November 21, 2024



मै उत्तराखण्ड हूँ

Spread the love

महावीर सिंह जगवान 


मै उत्तराखण्ड हूँ, जिस हिमालय को सम्पूर्ण भारत मुकुट कहता है वह मेरा ही अंश है.


जिस पावन जीवनदायिनी गंगा को पूरा विश्व माँ कहकर दुलार देता है उसका उद्गम भी मैं हूँ, भारत ही नही विश्व मे उत्पन्न कार्वन का सबसे बड़ा अवशोषक मै ही हूँ, कंकर मे शंकर और माटी मे चंदन का दृष्यावलोकन मेरी धरा पर ही संभव है, आसमान को छूते चाँदी सदृश चोटियाँ, दूर दूर तक फैले मखमली बुग्याल, फूलों से सजी धरती और सुरम्य सरोवर, चहुँ ओर हरियाली, नाना प्रकार की बनस्पतियाँ, पशु पच्छियों का मधुर कलरव, कोष पर पर बदलता पानी और मानव बोलियाँ कितनी विवधता को समेटे हूँ मै, प्रकृति से संवाद और प्रेरणा का पावन अहसास मेरी गोद मे ही संभव है, कोई कुछ भी कहे मेरे लाडलों ने भारत ही नहीं विश्व के कोने कोने मे अपने हुनर जज्बै और हौशले का परिचय दिया है, यह मुझे सदा गौरवान्वित करता है।


मेरे जन्म पर मै उत्साहित थी मेरे वो अपने जो देश और विदेशों को सँवारने के हुनर को रखते हैं उनके हाथों से मै भी सँवरूगी और मेरी धरा भी, मेरे अपने वो लाडले भी जिनसे वजूद है मेरा, मेरे खेत खलिहान और आँगन संग वन उपवन भी सम्मपन्नता से उभरेंगे। हर हाथ को काम और उसका उचित दाम के साथ स्वाभिमान से जी सकेंगे मेरे वो अपने जो विकट और दुरूह जीवन भी जीते हैं विषम भौगोलिक परिस्थितियों मे फिर भी रात दिन मेहनत कर सँवारते हैं मेरी धरा को और अपने छितरे जीवन को। बार बार एक पीड़ा सालती थी दो जून की रोटी के जुगाड़ मे दर दर भटकते मेरे कई लाडले सदा के लिये गुम हो जाते थे चकाचौंध की दुनियाँ में, अब घरों मे मुस्कराहट होगी, तिबारियों मे किलकारियाँ गूजेंगी, नन्हें कदमो की लम्बी लाइने कभी स्कूल तो कभी गाँव के एक छोर से दूसरे छोर तक हँसते खेलते मेरी धरा को हर्षित पुलकित करते रहेंगे। छोटी बड़ी तकलीफों का समाधान अपने गाँव कस्बों मे हो जायेगा, दूर लखनऊ की विकास रूपी टार्च का उजाला पहाड़ों की जड़ों से टकराकर वापस लखनैय्या साहबों की जेब मे चला जाता था, अब यह विकास का उजाला सूरज की रोशनी की तरह मेरे कण कण रज रज को प्रकाशित करेगा। 

