July 2, 2025



सत्य कथा की प्रेम कहानी

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जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’


कल एक किताब लेखक ने भेंट की, जिसका अभी तक विमोचन भी नहीं हुआ. पर किताब पर कई पाठक हाथ साफ़ कर गए, यानी मेरे से पूर्व भी कई दोस्त इस किताब को पढ़ बैठे. दरअसल किताब ही ऐसी है कि, बहुत दिनों बाद किताबों की दुनिया में एक ऐसी किताब सामने आई जो आम किताबों से अलग व हटकर लिखी गयी है. मैं सारी दुनिया की बात तो नहीं कर सकता, लेकिन उत्तराखंड के लेखकों द्वारा लिखी जा रही किताबों में यह एक बोल्ड किताब है, जो स्वयं पर गुजरे हालातों को हिम्मत के साथ बंयाँ करती है.

अपने जीवन की उपलब्धियों, उतार चड़ाव, संघर्ष का संस्मरण, यात्रा विर्तांत तो लिखा ही जा रहा है, लेकिन अपनी प्रेम कहानी को उघाड़कर दुनिया के सामने लाने का जतन व हिम्मत लेखक ने ठीक ऐसे ही किया जैसे, अपने घर की तीसरी मंजिल के दरवाजे के उघाड़ने के वक़्त, चिंघाड़ने की आव़ाज से गांव की भाबियाँ सुबह का वक्त समझकर, आधी रात को उनिंधे गगरी थामे पानी भरने धारे के रास्ते पर चल पड़ती थी, व लेखक अपने छज्जे से दूर गांव की चमकती बूँद – बूँद टपकती रोशनी में किसी को ढूंड रहा होता है. एक किशोरवय लड़के व एक किशोरी लड़की को जब किसी से कुछ – कुछ सा होता है, तो किताब बन जाती है. यह सत्य कथा के किताब बनने की कहानी है.


उत्तराखंड के गांवों में सत्तर के आगे – पीछे पैदा हुए बच्चे जब अस्सी के दसक में दस्तक दे रहे होते हैं, तो वह दौर किताब में सामने आता है. जिन्होंने वह दौर देखा भुगता हो यह उन्हीं की सत्य कथा है, बिलकुल ‘सेम टू सेम’ स्कूल की दादागिरी, क्रिकेट, कमीज के तीन बटन खोल के रखना और कमीज के कालर ऊपर, बार – बार बालों पर कंघी व शीशा देखना, गधेरे में तैराकी, घसियारी लड़कियों की दरांती लूटना, मेले में जलेबी के बहाने मुलाक़ात के अवसर दूंडना, हर छुट्टी पर अबोला प्रेमिका (प्रेमी – प्रेमिका ने कभी एक दुसरे से बातें नहीं की) के गांव की सरहद की सैर करना, रात – रात भर प्रेम पत्र लिखना, फाड़ना – जलाना, दोस्तों के बीड़ी के ठुड्डे पीना, कोड वर्ड भाषा में बातें करना, अचानक एक अनोखी प्रेमिका का प्रकट होकर व चार साल का लिखा प्रेम दस्तावेज मिलना, फ़िल्मी गानों व सीटी मारकर रिझाने, प्रेमिका जिससे सिर्फ आँखों ही आँखों में बातें मुलाकातें हुई उसको पाने के लिए दिल्ली नौकरी करने जाने, फिर वापस आने व फिर विवाह का प्रस्ताव, से लेकर जितने जतन सोचे जा सकते हैं वो सब इस किताब में है. लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी, में फिर कह रहा हूँ यह वह कहानी नहीं है जो आप सोच रहे हो.


ओह! बहुत कठिन हो रहा अब आगे लिखना. मेरी आँखे भी नम हो रही, आह! कितनी कठिन होती है प्रेम की डगर, और कितना कठिन होता है किसी की किताब की चीर – फाड़ करना, वह भी सत्य प्रेम कथा की, एक बूचढ़ की तरह. साढ़े तीन से चार घंटे में बिना रुके मैंने यह अनोखी प्रेम कथा पढ़ डाली. ध्यान रहे यह किताब की समीक्षा नहीं है. यह भी मैं दावे से कह सकता हूँ कि यह आप हम सब की प्रेम कथा है, और मुझे याद नहीं कि इस पहाड़ के कोने से इस दौर में कोई ऐसी किताब आई हो. आई हो तो जरूर बतायें. इस किताब का नाम है “वो साल चौरासी” और लेखक हैं प्रसिद्ध पत्रकार व लेखक मनोज इष्टवाल.

फोटो – अवधेश नौटियाल