November 23, 2024



जल ही जीवन

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महावीर सिंह जगवान 


सृष्टि मे जीवन का आधार जल है,जल ही जीवन है, भविष्य के संदर्भ मे सबसे बड़ी अदृष्य चुनौती भी जल ही है।


जल है तो मानव है, वनस्पतियाँ हैं, जीव जन्तु हैं, हरी भरी धरा है, आसमानी गगन है, विशाल हिमनद हैं, धारे नाले पोखर हैं, मखमली बुग्याल हैं, सुबह सायं स्वर्ण सदृश और चटक धूम मे चाँदी सदृश चमचमाते ग्लैशियर और बर्फ से ढकी आसमाँ को छूती चोटियाँ हैं, मधुर संगीत विखेरते झरने हैं, उमंग उल्लास के हिलोरे मारते कल कल करती जीवन दायिनी नदियाँ हैं, जल है तो मुस्कारहट से भरा घर है, लहलहाते खेत खलिहान हैं, गौ माता की रम्भाने की स्नैहयुक्त स्पर्श का अहसास है, अन्न -धन से भरे घर की शोभा है, बचपन मे बार बार भीगकर श्रावण का अहसास है, गौरय्या के स्नान का दुर्लभ दर्शन है, जड़ होते तन मन को चेतन की स्वछन्दता देता पल है। जल है तो ही जीवन है।


संपूर्ण हिमालयी परिक्षेत्र मे अत्यअधिक जैव और मानवीय सम्मपन्नता से समृद्ध उत्तराखण्ड की आधार शक्ति कहें या रीढ वह है यहाँ के समृद्ध जल भण्डार, ग्लैशियर, सरोवर ताल, धारे नौले, कुण्ड गाड गदेरे, सैकड़ों पावन नदियों का उद्गम, माँ गंगा का मायका। पिछले कुछ दिनो से ग्रामीण परिवेश के अवलोकन पर जो सबसे बड़ी चुनौती दिखी वह है दिन प्रतिदिन गहराता जलसंकट, उत्तराखण्ड के तीन चौथाई पर्वतीय जनपदों मे सबसे बड़ा संकट पीने के पानी का है, चिन्ता इस बात की है जो गाँव आज से दो तीन दशक पहले पेय और सिंचाई जल मे सम्मन्न और प्राकृतिक रूप से समृद्ध थे वो नब्बे फीसदी से अधिक पीने के पानी की कमी से जूझ रहे हैं।

बड़ा सवाल यदि हिमालय से लगी चोटियों घाटियों मे बसे लोगों के कंठ विन पानी प्यासे हैं दूसरी ओर अदृश्य प्रभाव वहाँ की कृषि, जैवविवधता पर कितना बड़ा संकट मंडरा रहा होगा यह कल्पना से परे है।विगत दस पन्द्रह वर्षों मे जो गाँव सर्दियों मे माह भर तक वर्फ से ढके रहते थे और गर्मियों मे भी ताप मान 10 से 15 डिग्री सैलसियस के आसपास होता था वहाँ तापमान वृद्धि दुगनी से अधिक (20-35) के आस पास जा चुकी है, दूसरी ओर वर्तमान मे वर्फ पड़ना तो दूर स्थानीय प्राकृतिक जल के श्रोत तक सूख चुके हैं दूसरी ओर घाटियों मे जल का भारी संकट है। पेयजल और सिंचाई जल के संकट ने एक ओर मानवीय वसासत और स्थानीय कृषि पर बड़ा कुप्रभाव तो पड़ा ही साथ सम्मपन्न वनों और सम्मपन्न वन्य जीव जन्तुऔं पशु पच्छियों को इस संकट से जूझना पड़ा है।