मुझे उन लाडलों पर सदा गौरव होता है जिनके हौशलों त्याग और बलिदान से विश्व युद्ध हो या आजादी या दुश्मन राष्ट्रों से युद्ध में विजय पाता मेरा भारत । हाँ उनका भी स्मरण है जो आज भी कैलाश के छोर से क्षीर सागर की सीमा तक प्रहरी हैं भारत के। मेरे लिये वो सदा अविस्मरणीय हैं और रहेंगे जिनके संघर्ष त्याग और बलिदान से नवोदित राज्य उत्तराखण्ड बना और मुझे गौरव का अहसास हो रहा है मैं उत्तराखण्ड हूँ कहने मे।
मै बनते ही उलझ चुकी हूँ दो सवालों के फेर मे काश कोई सुलझा दे समय रहते ।
गैरसैंण 
पलायन
यदि मै हिमालयी राज्य हूँ तो मेरी आत्मा गैरसैंण मे ही बसती है, इसके पीछे कोई यह न बहकाये मुझे भेद है अपने किसी कोने से, मेरे अपने जो संघर्षों में जान तक गवाँ बैठे थे उनका सपना भी यही था।मेरी बनावट दुरूह और विकट है मेरी बसासत विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाली है,मै राष्ट्रीय दृष्टि से सीमान्त क्षेत्र हूँ और अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर संवेदनशील हिमालय, मेरा साठ फीसदी से बड़ा भू भाग वनो से आच्छादित है, रोजगार और मौलिक अधिकारों से वंचित थी इसलिये तो मेरे अपनो के संघर्ष को लक्ष्य मिला, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में मेरा भी सृजन हुआ, ताकि सँवरे यहाँ की वादियाँ, मुँह चिढाते सवालों का समाधान हो, जो पले बढे मेरे आँगन मे उनसे ही सँवरे मेरा भाग्य भाग्य विधाता बनकर। दून की वादियाँ भी मेरी हैं और गैरसैण की पावन माटी भी मेरी, सत्रह वर्षों को दून के भरोसे छोड़कर मै अधिक ब्याकुल और संकट मे पड़ गई हूँ, लखनऊ से आये लखनैय्या नेताऔं ने मेरी किस्मत ईमानदारी से लिखने मे बड़ी कंजूसी की, एक चौथाई मैदान विलायत बना दिया और तीन चौथाई भूभाग वीरान बनाकर चौराहे पर खड़ा कर दिया। मेरे अपने जिनके खातिर मैं वजूद में आई थी वही पराये बनकर मुझे चिढा रहे हैं, छोटे छोटे पुष्प सदृश नौनिहालों को अंगुली पकड़कर अ आ सिखाने वालों का संकट बढा है, उनके प्रिय पिता दो जून की रोटी की तलाश मे हजारों मील दूर निकल रहे हैं और इनका कारवाँ बढ रहा है, रात दिन की मेहनत पर बन्दर सुँवर और नीति रीति डाका डाल रही हैं, हुचकी तक की दवाई कोषों दूर मिलती है, जो बड़े मातहत मजबूरी मे चढे भी हैं पहाड़ उनसे समाधान की पुड़िया खुलती नहीं, मेरे वन की कस्तूरी संकट में है मोनाल घट रहे हैं, शाकाहारी और माँसाहारी जंगली पशुओं का सन्तुलन विगड़ा है, खेत खलिहान बंजर हो रहे हैं, ताल सरोवर बुग्याल वन उपवन सिकुड़ रहे हैं, हिमालय की ऊँची चोटियों से घाटियों तक खिलते गुलाब सदृश गाँव अब वीरान और खण्डहरों के बसेरे बन रहे हैं, विकास की हर बात जैसे बेइमानी सी लगती है, सत्रह साल पूरे हो गई यह तो मै अच्छी तरह बूझ गई दून की विधान सभा ने यहाँ के विधायकों की कोठियों का साइज भले ही बढा दिया हो लेकिन जिस सवाल के समाधान के लिये यह राज्य बना था उस सवाल के जबाब पर सब कुम्भकर्णी नींद मे ही सो रखे हैं।


कई पढे लिखे मेरे अपने कहते हैं क्या है गैरसैंण मे और कैसे बढेगा कारवाँ भराड़ी सैंण से विकास का सायद वह सब भूल गये उनके बाप दादा ने कैंसे कुछ न होकर भी सँवारा उनको जिस बड़ी इमारत की ऊपरी मंजिल से इठराते हवाई बातें करते हैं काश उन्हे यह भी देखना चाहिये हमारी नींव कौन हैंऔर कैंसे बनी, उनके पास तब कुछ न था फिर भी इस लायक बनाया मेरे अपनो ने उनको। कोई बूझे या न बूझे दून की पहेली का सच कहूँ दम घोटा जाता है मेरा दून की विधान सभा हो या सचिवालय में, मेरे अपनो की रोजी पर डाका पड़ता है, मेरे अपनो की छात्रवृत्ति पराये निगल जाते हैं, विकास का सपना पहाड़ नहीं चढता क्योंकि जो बुनते हैं वो भी मैदान मे, जो सपने को धरातल पर उतारते हैं वो भी मैदान मे और जिनके लिये यह सपना बुनना है उनके ठेकेदार भी मैदान मे सच कहिये ये सब मिलकर विकास के सपने के चीथड़े उड़ाते हैं और मलाई खाकर सड़ा गला विकास पहाड़ पर थोपते हैं, इन्हें क्या पता हिमिलय की वादियाँ वर्फ से लकदक हो गई होंगी, पशुओं के लिये चारे का संकट बढा होगा, खेत खलिहान शुरूआत मे तो नमी पाकर हँस रहे होंगे लेकिन बिगड़ता मौसम खेत की फसल से बुआई का बीज तक न दे पायेगा, इलाज के लिये यूपी की तरह भटकना होगा तो बच्चो और अभिवाहकों के माथे पर विना गुरूजी के पढाई का बल होगा, कृषि उद्यान नीतियों से भले ही एक चौथाई मैदान खिल रहे होंगै लेकिन विना जड़ की फलदार पौध पहाड़ चढते ही दम तोड़ देती होगी, विना खाद पानी के फसलें खेतों मे ही मुरझा जाती होंगी.

