बाम्पा पुरातत्व
कुलदीप बम्पाल
1-3 … बाम्पा में यह मंदिर बने शायद पांच साल से अधिक समय गुजरा नहीं होगा। पर इस बार पंचनाग विदाई के दिन साक्ष्य 1 से 3 को पाकर कोतुहल और आश्चर्य के साथ एक खुशी भी हुई कि साक्ष्य के साथ मेरे गांव का इतिहास एक तारीख के काल में स्थापित हो पा रहा है वह काल है नागवंशि काल। चाहे वह भाषा के रूप में नाग भाषा परिवार का काल हो या भारतीय स्थापत्य कला के प्रमुख तीन मंदिर शैली में से पहला नागर मंदिर निर्माण शैली हो। नागर शैली हिमालय से विंध्य पर्वत माला मतलब नर्मदा नदी के उत्तर में, द्रविड़ शैली कृष्णा नदी से कन्या कुमारी तक शेष बेसर शैली दोनों शैली का मिश्रण – नर्मदा के दक्षिण से कृष्णा नदी के उत्तर में मिलता है। नागर मंदिर निर्माण शैली में मंदिर के टाॅप में कलश के नीचे जो आमलक दिख रहा है वह नागर शैली के प्रमुख पहचानों में से एक है।
दूसरा जो पानी का नौला है यह पहाड़ी मंदिर परिसर का अंग है चूंकि नागर शैली मंदिरों में जलाशय नहीं होता है जिसकी कमी नौला पूरा करता है। तीसरा फैला मंदिर के दरवाजे के नीचे जो नक्काशीयुक्त पत्थर लगा है वह प्राचीन मंदिर का अवशेष है। पूर्व ग्राम प्रधान धम्मू भाई और मंदिर के वास्तुनियोजक राकेश पाल से इन तीनों के बारे में जानकारी लेने से यह जानकारी मिली कि आमलक और नक्काशीयुक्त पत्थर पूर्व से ही मंदिर परिसर में पडे हुए थे। मतलब इन्हें कहीं से लाया नहीं गया। नौला तो हम बचपन से देखते आये है जो शायद मलारी गाँव से ऊपर कहीं और गांवों में नहीं मिलता है। कुल मिलाकर इस मंदिर के बनने और पुराने मंदिर से पहले यहाँ प्राचीन काल में कभी भव्य नागर शैली मंदिर रही है जिसके अवशेष आज के मंदिर के पृष्ठभाग में भूसंख्लन में दबे होने का ईशारा करती हैं। यह पुरातत्व खोज करने के लिए पहला प्रमाण सा प्रतीत दिखता है जैसे सिंधु घाटी सभ्यता और बौद्ध संस्कृति की खोज करने के लिए अंग्रेजो को धरातल पर बिखरे एक खास आकार प्रकार के पुराने ईटों ने मजबूर किया।
4… सबसे पहले आप मेरी 2 दिसम्बर, 22 की पोस्ट पढ़े। पूर्वोत्तर आदिवासी संस्कृति को जानने के सिलसिले में दो यात्रा कर चुका हूँ। साथ में भोपाल के मानव संग्रहालय का चार पांच बार दौरा कर चुका है। वहाँ भी मैंने हिमालयन आदिवासी भवन निर्माण शैली में इसका एक खास स्थान और महत्व को महसूस किया है। उसी सिलसिले में मुझे इस प्रकार का भवन एक अंग फानम में पाया उसके बाद मलारी में भी देखा। इस बार अपने बाम्पा में भगत सिंह नेगी के पुराने मकान से निकला और बाहर पडा देखा। तीनों पर एक विशेष नक्काशी देखने को मिला, जो सभी मकान के एक विशेष स्थान पर प्रयोग होते हैं। उत्सुकता में इसका नाम जानने के लिए गाँव में अपने बडे भाईयो से पूछा तो उन्होंने टनै और नटै दो शब्द बताए। लेकिन कन्फर्म नहीं थे दोनों में एक कौन सा है। मां से पूछने पर पता चला कि इसे नटै कहते हैं। इसका महत्व के बारे में पूछने पर आगे कुछ न बता सकी। तीनों गाँव मिले नटै में एकरूपता होने से यही आभास होता है कि पूर्वोत्तर आदिवासियों की भांति अपनी संस्कृति का परिचय देने के लिए इस प्रकार की नक्काशी मकान के आधार अथवा केंद्र स्तम्भों किया जाता है। पूर्वोत्तर के भाईयों से अनुरोध है कि मुझे दुरस्त करने की कृपा करें।
लेखक बौद्ध अध्येता हैं