गणतंत्र दिवस के मायने
महावीर सिंह जगवान
उनहत्तरवें गणतंत्र दिवस पर राजपथ की चकाचौंध मे जब अपने राज्य उत्तराखण्ड की झाँकी निकल रही थी
मानो अंतस उत्साह से हिलोरे मार रहा था, सुकून और गौरव हो रहा था, उनकी यादें भावुक कर रही थी जिनके त्याग और बलिदान से यह राज्य अस्तित्व मे आया, नमन उन्हे जिनकी परिणति राजपथ पर यह सम्मान मिला। राष्ट्रीयता और देश के खातिर सर्वस्य देने लायक अपने लाडलों को जन्म देने वाली पावन माटी को नमन, यह सौभाग्य है हमारा जन्म देवभूमि उत्तराखण्ड की गोद मे हुआ। जितनी सजी सँवरी और समृद्ध उत्तराखण्ड की झाँकी राजपथ पर दिखती है, काश अड़सठ साल के गणतंत्र मे इसके शसक्तीकरण की ईमानदार पहल होती तो यह सभी राज्य के सम्मुख नवरत्न राज्य बनकर उभरता और भारत माँ के मुकुट पर कोहिनूर से भी उम्दा रत्न की तरह अपना अद्वितीय प्रकाश फैलाता। माथे पर बल डालती एक कड़वी सच्चाई है यह हिमालयी राज्य जितना सम्पन्न आस्था, विरासत और प्रकृति की नेमतों की वजह से बाहर से दिखता है उतना ही चिन्तनीय और भयावह स्थितियों से गुजर रहा है। यहाँ की चिन्ता भी राष्ट्रीय परिदृष्य मे बिल्कुल अलग है, जिस संकल्प से यह राज्य जन्म लेता है उस संकल्प पर अट्ठारह वर्ष मे अट्ठारह कदम भी नही बढता। इस राज्य के सृजन के पीछे तीन महत्वपूर्ण संकल्प थे, पहला सीमान्त क्षेत्र अवसर और आबादी से सम्पन्न हों, दूसरा यहाँ के पानी और जवानी को इस विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले भू भाग का पूरा लाभ मिले और तीसरा नवोदित राज्य अपने भू भाग और अपनो का बेहतरी से सूझबूझ से जिम्मेदार अभिवाहक की तरह पोषण और संरक्षण करे, लेकिन दुर्भाग्य से इन तीनो संकल्प पर यह राज्य सृजन के समय से बद्दतर हालात मे पहुँचा जिसकी कसक हर उत्तराखण्डी के दिल मे है। बच्चा युवा बूढा हर किसी ने एक सपना बुना था राज्य बनते ही, अकल्पनीय विकास दिखेगा, हर सवाल का समाधान निकलेगा, योग्यतानुसार रोजगार और काम के अवसर बढेंगे लेकिन सबकुछ इक्कीस के बजाय उन्नीस ही होता गया।
आबादी शून्य होते गाँव और एकतरफा पलायन ने राज्य की मूल अवधारणा को ही भारी क्षति पहुँचायी। अट्ठारह वर्ष के सफर पर बढता यह राज्य आज भी स्थाई राजधानी पर मौन है। इस राज्य की बनावट तात्कालीन अपरिपक्व राजनीति की परिणति प्रकृति की बनावट से भी विषम हो गई, इस राज्य का संविधान तात्कालीन दूरदर्शिता के अभाव मे आज भी उत्पादकता खो रहा है, इस राज्य की राजनीति मौकापरस्ती की जद मे महत्वाकाँक्षाऔं के भँवर मे फँस गई, राज्य की नींव का अनमोल समय इतनी गैरजिम्मैदारी से ब्यतीत हुआ आज यह राज्य अपने कर्मचारियों की वेतन तक की ब्यवस्था स्वयं जुटाने मे लाचार वेवस है, नई सोच और जज्बे की कल्पना दूर की बात। कुछ बातें बार बार आती हैं लेकिन जरूरी हैं इनसे रूबरू होने की ईच्छा शक्ति नही होगी तो समाधान का उजाला कैंसे विखरेगा।
राज्य की वनावट, राजनीति और आर्थिकी के श्रोत स्पष्ट रूप से दो भागों मे बँटे दिखते हैं, पहला भाग तीन चौथाई पहाड़ और दूसरा भाग एक चौथाई मैदान, राज्य के भाग्यविधाताऔं को चाहिये था समानता से दोनो भागों का विकास करते और यह राज्य समृद्धि और शसक्त बनता।
