युवा शक्ति को पहचानें
चारू तिवारी
आइये! इस युवा शक्ति को पहचानें
हां, गैरसैंण की जब इस बार बात चली तो इसकी शुरूआत में बनारस के रहने वाले और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र रहे प्रवीण ने अलख जगाई। वे पिछले पांच-छह साल से लगातार सामाजिक सवालों के साथ खंड़े हैं। अन्ना आंदोलन में भी थे। यह हमारे लिये सुखद है कि पहाड़ में चलने वाले आंदोलनों में देश के विभिन्न हिस्सों के लोग भागीदारी करते रहे हैं। अभी हमारे साथ पिंडर घाटी के युवा है अतुल सती। उन्होंने पूरे क्षेत्र में जिस तरह नये युवाओं को जोड़ते हुये आंदोलन की जमीन तैयार की है वह बहुत ऊर्जा देने वाला है। गैरसैंण के आलोक में हम पूरे पहाड़ की युवा चेतना को देख सकते हैं। जनता के सवालों को सही तरीके से आगे ले जाने वाली एक धारा के प्रतिनिधियों को। बहुत सारे साथी हैं। जो पहाड़ के सवालों को बहुत संजीदगी के साथ रख रहे हैं। अलग-अलग माध्यमों से। पिछले एक दशक से हम युवाओं की इस छटपटाहट को देख रहे हैं। राज्य बनने के डेढ दशक बाद इसमें प्रतिकार के स्वर फूटने लगे हैं। इस बीच सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, साहित्य, संगीत, कला, रंगमंच, शिक्षण आदि क्षेत्रों से युवाओं की एक बड़ी वैचारिक धारा मिली है। पिछले एक दशक से हम राहुल कोठियाल के रूप में एक ऐसे युवा पत्रकार को जानते हैं जो दिल्ली में मुख्य धारा की पत्रकारिता में जाना-पहचाना नाम बन गया है। वे लंबे समय तक ‘तहलका’ पत्रिका में रहे। एक तरह से हिन्दी संस्करण में उनकी रिपोर्ट ही धार देती थी। उन्होंने जिस तरह से अपनी पत्रकारिता को जनसरोकारों से जोड़ा है पहाड़ के लिये बहुत लाभकारी होने वाला है। उन्हें पत्रकारिता का प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिल चुका है। ‘तहलका’ में ही हमारे युवा साथी विकास बहुगुणा ने भी पत्रकारिता और पहाड़ के युवाओं की समझ को आगे बढ़ाने का काम किया।
गढ़वाल में नई पीढ़ी में सामाजिक और राजनीतिक समझ से भरपूर एक नाम है सुधीर देवली का। जोशीमठ के रहने वाले सुधीर ने जन सरोकारों से जुड़कर जो अपना आकाश बनाया है वह महत्वपूर्ण है। वह सोच और समझ की दृष्टि से युवा चेतना को आगे ले जाने में हमत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पंकज मैदोली और शिवानी ने भी हमें युवा चेतना की धारा को मजबूत करने का रास्ता दिखाया है। चमोली जनपद से हमारे पास संजय चैहान जैसे युवा हैं। उनका व्यवसाय तो फार्मेंसिस्ट का है, लेकिन उन्होंने लेखन, पत्रकारिता, संस्कृति, भाषा और जनमानस की समस्याओं को जिस तरह उठाया है वह उन्हें विलक्षण बनाता है। चमोली जनपद के पीपलकोटी जैसी छोटी जगह से जिस तरह उन्होंने पूरे पहाड़ को देखा है वह उनकी व्यापक दृष्टि का परिचायक है। उत्तरकाशी से हमारे पास एक और युवा हैं। उनका नाम है प्रेम पंचोली। प्रेम ने बहुत शिद्दत के साथ पहाड़ को समझा है। सामाजिक गैरबराबरी, महिलाओं, युवाओं और दलितों के सवालों को वह जिस तरह से उठाते रहे हैं वह उनकी व्यापक सोच को दर्शाता है। पिथौरागढ़ के रोहित जोशी के रूप में हमारे पास वैचारिक और संघर्ष की जिजीविषा वाला युवा है। जो पत्रकारिता के साथ सिनेमा, रंगमंच, गीत-संगीत और लोक की अच्छी समझ रखते हैं। उत्तराखंड की तमाम समस्याओं पर उन्होंने न केवल लिखा है, बल्कि उस पर उनका अपना नजरिया भी है। वे पहांड़ के हर क्षेत्र में गये हैं। देश के आम जनता के सवालों को पहाड़ से जोड़ने की