युवा चेतना ही उम्मीद
चारू तिवारी
जब हम सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक वैचारिक स्तर पर युवाओं को देखते हैं तो एक नाम अनायास हमारे सामने आ जाता है।
जो संचित विचारों को बहुत जनपक्षीय तरीके से रखकर उन पर संघर्ष भी करता है। कुछ देर बाद उनका जिक्र करना चाह रहा था, लेकिन जब अलकनंदा के किनारे चलते हैं तो उसकी लहरों में कई ध्वनियां सुनाई देती हैं। वह कुछ संदेश भी देती हैं और संघर्ष से आगे बढ़ने की ताकत भी। साथ में बेगमती पिंडर हो तो जिजीविषा और तनकर सामने खड़ी हो जाती है। इस पूरे क्षेत्र से गुजरते हुये इंद्रेश मैखुरी सामने खड़े हो जाते हैं। या कहिये अड़ जाते हैं। एक प्रतिबद्ध योद्धा मानता हूं मैं उन्हें। एक दृढ़ संकल्पी और विचारों के प्रति घोर आग्रही होते हुये उन्होेंने जनता के साथ खड़े होकर लोगों को लड़ना सिखाया है। वे गढ़वाल विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। बहुत कम उम्र में उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अपना स्थान बनाया। वे देश के वैचारिक और संर्घषशील छात्र संगठन ‘आइसा’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। देश, पहाड़ और दुनिया के बारे में उनकी जानकारी और समझ अदभुत है। संघर्ष के साथ तो उनका चोली-दामन का संबंध है। कई बार लोग सवाल करते हैं कि पहाड़ की राजनीति में नेतृत्व नहीं उभरा। हम लुटेरों में तो नेतृत्व देख लेते हैं, लेकिन इंद्रेश जो रोज हमारी लड़ाई लड़ रहे हैं उनमें क्यो नेतृत्व नहीं देखते।
दो युवाओं को आप कहीं भी देख सकते हैं। उत्तराखंड के किसी भी कोने में विरोध के स्वर उठ रहे हों तो धूमाकोट के मनीष सुन्दरियाल और सल्ट के नारायण सिंह रावत आपको वहां मिल जायेंगे। कमाल की ऊर्जा है दोनों में। दोनों ने ही अपना व्यवसाय कर युवाओं को रोजगार की ओर आने की प्रेरणा दी। मनीष ने ‘तृप्ति’ नाम से अपना उत्पाद लगाया है। उन्होंने अब बकरी पालन का काम भी किया है। हमें वह दिल्ली का ‘भानमजुआ’ कहते हैं। अपने क्षेत्र की हर समस्या के लिये खड़े होते हैं। राजनीतिक दलों के लिये खतरा भी बनते हैं। नारायण ने अपना बेल्डिंग का काम करने के अलावा सल्ट की ‘खतरनाक’ राजनीति को टक्कर दी है। पिछली बार वह भारी मतों से जिला पंचायत का चुनाव जीते थे। इसी क्षेत्र में हमारे एक और युवा हैं राकेश नाथ। राकेश मृदुभाषी होने के साथ अपने क्षेत्र की समस्याओं के प्रति बहुत लडाकू किस्म के हैं। उन्होंने एक आंदोलन चलाया रामगंगा सड़क का। बहुत लोग जोड़े। अभी रामगंगा जिले के लिये जिस तरह उन्होंने भिकियासैंण में भारी संख्या में लोगों को जोड़ा है, मुझे उनमें भविष्य की उम्मीद दिखाई देती है।
अभी और युवाओं के बारे में लिखना है। क्रम न टूटे इसलिये कुछ युवाओं का ध्यान आ गया। इन युवाओं ने जिस तरह प्रवास में रहकर पहाड़ को समझा वह बहुत प्रेरणाप्रद है। वर्ष 2006 में पहली बार मुझे ये युवा मिले थे। दिल्ली में। आईआईटी, दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू आदि में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। ये युवा वहां कुछ छोटे-मोटे संगीत के आयोजन करते थे या रामलीलाओं में चले जाते थे। मेरी मुलाकात इन लोगों से सबसे पहले मेरे ही घर पर हुई। ये मिलने आये थे। इनमें दयाल पांडे, हेम पंत, डाॅ. शैलेश उप्रेती, डाॅ. शैलेश त्रिपाठी, डाॅ. नन्दन सिंह बिष्ट, डाॅ तुलसी अन्ना, शेखर शर्मा, पवन कांडपाल, मोहन