कांग्रेस का भाजपा को वॉकओवर
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
पूरे देश में परवर्तन निदेशालय या इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट (इडी) के तहलके के माहौल में एक बार फिर लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं. इडी के चक्रचाल में खासकर विपक्षी दलों के नेताओं की वाट लगी हुई है, जो भी प्रभावशाली नेता है, वे किसी न किसी रूप में इडी के लपेटे में है. इडी का भय दिखाकर विपक्षी नेताओं को देश की सत्ताधारी पार्टी की शरण में शरणागत किया जा रहा है. कई एक्टिव मुख्यमंत्री चुनाव के दौर में जेलों में ठूंस दिए गए है. जिन नेताओं को सत्ताधारी पार्टी भ्रस्ठ व बेईमान कह रही थी, पार्टी ज्वाइन करते ही वे इमानदार हो गए. विपक्ष विहीन लोकतंत्र बनाने पर तुली, देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी आखिर किस लोकतंत्र की ओर इशारा कर रही है. इस बात पर मनन करते ही कहीं दूर एक खतरनाक दृश्य नजर आता है, जो रूस और इन जैसे तथाकथित नाम के लोकतान्त्रिक देशों की जनता की लाचारी को दिखाता है.
लोकतंत्र के नाम पर किसी भी उभरती जनशक्ति को कुचलने व साम, दाम, दंड, भेद अपनाकर उसको अपने पक्ष में लाने की परंपरा इस देश के स्वस्थ लोकतंत्र को बीमार बना रहा है. सारी सत्ता के केंद्र के शिखर में बैठे एक – दो तानाशाह जो बोली बोलते है. वही ढपली सत्ता के अंतिम पायदान पर बैठे पार्टी कार्यकर्त्ता को बजानी पड़ रही हो तो, समझ जाइये, खुद उस पार्टी का आतंरिक लोकतंत्र भी खतरे में पड़ा हुआ है. अब जिस पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र समाप्त हो चुका हो और यही हालात व देश के लोकतंत्र को बनाने के लिए किया जा रहा हो तो समझिये देश तानाशाही की ओर बढ़ चला है. अब नाम चाहे सैन्य शासन हो या लोकतंत्र. आज के इस कठिन दौर में देश की जनता मास हिस्टीरिया बीमारी की चपेट में आ चुकी है, जिसको अपना भला – बुरा कुछ भी समझ नहीं आ रहा. ऐसी ही स्थिति किसी ज़माने में जर्मनी सहित कई देशों की थी और आज भी है.
इसी प्रकाश में बात करते हैं अपने उत्तराखंड की जहाँ विपक्ष विहीन होते जा रहे माहौल के बीच लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं. देश की तर्ज पर यहाँ भी इंडिया गठबंधन तो बना है, लेकिन उसकी नाम से ज्यादा बखत नहीं है. उत्तराखंड क्रांति दल केवल नाम भर का संघठन रह गया है, जिनकी उनके नेताओं की छुद्र हरकतों की वजह से जनता लगातार नकारती जा रही है, जिसका एक प्रधान, वार्ड मेम्बर तक चुन कर नहीं आ रहा तो उनसे लोकसभा या विधानसभा की बात ही क्या करनी. बहुजन समाज पार्टी ने फिर भी अपना स्थान बरकरार रखा हुआ है. जो आने वाले लोकसभा चुनाव खासकर हरिद्वार में कुछ चुनौती देगा. सबसे बड़े बुरे हाल कांग्रेस के हैं, इडी का हथियार उत्तरखंड में भी बखूबी चलाया गया, हरक सिंह रावत को कोर्ट कचहरी के चक्कर कटवाकर लोकसभा चुनाव से बाहर करने की रणनीति पर काम किया गया, मजबूरन उनको अपनी बहू को कांग्रेस से इस्तीफा दिलवाना पड़ा.
बद्रीनाथ के कांग्रेस के चुने हुए विधानसभा सदस्य राजेंद्र भंडारी को कांग्रेस पार्टी की सदस्यता के साथ – साथ विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होना पड़ा. इसके पीछे के कारण चमोली जनपद की जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी के भ्रस्टाचार की पुरानी फाइलें खोद – खोदकर बाहर निकाली गयी. ज्ञात हो कि रजनी भंडारी, राजेंद्र भंडारी की पत्नी है. भले ही राजेंद्र भंडारी ने भाजपा ज्वाइन कर ली हो, वह अच्छी तरह जानते है, कि भाजपा राज्य अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के राज्य सभा सांसद बनने से शीट रिक्त होने व दुबारा चुनाव लड़ने के वक्क्त उनकी राह में कोई रोड़ा नहीं होगा. फिर दो – ढाई साल सत्ता की मलाई खाते रहेंगे. जितने भी कांग्रेस से भाजपा में आये नेता हैं, उनमें सबसे सटीक चाल राजेंद्र भंडारी ने चली है.
आपको पिछले टिहरी विधानसभा का किस्सा तो याद होगा ही, कि किस तरह किशोर उपाध्याय ने भाजपा के सिटिंग विधायक धन सिंह नेगी की शीट खुलेआम हड़प ली थी और धन सिंह को हवा भी नहीं लगी, ऐसी ही कहानी हो न हो गंगोत्री व पुरोला विधानसभा में देखने को मिले, जहाँ हाल ही में कांग्रेस के कद्दावर नेता विजयपाल सजवान व मालचंद ने भाजपा का दामन थाम लिया. गंगोत्री के वर्तमान विधायक सुरेश चौहान सीधे व सज्जन नेता है. विजयपाल के मुकाबले धनबल में कमजोर भी है. यही हालात पुरोला के विधायक दुर्गेश्वर लाल के भी हैं. जिस तरह का प्रयोग किशोर उपाध्याय ने टिहरी में किया था, यह प्रयोग भविष्य में गंगोत्री व पुरोला विधायकों के साथ भी संभव हो सकता है. चुनाव भले ही लोकसभा के हो रहे हैं लेकिन दल बदलने वाले नेता अभी से अगले विधानसभा के लिए गोटियाँ बिठाने लगे है. यही प्रयोग कुमाओं में भी हो रहा है.