हम न तो क्षेत्रवाद और न ही जातिवाद के समर्थक हैं। हम तो भारतीयता और पीढियों से संजोये संस्कृति विरासत पर गौरवान्वित होते आयें हैं, हिमालय के वासी हैं राष्ट्र प्रेम कूट कूट कर भरा है। एक पहल एक लक्ष्य के तहत बढ रहे हैं समृद्ध उत्तराखण्ड समृद्ध भारत। तीन चौथाई वाला पहाड़ी भू भाग भी सम्मपन्नता समृद्धि और रोजगार और आबादी का अनुपात एक चौथाई भाग सदृश हो ताकि समान रूप से सँवरे यह राज्य। बड़ा सवाल यह तीन चौथाई भू भाग क्षेत्रफल और प्राकृतिक शंसाधनो की दृष्टि से सम्पन्न है फिर क्यों पिछड़ता जा रहा है यह रणनीति के तहत हो रहा है या मूर्खता की परिणति है यह चिन्तनीय है। अभी कुछ दिन पहले 25 जनवरी का दैनिक अमर उजाला पढ रहा था उसमे पहले पेज पर मोटी लाइन मे लिखा था राज्य की खेती को 4100 करोड़ का तोहफा, इसमे 2600 करोड़ बंजर खेतों के पुनर्जीवितीकरण हेतु और 1500 करोड़ रूपये जैविक खेती के लिये। यह अच्छी खबर है लेकिन दुर्भाग्य राज्य बनने से आज तक 100000 करोड़ से 150000 करोड़ के भारी भरकम बजट ब्यय के वावजूद खेती पचास फीसदी के आसपास बंजर हो गई, न कृषि का रकवा बढा न ही उद्यान का तो स्पष्ट है सबकुछ गैरजबाबदेही से चल रहा है। डेढ लाख करोड़ छोटी राशि नहीं इसके अलावा कृषि और कृषि उद्यानीकरण पर अलग अलग श्रोतों से ब्यय भी एक लाख करोड़ के आस पास है आखिर कैसा गणतंत्र जिसमे जबाबदेहिता शून्य और फिर और फिर लगातार रूपये की माँग कौन निगल रहा है इन तीन चौथाई पर्वतीय भू भाग के विकास का बजट।
यहाँ चर्चा केवल कृषि सन्दर्भ पर है, हम लाखों करोड़ों का ब्यय कर जमीन पर ब्यय का दसवाँ हिस्सा भी लक्ष्य प्राप्त नहीं करेंगे तो फिर भविष्य कैसे सँवरेगा। आज उत्तराखण्ड के वजूद की रक्षा और सृजन के लक्ष्य को पाना है तो एक सूत्रीय विजन होना चाहिये कागजी विकास को जमीन पर उतारने के लिये पूरी ईमानदारी से ताकत लगायें। हम सम्मपन्नता किन क्षेत्रों मे प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें चिन्हित करें, वर्तमान मे उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये जो भी लोग थोड़ा या अधिक काम कर रहें हैं उन्हें सपोर्ट करना होगा। दृढनिश्चयी बनकर योजनाऔं के क्रियान्वयन मे अमूलचूल बदलाव लाने होंगे। बीस फीसदी ही बाहरी ब्यय हो अस्सी फीसदी जमीनी ब्यय से आशा की किरणे दिख सकती हैं। हरित क्रान्ति की चमक को हम खो रहे हैं समय रहते नये प्रयोगों की अपेक्षा पारम्परिक शैली फसलों फलों मे हम आधुनिक तकनीकियों का समावेश कर नई ईबारत लिख सकते हैं। सरकारें कुछ भी कहे तीन चौथाई पहाड़ी भू भाग को हिमांचल की राह पर बढना होगा।
आप खेती मे प्राकृतिक और जंगली जानवरों के नुकसान की तात्कालिक भुगतान की बीमा परिपाटी विकसित करो और उत्पादन पर प्रोत्साहन समर्थन मूल्य दो। युवा युवतियाँ आधुनिकता के साथ कृषि की ओर जाना चाह रहे हैं आप ऐसा माॅडल दो जिसमे श्रम की पराकाष्ठा के साथ सम्मानजनक आय की गारण्टी हो तो बदलाव आयेगा। कृषि आधारित सभी उत्पादों के लिये हिमालय का यह भूभाग अत्यन्त उपजाऊ है ईमानदारी से पहल तो करो, ईमानदारी से चयन तो करो ईमानदारी से योजना परियोजना की जबाबदेहिता तो तय हो। निश्चित कृषि क्षेत्र ही तीन चौथाई भूभाग मे इतनी समृद्ध दे देगा मैदान और पहाड़ों के बीच की खाई पट जायेगी। गाँव राज्य राष्ट्र निरन्तर प्रगति के पथ पर बढेंगे तभी तो हम गणतंत्र की सफलता की सुगन्ध फैला सकते हैं। कर्तब्यपरायणता, ईमानदारी, जबाबदेही, विवेक का सकारात्मक प्रयोग,और शाररिक मानसिक शक्ति का रचनात्मक सकारात्मक प्रयोग, गलत को गलत और सही को सही कहना यहीं से तो ऑक्सीजन मिलेगी गणतंत्र को, आयें मिलकर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के गौरवमयी गणतंत्र के सम्मान उत्तकर्ष मे अपना योगदान सुनिश्चित करें, निरन्तर करते रहें ताकि हम हम सबको गणतंत्र पर गौरव करने का ईमानदारी से हक मिले। जय हिन्द, जय भारत, जय भारत के लोग.
गणतंत्र दिवस की झांकी निर्माण एवं प्रदर्शनी में सुचना विभाग के उप निदेशक श्री के. एस. चौहान जी का सदैव की भांति इस वर्ष भी बड़ा योगदान रहा इस हेतु चौहान जी व सुचना विभाग, उत्तराखंड बधाई के पात्र हैं.