समझ भी उनके पास है। दिल्ली में थे। कई अवसरों को छोड़कर भाग आये हैं पहाड़। अनिल कार्की के रूप में हमारे पास लोक की थाती को समझने वाला एक ऐसा युवा संस्थान है जो अपनी कहानियों, कविताओं और नाटकों से लगातार न केवल पहाड़ के सवालों को उठा रहे हैं, बल्कि उसे हिन्दी साहित्य जगत को परिचित भी करा रहे हैं। उन्होेंने लोक पर जितना काम इस छोटी उम्र में किया है उतना लोग उम्रभर न कर पायें। साहित्यिक विधाओं में तो उनकी जबरदस्त पकड़ है ही पिछले एक दशक से जितनी भी बदलाव की आवाजें उठी हैं उनमें वे शामिल रहे हैं।
भास्कर उप्रेती ने पत्रकारिता से भले ही अपना जीवन शुरू किया हो लेकिन उनके पास जनपक्षीय विचार की एक बड़ी समझ है। इस समझ को वह पत्रकारिता में अपने लेखन, रिपोर्टिग आदि से करते रहे हैं। वहां उनका ठौर कहां था। वे साहित्य, रंगमंच, सिनेमा और लोकसाहित्य पर लगातार काम कर रहे हैं। शिक्षा पर तो उनका विशेष काम है ही। वे पहाड़ के सभी मुद्दों पर हमेशा जनता के साथ खड़े रहते हैं। सुनीता भास्कर युवा चेतना की एक महत्वपूर्ण किरदार हैं। पत्रकार तो वह हैं ही, उन्होंने छात्र जीवन से आम आदमी की बेहतरी को अपने जीवन का रास्ता बनाया। कई जगह घूमकर आ गई हैं। अभी वह उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में रेडियो के माध्यम से अपनी आवाज जगह-जगह पहुंचा रही है। पिथौरागढ़ से पत्रकार विजयवर्धन है। वे लंबे समय से इलैक्ट्रानिक मीडिया में हैं। हर समय बैचेन रहते हैं। उनके अंदर पहाड़ को बदलने की उत्कंठा को हम देख सकते हैं। दिल्ली में ’नवभारत टाइम्स’ की विशेष संवाददाता पूनम पांडे दिल्ली में रहकर पहाड़ के सवालों पर चिंतित रहती हैं। जब भी उन्हें मौका लगता है वह राष्ट्रीय पटल पर पहाड़ को रखती हैं। छात्र जीवन से ही वह जनसरोकारों से जुड़ी रही है। कात्यायनी उप्रेती भी ‘नवभारत टाइम्स’ दिल्ली में विशेष संवाददाता हैं। उनकी पहाड़ के साहित्य, संस्कृति, भाषा, रंगमंच आदि का अच्छा ज्ञान है। देश के अन्य समाजों का अध्ययन करने के बाद उनके पास हमारी समस्याओं के समाधान की समझ भी है।
सोच रहा था कि भूपेन भाई का नाम थोड़ा देर में लूंगा, लेकिन प्रसंगवश यहीं पर जोड़ रहा हूं। वह इसलिये कि ऊपर जितने भी नाम पिथौरागढ़ और दिल्ली के दिये हैं उनके एक तरह से उत्प्रेरक भूपेन ही हैं। भूपेन ने जिस तरह अपनी मजबूत वैचारिकता की नींव रखी है वह सभी युवाओं में ऊर्जा का स्त्रोत बन गई है। भूपेन को हम शुरू में तो पत्रकार के रूप मे ही जानते हैं, लेकिन उनके जीवन के बहुत सारे आयाम हैं। उन्हें हम जितना खालेंगे वह बढ़ता ही जायेगा। उनमें चीजों को समझने की दृष्टि है। समस्याओं पर गहरी समझ। समाधान के ठोस रास्ते। इसे उन्होंने अपनी पत्रकारिता, लेखन और जनआंदोलनों में भी दिखाया है। भूपेन हमारे लिये एक ऐसा ‘अराजक’ व्यक्तित्व है जो आम लोगों की बेहतरी के लिये कुछ भी छोड़ सकते हैं। दिल्ली भी रास नहीं आई। बहुत अच्छा चल रहा था दिल्ली में भी। अब हल्द्वानी में हैं। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में। यहां के रेडियो को उन्होंने जिस तरह से लोगों की आवाज बनाया है वह प्रशंसनीय है। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि भूपेन जैसे लोगों को उच्च शिक्षण संस्थाओं में नीति-निर्धारण में होना चाहिये, ताकि जंक लग चुकी व्यवस्था को सुधारा जा सके।
(युवा चेतना को समझने का यह क्रम अभी जारी है….चारू तिवारी वरिष्ठ पत्रकार और विचारक हैं)