पहाड़ ला इलाज
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
उत्तराखंड राज्य में इस बार बारिश ठीक – ठाक हुई, और बारिश ने कहर भी बरपाया. राज्य की कई ग्रामीण सड़कें अभी भी बंद पड़ी हुई हैं जिनको खोलने के प्रयास सरकार कर रही है. इस बार की बारिश ने जहाँ राज्य को भीगने व धरती की प्यास बुझाने का काम किया वहीँ दूसरी ओर इसका दुष्परिणाम यह रहा कि इस बार की चार धाम यात्रा, पर्यटन बुरी तरह प्रभावित रहा. तीर्थाटन व पर्यटन पर आधारित आर्थिकी वाले राज्य के लिए यह एक बड़ी अग्नि परीक्षा रही. ग्रामीण सडकों के खस्ता हाल तो हैं ही, ऑल वेदर रोड के नाम पर चार धामों को जोड़ने वाले रास्ट्रीय राजमार्ग भी अपनी पोल पट्टी खोल बैठे. चारों धामों तक पहुँचने से पहले बोटल नेक बने जोतिर्मठ, गुप्तकाशी, बड़कोट व उत्तरकाशी व अन्य स्थानों में तीर्थयात्रियों को रोकना पड़ा.
आदि कैलाश जाने वाले यात्रियों को कई दिनों तक इनर परमिट नहीं मिला, तो उनको आन्दोलन तक करना पड़ा. ऐसे ही हालात ऋषिकेश में शुरूआती यात्रा काल में देखने को मिला. सबसे ज्यादा बुरी स्थिति केदारनाथ पहुँच मार्ग की आपदा थी, जहाँ जान जोखिम में डालकर प्रशासन को यात्रियों को निकालना पड़ा, अब एक बार फिर वहां पुराने वैकल्पिक रास्ते का निर्माण कार्य शुरु कर दिया गया, लेकिन इस लेख के लिखते समय वन विभाग ने आरक्षित पार्क क्षेत्र होने के नाते, रास्ते के निर्माण कार्य को रोक दिया गया था.
ये सब उपरोक्त कारण तात्कालिक नहीं हैं जिन्हें सरकार जानती नहीं है, लेकिन हर साल वही ढाक के तीन पात वाली कहानी दोहराई जाती है. ये स्थितियाँ ये साबित करती हैं की सरकार के पास दूरगामी सोच की कमी है, वह सरकार जो लगातार लगभग साढ़े सात साल से राज्य में शासन कर रही है. चारधाम यात्रा की ठोस योजना बनाने में उत्तराखंड फेल हो चुका है, जिसका परिणाम इससे जुड़े ब्यवसायी भुगत रहे है. इस साल पिछले रिकॉर्ड के आधे से कम यात्री व पर्यटक उत्तराखंड पहुँच पाये, दावे एक करोड़ का करने वाले अपने लक्ष्य के पच्चीस प्रतिशत तक भी नहीं पहुँच पाए. यह एक गंभीर मसला है. पर्यटन आधारित राज्य के लिए ये परिस्थितियां आर्थिक घाटे का सबब बन चुकी हैं.
बुग्याल व सीमान्त पर्यटन
तीर्थाटन के इतर पथारोहण, ट्रैकिंग, बुग्याल, ताल, झील, पर्वतारोहण वाला पर्यटन सेक्टर भी बुरी तरह प्रभावित है. इन इलाकों में जाने वाले साहसिक पर्यटकों को अनेक नियम – कानूनों, परमिट आदि से गुजरने की प्रक्रिया से पर्यटक हतोत्साहित हो जा रहे है. केंद्र सरकार ने सीमान्त गांवों में पलायन से बंजर पड़े गांवों को बसाने के लिए होम स्टे, आजीविका संवर्धन, पर्यटन, कुटीर उद्योग, जड़ी बूटी आदि को प्रोत्साहन देने की योजना बनाई, इस पर कुछ प्रयास सरकार कर रही है. सीमान्त पर्यटन बढ़ाने के लिए सीमान्त इलाकों को सडकों से जोड़ा जा रहा है, चमोली, पिथोरागढ़ व उत्तरकाशी में कई सड़कें बोर्डर तक जुड़ चुकी है. उदाहरण के लिए गंगोत्री के निकट नेलोंग व जादुंग गांवों की बात करते हैं. यहाँ सड़क मार्ग तिब्बत सीमा तक बन चुका है, यहाँ के मूल निवासियों को होम स्टे बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.
