धरासाई होता धराली

जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
गंगा घाटी में मेरी सबसे पसंदीदा जगहों में धराली और हरसिल रहा है, जब भी मौका मिला मैं कभी चूका नहीं. हरसिल के बगोरी गांव, मुखबा, धराली गांव के ऊपर सात ताल की यात्रा श्री कंठ की तलहटी तक की. जब मैंने आखरी ताल से ऊपर नजर दौड़ाई थी तो विशाल हिमनद सिर के ऊपर खड़ा नजर आता था. लगता था अभी फट पड़ेगा. आशंका तभी लग गयी थी. यह बात होगी 15 साल पहले की. तब धराली में कुछ ही दुकानें व होटल थे. सेब के बगीचे विकसित हो रहे थे. खीर गंगा के बगल में कल्प केदार का जमीन पर धंसा मंदिर कई बार देख चूका था. मुझे बार – बार सैमुअल बौरने का 1865 का खिंचा चित्र याद आ जाता है, तब से लेकर उनका यह चित्र बार – बार धराली गांव व प्रशासन को याद दिलाता रहा कि यहाँ आपदा का आना निश्चित है, लेकिन हमने इन चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लिया परिणाम सामने है. धराली बार – बार उजड़ता रहा, देखें चित्रों में, क्या हुआ धराली में इस बार आईये जानते हैं?
अपनी प्राकृतिक सुंदरता और हिमालयी भव्यता के लिए जाना जाने वाला पहाड़ी राज्य, बार-बार प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होता रहा है। 5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में बादल फटने की घटना ने एक बार फिर इस क्षेत्र की भौगोलिक और पर्यावरणीय नाजुकता को उजागर किया। खीर गंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में हुई इस आपदा ने धराली गांव को भारी तबाही का सामना करना पड़ा, जिसमें कई लोगों की जान गई, दर्जनों लापता हुए, और गांव का अधिकांश हिस्सा मलबे में तब्दील हो गया। धराली, उत्तरकाशी जिले की भटवारी तहसील में स्थित एक छोटा सा पहाड़ी गांव है, जो गंगोत्री धाम के रास्ते में हर्षिल घाटी के पास बसा हुआ है। यह गांव समुद्र तल से 2,745 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। 5 अगस्त 2025 को दोपहर करीब 1:45 बजे खीर गंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में बादल फटने से अचानक बाढ़ और मलबे का सैलाब आ गया। इस आपदा ने गांव के बाजार, घरों, होटलों, और होमस्टे को तहस-नहस कर दिया। लगभग 20 से 25 होटल और होमस्टे पूरी तरह नष्ट हो गए, और गंगोत्री नेशनल हाईवे सहित कई सड़कें और पुल बह गए।
इस आपदा के पीछे कई कारण थे। पहला, उत्तराखंड का हिमालयी क्षेत्र भौगोलिक रूप से अत्यंत संवेदनशील है। भूकंपीय जोन 5 में स्थित होने के कारण यह क्षेत्र भूस्खलन, बाढ़, और बादल फटने की घटनाओं के प्रति अतिसंवेदनशील है। दूसरा, जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की अनियमितता और तीव्रता में वृद्धि हुई है। भारतीय मौसम विभाग ने आपदा से पहले उत्तरकाशी में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया था, जो इस क्षेत्र में लगातार बारिश और बादल फटने की संभावना को दर्शाता था। तीसरा, अंधाधुंध निर्माण कार्य, विशेष रूप से नदियों और प्राकृतिक जल स्रोतों के किनारे, ने इस आपदा के प्रभाव को और बढ़ा दिया। ऑलवेदर सड़क परियोजना और चारधाम यात्रा के लिए बढ़ते पर्यटकों के दबाव ने पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ा है।