लौटते है फिर लोकसभा चुनावों की ओर. भाजपा को इस लोकसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने वॉक ओवर दे दिया है, जिसके तथाकथित बड़े नेता लोकसभा चुनाव लड़ने से बचते रहे. कांग्रेस ने अपने उन नेताओं को लोकसभा का टिकट पकड़ा दिया, जिनको वे विधानसभा का भी टिकेट नहीं देती. जोत सिंह गुनसोला अपनी मसूरी सीट तक ही सक्रीय रहते रहे है. उनको टिहरी लोकसभा का टिकट दे दिया खानापूर्ति की तरह, इसी बीच बेरोजगारी आन्दोलन से उभरे युवा नेता बौबी पंवार ने भी टिहरी लोकसभा सीट से अपना नामांकन जोरदार तरीके से कर दिया जहाँ हजारो समर्थकों की भीड़ थी, ऐसा जोरदार नामांकन टिहरी से बौबी पंवार और हरिद्वार से उमेश शर्मा ने किया. बौबी पंवार को कांग्रेस से टिकट की पैरवी भी की गयी पर जब कोई संकेत नहीं मिला तो वह निर्दलीय ही नामांकन कर गए. कांग्रेस को यह मौका हाथ से नहीं जाने दिया जाना चाहिए था. महारानी का राजयोग अभी भी प्रबल बना हुआ है.
गढ़वाल लोकसभा सीट से तीरथ सिंह रावत की भाजपा ने बलि का बकरा बनाया, वो किसी भी अन्य सांसद के मुकाबले हमेशा जनता के बीच रहने वाले व ईमानदार छवि के नेता रहे है. मोदी – शाह का वरदहस्त होने के नाते व सत्ता के केंद्र में रहने का फायदा अनिल बलूनी को मिला, उनका मीडिया मैनेजमेंट शुरू से ही उनको दौड़ में बनाता रहा. दूसरी ओर उत्तराखंड की पाँचों लोकसभा सीटों में कांग्रेस ने यदि सही कैंडिडेट का सिलेक्शन किया तो वह गणेश गोदियाल ही है. भले ही मोदी के जहाज पर नय्या पार पाने हेतु भाजपा उत्साहित है, लेकिन ऐसे वक़्त में गणेश गोदियाल पुरे दमखम के साथ मैदान में उतर चुके है. गोदियाल जमीनी चुनावी लड़ाई के अनुभवी व जनता के साथ संवाद से जुड़ने वाले नेता है. अनिल बलूनी को गणेश गोदियाल को हलके में नहीं लेना होगा.
अल्मोड़ा सीट पर दोनों परंपरागत नेता आमने – सामने है. अजय टम्टा को स्वाभाविक बढ़त सत्ता व मोदी के करिश्में की है. नैनीताल सीट पर अजय भट्ट के सामने कोई बढ़ी चुनौती कांग्रेस पेश नहीं कर पा रही है. उत्तराखंड की पाँचों लोकसभा सीटों में सबसे हॉट शीट हरिद्वार की है, जहाँ सबसे बड़ा रोचक मुकाबला होगा. भाजपा ने अपने सबसे खांटी नेता रमेश पोखरियाल निशंक का टिकट काटकर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मैदान में उतारा है. लगातार हरिद्वार लोकसभा सीट से अपनी दावेदारी जताते रहे हरीश रावत ने, अंतिम दौर में अपने को चुनाव लड़ने के बजाय अपने पुत्र बीरेंद्र के लिए टिकट की पैरवी की. ज्ञात हो बिरेन्द्र रावत उत्तराखंड की राजनीती के कोई लोकप्रिय चेहरे नहीं हैं, उनसे ज्यादा सक्रीय उनके भाई आनंद रावत है, जो ज्यादा सक्रीय रहते है व उनकी अपनी एक अलग पहचान भी है.
हरक सिंह रावत भी यहाँ से दावेदारी जताते रहे है लेकिन इडी के लपेटे में आने के बाद वो फिलहाल गुमनाम हैं. हरिद्वार लोकसभा सीट के चुनाव को उमेश शर्मा जो निर्दलीय विधायक भी है ने रोचक बना दिया है, यहाँ से बसपा भी चुनावी मैदान में है. यहाँ पहाड़ बनाम मैदान का खेल शुरू होने वाला है. हरिद्वार एक ऐसी जगह है जहाँ का इतिहास है कि, यहाँ से किसी भी प्रदेश का नेता सांसद, विधायक बनता रहा है. उमेश शर्मा इस कड़ी का नया नाम है. उमेश शर्मा सबसे ज्यादा डैमेज कांग्रेस को करेगा. कुलमिलाकर फिलहाल अगर कोई चमत्कार न हो तो, उत्तराखंड की पांचों लोकसभा की सीटों पर भाजपा का पलड़ा भारी है. कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियाँ सिर्फ औपचारिकता के लिए ही चुनाव लड़ रही हैं. उत्तराखंड के लोकसभा चुनावों में काफी सालों बाद ऐसी परिस्थितियां बनी है, जहाँ सत्ताधारी पार्टी को चुनौती देने वाले न तो नेता बचे है और न ही पार्टियाँ.
फोटो साभार – भारत चौहान