May 16, 2025



कोटा मल्ला का कोठा (क्वाठा)

Spread the love

डॉ. राजपाल सिंह नेगी


रिखोला नेगियों की ऐतिहासिक धरोहर- कोटा मल्ला का कोठा (क्वाठा). ग्राम-कोटा मल्ला, पट्टी-बदलपुर मल्ला‚ परगना-मल्ला सलाण, तहसील-सतपुली, जनपद-पौड़ी में स्थित है। पौड़ी से इसकी दूरी लगभग 75 किलोमीटर है। आज से लगभग 350 वर्ष पूर्व निकटवर्ती मूल गांव वयेली (सतपुली के निकट) के निवासी तत्कालीन थोकदार श्री दुलुप सिंह रिखोला नेगी ने वयेली के निकट अपेक्षाकृत अधिक ऊंचाई, मध्यम तापमान एवं खुले स्थान वाले भूभाग पर एक नया ‘कोटा मल्ला’ गांव बसाया तथा एक क्वाठा (कोठा) का निर्माण करवाया। दुलुप सिंह रिखोला नेगी के पूर्वज़ लोदी रिखोला (भड़), जो गढ़ नरेश महीपत शाह (1624ई-1631ई) के सेनापति थे‚ जिन्होंने सिरमौर रियासत को पराजित किया था। उनके दूसरे सेनापति माधव सिंह भंडारी थे। श्री भक्त दर्शन (पूर्व सांसद व केंद्रीय मंत्री) के अनुसार श्री भंडारी उत्तरी कमान व लोदी रिखोला दक्षिणी कमान के प्रमुख थे। लोदी रिखोला ने अपनी दक्षिणी सेना का गठन जिस स्थान पर किया था उसे ही वर्तमान में रिखणीखाल कहते हैं। संभवत इसी पद और वीरता को देखते हुए उनके वंशधरो को जमींदारी/थोकदारी पद प्रदान किए गए होंगे। दुलुप सिंह नेगी के पश्चात लाल सिंह, दौलत सिंह एवं छवाण सिंह कोटा मल्ला के थोकदार रहे। छवाण सिंह अंतिम वास्तविक थोकदार थे।

कोठो में कई कमरों सहित एक अलंकृत तिवारी (जंगला) तथा एक ईवान (अतिथि कक्ष) भी बनावाया। इवान शब्द दीवान-ए -आम (आम जनता का दरबार) का ही अपभ्रंश है जिसमें समय-समय पर आवश्यक बैठकें होती थी। कालांतर में तिवारी के ढह जाने से उसके स्थान पर एक लकड़ी के जंगले का निर्माण किया गया। पूर्व में तिवारी कोठे के भीतरी भाग की ओर थी और वर्तमान में जंगला वाली जगह पूर्णरूप से दिवार थी। केवल जंगले के नीचे स्थित कमरे में ही बाहर से प्रवेश किया जाता था। कोठे में कई डंडोले (छोटे जंगले) तथा निजी उपयोग हेतु कई खोलियाँ, जो अंदर ही अंदर एक कमरे से दूसरे कमरे को जोड़ती थी, भी बनाए गए। कोठे के प्रवेश द्वार (8.3×6 फीट) में लकड़ी व पत्थर का प्रयोग किया गया था। प्रवेश द्वार कंदार (साल) तथा मोटी-मोटे लोहे की कीलों का प्रयोग किया गया। प्रवेश द्वार के ऊपरी भाग के बीचो-बीच में साल की लकड़ी का प्रयोग कर श्री गणेश मूर्ति तथा गणेश मूर्ति के दाएं एवं बाएं ओर खूबसूरत हाथी, फाख्ता (घुघूती) तथा अध खिले फूलों के 11 पैनल है। दरवाजे के स्तंभों तथा ऊपरी भाग पर की गई नक्काशी अद्भुत है। मुख्य प्रवेश द्वार, दरवाजे, स्तंभ, पशु-पक्षी, गणेश तथा छोटी-छोटी कोठरियाँ अभी भी अपने मूल स्वरूप में है। प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर कोठरी में एक छोटी सी खिड़की है जिसमें कोठा से नीचे का बाहरी भाग दूर तक दिखाई देता है परंतु नीचे से ऊपर कुछ भी नहीं देखा जा सकता। इवान के ऊपर वाला छोटा कमरा पूजा कक्ष था। पूजा कक्ष का दरवाजा लगभग 2 फीट तथा कमरे की ऊंचाई लगभग 3 फीट है।


