जो पहाड़ को जीते हैं
चारू तिवारी
अभी कुछ आगे बढ़ रहा था कि कुछ आवाजें आने लगी। लगा कि कोई टोक रहा है।
और अपनी उसी अदा में चिंगोटी काट कर कह रहा कि अरे! क्या हमें ‘बूढ़ा’ समझा है। बड़े आयेे ‘प्रवचन’ देने वाले। मुड़कर देखता हूं तो कुछ लोग सामने खड़े हो जाते हैं। जगमोहन रौतेला, ओपी पांडे, चन्द्रशेखर करगेती, युवा दीप पाठक, प्रभात ध्यानी, त्रिलोचन भट्ट और राजू सजवाण। जगमोहन रौतेला को हम सब लोग एक प्रतिबद्ध पत्रकार के रूप में जानते हैं। उनका लेखन और व्यवस्था को चुनौती देने वाली शैली कमाल की है। जितना यह आदमी लिखता है, कभी-कभी ‘इर्ष्या’ होने लगती है। हम सबमें सबसे ज्यादा लिखने वाला। सबसे अच्छा लिखने वाला। सबसे ज्यादा टोका-टोकी करने वाला। यह ठीक नहीं, वह ठीक नहीं। हम जगमोहन रौतेला में पहाड़ के बदलाव की बेचैन आत्मा को देख सकते हैं। बहुत सरल, सहज व्यक्ति तो वे है, साथ में वैकल्पिक मीडिया के आधार स्तंभ भी हैं। आंदोलनों से तो उनक पुराना नाता है। आज भी लड़ने वाले लोगों के साथ खड़े रहते हैं। ओपी पांडे छात्र जीवन से ही जन आंदोलनों के साथ खड़े रहे। अल्मोड़ा में कभी छात्रसंघ अध्यक्ष रहे। राजनीतिक समझ में उनका कोई सानी नहीं। हल्द्वानी में अपने व्यवसाय करने के अलावा हमारी सांस्कृतिक और भाषायी सरोकारों के पहरेदार हैं। उनका घर सब ‘अराजकों’ का अड्डा है। होली तो अब शुरू हो ही गई है। उनके घर में मजमा लगने लगा है। चन्द्रशेखर करगेती पेशे से वकील हैं। एक सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट के रूप में उन्होंने अलग पहचान बनाई है। सत्ता प्रतिष्ठानों से टकराकर उन्होंने पिछले कुछ सालों में बहुत महत्वपूर्ण मुठभेड की है। हर बदलाव के दौर में वह आंदोलन के साथ खड़े रहते हैं। एक और ‘चिर युवा’ हैं दीप पाठक। हम सब लोग उन्हें युवा दीप पाठक के नाम से जानते हैं। ‘स्वयंभू’ युवा हैं। यह आदमी तो कमाल का है। चार सौ पेज मोबाइल से ही लिख डाले। दीप भाई ने कब इतना पढ़ा समझ में नहीं आता। कभी उनकी फेसबुक पर टिप्पणियां देखिये, उन्होंने अभिव्यक्ति की एक नई विधा को जन्म दे दिया। उनकी व्यवस्था पर जो तल्ख टिप्पणियां एक तरह से रुई में पत्थर लपेटकर मारने वाली होती हैं। उनके पास साहित्य और समाज की अद्भुत समझ है। इन सब लोगों के बारे में मेरा यही कहना है कि हल्द्वानी जैसे शहर में आकर भी इन्हें ‘अकल’ नहीं आई। कुछ नहीं ‘सीखा’ इन्होंने। रहे बिल्कुल ‘निकद्द’ ‘पहाड़ी’ के ‘पहाड़ी’ ही।
प्रभात ध्यानी के बारे में भी बताने की जरूरत पड़ेगी क्या? ऐसा विकट व्यक्ति मैंने दूसरा नहीं देखा। लगता है संघर्ष और लोगों के साथ खड़े होने के लिये ही बने हैं। इतना सहज और सरल आदमी कितनी दृढ़ता के साथ पहाड़ के सवालों के लिये लड़ता-भिड़ता है। जेल जाता है, सरकारी गुंडों के हाथ से मार भी खाता है। इसे चारों तरफ से लोग घेरते हैं। लेकिन आज तक इस आदमी ने कभी समझौता नहीं किया। प्रभात छात्र संघ में कई पदों पर रहे। छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। कभी क्रिकेट के इस जाने-माने खिलाड़ी को राजनीति और सामाजिक जीवन में इतनी तकड़ी फील्डिंग करते देखना अपने आप में बहुत प्रेरणाप्रद है। पहाड़ की कोई ऐसी हुंकार नहीं है जिसमें प्रभात ध्यानी की आवाज शामिल न हो। वे परिवर्तन पार्टी के प्रधान महासचिव हैं। रामनगर में किसी भी आहट में प्रभात सामने खड़े मिलेंगे।
