संकल्प से सिद्दी
महावीर सिंह जगवान
ऐसा तो कोई नही जिसे जीवन के सफर मे छोटी छोटी या अनगिनत कठिनाइयों का सामना न करना पड़ा हो।
अक्सर जमाने का दस्तूर ही कुछ ऐसा है कठिनाई को पार कर वह बहुत आगे तो बढ जाता है लेकिन उन कठिनाइयों को पीछे छोड़ देता है जिसका वह समाधान करने की सामर्थ्य रखता है। स्व हिताय पर सर्वस्य न्यौछावर करना यह रीति नीति भले हो फिर समाज और सामाजिक होने की खोखली सेखियों से कैंसे बदलाव की बयार बढेगी। हर सवाल का समाधान तो है लेकिन हर कोई बगल पड़ोसी के लाडले को भगत सिंह बनने की ख्वाहिसों को पालेगा तो समाज बदलाव के कीमती समय को गवाँ चुका होगा। कहते हैं अभाव और अज्ञानता मे अवगुणो की भरमार हो सकती है लेकिन आखर और सामाजिक साक्षरता के साथ भरपेट भोजन और छत के साथ जब सूट बूट लायक बन जाता है आदमी तो उसे अपने लिये निन्यानब्बे फीसदी और समाज के लिये एक फीसदी तो सोचना ही चाहिये, समाज ने उसको सब कुछ दिया और यदि उसके अंश मात्र योगदान से समाज मे उजाले की सम्भावना जीवित रहती है तो निश्चित रूप से उजाला उसके अंश मात्र के सहयोग से भी कई गुना उसे देता है साहस और सकारात्मक विचार। मूल भूत जरूरतों के लिये ईमानदारी और सतर्कता से जीना जरूरी है, हर ब्यक्ति परिवार की महत्वपूर्ण कड़ी है और राष्ट्रीय परिदृष्य मे अटूट श्रृँखला का हिस्सा, नागरिकों के उत्तकर्ष से राष्ट्र गौरवान्वित होते हैं ।
आजादी के बाद लोकतंत्र का उजाला हर घर गाँव गली मुहल्ले तक पहुँचना ही चाहिये, बात सड़क की हो शिक्षा की हो स्वास्थ्य की हो या रोजगार की हो। फिर भी कभी कभी ऐसा लगता है मानो सिस्टम स्फुरता के बजाय नेताऔं की कठपुतली के रूप मे चलता है। आज भी भारत मे ऐसे अधिशंख्य लोग हैं जो निरन्तर पिछड़ते गाँवो को विकास की मुख्य धारा मे लाने के लिये अपना सर्वस्य लगा देते हैं। जो नया करना चाहता है उसके लिये न तो वातावरण मिलता है और न ही सिस्टम का साथ, बस जिसे सनक चढी हो नया करने की उसे अपनी बड़ी ताकत खपानी पड़ती है उस अबूझ पहेली को सुलझाने मे, फिर कुछ लोग समय रहते अपने को साबित कर देते हैं और कुछ सदा के लिये गुमनाम हो जाते हैं। समाज की जिम्मेदारी है वह नई संभावनाऔं पर बहस करने वालों को, बाधाऔं को मिटाने वाले हौसलों का साथ दे ताकि उसकी असीम ऊर्जा और विलक्षणता का अधिक लाभ समाज को मिल सके, सायद हम अभी भी मौन रहकर चमत्कृत अवसरों को खो देते हैं, आशा ही नही पूर्ण भरोसा है युग बदलाव की आहट लेकर आयेगा, मौन और फुनफूका वाली प्रवृत्तियों से निजात मिलेगी नया सवेरा हर एक की चौखट पर खड़ा होकर स्वछन्द प्रकाश विखेरेगा।