जब यात्री को पता चलता है कि इन गांवों व सीमान्त तक यात्रा की जा सकती है तो वह उत्सुक हो जाता है. जब वह इसके लिए प्रयास करता है तो पता चलता है कि, इस हेतु इनर परमिट बनाना पड़ेगा और उसके लिए वापस उत्तरकाशी जाना पड़ेगा तो उसका उत्साह फीका पड़ जाता है. गंगोत्री में वन विभाग का अच्छा इन्फ्रास्ट्रक्चर है, वहीँ प्रशासन के लोग बैठकर इनर परमिट बना सकते हैं, लेकिन ये छोटी से पहल सरकार को क्यों समझ नहीं आ रही? यह समझ से परे है. जब गंगोत्री जाने के लिए हर दिन सीमित परमिट जारी हो रहे है, तो यही काम 8 – 10 किलोमीटर पहले लंका में सीमान्त गांवों व बोर्डर तक पर्यटकों को पहुँचाने के लिए क्यों नहीं किया जा रहा है? यही हर जगह किया जाना चाहिए. कुछ हफ्ते पहले आदि कैलास जाने वाले यात्रियों को कई दिनों तक इनर परमिट जारी नहीं किया गया तो पर्यटकों को प्रशासन का घेराव करना पड़ा. पर्यटकों की सुरक्षा जरुरी कार्य है, लेकिन आज के अत्याधुनिक संचार के युग में उनको क्यों नहीं समय पर सूचित कर दिया जाता है? इसी कारण से यात्रा काल के शुरू में हड़बड़ी मची थी. उत्तराखंड सरकार का सूचना तंत्र असफल हो चुका है जो देश – विदेश व स्थानीय पर्यटकों तक पहुँच नहीं बना पा रहा है.
कुछ साल पहले उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद बुग्यालों में रात्रि विश्राम करने, टेंट लगाने व सीमित पर्यटकों के कारण बुग्याल पर्यटन प्रभावित हुआ है. अनियंत्रित पर्यटन का समर्थन नहीं किया जा सकता है, पर इसका उपाय यह हो सकता है कि पर्यटक वेदिनी से पहले व बुग्याल शुरू होने से पांच सौ मीटर नीचे अपना टेंट लगा सके यह व्यस्था बनानी चाहिए . इसी तरह वेदिनी बुग्याल समाप्त होने के बाद सिलासमुन्द्र या कैलवा विनायक के आस – पास टेंट लगाने की अनुमति दी जाये तो बुग्यालों को नुकसान नहीं होगा. टेंट लगाने वालो स्थलों की पहचान वन विभाग करे. इस तरह पर्यटक रूपकुंड की यात्रा कर सकते हैं. इस पर सरकार कुछ सोच ही नहीं रही और स्थानीय लोग रोजगार से वंचित हो रहे हैं. पर्यटन से जुड़ी अनेकों कम्पनियों ने उपरोक्त कारण से अन्य हिमालयी राज्यों का रुख करना शुरू कर दिया है, इस बात की हवा सरकार को होगी भी तो स्वीकार नहीं करेगी. यही हालात गंगोत्री तपोवन, केदारकांठा, दयारा, मनपायी, रुद्रनाथ, आली से लेकर राज्य के हर जगह देखने को मिल जायेगी.
अंतत: उत्तरखंड के सरकारी कर्मचारियों, भूतपूर्व कर्मियों, सैनिकों के साथ – साथ आम लोगों को सरकार ने आयुष्मान कार्ड, गोल्डन कार्ड, इ.सी.एच. व अन्य स्वास्थ्य बीमा कार्ड उपलब्ध करवाए है. इन कार्डों का उपयोग कर सूचीबद्ध अस्पतालों में लोग अपना इलाज करवा सकते हैं. यह सरकार की एक बेहतर योजना कह सकते हैं. लेकिन अब ये योजना अस्पताल मफियाओं के लिए सोने के अंडे देने वाली योजना बन कर रह गयी है. सूचीबद्ध अस्पतालों में जैसे ही पता चलता है कि फलां मरीज विशेष कार्डधारक है, तो मरीज के दर्जनों टेस्ट के बाद, लम्बे समय तक आई. सी. यू. व अस्पताल में भर्ती कर, बड़े बड़े वी.आई.पी. अस्पताल से लेकर सामान्य अस्पताल मरीजों को और बीमार कर दे रहे हैं. इस खुली लूट को सब देख व समझ रहे हैं. शायद सरकार भी समझ ही रही होगी? लेकिन आम जनता से लेकर विशेष सरकारी या भूतपूर्व कर्मचारियों के स्वास्थ्य सेवा के नाम पर ऐसा घोर पाप हो रहा है, इस पर कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही, भुक्तभोगी सारे हैं. माननीय मुख्य सेवक महोदय इसका संज्ञान जरुर लें.