January 18, 2025



रिक्त पड़ी भूमि का सदुपयोग

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शैलेन्द्र सिंह नेगी


दीपावली अवकाश के दौरान हिल डेवलपमेंट मिशन के निदेशक श्री रघुवीर सिंह बिष्ट जी के साथ मुझे, परम आदरणीय श्री भोले जी महाराज और माता श्री मंगला जी के शिवांश फॉर्म मियांवाला / बालावाला भ्रमण का अवसर मिला। इस अवसर पर फार्म इंचार्ज श्री मानस जी एवं श्री नीलमणि आनंद जी का सहयोग प्राप्त हुआ। शिवांश फॉर्म में ऑर्गेनिक फार्मिंग का मॉडल तैयार किया गया है। लगभग 75 बीघा से अधिक भूमि में ऑर्गेनिक फार्मिंग करते हुए फल, फूल एवं सब्जी उत्पादन किया जा रहा है। फार्म में 100 से अधिक कर्मचारी कार्यरत है। साथ ही यहां पर आश्रम भी है। निशुल्क भोजन व्यवस्था उपलब्ध है। पारंपरिक बीज संरक्षण एवं नर्सरी विकास का कार्य भी किया जा रहा है। मिश्रित प्रजाति की खेती की जा रही है। पॉलीहाउस एवं ओपन फार्मिंग के कॉन्सेप्ट पर साथ-साथ काम किया जा रहा है। सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन विधि को अपनाया गया है, ताकि कम से कम जल से अधिक से अधिक सिंचाई का लाभ लिया जा सके। फार्म में गोबर, हरी पत्तियां एवं भूसा को मिश्रित कर खाद बनाई जाती है तथा इसी का उपयोग किया जाता है।

भ्रमण के दौरान जानकारी दी गई कि इस फार्म से उत्पादित फल, सब्जी एवं फूलों से आश्रम का खर्च वहन हो जाता है। हंस फाउंडेशन के स्तर से आयोजित होने वाले विभिन्न भंडारों के लिए, सब्जी क्रय करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 100 से अधिक लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। वास्तव में खाली पड़ी हुई भूमि के सदुपयोग एवं ऑर्गेनिक फार्मिंग का यह मॉडल अत्यंत सराहनीय एवं अनुकरणीय है। स्थानीय भ्रमण के दौरान मैंने पाया कि देहरादून क्षेत्र में बालावाला, मियांवाला, डोईवाला, भानियावाला, प्रेमनगर, सहस्त्रधारा रोड, शिमला बायपास आदि क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में सैकड़ो बीघा कृषि योग्य भूमि बंजर पड़ी हुई है। ऐसा लगता है कि किसानों ने अपनी खेती योग्य भूमि को या तो खाली छोड़ दिया है या प्रॉपर्टी डीलर्स एवं रियल स्टेट को विक्रय कर दिया है।


अधिकांशत यह भी देखने में आता है कि शहरीकरण की प्रवृत्ति बढ़ने के कारण कृषकों की उपजाऊ कृषि भूमि को प्रॉपर्टी डीलर्स एवं बिल्डर द्वारा खरीद कर कालोनी काटी जा रही है तथा प्लॉट बनाकर बेचे जा रहे हैं। कुछ लोग इन पर मकान बना लेते हैं जबकि कुछ लोग इन्वेस्टमेंट के उद्देश्य से या भविष्य में आवासीय प्रयोजन से इन प्लाटों को खाली रखते हैं। यह भी देखने में आता है कि खाली पड़े हुए यह प्लॉट स्थानीय लोगों के लिए मुसीबत बने रहते हैं। इनमें या तो लोग कूड़ा डालते हैं या अपने पालतू कुत्तों को घुमाते हैं तथा उनको शौच करवाते हैं या वहां पर झाड़ियां उगी रहती हैं या फिर गंदा या बरसात का पानी इकट्ठा रहता है। इन खाली प्लॉट में मक्खी एवं मच्छर आदि होने से बीमारियों का खतरा बना रहता है।


मेरी जानकारी के अनुसार वर्तमान में हमारे स्थानीय निकायों ,राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा खाली प्लॉट पर कोई कर आरोपित नहीं किया जाता है। खरीददार अपने प्लॉट को खाली छोड़ देते हैं और उनको इस खाली प्लॉट का कोई कर नहीं चुकाना पड़ता है। अधिकांश भूमि विवाद, विशेष रूप से कब्जा के विवाद इन्हीं खाली प्लॉट पर देखने को मिलते हैं। किंतु कई देशों में इस प्रकार के प्लॉट पर टैक्स के साथ ही इसके सौंदर्यकरण तथा रखरखाव का उत्तरदायित्व निर्धारित होता है। वर्तमान में नितांत आवश्यकता है कि शहरों में बंजर भूमि एवं आवासीय प्लॉट के रखरखाव का उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाए। प्रत्येक खाली प्लॉट पर टैक्स लगाया जाना एवं प्लॉट स्वामी का उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाना अति आवश्यक है।

ऐसा करने से अवैध कब्जे के विवादों में कमी आएगी। साथ ही टैक्स भुगतान करने का उत्तरदायित्व निर्धारित होने पर प्लॉट स्वामी द्वारा उस प्लॉट का, किसी ने किसी रूप में उपयोग किया जाएगा जिससे आय वृद्धि होगी। कॉलोनी की सुंदरता बढ़ेगी। अनावश्यक कूड़ा डालने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी। कॉलोनी में चोरियां रुकेगी। प्लॉट स्वामी खाली प्लाटों में ऑर्गेनिक फार्मिंग करते हुए किचन गार्डनिंग कर सकेंगे। फल, फूल या सब्जी उत्पादन किया जाए तो फल सब्जी के दामों में कमी लाई जा सकती है।


इसके साथ ही यह भी उचित होगा कि स्थानीय निकायों एवं स्थानीय प्रशासन के द्वारा संबंधित प्लॉट स्वामी के साथ अनुबंध कर रिक्त भूमि को उपयोग में लाया जा सकता है। शहरी क्षेत्र में पार्किंग की समस्या से निजात पाने के लिए इस रिक्त भूमि का उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही कॉलोनी में खेल मैदान, पार्क एवं अन्य उपयोग के लिए भी इन भूमियों का उपयोग करने हेतु लोकल रेसिडेंट सोसाइटी को विचार करना चाहिए। इस दिशा में विचार करने की आवश्यकता है.

शैलेंद्र सिंह नेगी, उप जिलाधिकारी घनसाली एवं प्रतापनगर