया है गंगा अस्सी प्रतिशत अंको के साथ दसवीं पास कर चुकी है। गाँव मे खुशखबरी है विद्यालय के सहपाठी गुरूजन बधाई देने घर पहुँच रहे हैं बिराणी खुश है उसकी सपनो की परी कामयाब हो रही है, और दु:खी भी है उसके बाबा भी यह सब देख पाते। रात को भोजन करने के बाद माँ बेटी लेटे हैं माँ को शहर के उस लेडी डाॅक्टर की बात याद आ गई अपनी बेटी को डाॅक्टर बनाना, वह ब्यकुल है काश हिमलय स्थित चौखंबा की मेरी बहिन गंगा कोई रास्ता दे दे। सुबह होती है उनकी चौखट पर शहर के बड़े अस्पताल की लेडी डाॅक्टर पहुँचती है और जोर जोर से गंगा गंगा पुकारती है। दोनो माँ बेटी दरवाजे पर आती हैं और आश्चर्य करते हैं आज कैसे गरीब की कुटिया मे इतने बड़े डाॅक्टर आयी हैं।
लेडी डाॅक्टर गंगा से कहती है बेटी पानी नहीं पिलाओगी, झट से दौड़कर गंगा पानी का गिलास लाती है एक हाथ से पानी का गिलास और दूसरे हाथ से गंगा को अपनी बाहों मे लपेट लेती है। फिर जमीन पर बैठकर गंगा की माँ बिराणी से गुफ्तगू करती है और कहती है जब मैने आपकी लाडली को पहली नजर मे देखा था तो मै समझ गई यह विलक्षण बालिका हैऔर कल अखबार मे जब गंगा का परीक्षाफल सहित फोटो देखी तभी समझ गयी थी मेरा अंदाजा सही था। मै तुम दोनो को लेने आयी हूँ एक महीने बाद गंगा को एक परीक्षा पास करनी है यदि यह सब हो गया तो फिर गंगा को डाॅक्टर बनने से कोई रोक नही सकता। आप दोनो मेरे साथ चलो मेरी न तो माँ बाप है और न ही सास ससुर आपके साथ रहने से मेरा भी मन लग जायेगा, गाँव के प्रधान और स्कूल के प्रिन्सिपल के साथ गुरूजनो और पढे लिखों से विचार विमर्श कर सहमति से लेडी डाॅक्टर के साथ शहर आ जाते हैं।
लेडी डाॅक्टर को बड़ा सा सरकारी बंगला नौकर मिले हैं शुरूआत मे तो बिराणी को अजनवी लगा लेकिन जल्दी ही घुल मिल गये सुबह सायं लेडी डाॅक्टर तीन तीन घण्टे गंगा को पढाती गंगा भी खूब मेहनत करती और जिस टैस्ट परीक्षा के लिये गंगा को लायी थी वह परीक्षा गंगा टाॅप कर चुकी थी। कुछ ही दिनों मे लंदन के बड़े मेडिकल काॅलेज से गंगा ने डाॅक्टरी की पढाई पूरी की, अब उसका चयन अंतराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी बड़े अस्पताल मे हो सकता था। गंगा ने अब अपनी माँ को अपने साथ रखा और स्वयं निर्णय लिया वह तीन माह विदेश, आठ माह भारत के बड़े अस्पताल और एक माह अपनी जन्मभूमि मे सेवा देगी, लेखक के नाते जब मै गंगा हे सवाल करता हूँ आपका यह निर्णय मै समझा नही, डाॅक्टर गंगा कहती है लेखक अंकल ठीक है मै समझाता हूँ एक महीने जन्मभूमि को देना जरूरी है क्योंकि मेरे बाबा भी समय से पहले मरे विना इलाज के साथ ही हमारे पहाड़ों मे जनशंख्या भले कम हो लेकिन अच्छे डाॅक्टर जाना नही चाहते मै कोशिष करूँगी पहाड़ियों को गुणवत्ता पूर्ण इलाज मिले, पहाड़ मेरे पिता दादा नाना नानी