November 13, 2025



आपदा का शहर बनता रुद्रप्रयाग

जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’


श्री १०८ स्वामी सच्चिदानंद द्वारा स्थापित आधुनिक रुद्रप्रयाग, आज आपदा की ढेर पर बसा एक पहाड़ी शहर बन चुका है. आजकल रुद्रप्रयाग बिना बरसात के भी आपदा से त्रस्त हो रखा है. रुद्रप्रयाग की आपदा की कहानी आगे बढ़ाने से पहले बर्तमान हालात की चर्चा करते हैं. रुद्रप्रयाग बाज़ार के मध्य नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण के कारण, स्थानीय भवनों दुकानों के क्षतिग्रस्त होने की संभावना को देखते हुए, तत्कालीन सांसद व केन्द्रीय राजमार्ग मंत्री भुवनचंद्र खंडूरी ने, शहर से पूर्व गुलाबराई के पास जवाड़ी को पुल से जोड़कर केदारनाथ जाने के लिए बायपास सड़क का निर्माण करवाया था, इससे रुद्रप्रयाग शहर के मध्य गुजरने वाले मार्ग पर काफी दबाब कम हुआ. इस बीच लोक निर्माण विभाग के आगे जहाँ बायपास सड़क को पुनः केदारनाथ मार्ग से जोड़ा गया है, वहां से अब सुरंग बनाकर बद्रीनाथ मार्ग को जोड़ा जा रहा है, जिसका काम अपने अंतिम चरण में है.

बायपास सड़क व बद्रीनाथ – केदारनाथ सड़क को जोड़ने वाली योजना अच्छी थी, जिससे एक पुराने शहर को उजड़ने से बचाया जा सका. लेकिन आपदा ने जवाड़ी बायपास सड़क को तहस – नहस कर दिया है. सड़क धंसने लगी है, जो भरभराकर बिन बरसात अलकनंदा नदी में कभी भी समां सकती है. दरअसल जवाड़ी बायपास सड़क मार्ग का निर्णय बहुत जल्दबाजी व उचित भूगर्भ निर्देशों की अवहेलना का परिणाम है, यह सड़क 70 फ़ीसदी मलबे पर बनी है, जो कई सालों पुराना मोरेनिक डिपाजिट यानि पहाड़ की चोटी से टूटे मलबे पर बनी है. पुराने बुजुर्ग अपने भूगोल की कितनी अनुभवजन्य जानकारी रखते थे, जवाड़ी गांव इसका उदाहरण है. बायपास सड़क पुल के ऊपर गांव सुरक्षित स्थान पर बसा हुआ है, बाकी 70 फ़ीसदी सड़क के ऊपर नीचे गांव वालों ने कभी बसावट नहीं बसाई, केवल गांव को जाने वाला पैदल मार्ग व कहीं – कहीं खेती बागवानी ही बनायी. अगर यह ईलाका मजबूत होता तो यहाँ गांव का विस्तार हो चुका होता. यही चूक इस बायपास सड़क के निर्माण में हो चुकी थी, जिसका परिणाम सामने है. यह बायपास सड़क लगभग फेल हो चुकी है. इस पर कितना भी लीपापोती कर ले यह सड़क लाईलाज हो चुकी है.


यह कितनी बड़ी आपदा बनने जा रही है ,उसकी कल्पना बड़े नुकशान का इशारा कर रही है. जवाड़ी बायपास निर्माण होने से इससे उपरी गांवों को जोड़ने के लिए सड़कों का जाल भी बन चुका है. इन सड़कों के निर्माण ने उपरी पहाड़ी पर नए भुश्खलन तैयार कर लिए हैं, जो बायपास सड़क के धसने का साधन बन गयी. मध्य में उत्तराखंड वन विभाग का बड़ा कार्यालय परिसर का निर्माण हो चुका है, वह भी आपदा की चपेट में आ चुका है. वन विभाग द्वारा निर्मित मनोरंजन पार्क भी धंसना शुरू हो चुका है. जवाड़ी बायपास सड़क के निर्माण होते ही इस पर यातायात का बहुत दबाब बन चूका था, जो वह झेल नहीं पायी व बाकी की कसर बरसात ने निकाल दी. इस साल बरसात में जवाड़ी को जोड़ने वाले मुख्य पुल का एक तरफ का हिस्सा बाढ़ में बह गया था जिसको अस्थायी लोहे के पुल से फिलहाल जोड़ कर यातायात सुचारू तो कर दिया, लेकिन सड़क के जगह – जगह धंसने से इस पर बड़े वाहनों का चलना बंद कर दिया गया. सड़क इतनी बुरी तरह टूट चुकी है कि, छोटे वाहन भी एक बार में नहीं निकल पा रहे. इससे जाम की स्थिति बनी हुई है.


