जोशिली मर्दानी कवितायें
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
मर्द का बच्चैन गढ़वाळी कविता पुस्तक का अगर हिन्दी में नामकरण किया जय तो वह कुछ इस प्रकार हो सकता है – मर्द के बच्चे या मर्द के बच्चों। हास्य ब्यंग्य की कविता पुस्तक का आना गढ़वाली व आंचलिक साहित्य की कभी कभार गुदगुदने व चोट मारने वाली मारक रचनाओं को लिखने के लिए भी मर्द का बच्चा बनना पड़ता है।
हास्य ब्यंग्य लिखना, चुटीला, गुदगुदाने व चोट मारने वाली मारक रचनाओं को लिखने के लिए भी मर्द का बच्चा बनना पडता है। कवि सतीश बलोदी “शिवचरण” ने अपनी नई पुस्तिका मर्द का बच्चैन से यह भी साबिता किया है कि वे गढ़वाली ब्यंग्य कविताओं के नये बादशाह हैं।
पुस्तक के कवर पृष्ठ पर पुराना टिहरी व डूबती टिहरी के दो चित्र उत्तराखण्ड की दिशा और दशा का बखान कर पुस्तक के अंदर झांकने उलटने-पलटने को मजबूर कर देती है। इस पर कविता की ये पंक्तियाॅ जब उदृत होती हैं तो उसे भी पढ़ने का मन करता है-
ज्व टीरी भारतौ नक्शा बणौंदी थै
व टीरी डुबै दिनि मर्द का बच्चैन
अर भारता नक्शा बिटि टीरिकु
नौ हि मिटै दिनि मर्द का बच्चैन।
पुस्तक का अद्योपान्त अध्ययन करते करते कई बार हंसा हॅू, कई बार दिल को छेदने वाली टीस का सामना करना पडा़। कई बार हाथों की मुट्ठियाॅ भिची, क्रोध की ज्वाला फूटी। क्रान्ति का अउ्घोष करने का मन किया वहीं बदलाव की बयार, फिर बसन्त आता है। मर्द का बच्चैन कविता पुस्तक पढ़ते हुये आप कई भावो, भाव भंगिमाओं से होकर गुजर जाते है। और विशेषकर जिन्होंने पहाड़ों के जन जीवन को जिया हो तो उनके सामने कविता विखर कर चलचित्र सिनेमा बन जाती है। आंचलिक कविताओं का दरअसल अकाल पड़ा हुआ है। लेकिन इस बीच कुछ ऐसे कवि भी उभर कर सामने आये है जेा भावनायें जगाते हंै। अपनी आंचलिक मिट्टी से जनी कविताओं से पाठकों को चैकाते है। सतीश बलोदी जैसी प्रतिभा के धनी जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू की कविताओं का पहाड़ और सतीश बलोदी का पहाड़ एक जैसा ही लगता है। गढ़वाली कविताओं में उपरोक्त दो सम सामयिक रचनाकारेां का एक सा उभरना एक सुखद अहसास देता है मै भूल न जाऊॅ इसलिए जिज्ञासू जी का जिक्र आवश्यक था।
मर्द का बच्चैन कविता हास्य ब्यग्य की जोे शशक्त रचनायें सतीश जी ने रची है उसको कई बार मै दूसरी ओर से पलट कर देखता हॅू तो पाता हॅू कि अगर इन कविताओं का हास्य ब्यंग्य का रूपान्तरण हिन्दी में हो तो आधुनिक ब्यंग्य कविता में सतीश बलोदी के अन्दर पूरी सामथ्र्य है कि खुद को मर्द का बच्चा साबित कर सकेगा। मैने जान बूझकर सारी कविताओं का मर्म या जिक्र यहाॅ इसलिए नहीं किया जिससे कि आपके मन मे बना रहस्य न टूट जाय। कसम से एक समग्र पहाड़ आपके सामने दहाड़ता है,ै आपको चूनौती देता है, आप स्वयं को कविताओं के ही वातावरण में ढ़ल जाने देते हो। नदी की धारा में बहते जाने का मन करता है सतीश भाई को ढे़रों बधाईयाॅ व भविष्य के लिए शुभकामनायें।
पुस्तक का नाम “मर्द का बच्चैन”
लेखक/कवि/ब्यग्यकार- सतीश बलोदी “ शिवचरण ”
पृष्ठ-44
मूल्य-60 रू0 प्रथम संस्करण 2013
प्रकाशक-विनसर पब्लिशिंग कं0 देहरादून।