January 18, 2025



हरियाली कांठा प्रतिबंधित क्यों ?

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जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’


रुद्रप्रयाग जनपद स्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ का मंदिर हरियाली पर्वत की चोटी पर लगभग 2000 मीटर से अधिक ऊँचाई पर है. इसे हरियाली कांठा के नाम से भी जाना जाता है. धनपुर और रानिगढ़ पट्टी के मध्य में स्थित, इस मंदिर से स्थानीय लोगों की सदियों से आस्था जुड़ी हुई है. हरियाली देवी का एक प्राचीन मंदिर जसोली गांव में भी है, जहाँ लोग वर्षभर माता के दर्शनों के लिए आते रहते हैं. जसोली गांव के मंदिर में दर्शन की अनुमति महिला – पुरुष दोनों को है, लेकिन हरियाली पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर व जंगल में प्रवेश की अनुमति महिलाओं को नहीं थी. इस परंपरा का पालन सदियों से किया जा रहा है. अब इसका क्या कारण रहा होगा, इस पर स्थानीय लोगों व धर्म से जुड़े विद्वानों में अलग-अलग मत है. कोई महिलाओं की अ-पवत्रिता की कहानियां बताता है तो कोई कुछ? आखिर माता कैसे अ-पवत्रित हो सकती है? इस पर आगे चर्चा करूँगा, दरअसल यह क्षेत्र पवित्र देव वन का इलाका माना जाता रहा है. हाल ही में इस बात की चर्चा है कि, हरियाली पर्वत स्थित मंदिर में भी महिलाओं को प्रवेश की अनुमति मिले. इस पर लोगों में मत भिन्नता है. कोई पक्ष में है तो कोई विपक्ष में.

हरियाली मंदिर से जुड़े हक – हकूक चार पट्टियों के दर्जनों गांवों में है ये पट्टियाँ हैं, चलणस्यूं पट्टी, बछड़स्यूं पट्टी, धनपुर पट्टी व रानीगढ़ पट्टी. किसी जमाने में यह इलाका धनधान्य व आर्थिक रूप से सक्षम व शत्रुओं से सुरक्षित माना जाता था. नेपाल के आक्रमण जो ‘गोर्खयाणी’ के नाम से प्रसिद्ध है, के समय हरियाली देवी की यह चोटी व घना जंगल स्थानीय ग्रामीणों को सुरक्षा प्रदान करता था. इस चोटी से जहाँ अलकनंदा की घाटी में कुछ ही घंटों में पहुंचा जा सकता था, तो वहीँ दूसरी ओर नयार घाटी, व तीसरी ओर ढूधातोली की पहाड़ियों से होकर रामगंगा व आटागाड की घाटी पहुंचा जा सकता था. इस लिहाज से हरियाली देवी पर्वत श्रृंखला एक रणनीतिक इलाका था.


इतिहास में यह भी दर्ज है कि दूधातोली के भैंस पालक इस इलाके से होकर रुद्रप्रयाग की गुलाबराय की चट्टी में यात्रियों व दुकानदारों को घी बेचने आते थे. तब इनको स्थानीय लोग “पगवाल” के नाम से पुकारते थे. गढ़वाल राजशाही के दौरान इस इलाके सहित अन्य इलाकों में चौधरी जाति के खान व खदान विशेषज्ञों को यहाँ लोहा, तांबा व सोने की खदानों से अयस्क निकालने के लिए बुलाया गया था. जो तबसे यहीं के निवासी हो गए. इन खदानों से गढ़वाल राजशाही को जबर्दस्त राजस्व की प्राप्ति होती रही. लोहा, तांबा व सोने की खदानों का विवरण एटकिन्सन के गजेटियर व डॉ. शिव प्रसाद डबराल ‘चारण’ व गढ़वाल के इतिहास में दर्ज है.  इन धातुओं से स्वर्णाभूषण, बर्तन, कृषि औजार, युद्ध के हथियार बनाये गए थे. इन खदानों में धातुओं को गलाने लिए वनों का जबरदस्त दोहन किया गया था. बाद में यह इलाका ब्रिटिश गढ़वाल में शामिल हो गया, कुछ समय तक खदानों का काम चला लेकिन धीरे-धीरे बंद हो गया व इस पेशे से जुड़े लोग आम ग्रामीणों की तरह कृषि-पशुपालन से अपनी जीविका चलाने लगे.


हो सकता है जंगलों के दोहन को सीमित करने के उद्देश्य से हरियाली मंदिर के चारों ओर के इलाके को, हरियाली माता के नाम पर किसी भी प्रकार के जंगल दोहन से बचने के लिए इसको पवित्र इलाका या देव- वन घोषित किया गया होगा. चूँकि महिलाओं का वनों से गहरा नाता रहा है, घास, चारे – पत्ती के लिए महिलायें हरियाली के प्रतिबंधित जंगल न जायें, इसलिए महिलाओं को मासिक धर्म, अ-पवत्रिता, देवी माँ का भय दिखाकर इसको परंपरा बना दिया गया होगा. उपरोक्त बातों का कोई लिखित प्रमाण व तथ्य उपलब्द नहीं है. मानवविज्ञान के शोध जर्नल ‘मानव’ में प्रकाशित शोधपत्र में मानव वैज्ञानिक प्रो. पी. सी. जोशी व शोधार्थी भरत पटवाल ने जिक्र किया था कि, सामजिक परंपरा व संस्कृति के माध्यम से पारिस्थितिकी व पर्यावरण का संरक्षण कैसे किया जा सकता है, हरियाली का पवित्र वन इसका विशिष्ठ उदाहारण है.