धराली आपदा ने न केवल भौतिक नुकसान पहुंचाया, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी गहरा प्रभाव डाला। अब तक की जानकारी के अनुसार, इस आपदा में कम से कम 5 लोगों की मौत हो चुकी है, और 68 लोग लापता हैं, जिनमें 25 नेपाली मूल के नागरिक शामिल हैं। गांव के बाजार क्षेत्र में 30 फीट तक मलबा जमा हो गया, जिसने दर्जनों दुकानों और मकानों को जमींदोज कर दिया। गंगोत्री नेशनल हाईवे के कई हिस्सों के टूटने और गंगनानी के पास बीआरओ के कंक्रीट पुल के बह जाने से धराली का जिला मुख्यालय से संपर्क टूट गया। संचार नेटवर्क पूरी तरह ठप हो गया, जिससे बचाव कार्यों में बाधा आई। आपदा का समय भी विशेष रूप से दुखद था। स्थानीय लोगों के अनुसार, यदि यह आपदा एक घंटे बाद होती, तो नुकसान और भी भयावह हो सकता था, क्योंकि उस दिन दोपहर 2 बजे से गांव में वार्षिक हारदूद मेला शुरू होने वाला था, जिसमें 1,000 से अधिक लोग जुटने वाले थे। इस आपदा ने न केवल स्थानीय निवासियों, बल्कि गंगोत्री यात्रा के लिए रुके तीर्थयात्रियों को भी प्रभावित किया।
आपदा के तुरंत बाद, भारतीय सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, और बीआरओ की टीमें बचाव कार्य में जुट गईं। उत्तराखंड सरकार ने युद्धस्तर पर राहत कार्य शुरू किए, और अब तक 1,308 लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है। 356 हेलीकॉप्टर उड़ानें भरी गईं, और 110 गाड़ियां व 21 भारी मशीनें मलबा हटाने में लगी हुई हैं। हालांकि, खराब मौसम और लगातार बारिश ने हेलीकॉप्टर सेवाओं को प्रभावित किया, जिससे बचाव कार्यों में देरी हुई। धराली आपदा ने उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सबक दिए हैं। पहला, आपदा संभावित क्षेत्रों में निर्माण कार्यों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। सरकार ने इस दिशा में कदम उठाते हुए, नदियों और प्राकृतिक जल स्रोतों के किनारे सभी प्रकार के निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है। दूसरा, अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को और प्रभावी करने की जरूरत है। स्विट्जरलैंड के ब्लाटेन गांव में हाल ही में हुई एक समान आपदा में, अर्ली वॉर्निंग सिस्टम के कारण जनहानि को काफी हद तक रोका गया था, जो उत्तराखंड के लिए एक उदाहरण हो सकता है। दुर्भाग्य से इन्हीं दिनों धराली जैसी घटना जम्मू – कश्मीर राज्य में भी हुई जहाँ बहुत जनहानि हुई.
तीसरा, वैज्ञानिक अध्ययन और शोध को बढ़ावा देना जरूरी है। धराली में भूवैज्ञानिकों की एक टीम ने आपदा के कारणों का अध्ययन किया और अस्थायी झीलों की निगरानी के लिए सेंसर लगाने का काम शुरू किया। वाडिया इंस्टीट्यूट, सी.बी.आर.आई रुड़की, और जी.एस.आई. जैसे संस्थानों की भागीदारी से दीर्घकालिक समाधान ढूंढे जा सकते हैं। चौथा, स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित करना और जागरूकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है। धराली आपदा एक बार फिर उत्तराखंड की पर्यावरणीय और भौगोलिक संवेदनशीलता की याद दिलाती है। यह आपदा न केवल एक त्रासदी थी, बल्कि यह एक चेतावनी भी है कि हमें अपने विकास मॉडल और पर्यावरण संरक्षण नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। सरकार, वैज्ञानिक समुदाय, और स्थानीय लोगों के समन्वित प्रयासों से ही ऐसी घटनाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है। धराली के लोगों के लिए यह एक कठिन समय है, लेकिन राहत और पुनर्वास कार्यों में तेजी और दीर्घकालिक योजना के साथ, इस क्षेत्र को फिर से खड़ा करने की उम्मीद बरकरार है।