गौचर मेला और औली के शिल्पकार

डॉ. योगेश धस्माना
गढ़वाल में जब भारत छोड़ो आंदोलन कमजोर पड़ने लगा था, तब डिपुटी कमिश्नर आर. वी. वर्णिडी ने विकास कार्यों की ओर अपना ध्यान आकृष्ट करना शुरू किया। इस तरह डिपुटी कमिश्नर ने पहले 1943 में भारत तिब्बत व्यापार को गति देने के लिए सीमांत चमोली के जाति के लोगों के साथ कार्य योजना बनाने के उद्देश्य से नीति माना ओर तिब्बत में कैलाश मानसरोवर तक की यात्रा कर दोनों अंचलों के व्यापारियों से बातचीत कर गौचर में जिला प्रशासन की मदद से 1943 में कृषि और औद्योगिक विकास मेले की शुरुवात की थी। कुछ ही वर्षों में यह मेला उतर भारत में नौचंदी मेले के बाद सबसे बड़ा मेला हो गया था। वस्तु विनिमय प्रणाली ओर तिब्बती मुद्रा भी तब खूब चली नमक सुहागा और पश्मीना कपड़ा, हींग, शिलाजीत, चुरू आदि प्रमुख वस्तुओं का व्यापार प्रमुख रूप से होता था। इस मेले के संस्थापक सदस्यों में नन्द प्रयाग के लेखक पत्रकार गोविंद प्रसाद नौटियाल और राधाकृष्ण वैष्णव ओर कुछ नीति गमशाली के व्यापारी लोग थे, जिनमें बाला सिंह पाल प्रमुख थे।
गढ़वाल की नीति ओर माना, घाटी के लोग तिब्बत में गार्तोक मंडी तक अपने उत्पादों को बेचने ले जाते थे। इन लोगों का यह भी कहना था कि नीति ओर माना दर्रे से कैलाश की यात्रा बहुत सुगम थी। किंतु भारत चीन युद्ध के बाद यह पूरा क्षेत्र चीन के कब्जे में चला गया।इस कारण गढ़वाल तिब्बत के व्यापारिक ओर संस्कृति संबंध भी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की भेट चढ़ गए। इसी तरह जोशीमठ के औली को पहलीबार डिस्कवर करने वाले भी डी सी वर्णीडी ही थे। एक रात सुनील गांव में शीत कालीन कैंप करते हुए 1946 में रात में बर्फ पड़ने के बाद जब वह अपने लाव लश्कर के साथ औली के बुग्याल होते हुए गोरसों तक गए तो, उन्होंने तब इसे स्कीइंग केंद्र बनानेबके लिए प्रयत्न शुरू कर दिए थे। शुरू में उन्होंने देवदार के स्लीपरो की मदद से स्कीइंग उपकरण बनाए। गर्मियों में साहब जब इन्लैंड जाते तो वहा से उपकरण लाकर औली में स्कीइंग करते। साहब को औली ओर गढ़वाली दोनों पसंद थे। उसकी मदद से अनेक गढ़वाली फौज में भर्ती हुए। किंतु 1947की गर्मियों में इनका ट्रांसफर दिल्ली सचिवालय में हो गया।पौड़ी में नए डी.सी. एम. आर. स्टफ आए , ये कुल 06 महीने डी सी.रहे, ओर तब देश आजाद हो गया। इस तरह औली की योजना भी परवान नहीं चढ़ सकी।
डिपुटी कमिश्नर आर. वी. वर्णिडी ने पौड़ी रासी में जहां आज स्टेडियम हे वहा पर गोल्फ मैदान बनाने की दिशा में कुछ काम किया था। लैंडसडौन से आर्मी अफसरों के साथ यहां गोल्फ भी खेला ।किंतु पौड़ी से ट्रांसफर होने पर यह योजना भी बन नहीं सकी। आजादी के बाद पहली बार विधायक ओर पर्यटन मंत्री बने केदार सिंह फोनिया जी ने जब इस योजना की पड़ताल की तो मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से मिलकर उन्होंने इसे न केवल स्वीकृत करवाया, बल्कि राज्य सेक्टर से 04 करोड़ रूपए ओर रज्जू मार्ग की भी स्वीकृति दिलाई। यदि आज की बात होती तो विधायक मंत्री को इस फाइल पड़ने के लिए ब्यूरोक्रेट्स को बुलाना पड़ता।
वापस इंग्लैंड जाकर भी गढ़वाल ओर विशेषकर चमोली उनकी यादों में बसा रहा। 1987 में जब गढ़वाल राइफल अपना शताब्दी वर्ष मना रहा था, तब उन्हें भी लैंडसडौन में आमंत्रित किया गया था, किंतु स्वास्थ्य कारणों से वे आ नहीं सके थे। ऑक्सफोर्ड में रह रहे वर्णिडी ने पत्र लिख कर गढ़वाल में अपनी स्मृतियों को याद करते हुए गढ़वाली ओर सेना दोनों को याद किया था। क्या आज के प्रशासक ओर नेता अपनी मातृभूमि के प्रति इस तरह का विजन ओर समर्पण दिखा पाएंगे, अंग्रेजों ने जिस तरह यहां के प्रति स्नेह और विकास की जो नीव रखी थी, आजाद भारत के प्रशासक ओर नेता तो उसका अनुसरण करना तो दूर अध्ययन तक नहीं कर सके।