विकास के नाम पर जिला योजना से लेकर मुख्य मंत्री प्रधान मंत्री और वर्ल्ड बैंक की योजनायें विना अपने पन के धरातल पर उतरते ही सिकड़ जाती हैं, एक योजना पर कई बार काम और रूपया बहते मुझे तकलीफ होती है जहाँ से शुरूआत हुई वही बार बार इलाज माँगता है तो कदम बढेगा कैसे, मै अच्छी तरह जानती हूँ दुनियाँ मे मुझसे विकट और छोटे राष्ट्र विकसित बन गये काश मुझे भी गौरव होता भारत को विकसित बनाने का। मै अपनी बहिनों से पूछती हूँ आखिर कैसे सवरेंगा मेरा भाग्य उनका एक ही जबाब दून का अवैध जमवाड़ा रोकता है तुम्हारा विकास अपने लाडलों से कहो तुम्हें हिमालयी राज्यों को बूझना होगा उनकी रीति और नीति को अंगीकार करना होगा उनकी जैसी हिम्मत और जज्बे से सँवारना होगा उत्तराखण्ड, पहले यह तो देखो सत्ता के केन्द्र कहाँ हैं, ऊँचाई पर सत्ता का केन्द्र होगा तो चारों ओर की समझ विकसित होगी नीति निर्धारकों को। वह नजदीकी से उस सवाल को बूझने की कोशिष करेंगे जिसके लिये राज्य बना और मिलकर पहाड़ और मैदान को खुशहाल बनायेंगे, मेरी विनती है अपने लाडलों से मेरे वजूद की रक्षा करो गैरसैंण से गैरो जैसा ब्यवहार न करो। बार बार एक ही सवाल करते हो शिक्षक, डाॅक्टर, अफसर, इंजीनियर, उद्योग, शिक्षा के बड़े केन्द्र और उजाले की वो किरण जिनसे मुस्कराये पहाड़ वो पहाड़ नही चढते और नही चढना चाहते इसका तो एक ही समाधान पहले अपने नेताऔं को पहाड़ चढाऔ ये महानुभाव यदि गैरसैंण डटेंगे तो पूरी सिस्टम पहाड़ चढ जायेगा इनके विना पहाड़ की समृद्धि का सपना बुनना बैमानी है अब समय आया है गैरसैंण पर भी सहमति बननी चाहिये ताकि संभावनाऔं को पर लगे और यह राज्य अपने वजूद की रक्षा कर सके। मुझे सुकून मिले मेरे अपनो के संग न्याय होगा और मुझे उत्तराखण्ड होने का गौरव होगा।




मुझे आज भी अहसास है मेरा सृजन पलायन के समाधान के लिये हुआ था। मेरे जन्म से लेकर अट्ठारहवें वर्ष की आयु तक न जाने पलायन का समाधान ढूँढते ढूँढते कितने धन्ना सेठ बन गये, कोई मुझे जापान बनाना चाहता कोई न्यूजीलैण्ड कोई स्विटजर लैण्ड और कोई गुजरात मै कितनी बार कहती हूँ मेरी बहिन हिमांचल को देखो लेकिन इनके कान मे जूँ नही रेंगती, हिमांचल हिमांचल बना और वह समृद्धि के पथ पर अग्रसर है काश मेरे अपने मुझे ईमानदारी से उत्तराखण्ड बनाते तो कितना सुकून मिलता। मेरे पास हिमालय है ग्लेशियर हैं सरोवर और ताल हैं पानी का ऐसा भण्डार सायद समुद्र के छोर पर बसे राज्यों के पास भी न हो इस प्रचुर जल संपदा इनके संकटो को हरने की सामर्थ्य रखती है। दूर दूर तक फैले बुग्याल और जड़ीबूटियाँ जिनसे सँवर सकता है राज्य लेकिन तकलीफ इस बात की जितनी बातें और रूपया जड़ी बूटी के नाम पर ब्यय हुआ निसन्देह पाँच फीसदी मेरे बेरोजगारों को रोजगार मिलता, सम्मपन्न और बहुप्रजाति के वनों से समृद्ध मेरे वन उपवन काश इनका नियोजित दोहन और संरक्षण होता तो सौ फीसदी यह सत्य है वर्तमान भारत जो चालीस फीसदी ईमारती लकड़ी आयात करता है उसमे मात्र पाँच फीसदी की भरपाई से ही हम समृद्ध राज्यों की पंक्ति मे आते,कई लोग मेरी इस बात का इकतरफा अर्थ लेंगे लेकिन जो गला फाड़ फाड़ कर कहते हैं हम बासठ फीसदी से अधिक वनो से ढके हुये भू क्षेत्र हैं काश वह समझ पाते मात्र तीस से पैंतीस फीसदी ही घने जंगल हैं वाकी भू भाग बंजर और अनुउपजाऊ हम इस बंजर अनुउपजाऊ भू भाग पर ही वृक्षों की ब्यवसायिक खेती करते तो हमारे पन्द्रह फीसदी लोंगों को रोजगार मिलता।