बीते आठ दस दशकों मे सबसे पलायन का ग्राफ तेजी से उन गाँवो मे बढा जहाँ जल की भारी कमी थी इस कमी के कारण खेती बाड़ी और पशुपालन भी चुनौती से कम न था। मजबूरी और अभाव शुरू हुवा पलायन भले ही आज समृद्धि रूप मे भी निरन्तर बढ रहा है। साथ ही यह भी सौ फीसदी सत्य है निरन्तर सूखते प्राकृतिक जल श्रोतों ने ग्रामीण जीवन चुनौतियों से भर दिया है, छोटे छोटे जल श्रोतों की निर्भरता धीरे धीरे बड़े जल श्रोत गाड गदेरों की ओर बढ रही है, यहाँ तक हिमालय भू क्षेत्र मे भूगर्भीय जल के दोहन की भी बड़ी शुरूआत हैण्डपंपो के द्वारा हुई है। जैसा कि विगत कई वर्षों से सर्दियों मे वर्षा के स्तर मे भारी गिरावट आई है और वर्षा ऋतु मे भी असन्तुलन बढा है। इस दोहरी मार के कारण वर्फवारी घटी है, शीत ऋतु की वर्षा जल का प्राकृतिक संग्रहण स्तर न्यूनतम हुवा है और वर्षा ऋतु के असन्तुलन से प्राकृतिक जल श्रोत रिचार्ज नही हो पा रहे हैं, साथ ही यह हिमालयी भू भाग भूकम्प की दृष्टि से अति संवेदनशील है या यह कहें निरन्तर छोटे छोटे भूकम्पों से आन्तरिक जल संवाहक रास्ते छीर्ण और प्रभावित हुये हैं।

उत्तराखण्ड के अस्सी फीसदी गाव सूखे की चपेट मे हैं, यहाँ पीने के पानी का पक्का इंतजाम नही हैं, जबकि सिंचाई की कल्पना करना बेइमानी है, पिछले दो दशकों मे पचास फीसदी से अधिक प्राकृतिक जल श्रोत सूख चुके हैं या पूर्ण रूप से विलुप्त हो चुके हैं। जल संकट का बढना स्वर्गतुल्य पावन भूमि का मानव विहीन होने की ओर इशारा है। सम्मपन्न वन अप्रयाप्त वर्षा के कारण प्राकृतिक रूप से विकसित जैविक नमी और जैविक खाद के अभाव मे ऊसर हो रहे हैं परिणति निरन्तर वनाग्नि एवं भूस्खलन से कई दुर्लभ प्रजातियों की वनस्पति विलुप्त हो रही है, वानिकी पर्यावरणीय और पारिस्थिकी तंत्र को भारी छति पहुँच रही है।




बड़ा सवाल विज्ञान और बड़ी फण्डिग से हम केवल जल सप्लाई के लिये पाइप का ब्यास बढा रहे हैं और लम्बाई मे वृद्धि कर दूरस्थ श्रोतों का इकतरफा दोहन कर रहे हैं, या हैण्डपंप की तकनीकी लाकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक जमीन के कोषो दूर अंदर सुरक्षित जल कोटरों का दोहन कर रहे हैं जबकि इन जल कोटरों का बड़ा योगदान प्राकृतिक श्रोतों और केशिकत्व बल से स्वत: ही गहरे जल को धरती पर पहुँचने का प्राकृतिक तरीका है। आश्चर्य और दु:खद है लाखो हजारों करोड़ों की योजनायें बनने से पहले दम तोड़ देती हैं या विना श्रोत के कारण राष्ट्रीय क्षति को बढाती हैं।

उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपदों मे स्थित गाँवों को बचाने के लिये एक बड़ी पहल संभव है पर्याप्त जलापूर्ति। जलापूर्ति के श्रोतों का चयन। मुख्यत:तीन विकल्प हमारे पास हैं पहला-घाटियों मे बहती नदियाँ, दूसरा-छोटे गाड गदेरे प्राकृतिक श्रोत, तीसरा-वर्षा जल। उत्तराखण्ड अभी भी उन राज्यों मे शुमार है जहाँ औसत के आसपास वर्षा होती है अत:स्पष्ट है वर्षा का पर्याप्त जलभण्डारण हो, विगत कई सालों से यह देखा गया जल संरक्षण के नाम पर तालाबों और छोटे छोटे पनपट्टियों पर ब्यय भार बढा है एक मोटे आकड़ें के तौर पर पिछले दस वर्षों मे इन चाल खालों (पनपट्टरी तालाब) पर ब्यय करोड़ों मे हुवा है जबकि एक फीसदी भी यह लक्ष्य के अनुरूप नहीं हुवा। यदि एक दो जगह दुर्लभ प्रयोग को छोड़ें तो बाकी कुछ भी उपलब्धि नहीं है। काश इतनी ही धन के ब्यय से चाल खालों का निर्माण वर्तन की तरह सुरक्षित और गुणवत्ता युक्त होता तो आज प्रत्येक गाँव के पास पाँच लाख लीटर वर्षा जल होता और प्रति पचास हैक्टेयर वन मे एक लाख लीटर पानी। गाँव की खेती खुशहाल होती, वन वनाग्नि से बचते और अधिक समृद्ध होते। कहने का आसय स्पष्ट है हर गाँव मे पाँच लाख लीटर वर्षा जल संरक्षण की क्षमता विकसित करनी होगी। वनो मे प्रति सौ पचास हैक्टेयर वन मे एक लाख लीटर जल भण्डारण के उपाय करने होंगे, यह लक्ष्य प्राप्त करना अधिक आसान है यदि प्रति परिवार पाँच हजार लीटर वर्षा जल बचा पाया तो यह लक्ष्य से कही गुना अधिक होगा, वनो मे भी पाँच से एक हजार लीटर के सुरक्षित तालाबों की सृँखला से यह लक्ष्य आसानी से पाया जा सकता है। वर्षा जल को यदि सूर्य की किरणो से बचाया गया तो यह जल फिल्टर द्वारा पेय उपयोग मे भी लाया जा सकता है।