इन उपरोक्त परिस्थितियों के रहते अब जवाड़ी बायपास सड़क का नया विकल्प ही एक मात्र उपाय रह गया है. इस सड़क को इसके बर्तमान हालात पर छोड़ दिया जाना चाहिये व दुपहिया वाहनों, छोटी कारों के लायक बना देना चाहिये. भारी भरकम वाहनों के भार को यह सड़क झेल नहीं पायेगी व अनावश्यक मरम्मत पर खर्च करना बड़ी रकम को डुबोने जैसा है. इस सड़क के ठीक नीचे अलकनंदा बह रही है, जो खासकर बरसात के मौसम में नीचे से कटाव करती जा रही है, इस कटाव को रोकना नामुमकिल है. अब एक बड़ा सवाल सामने खड़ा हो चुका है, यदि इस सड़क का मलबा नीचे नदी में खिसकता है, तो यह दूसरा जानकी चट्टी या धराली बन सकता है. यहाँ नदी बहुत संकरी व पहाड़ी भुश्खलन की ढलान 70 से 90 के कोण बनाती है. इस सड़क का मलबा रुद्रप्रयाग संगम के आगे एक बड़ी झील बना सकता है, फिर इस झील के पानी की निकासी की यंहा संभावना लगभग नहीं के बराबर है. अगर यह झील बनती है तो इसका पानी रुद्रप्रयाग मुख्य बाजार के नीचे पहुच जाएगा व बाजार पूरी तरह ध्वस्त हो सकता है, इसके संकेत बरसात के समय कई बार देखे जा चुके हैं, जबकि नदी में सड़क का कोई ज्यादा मलबा एकत्रित नहीं हुआ था.

यहाँ एक गौर फरमाने वाली बात ये है कि, श्रीनगर स्थित जल विद्युत बांध की झील का जीरो पॉइंट रुद्रप्रयाग संगम से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है, इस साल की आपदा इस बात की उदाहारण है कि, बांध की ऊँचाई की वजह से धारी देवी के निकट गोवा बीच नाम के स्थान पर, मुख्य राजमार्ग जलमग्न हो गया था व पानी के दबाब से रुद्रप्रयाग के निचले इलाके के घरों, प्रतिष्ठानों, मंदिरों को डूबना पड़ा था. जब अलकनंदा व मन्दाकिनी नदी का जल स्तर बढ़ जाता है तो, श्रीनगर बांध की वजह से पानी का दवाब रुद्रप्रयाग शहर की ओर बढ़ जाता है. जवाड़ी बायपास सड़क का भुश्खलन, उसका मलबा, श्रीनगर बांध का जलाशय का दवाब रुद्रप्रयाग शहर के लिए नासूर बन चुका है. मैंने इस आलेख की शुरुआत में रुद्रप्रयाग शहर के आपदा के इतिहास की बात की थी. सन सत्तर के दसक में रुद्रप्रयाग का मुख्य बाज़ार ऊपर की पहाड़ी भुश्खलन से दब गया था, जिसमें कई गाड़ियाँ व लोग दबे थे. बाजार के मध्य बहने वाली सुजुगी गाड हर साल तबाही मचाती रहती है, इसके बाबजूद इस लघु नदी के दोनों पाटों पर भारी भरकम निर्माण होने से नदी को नहर बना दिया गया है. जो भविष्य की बड़ी आपदा को न्योता दे रही है. शहर के ऊपर सडकों के निर्माण के मलबे से जल धारायें पटी हुई हैं. कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि यह आलेख रुद्रप्रयाग शहर व आस-पास की आपदा की भविष्य की कहानी कहता है, जिस पर बिना देरी किये काम करने की जरुरत है.