November 21, 2024



कब बदलेगा झंडा चौक

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अविकल थपलियाल 


चित्र में कोटद्वार का ऐतिहासिक झंडा चौक। कोटद्वार का दिल। इस झंडा चौक से ही गुजर कर वाहन गढ़वाल की ओर कूच करते है।


अब भाजपा सरकार के आते ही झंडा चौक में ऊंचा तिरंगा लहराया गया है। यह झंडा चौक कई बड़ी राजनीतिक जनसभाओं का गवाह रहा है। व्यापारिक गतिविधियों के अलावा यह झंडा चौक जलेबी, पकोड़ी और लल्लू के मलाई दूध के लिए जाना जाता है। झंडा चौक की एक ओर खासियत जो बचपन के दिनों से देख रहा हूँ। यहां बिगड़ैल सांड और गाय बीच चौक पर पसरे रहते है । वाहनों के शोरगुल से बेखबर इन जानवरों का कभी कभी हिंसक रुख बाजार में अफरा तफरी मचा देता है। कुछ साल पहले मेरे दोनों बेटों ने भी बाटा की दुकान के पास दो सांडों की हिंसक भिड़ंत अपने मोबाइल में कैद की थी। दून की आबोहवा में पल रहे दोनों पुत्तरों ऋषिताभ् और अभिजय के लिए बीच बाजार में सांडों की जंग के दृश्य आज भी हंसी ठिठोली और मेरे कोटद्वार पर व्यंग्य का मुख्य मुद्दा बना हुआ है।


करीब 20 साल पहले एक बिगड़ैल सांड मेरी माता जी को भी घायल कर चुका है। उस समय की चोट आज भी परेशान कर रही है। जब मैं सात साल का था तो झंडा चौक से 100 मीटर दूर मेरे ननिहाल सुमन मार्ग में एक सांड मुझे भी पटक चुका है। बेहोश हो गया था मैं। खैर, जान बच गयी थी। बहरहाल, दो दिन पहले शादी समारोह में कोटद्वार जाने का मौका लगा। वैवाहिक भोज के बाद 8 मार्च की रात्रि 1 से 2 बजे के बीच झंडा चौक पहुंचे। साथ में प्रोफेसर जयजीत बड़थ्वाल। 

इस बार झंडा चौक काफी बदला-बदला नजर आया। दूधिया प्रकाश में नहाया हुआ दिखा। लहराता तिरंगे की शान गर्व से भर रही थी। और जो नही बदला इतने सालों में, वो था झंडे के ठीक नीचे खच्चरों की जनसभा। पता नही ये गधे खच्चर कोटद्वार के नगर निगम बनने की खुशी में एकजुट हुए या फिर किसी अन्य गम्भीर मसले पर मंथन हो रहा था। एक कोने में सुअर भी भोजन तलाश रहा था। और थोड़ी दूर अंधेरे में हिंसक सांड के फड़फड़ाते नथुनों की आवाज ने मेरे बचपन के घाव को हरा कर दिया। कुछ पल जानवरों की इस अकल्पनीय अर्द्धरात्रि मस्त झंडा चौक की सैरगाह को क्लिक करने में बिता दिए। कुछ चीजें कभी नही बदलती। उस शहर के मस्तक पर पैबंद की तरह चिपकी रहती हैं। ऐतिहासिक झंडा चौक तेरी बांहों में क्या मुसाफिर, क्या जनता और क्या जानवर…सभी पनाह पाते हैं चौबीसों घण्टे। झंडा बदल गया, रोशनी भी और चमकदार हो गयी। काफी कुछ बदलने के बाद भी नही बदला। ऐ झंडा चौक तुझे बारम्बार सलाम।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं