जोना – दिलों से जुड़ती एक पहाड़ी फिल्म

जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
“ब्यूटी इन सिम्प्लिसिटी” यानि सहजता में सुंदरता, हाल ही में बनी गढ़वाली फ़िल्म जोना के बारे में मैं यही कहूँगा. इस फिल्म की कहानी जितनी सहज, सरल तरीके से पहाड़ की स्वास्थ्य समस्या को दर्शकों के दिलों तक पहुंचाती है, वहीँ दर्शक जब इस फिल्म को देखना शुरू करता है तो फिल्म कब ख़त्म हो गयी पता ही नहीं चलता, फिल्म दर्शकों को पलक तक झपकाना भुला देता है. जोना फिल्म की कहानी इतनी कसी हुई है कि उसमें कहीं छेद नहीं दिखता, फिल्म दर्शकों को अंत तक जोड़ कर रखती है. यही इस फिल्म की विशेषता है. अब सवाल कोई यह कहे कि जोना फिल्म कितने दिन थिएटर की स्क्रीन पर रही या जोना फिल्म ने कितने पैसे कमाये? वह सवाल अलग है. पहली बात यह कि उत्तराखंड की फिल्म इनडसट्री को अभी बड़े संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ रहा है. सीमित दर्शक व पर्याप्त फिल्म स्क्रीन न होने से फिल्म की लागत निकालना कठिन है. लेकिन अन्य भाषाओँ को जोड़कर इसकी राष्ट्रीय व विश्वब्यापी संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता.
खैर अभी मैं बात कर रहा हु जोना फिल्म की. पहाड़ के एक गांव का परिवार दिल्ली में रहता है. उनके बेटे राजीव (अर्जुन चंद्रा) ने एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूरी की व वह दिल्ली में एक नर्सिंग होम खोलना चाहता है, जिसके लिए उसे बड़ी रकम की जरुरत पड़ती है. व अपने माता – पिता से बात करता है. राजीव के पिता रकम जुटाने की कोशिस करते हैं लेकिन वह पर्याप्त नहीं होते, काफी तर्क – वितर्क के बाद माता – पिता बेटे के भविष्य की खातिर राजीव के इस विचार पर कि गांव के घर व खेती को बेचकर रकम जुटाई जाय तैयार हो जाते हैं. इस हेतु राजीव अपने माता – पिता के साथ अपने गांव पहुँच जाता है व जमीन बेचने के प्रयास करता रहता है. एक दिन राजीव के साथ पढ़ने वाली राजस्थान की एक लड़की रिया (शिवानी कुकरेती) जो राजीव को मन ही मन प्रेम करती है उसके घर पहुँच जाती है. राजीव उसको अपने गांव व आस – पास घुमाता है, इसी दौरान रिया अपने मन की बात राजीव से कह देती है, लेकिन राजीव इसमें कोई रूचि नहीं लेता. एक दिन रात को रिया सोने की तैयारी कर रही थी कि उसे टेबल में राजीव के बचपन के फोटो फ्रेम के पीछे एक डायरी मिलती है. जिसमें राजीव ने अपनी पूरी आप बीती लिखी थी. रिया पूरी रात डायरी को पढ़ डालती है. जब सुबह राजीव रिया को मिलता है, तो रिया डायरी पढ़ती नजर आती है, पूरी कहानी खुल जाती है और जोना फिल्म की असली कहानी शुरू हो जाती है.

फ़्लैश बैक राजीव अपने गांव पहुंचकर अपने मकान पर पहुँचता है, मकान की हालात बेहद जर्जर हो चुकी होती है. यह गांव की बच्चियों का खेलने का स्थान बन जाता है, जिनकी लीडर बेहद ही चुलबुली लड़की जोना (अनुष्का पंवार) होती है. वह बच्चियों के साथ तास खेल रही होती है, तभी राजीव घर के अन्दर पहुंचता है. बच्चियां उसको गुंडा समझती है जो घर पर कब्ज़ा करना चाहता है, खैर राजीव उनको घर से भगा देता है, व घर की साफ़ सफाई कर रहने लायक बना देता है. इस बीच राजीव गांव के मकान व जमीन बेचने वाले लोगों से लगातार संपर्क में लगा रहता है. उधर जोना व उसके साथियों के खेल के स्थान पर कब्ज़ा होने से जोना राजीव को परेशान करने के उपाय करती रहती. वह राजीव को गांव में बदनाम तक कर बैठती है कि, दादी (मंजू बहुगुणा) को बोलती कि राजीव उसको भगाना चाहता है. कभी वह राजीव पर छेड़ने के आरोप लगाती है. यह वह सब कौतुहक के तौर पर करती है गांव की लाडली जोना पर सब दिल न्योछावर कर उसकी तरफदारी करते है. व उसके लिए राजीव के साथ लड़ भिड भी जाते हैं, लेकिन जब बाद में पता चलता तो सब माथा पकड़ कर बैठ जाते. जोना फिल्म में ये सारे दृश्य दर्शकों को गांव की सौंधी मिट्टी की खुशबू, उनके खेत खलिहान, जंगल, पानी से बखूबी जोड़ देते है. छोटे छोटे चुटीले संवाद बहुत सहज व सरल तरीके से दर्शकों के दिलों में घुल जाते है व दर्शक ये सब अपने से जोड़ देते हैं व फिल्म की कहानी में नदी की धारा की तरह बहने लगते हैं. जोना फिल्म बहुत सहज, सरल व मन को छूने वाली है. फिल्म में बाल कलाकारों (अलीशा,ऐनी,इल्मा,सृष्टी) के सहज अभिनय ने फिल्म के मध्य क्रम में जिस तरह फिल्म की गति को बनाये रखा वह काबिले तारीफ है. बच्चों के अभिनय के लिए भी यह फिल्म एक अलग पहचान बनाने वाली है.