बिष्ट, अनुभव उपाध्याय, मुकुल पांडे, कैलाश पांडे, मीना पांडे, हीरा रावत, डाॅ. दीपक नेगी, सतीश घिल्डियाल, रचना भगत, बिंदिया भगत, हिमानी जोशी, दिवेश जोशी, प्रदीप जोशी, पंकज जोशी, शैलेन्द्र जोशी आदि थे। इन लोगों ने एक संस्था बनाई थी जिसका नाम था ‘क्रियेटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़’। मुझे यह नाम बहुत अच्छा लगा। एक सिलसिला शुरू हुआ कुछ रचनात्मक करने का। इन युवाओं के साथ हमने उत्तराखंड के इतिहास और संस्कृति बोध पर कुछ काम शुरू किये। राजधानी दिल्ली के अलावा इन युवाओं ने पहाड़ में काम करना शुरू किया। नैनीताल में इस संगठन का शुभारंभ जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ ने किया। इसमें डाॅ. शेखर पाठक, डाॅ. शमशेर सिंह बिष्ट, राजीवलोचन सााह, पीसी तिवारी, डाॅ. नारायणसिंह जंतवाल, डाॅ. उमा भट्ट, पुष्पेश त्रिपाठी, चन्दन डांगी, कमल कर्नाटक आदि लोग सम्मिलित हुये। क्रियेटिव उत्तराखंड के इन युवाओं ने पहाड़ को नये सिरे से समझने की कोशिश की। जो आज भी जारी है। संस्था ने श्रीदेव सुमन, नागेन्द्र सकलानी, गढ़ केसरी अनुसूया प्रसाद बहुगुणा, वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली, जयानन्द भारती, बैरिस्टर मुकुन्दीलाल, ऋषिवल्लभ सुन्दरियाल, हरि प्रसाद टम्टा, चन्द्रकुंवर बत्र्वाल, कुमाऊं केसरी ब्रदीदत्त पांडे, तुलसी रावत, मोहनसिंह मेहता, कुन्ती देवी, हरगोबिन्द पंत, भक्तदर्शन, स्वामी मन्मथन, विपिन त्रिपाठी, बाबा मोहन उत्तराखंडी, चन्द्रसिंह राही, राजेन्द्र धस्माना, शेरदा ‘अनपढ़’, नारायणदत्त सुन्दरियाल, भैरवदत्त धूलिया, गोपालबाबू गोस्वामी आदि के अब तक 45 पोस्टर निकाले हैं।
बागेश्वर पर एक महत्वूपर्ण दस्तावेज के अलावा ‘टिहरी के मायने’ एक दस्तावेज को तुरंत प्रकाशित करने वाले हैं। दो सीडी और दो पुस्तकें भी प्रकाशित की। दिल्ली में कई विषयों पर संगोष्ठियों के साथ इन्होंने पहाड़ के जनमानस को नई चेतना के साथ जोड़ने का काम किया। पहाड़ में आई आपदाओं के समय ‘क्रियेटिव उत्तराखंड’ राहत सामग्री लेकर प्रभावित क्षेत्रों में गया। वर्ष 2006 से गैरसैंण राजधानी के सवाल को लेकर 30 अगस्त को प्रतिवर्ष नये लोगों के साथ गैरसैंण यात्रा करते हैं। ये सभी साथी आज दिल्ली में बहुत कम हैं, लेकिन जहां भी हैं एक सूत्र में बंधे हैं। डाॅ. शैलेश उप्रेती अमेरिका में वैज्ञानिक हैं। उन्होंने दुनिया में एक महत्वपूर्ण बैटरी का आविष्कार किया है। वे अमेरिका में भी पहाड़ की संस्कृति को प्रचारित करते रहते हैं। वहीं से उत्तराखंड रेडियो चलाते हैं। हेम पंत और दयाल पांडे अब रुद्रपुर और हल्द्वानी में हैं। एक तरह से वे ‘क्रियेटिव उत्तराखंड’ को अपने साथ वहीं ले गये हैं। रुद्रपुर में क्रियेटिव उत्तराखंड का पुस्तकालय और सांस्कृतिक केन्द्र है। वहीं से बहुत सारी गतिविधियां चलाई जा रही है। दयाल ने जिस तरह से इसके नेतृत्व को किया हेम ने बहुत समझदारी और समर्पण से एक बड़ा दायरा बना लिया है। डाॅ. शैलेश त्रिपाठी भी विदेश में है। वे भी वैज्ञानिक हैं। वे उत्तराखंड के सवालों को बहुत गहराई से देखने वाले हैं। डाॅ. नन्दन कुमाऊ विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के एसोसिऐट प्रोफेसर है। डाॅ. तुलसी अन्ना चीन के एक विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं। मोहन बिष्ट भी यूएई में हैं। अपने को ठेठ पहाड़ी कहते हैं। वहां भी उनका पहाड़ीपन नहीं गया। शेखर दिल्ली में रहकर अपना काम करने के अलावा पहाड़ के गीत-संगीत की सेवा कर रहे हैं। पवन कांडपाल दिल्ली मेट्रो में नौकरी करने के अलावा एक चलता-फिरता पहाड़ हैं। डाॅ. दीपक नेगी आईआईटी दिल्ली में हैं। मुकुल पांडे, कैलाश और मीना आज भी उत्तराखंड के सवालों को विभिन्न संगठनों और लेखन के माध्यम से उठा रही हैं।