प्रवेश द्वार के दरवाजे, स्तंभों के लिए साल की लकड़ी सुदूर गाँव गाज़ व बिन्तल अथवा बाबर क्षेत्र से उपलब्ध कराई गई थी। क्वाठा के अंदर एक बड़ा सा आयताकार (73×32फीट) मैदान था जिसके चारों ओर दो मंजिलें कमरे थे। वर्तमान में कोठा के पीछे का भाग ध्वस्त हो चुका है बाकी कुछ ध्वस्त होने के कगार में हैं। वर्तमान निवासियों ने कमरों को अपनी अपनी सुविधानुसार नए ढंग से परिवर्तित भी कर दिया है। क्वाठा के बाहरी क्षेत्र में तिवारी के नीचे वाले कमरे को बंदी गृह के रूप में भी प्रयोग किया जाता था। कोटा के अंदर का क्षेत्र ‘कोठा भीतर’ व बाहर का क्षेत्र ‘भैंर चौक’ के नाम से जाना जाता था। प्रवेश द्वार के छज्जे के नीचे तकलीनुमा (बिना चरखे के सूत कातने का आला) जो काष्ठ निर्मित है, बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं। वर्तमान में इनकी संख्या काफ़ी कम हो चुकी है। कोठों के निर्माण में जिन कारीगरों एवं मिस्त्रियों का सहयोग लिया गया था उन्हें वायेली गाँव में कई बड़े तथा उपजाऊ खेत पारिश्रमिक के रूप में दिया गया था। ज्ञातव्य है कि एक समय कोटा मल्ला की थोकदारी के अंतर्गत कुल 84 गाँव सम्मिलित थे जिसमे सिद्ध पीठ तड़ासर (ताड़ीकेश्वर) महादेव मंदिर भी सम्मिलित था। वर्ष में दो बार होने वाली देव पूजाओं में पूर्व में कभी यहां के थोकदार व अन्य ग्रामीणों द्वारा पूजा किये जाने का भी प्रावधान था। वास्तविक रूप से अंतिम थोकदार छवाण सिंह की मृत्यु 1963ई में हो गई थी। श्री छवाण सिंह की मृत्यु के उपरांत 1963ई से 1965ई तक उनके पुत्र श्री कुंवर सिंह नेगी ने भी थोकदारी के पद का कतिपय दायित्व निभाया था जिनमे थोकदारी गाँव से मालगुज़ारी वसूल कर पटवारी के माध्यम से शासन के राजकोष में जमा कराना प्रमुख था। 1965ई में उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र (कुमाऊ, गढ़वाल) में ‘जमींदारी उन्नमूलन अधिनियम 1965’ लागू होने पर पर्वतीय जिलों में थोकदारी व्यवस्था पूर्ण रूप से समाप्त हो गई थी।


कोटा मल्ला में स्थित क्वाठा की समस्त जानकारी छवाण सिंह के पौत्र तथा श्री कुंवर सिंह नेगी के ज्येष्ठ पुत्र श्री विक्रम सिंह नेगी (आयु 75 वर्ष) (सेवानिवृत अतिरिक्त जिला अधिकारी) के माध्यम से प्राप्त हुई। सौभाग्य से श्री विक्रम सिंह नेगी मेरे अग्रज भ्राता है। उन्होंने यह सूचना अपनी दादी श्रीमती गोमती नेगी (पत्नी‚ श्री छवाण सिंह नेगी ), अपने पिता श्री कुंवर सिंह नेगी एवं समय रहते हुए गांव के वृद्ध वंशधरों तथा ग्रामीणों से एकत्रित की थी।

लेखक हेमवतीनंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर हैं.