जोना के पिताजी (राकेश भट्ट) गांव के प्रधान होते हैं. जमीन के सिलसिले में एक दिन राजीव जोना के घर पहुँच जाता है. जोना अपनी दादी को बताती है. जोना चाय लेकर पहुंचती है. जोना व दादी दोनों ने राजीव की खैर खबर ढंग से ली थी, तो दोनों शर्मिन्दा हो जाते हैं लेकिन राजीव सहज बना रहता. एक दिन पुल पर जोना व उसके साथियों का आमना – सामना राजीव के साथ हो जाता है. जोना गगरी पर पानी भरने आई थी. राजीव के साथ जोना व उसके साथियों की बाल चाल शुरू हो जाती है. राजीव जोना को अपनी कार में गांव से दूर घुमाने का निमंत्रण देता है, जिसे चुलबुली जोना मान जाती है. राजीव जोना को लेकर घने जंगल में ले जाता है. कुछ देर घुमाने के बाद राजीव शरारत व सबक शिकने के बहाने जोना को जंगल में छोड़ देता है व वापस घर लौट जाता है. रात होने पर भी जब जब जोना घर नहीं लौटती तो गांव में हंगामा हो जाता है. राजीव जब यह सुनता है तो, वह परेशान होकर जोना को खोजने जंगल पंहुच जाता है जहाँ जोना अपनी गगरी के साथ पेड़ की आढ़ में बैठकर ठंड से सिकुड़ती जा रही थी. राजीव उसको कर में बिठाकर उसके घर पहुंचा देता है. लेकिन जोना की तबियत बहुत खराब हो जाती है.
खैर इस सबके बीच धीरे – धीरे राजीव को पता चलता है कि जोना एक गंभीर बिमारी से ग्रसित है व वह कुछ ही महीनों की मेहमान है. राजीव को यह भी पता चलता है कि जोना यह सब हरकतें क्यों करती है ? गांव वालों के लिए प्यारी जोना क्यों गांव की लाडली है ? गांव की नज़रों में जोना एक बहुत होशियार लड़की है. वह सबकी मददगार व सही सलाहकार है. जोना चाहती है की वो जब तक भी जिये, अपनी जिंदगी भरपूर जिये. इस बीच जाने – अनजाने जोना राजीव से मन ही मन प्यार करने लगी थी. जब राजीव को यह सब पता चला तो उसको भी धीरे – धीरे जोना से अथाव लगाव होने लगा. जोना को ठीक करने व उसको खुश रखने के लिए राजीव जी तोड़ प्रयास करने लग जाता है. जोना राजीव के साथ अपने को बहुत खुश व स्वस्थ महसूस करने लगती है. आखिरकार जोना राजीव से अपने प्रेम का इजहार कर लेती है. दुख – सुख, हंसी – खुशी की यह कहानी बड़ी मार्मिक मोड़ों से गुजरकर दर्शकों को भावनात्मक शिखर तक ले जाती है. फिल्म को आखिर तक देखने के लिए आपको यह पूरी फिल्म देखनी होगी, तभी जोना फिल्म के मर्म को समझा जा सकेगा. हाँ फिल्म देखने की शुरुआत से पहले बगल में आंसू पोंछने के लिए एक मोटा तौलिया जरूर रख लें.
जोना फिल्म आर.आर.आर. म्यूजिक प्रोडक्शन के यू – ट्यूब चैनल पर रिलीज की जा चुकी है. जोना फिल्म में प्रत्येक कलाकार ने सहज अभिनय किया है जो पात्रों को जोड़ता है. कोई भी किसी से कम नहीं है. लेकिन मुख्य पात्रों के रूप में जोना की भूमिका में अनुष्का ने जिस संजीदगी व आत्मविश्वास के साथ किरदार को निभाया है, वह उसको बड़े सपने की ओर ले जाने के लिए अग्रसर करेगा. वहीँ राजीव की भूमिका सहित फिल्म के अलग-अलग जिम्मेदारियों को जिस तरह अर्जुन चंद्रा ने निभाया है वह एक सुखद प्रतिभा के उभरने के संकेत देता है. कलाकारों का सही चयन, सही लोकेशन, कसी हुई कहानी, पटकथा, संवाद, गीत – संगीत, सटीक फिल्मांकन, संपादन व निर्देशन ने जिस टीम भावना का परिचय दिया है, वह इस फिल्म को इस मुकाम तक ले आया है. थोड़ा फोले साउंड, पहाड़ के अनुरूप संगीत व बैकग्राउंड स्कोर में कंजूसी, 2 घंटे 40 मिनट लम्बी फिल्म में कुछ संवादों व लम्बे दृश्यों पर कैंची चल जाती व फिल्म को टाईट कर 10 मिनट कम कर दिया जाता तो मजा आ जाता. फिल्म का बेहतरीन निर्देशन निशे ने किया है, फिल्मांकन व संपादन की जिम्मेदारी दिलनवाज, संगीत दीपक रावत, गीत कुलदीप, रेनू, अतुल्य, सृस्ठी, लाईट राहुल व मेकअप सपना व हिमानी ने किया है. सह कलाकारों में सुमन गौड़, चंद्रवीर नेगी, महिपाल नेगी, राजेंद्र ढौंडियाल, हीरा नेगी, परमजीत राणा व राकेश बहुगुणा शामिल है. प्रस्तुति तितली फिल्म्स की है.