दो और महत्वपूर्ण साथी हैं, त्रिलोचन भट्ट और राजू सजवाण। दोनों पेशे से पत्रकार हैं। उत्तराखंड के सरोकारों से बहुत गहरे तक इनका रिश्ता है। जब दोनों फरीदाबाद में थे तो ‘अंज्वाल’ संस्था बनाई। यह एक सामाजिक और साहित्यिक संस्था है। प्रवास में रहने वाले लोगों की आम संस्थाओं से अलग। उत्तराखंड के साहित्य, भाषा और संस्कृति पर ‘अंज्वाल’ ने महत्वपूर्ण काम किया। त्रिलोचन भट्ट आजकल देहरादून में हैं। उन्हें कभी भी एक सांचे में काम करना पसंद नहीं आया। उनको हमेशा रचनात्मक चाहिये। देहरादून में कुछ समाचार पत्रों में काम तो किया, लेकिन वह सिर्फ नौकरी तक ही सीमित हुआ। उन्होंने पिछले दिनों से अपने लेखन और सोशल मीडिया में अपनी प्रतिकार की लौ को जिस तरह जगाये रखा है उससे हमें यह पता चलता है कि प्रतिबद्ध लोगों की अभी कमी नहीं है। राजू सजवाण दिल्ली में रहकर पत्रकारिता कर रहे हैं। वे दैनिक जागरण मे वरिष्ठ पद पर हैं। मृदुभाषी और बहुत गंभीरता से पहाड़ की चीजों को देखते हैं। जब भी पहाड़ से साहित्य, संगीत, कला, आंदोलन, भाषा को लेकर कोई आहट होती है तो राजू हमें वहां खड़े मिलते हैं। पत्रकारिता में एक और युवा से हमारा साक्षात्कार होता है। नाम है दीपक डोभाल। दीपक राज्यसभा चैनल में एंकर हैं। उन्होंने छोटी उम्र में ही मुख्य धारा की पत्रकारिता में अपने को स्थापित किया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने ‘ग्लेमर’ से अपने को बचाये रखा है। हर समय पहाड़ के बारे में कुछ न कुछ चिंतन रहता है। वह अपने काम में पहाड़ के लिये ‘स्पेस’ निकाल लेते हैं। पिछले दिनों उन्होंने कई महत्वपूर्ण डाॅक्यूमेंटरी भी बनाई हैं। अपने चैनल में भी पहाड़ के सवालों को प्रमुखता से उठाया है।
बागेश्वर में युवा साथी हैं केशव भट्ट। केशव पत्रकार हैं। कई समाचार पत्रों में लिखते रहे हैं। ‘नैनीताल समाचार’ तो उनका पक्का ठिकाना हुआ। वे पहाड़ और यहां की समस्याओं को एक पत्रकार की दृष्टि से तो देखते ही हैं वे एक अच्छे ट्रैकर हैं। उन्होंने बहुत पहाड नापा है। कई यात्रायें की हैं। उनके अपने अनुभव है पहाड़ को जानने-समझने के। उनके मन में हमेशा पहाड़ को बेहतर बनाने की छटपटाहट जिंदा है। बैजनाथ में एक और युवा साथी हैं हेम पंत। हेम ने बड़े साहस के साथ वहां ‘हिम आॅर्गनिक’ के नाम से अपना उद्योग लगाया है। आधुनिक मशीनों और पैकिंग के साथ वे जैविक उत्पादों का व्यवसाय कर रहे हैं। वे राज्य आंदोलनकारी रहे हैं। जिद है कि पहाड़ में स्थानीय उपज पर आधारित उद्योग लगाकर आत्मनिर्भर बनने का रास्ता निकालेंगे। उन्होंने अपने उद्योग के साथ लगभग तीन हजार किसानों को जोड़ा है। तमाम झंझावतों से जूझते हुये भी उनकी एक ही जिद है कि किसी तरह यह साबित करना है कि गांवों की जिस तरह उपेक्षा हो रही है वह ठीक नहीं है। अगर सही नीतियां बने तो गांवों में अपनी खेती से लोग आत्मनिर्भर हो सकते हैं। उनके इस जज्बे के पीछे राज्य की वह परिकल्पना काम कर रही है जिसे पृथक राज्य के सपने के साथ देखा गया था।
अल्मोड़ा के ताकुला विकास खंड के एक साथी हैं ईश्वरीदत्त जोशी। लंबे समय से गांवों की जमीनों को बचाने का उनका संघर्ष है। अभ्यारणों के खिलाफ उनकी बड़ी लड़ाई है। जंगलों के अधिकारों को बहुत गहरे तक समझते हैं। उन्होंने ग्रामीणों के बीच जल, जंगल और जमीन के सवालों पर चेतना का काम किया है। उत्तराखंड का कोई भी आंदोलन ऐसा नहीं होगा जिसमें ईश्वर की भूमिका न हो। एक शिक्षक मित्र हैं नाम है शंकर दत्त जोशी। अल्मोड़ा के लमगड़ा विकासखंड से हैं। आप सबने उनकी कविता सुनी होगी- ‘पनुवा त्वैकें नाम लेखन कब आल।’ शकर जोशी के अंदर अपने समाज को समझने की जो सूक्ष्म दृष्टि है उसे वह अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते रहे हैं। बहुत सुन्दर कविताओं से उन्होंने सुप्रसिद्ध जनकवि शेरदा ‘अनपढ़’ की परंपरा को आगे बढ़ाया है। वे समाज के हर बदलाव को, हर चेतना को बहुत आगे ले जाने का काम अपनी कविताओं के माध्यम से कर रहे हैं।
(युवाओं को जानने का क्रम जारी है। कुछ अन्य युवाओं के साथ फिर मुलाकात होगी।)
चारू तिवारी पहाड़ के चिन्तक और वरिष्ठ पत्रकार हैं.