और साथी भी अपने-अपने व्यवसाय के साथ पहाड़ की संवेदनाओं के साथ जुड़े हैं। यहीं पर एक नाम और जोड़ देता हूं दीपक मेहता का। दीपक अल्मोड़ा जनपद के बग्वालीपोखर के रहने वाले हैं। बहुत हर रचनात्मक युवा हैं। हमें उनसे हमेशा प्ररेणा मिलती है। ऐसे जुझारू युवा बहुत कम मिलते हैं। बचपन से ही उनके दोनों पांव पोलियो से ग्रस्त हैं, लेकिन उन्होंने समाज में चलने का जो रास्ता निकाला उसमें सभी को पछाड़ते गये (दीपक माफ करेंगे, हमने कभी उन्हें इस रूप में नहीं देखा)। मैं यह बात यहां इसलिये कर रहा हूं क्योंकि इससे सभी को पे्ररणा लेनी चाहिये। वे अच्छे कवि, रंगकर्मी तो हैं ही उत्तराखंड की संस्कृति, भाषा और सरोकारों से गहरे तक जुड़े हैं। चैखुटिया विकासखंड के एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षक हैं। स्कूल के बच्चों को जिस तरह उन्होंने रचनात्मक करने को पे्ररित किया है वह प्रशंसनीय है। उन्होंने अपने स्कूल की एक अनियतकालीन पत्रिका भी निकाल दी। इसमें स्कूल के बच्चे अपनी रचनायें लिखते हैं। अभी उत्तराखंड के लोक साहित्य पर पीएचडी कर रहे हैं।
अंत में तीन लोगों के जिक्र के साथ इस कड़ी को समाप्त करना चाहूंगा। पहला नाम है पंकज महर का। पंकज इस समय उत्तराखंड विधानसभा में कार्यरत हैं। उनमें आप एक पहाड़ देख सकते हैं। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जिनमें अपनी थाती के प्रति इस हद तक लगाव होता है। वे बहुत शिद्दत के साथ पहाड़ को जीते हैं। बहुत बेचैन और एक दिन में सबकुछ बदल देने का सपना। अच्छा हुआ थोड़ा सरकारी काम होने से कई तरह की बंदिशें हैं, लेकिन उन्होंने पहाड़ की जानकारियों और उसकी पीड़ा को जिस तरह अपने सीने से लगाया है वह बहुत होंसला बढ़ाता है। कई बार हमें फोन पर ‘हड़काने’ से बाज नहीं आते। पता नहीं कब बरस पड़ें। एक नाम है पिथौरागढ़ में शिक्षा विभाग में काम करने वाले विक्रम नेगी का। विक्रम तो कमाल के हैं। मुझे कई बार लगता है कि हम अपनी प्रतिभाओं के बारे में कितना कम जानते हैं। उनकी कविताओं में जिस तरह की चेतना है वह उन्हें देश-दुनिया के स्थापित कवियों की श्रेणी में रखता है। उन्होंने पहाड़ को लेकर जितनी कवितायें की हैं उनमें हम पहाड़ के दर्द, कष्ट, संवेदनायें, जिजीविषा और प्रतिकार को देख सकते हैं। कभी पढ़ियेगा जरूर। उन्होंने ‘बूंद’ ब्लाग में इन्हें रखा है। अन्त में डाॅ. मनोज उप्रेती। इन युवाओं से उम्र में कुछ बड़े हैं। इंडियन आॅयल में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उनकी शिक्षा पहाड़, मध्य प्रदेश और विदेश में हुई है। कुमाउनी में उनकी कविताएं तो अदभुत हैं हीं, जब आप उनसे बात करें तो एक-दो दिन पहले से अपनी कुमाउनी दुरस्त कर लें। उनके दो कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। डाॅ. उप्रेती ने प्रवास में रहकर जिस तरह से पहाड़ की सांस्कृतिक धरोहर को अक्षुण्ण रखने का काम किया है वह विलक्षण है।
(युवाओं को जानने का यह क्रम जारी है। अगली बार कुछ और युवाओं के साथ….चारू तिवारी वरिष्ठ पत्रकार हैं)