महिलाओं के हरियाली चोटी के मंदिर में प्रवेश निषेध के और भी कई कारण हो सकते हैं. पहला कारण महिलाओं की सुरक्षा, चारों पट्टियों के गांवों से पैदल चलकर सांय व रात्रि तक ही मंदिर पहुंचा जा सकता था. यानी आपको रात्रि विश्राम मंदिर में ही करना मजबूरी थी, मंदिर परिसर में रात्रि विश्राम के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. पानी मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर नीचे था, भोजन पकाने की भी कोई व्यवस्था नहीं थी, यात्री पानी ढ़ोकर व चाय जैसी व्यवस्था ही कर पाता था. रात भर खुले में पेड़ों के नीचे आग जलाकर रात काटनी पड़ती थी, आज भी ऐसा ही है. मंदिर परिसर में इतनी जगह नहीं है कि वहां भारी भीड़ जमा हो सके. मुश्किल से सौ-दो सौ लोग ही वहां खड़ा हो सकते है. उस आदिम दौर में पट्टियों में ऐसे मेले, उत्सवों के अवसर पर महिलाओं के पट्टी की  सीमा लांघने पर अपहरण कर दिया जाता था. हो सकता है इन सब परिस्तिथियों ने उस दौरान के ग्रामीणों को इन सब समस्याओं से निजात पाने व आपसी जन – संघर्षों से बचने के लिए, देवी माँ के नाम का उपयोग कर एक सामाजिक पुलिसिंग की पद्धति विकसित हुई होगी. उस जमाने के हिसाब से यह अच्छा ही निर्णय रहा होगा, तभी तो अब तक भी लोग हरियाली देवी की परम्पराओं को मानते आये है.


महिलाओं का मंदिर में प्रवेश क्यों नहीं ?

समय बहुत बदल चुका है. अब यह पूरा इलाका सडकों से जुड़ चुका है, संचार, विद्युत, पेयजल व रात्रि विश्राम हेतु संसाधन उपलब्ध है. जब महिलाएं जसोली गांव स्थित मंदिर में माता के दर्शन कर सकती है, तो कुछ किलोमीटर दूर चोटी वाले मंदिर मैं क्यों प्रवेश से वंचित हों ? पाठकों को याद होगा कि, नंदा राजजात यात्रा में भी वाण गांव से आगे जाने पर प्रतिबंध था. जिसके कुतर्कों को गीता गैरोला जैसी क्रन्तिकारी सामाजिक कार्यकत्री व उनकी महिला सहयोगियों ने 2000 में, नंदा राजजात यात्रा में भागीदारी कर, भविष्य की यात्राओं के द्वार महिलाओं के लिए खोल दिए थे. यह लेखक भी उनके साथ उस यात्रा का गवाह है. सदियों से देश व दुनियां की महिलाएं पर्वतों की चोटियों को फतह करती रही है. हर्षवंती बिष्ट ने नंदा देवी पर्वत पर आरोहण किया तो, बचेंद्रीपाल ने एवरेस्ट फतह कर दुनिया अपने नाम कर दी. और अब उस परंपरा को नयी पीढ़ी बखूबी आगे बढ़ा रहीं है.




हरियाली देवी एक उभरते स्थानीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता है. यह ट्रैकिंग रूट प्रकृति प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बन सकता है. 1994 में मैंने ‘मोनाल क्लब’ के तहत गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुछ अध्यापकों व छात्रों जिनमें दो छात्राएँ भी थी, के साथ रुद्रप्रयाग, बरसू, खेड़ी व ग्वेफ़ड होकर हरियाली देवी की यात्रा, इस इलाके में स्थानीय पर्यटन संभावनाओं को टटोलने के लिए की थी. यहाँ चारों ओर से ट्रैकिंग की जा सकती है. पहला रुद्रप्रयाग मुख्य बाज़ार से, दूसरा घोल्तिर- जसोली – कोदिमा, तीसरा चलणस्यूं व  बछड़स्यूं पट्टी तथा चौथा गैरसैण की ओर से भरारिसैन – दूधातोली होकर हरियाली पहुंचा जा सकता है. रोमांचकारी पर्यटन में एक शब्दावली है, चाइल्ड ट्रैक, हरियाली से जुड़े दो ट्रैक ऐसे ही हैं. हरियाली पर्वत श्रृंखला से हिमालय की भब्य चोटियाँ, सूर्योदय व सूर्यास्त के बिहंगम दृश्य, श्रीनगर, पौड़ी आदि शहर व रात को जगमगाते सितारों के बीच आप स्वयं को एक अलोकिक संसार मैं पाते है. हरियाली पर्वत माला की ट्रैकिंग से  इन अनछुए इलाकों में पर्यटन रोजगार बढ़ने की अपार संभावना है. सिमित मात्रा में व मंदिर के नये – नियमों का निर्माण कर महिलाओं के लिए भी मंदिर के द्वार खोले जाने चाहिए. हरियाली मंदिर परिसर के निकट पेयजल, शौचालय, प्रकाश, टेंट व आवास की आवश्यक सुविधाएँ जुटाई जानी चाहिए व निकट के गांवों में होमस्टे व कैम्पिंग सुविधाएं हों तो सोने पर सुहागा. निश्चित रूप से चाहे पुरुष हो या महिला सभी को नियमों का अनुपालन करना ही होगा. बाकी निर्णय जनता – जनार्दन पर.