जोर जोर से चिल्लाते हैं मेरे लाडले हमारे सेब माल्टा संतरा और कोदे झंगोरे को भाव नहीं मिलता और सात समुद्र पार की माइकल व्हिस्की को पहाड़ों मे परोसकर देवभूमि के मर्म को ठेस पहुँचाते हैं काश इन उत्पादों के प्रसंस्करण आधारित उद्योगों की श्रृँखला बढती तो यहाँ भी संभावनाऔं के अवसर बढते, पिछले सत्रह वर्षों मे इस तीन चौथाई उत्तराखण्ड मे प्रति ब्यक्ति के हिसाब से दो सौ से अधिक फलदार पौध लगी हैं इन्हे विभागों के साथ बड़ी संस्थाऔं और बड़ी परियोजनाऔं के अन्तर्गत लगाया गया है आश्चर्य यहाँ प्रति ब्यक्ति दो फलार पौध भी नही मिलते जो सत्रह वर्षों की खोखली नींव की ओर इशारा है।साग सब्जी फल फूल उत्पादन का जो इस भू क्षेत्र मे मौसम होता है वो मैदानी क्षेत्र के लिये बैमौसमी होता है स्पष्ट है बाजार और मूल्य की गारण्टी है भले ही सूझ बूझ के साथ खेती और मार्केटिंग की जाय आज भी इस तीन चौथाई उत्तराखण्ड मे इन उत्पादों का तीन से पाँच हजार करोड़ का बाजार है।मेरी धरती पर हर बरस बीस लाख से अधिक तीर्थयात्री और पर्यटक आते हैं उनकी जरूरतों और स्थानीय उत्पादों के उनके आकर्षण की पूर्ति हेतु उत्पाद तक नहींयहाँ भी परिवहन लाॅजिंग और विश्राम स्थलों को बहुआयामी बनाने की पहल से बड़ा अवसर विकसित हो सकता है.

आज जरूरत है हार्डवेयर और साॅफ्टवेयर इन्जीनियरों की जो सूचना संपर्क सुरक्षा और नेटवर्किंग के जरिये मेरे आकर्षण विशेषताऔं स्थलों को अपडेट करते रहें। जो जिस क्षेत्र मे देश दुनियाँ के कोने मे काम कर रहा है उसे उन विधाऔं के साथ यहाँ अभिनव प्रयोग करने होंगे। मेरे उन अपनो को पलायन का समाधान ढूँढना होगा जिनके पास एक्सपोजर है जिनके पास निवेश लायक पूँजी है जिनके पास विजन है जिनके पास अपने सपने को खुद साबित करने का हुनर और जज्बा है, दूसरों को बदलने की अपेक्षा नये संकल्प और नई राहों के जोखिम को खुद उठाना होगा। यह संकल्प जब ईमानदारी से धरातल पर उतरेगा तभी जिनको हम बदलना चाह रहे हैं उनके बदलने का शिलशिला शुरू होगा। मीठी चुपड़ी बातों से मै कई बार ठगी जा चुकी हूँ अब तो मै इतनी सामर्थ्य भी नहीं रखती यदि फिर कोई अपना धोखा देगा, कागजी मकड़जाल और फोटोग्राफी विकास से मुझे फुसलाना चाहेगा तो सायद मेरा वजूद भी खत्म हो जाये इसलिये विनती है उन अपनो से समय रहते राज्य को सँवारने मे अपना महत्ती योगदान दें ताकि पलायन रूपी भेड़िये के संकट से पार पाया जा सके।

ये लेखक के विचार हैं