का वास स्थल है यहाँ सेवा कर मै अपने को उनके नजदीक पाऊँगी मुझे और मेरी माँ को इससे खुशी होगी, मुझे बहुत अच्छी वेतन और स्कोलरशिप मिलती है मरीजों की देखरेख और जरूरी सुविधाऔं का प्रबन्धन मे स्वयं कर लूँगी, तीन महीने विदेश की वजह है मेडिकल साइंस मे हर दिन बदलाव और नई नई खोज हो रही हैं यह सब अभी विदेश मे ही संभव है ताकि हम भविष्य मे भारत को स्वास्थ सुविधाऔं मे नया पन दे सकें, आठ माह भारत मे रहकर अपने देश की सेवा कर गौरवान्वित होऊँगी।
एक दिन बिराणी उसकी बेटी डाॅक्टर गंगा और उसके समकक्ष अंतर्राष्ट्रीय कार्डियोलाॅजिस्ट डाॅ0 विवेक घर मे बैठे थे अचानक जिसके आशीष से गंगा इस उत्तकर्ष तक पहुँची शहर की प्रसिद्ध लेडी डाॅक्टर पहुँचती है, बिराणी की बेटी डाॅ0 गंगा लेडी डाॅक्टर के पाँव छूती है और डाॅ0 विवेक से कहती है मेरी दो माँ हैं एक जन्म देने वाली एक मूझे लक्ष्य तक पहुँचाने वाली। डाॅ0 विवेक मुस्कराता है और अपनी माँ डाॅ0 लेडी के पाँव छूता है, बैठकर बातें चाय मीठा नाश्ता होता है फिर शहर की लेडी डाॅक्टर एक प्रस्ताव रखती है बिराणी के सम्मुख मेरी हार्दिक इच्छा है आपकी बेटी का रिश्ता मे बेटे डाॅक्टर विवेक से हो जाय, बिराणी खुशी से गदगद है और डाॅ0 गंगा अंदर से खुश है लेकिन कुछ समझ नही पा रही है फिर उसे याद आती है लेखक अंकल महावीर जगवाण को बुलाया जाय संयोग से उसी समय शहर पहुँचा था मोबाइल की घंटी बजी देखा डाॅक्टर गंगा का फोन है उठाते ही आवाज आयी अंकल कहाँ हो बोला न्यूयार्क मे कहा जल्दी से हमारे पास पहुँचो माँ परेशान है और सीधे पहुँच गया लिफ्ट से इक्कीसवीं मंजिल मे वहाँ मुस्कराहट के ठहाके थे, मीठी खट्टी बातों की खुशबू थी, बिराणी आज भी न अधिक खुश है न दु:खी मेरे पहुँचते बिराणी खुश हो गई पाँ छुवा और दीदी प्रणाम कहा, बोला दीदी बिराणी अब खुश रह प्रभु ने जितनी परीक्षा लेनी थी ले ली। मुझे ही नहीं पूरे पहाड़ को डाॅक्टर गंगा पर गर्व है, डाॅक्टर गंगा कहती है अंकल शादी का प्रस्ताव आया है आप भी कुछ कहिये, मेरा विनम्र निवेदन था जहाँ तक मै समझ पाया सभी सहमत हैं हाँ डाॅक्टर गंगा को कुछ कहना है सकती है तो कह सकती है, डाॅक्टर गंगा ने कहा मेरी एक ही शर्त एक महीना जन्मभूमि पहाड़, तीन महीने विदेश और आठ महीने भारत मे सेवा। लेडी डाॅ0 और उसका लाडला डाॅ0 विवेक सहमति देते हैं और कुछ दिनो बाद उनकी शादी बड़े धूमधाम से होती है सुना था बिराणी दीदी ने अपने मायके ससुराल वालों को भी जहाज का टिकट और वीजा दिलाकर बुलाया था, मै गाँव वापस आ गया मुझे भी बुलावा था लेकिन जा नहीं पाया। मुझे प्रसन्नता होती है जब भी डाॅक्टर विवेक और डाॅक्टर गंगा पहाड़ों पर पहुँचते हैं और पूरे एक महीना रात दिन लोंगो की सेवा करते हैं, भगवान बद्रीविशाल इनको शक्ति और आनंद दे इनका जीवन सफल हो।