मेरी भूटान यात्रा

शूरवीर सिंह रावत
मित्र राष्ट्र पर प्रवेश शुल्क भी जरूरी, हिमालय की गोद में बसा दक्षिण एशिया का एक छोटा सा महत्वपूर्ण देश है भूटान। यह उत्तर में तिब्बत और शेष ओर भारत के सिक्किम, पश्चिम बंगाल, असम और अरुणाचल से आबद्ध है। इस देश का स्थानीय नाम “डुग युल” है- जिसका अर्थ होता है अझदहा का देश। यह मुख्यतः पहाड़ी देश है। यह सांस्कृतिक और धार्मिक तौर से भले ही तिब्बत से जुड़ा हुआ है, लेकिन भौगोलिक और राजनीतिक दृष्टि से वर्तमान में यह भारत के ज्यादा करीब है। यह भारत के परम्मित्रों में से एक है। भूटान पहले भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा मालदीव से कोई प्रवेश शुल्क नहीं लेता था, पर अब जिस प्रकार नेपाल में प्रवेश शुल्क के नाम पर भंसार लिया जाता है, ठीक ऐसे ही भूटान में भी शुल्क के नाम पर Sustainable development charges रुपए 1200/ प्रति व्यक्ति प्रति दिन लिया जाता है।
एक बाकी (भविष्य वक्ता) ने कभी मुझे देखकर कहा था कि ‘इसके पैरों में शनि का वास है’ तब मुझे बुरा लगा था पर अब सोचता हूं उसने सही कहा था। दो तीन महीने एक जगह टिक जाऊं तो पैरों में खुजली होने लगती है। फिर दो तीन साल में हवाई जहाज की हवा और समुद्र के पानी में नहाने का मन करता है। लिहाजा इस बार भूटान का रुख किया है। पर वहां समुद्र का पानी नहीं मिलेगा। खैर! भूटान एक परिचय- कुछ लोगों के अनुसार भूटान संस्कृत के ‘भू-उत्थान का अपभ्रंश है जिसका शाब्दिक अर्थ है ऊंची भूमि। परन्तु कुछ लोगों का मानना है कि यह भोट अन्त (भोटान्त) का बिगड़ा रूप है (भोट यानि तिब्बत)। नेपाली में इसे भुटान कहते हैं। यहां के निवासी भूटान को डुग-युल (अझदहा का देश) तथा इसके निवासियों को डुगपा कहते हैं। पूर्व में भूटान के अलग-अलग नाम रहे हैं।

फुएण्टसोलिंग (Phuetsholing) दक्षिण भूटान का सीमांत नगर है और भूटान के लिए गेटवे ऑफ इंडिया। यह पश्चिम बंगाल के उत्तर में स्थित अलीपुरद्वार जिले के जयगांव से लगा हुआ है। भूटान में यह चुखा जिले के अन्तर्गत है। यहां पर अपना पहचान पत्र- पासपोर्ट या वोटर आईडी (अन्य दस्तावेज नहीं) दिखा कर प्रवेश पा सकते हैं। इसमें अनेक आवासीय होटल तथा व्यवसायिक केंद्र हैं। जरूरत का सामान यहां पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है
भूटान के चुखा जिले में बसे और गेटवे ऑफ इंडिया के तौर पर विख्यात फुएण्टसोलिंग (Phuetsholing) में एक प्रसिद्ध होटल में रुकने के बाद, सुबह होटल से विदा लेते हुए होटल स्टाफ सेवागं डेमा (Tshewang Dema) के साथ एक फोटो ली. (उल्लेखनीय है कि सबको समान अवसर प्रदान करने की भावना से भूटान में होटल स्टाफ में 80-90% लड़कियां ही कार्य कर रही हैं). रास्ते में गेडू में सेना द्वारा निर्मित स्तूप पार्क, रॉयल यूनिवर्सिटी ऑफ भूटान, वाटर फाल व प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हुए पारो पहुंचे। पारो में ही भूटान का एकमात्र अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। पारो में एक विशाल किला है, और उससे कुछ ऊंचाई पर भूटान का नेशनल म्यूजियम (किले की सुरक्षा के लिए उससे ऊंचाई पर सैंकड़ों वर्ष पहले जो एक विशाल वॉच टावर बनाया गया था, आज वही म्यूजियम में परिवर्तित कर दिया गया है).
पारो की आबादी भले ही पचास हजार के आसपास होगी, किंतु होटलों की संख्या सैकड़ों में है, और बाजार खूब सजे धजे हैं। सड़के खूब चौड़ी है, दोनों ओर फुटपाथ बने हैं। न कहीं ट्रैफिक लाइट है और न ही ट्रैफिक पुलिस। फिर भी अनुशासन है। किसी को भी गाड़ी का होरन बजाते हुए नहीं सुना और बाजार खुले खुले होने से कहीं शोरगुल भी नहीं। आश्चर्य कि दो पहिए की सवारी कहीं भी नहीं दिखाई दी। पारो और उत्तरकाशी के पुरोला में नाम ही नहीं भौगोलिक समानता भी है। पुरोला की ही भांति पारो भी कृषि भूमि एवं बहुमूल्य वन उपज से भरा पूरा है। पुरोला के बीचों-बीच जैसे कमल नदी बहती है ठीक वैसे ही पारो में ‘पारो छू’ है। (भूटान में छू पानी को कहा जाता है। अब वह नदी हो, नहर हो या बर्तन में रखा हुआ पानी)