एक सकारात्मक जिद्द समाज की असहजताऔं को विराम लगा देती है, एक ब्यक्ति अपने साहस और दृढ निष्चय से अपने गाँव की विकट सँकरी गली को सड़क मे बदल देता है, यह शख्शियत है बृजेश बिष्ट।बृजेश जी कहते है फौज मे भर्ती होने के बाद जब भी मै छुट्टियों मे घर आता, मुख्य सड़क पर गाड़ी से उतरने के बाद सँकरी तंग विकट रास्तों से गाँव पहुँचता, गाँव पहुँचकर प्रधान और जिम्मेदार लोंगो से कहता कुछ तो कार्यवाही करो युग बदल गया है, बीमार और प्रसव पीड़ा मे बहू बेटियों को मुख्य सड़क तक पहुँचने मे भारी तकलीफ उठानी पड़ती है। हर बार जब भी छुट्टी आता रास्ते भर सोचता अब गाँव तक सड़क जुड़ गई होगी लेकिन जैसे ही गाँव पहुँचने के रास्ते पर पहुँचता हर बार रास्ता अधिक खराब मिलता, पंच प्रधान से पूछता वो कहते प्रस्ताव दिया है कार्यवाही होगी, हर बार की टालमटोल से मेरा भी जी भर गया।
आखिरकार ब्यवस्था से उम्मीद छोड़कर 2014 मे खुद के दम पर सड़क बनाने की सोची। शुरूआत मे मैने अपने गाँव के सभी लोंगो से यह बात साझा की, सभी ने हँसी मजाक उड़ाया। मै दु:खी तो था लेकिन मेरे हौसले बुलन्द थे और मै शुरूआत कर चुका था। पिछले वर्ष सेवानिवृत्ति के बाद मै दुगने उत्साह से इस काम मे लग गया। पहाड़ काटकर सड़क बनाने के पागल पन के कारण मेरे घर वाले भी मेरे से नाराज होने लगे, लोंगो ने मेरा खूब मजाक उड़ाया और मै दुगने उत्साह के साथ सड़क बना रहा था, मै लगातार लगा रहा और मेरी चट्टानी मेहनत ने वो कर दिखाया जो मेरी कल्पना थी, मै लगभग डेढ किलोमीटर सड़क बनाकर अपने गाँव को मुख्य सड़क से जोड़ चुका था। पैदल विकट पगडण्डी को मै सात फिट चौड़ा बना चुका था और इसमे छोटे वाहन चलने लगे। अब जब मेरी मेहनत से सड़क बन चुकी है तो सिस्टम और सरकारे यह विनम्रता से स्वीकार करती है वाकई इस गाँव को पहले ही सड़क से जुड़ जाना चाहिये था जैसी बात कह रहे हैं, साथ इसके सुधारीकरण की बात कही है।
सेना के मध्य कमान के चीफ लैफ्टीनैंट को मेरे काम की जानकारी हुई तो उन्होने मुझे सम्मानित किया।कई लोग मेरे काम की तुलना विहार के दशरथ मांझी से करते हैं। मुझे अपनी मेहनत पर गर्व है मेरा परिवार प्रसन्न है और गाँव के सभी लोग मेरे काम को सम्मान देते हैं अब एक इच्छा है सरकार इसे जल्दी पक्का बना दे अन्यथा मुझे फिर जुटना पड़ेगा। सैल्यूट बृजेश बिष्ट जी आप उन युवाऔं के लिये प्रेरणा श्रोत है जो सुविधाऔं का रोना रोते हैं और सरकारों के लिये आइना जो हर साल हर बार हर गाँव को सड़क से जोड़ने का नारा तो देती ही है लेकिन बार बार फिसड्डी हो जाती है। आज भी सड़क, स्कूल, दवाई जैसी सुविधाऔं की बाट जोहता हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड बहुत पीछे है। आयें मिलकर समाधान की छोटी छोटी पहल करें, क्या पता कितने बृजेश नई धुन गा रहे हों उनका साहस बढायें उन्हें बैचारिक और सम्भव सहयोग दें ताकि आने वाला कल अधिक सुस्जित और सँवरा हो, कुछ लम्हों के अंतराल के बाद आपको भी सुकून मिले इस नव पथ पर मेरा भी वैचारिक सम्भव सहयोग है।