बहते प्राकृतिक जल श्रोत या छोटे गाड गदेरों से सीधे जोड़कर पानी को अधिक से अधिक गाँवो वनो और कृषि तक पहुँचाया जाय इसके उपयोग और ब्यय पर सतर्कता हो। आज मानव और खेत जितना जल वनो की जरूरत बन रही है हम पर्याप्त जल प्रबन्धन से स्वयं और खेतखलिहानों के साथ वनो को भी समृद्ध बना सकते हैं। वनो की समृद्धता हम धरती पर जल की उत्तपति मे बड़ा योगदान देंगी, घने और समृद्ध वन वातावरण के तापमान मे नियत्रण कर अल्पाइन रेखाऔं तक की नमी को सन्तुलिन करेंगी परिणति बुग्याल और उच्च हिमालय मे वर्फ और घने वनो मे वर्षा का स्तर बढेगा, जल श्रोत निरन्तर रिचार्ज होते रहेंगे।

वर्तमान मे उत्तराखण्ड के सभी छोटी बड़ी नदियाँ बाँध परियोजनाऔं से प्रभावित हैं, भौतिकवादी युग मे विजली जीवन के लिये ऑक्सीजन से कम नही परिणति सबसे सस्ती और पर्यावरणीय दृष्टि से शुद्ध स्वरूप पनविजली का ही है। भले ही इकोलाॅजिकल तंत्र के लिये यह अभिशाप से कम नहीं जिसका प्रत्यक्ष उदाहण जलीय जीवन और एकत्रित होती गाद है। यहाँ की सरकारों और स्थानीय प्रतिनिधियों को जो भी समझौता सरकारें करती हैं उनमे एक अहम समझौता यह भी होना चाहिये बहते हुये जल का पाँच फीसदी जल बाँध परियोजना की ऊँचाई के पाँच गुना या नजदीकी ऊचाई के टाॅप पर लिफ्टिंग करने की जबाबदेही बाँध परियजना के स्वामित्व या प्रबन्धन की ही होगी। घाटियों का यह पाँच फीसदी जल चोटियों पर पहुँचकर इन स्वर्गतुल्य वादियों के लिये स्वर्ण युग सदृश होगा। यहाँ के वन खेत खलिहान और मानव की समृद्धि के साथ इन बाँध परियोनाऔं के लिये दीर्घकालिक जल आपूर्ति का वातावरण विकसित होगा।

आयें मिलकर समय रहते पानी का मोल पहिचाने, जल की जीवन्तता के लिये छोटी छोटी पहल करें, जल मानव के साथ पशु पच्छी जीव जन्तु कीट पतंग और वसुन्धरा के लिये अमृत है। इसका सम्मान करें, पढाई और विज्ञान के दृढ संयोजन के साथ पीढियों के लिये भी जल की अमरता हेतु पहल करें, एक एक बूँद जल की कीमत समझें, बूझें बनती कैंसे है जल की एक एक बूँद, सहेजे और निर्मित करें ऐसा वातावरण जो सँवरे सृजित हो जल की बूँद।

लेख़क सामाजिक कार्यकर्ता हैं