सीमान्त ग्राम – गंगी
शैलेंद्र सिंह नेगी
जनपद टिहरी गढ़वाल का सीमान्त ग्राम गंगी, ग्राम गंगी तहसील घनसाली से लगभग 55 किलोमीटर दूर सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। घनसाली से घुतु तक सड़क कुछ वर्ष पूर्व बन गई थी लेकिन घुतु से गंगी तक 20 किलोमीटर की सड़क हाल ही में पीएमजीएसवाई के द्वारा बनाई गई है। गंगी गांव टिहरी गढ़वाल का अंतिम ग्राम है। इस गांव में लगभग 120 परिवार निवास कर रहे हैं जिनकी जनसंख्या लगभग 650 है। गांव में महिलाओ के अनुपात में पुरुषों की संख्या अधिक है। ग्राम में पुराने घरों का निर्माण पत्थर की चिनाई, लकड़ी तथा पत्थरो के पठाल से हुआ है, जबकि नए घर लेटर तथा टीन के बनाए जा रहे हैं। गांव में पलायन की दर न्यून है, किंतु पिछले कुछ वर्षों में गांव के कुछ परिवार घुतु, घनसाली, देहरादून व अन्य शहरों में बस रहे हैं।
गंगी भिलंगना विकासखंड की एक ग्राम पंचायत है। वर्तमान में अनुसूचित जाति महिला आरक्षित सीट पर श्रीमती लक्ष्मी देवी ग्राम प्रधान निर्वाचित हैं। गंगी गांव मे क्षेत्र पंचायत सदस्य श्रीमती प्रेमदेई देवी क्षेत्र पंचायत सदस्य देवलांग सामान्य महिला सीट से निर्वाचित हैं। वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य श्रीमती सीता रावत जिला पंचायत सदस्य क्षेत्र देवलांग सामान्य महिला सीट से निर्वाचित हैं। यह गांव घनसाली विधानसभा तथा टिहरी लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है।
गंगी गांव की सामाजिक व्यवस्था में 90% परिवार क्षत्रिय तथा शेष अनुसूचित जाति से संबंधित है। सभी लोग मिलजुल कर रहते हैं। किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं है। गांव में शिक्षा का स्तर अत्यधिक न्यून है। गांव की साक्षरता दर 60% के आसपास होगी। पहली पीढ़ी में कुछ पुरुषों द्वारा शिक्षा ग्रहण की गई ,लेकिन वर्तमान में सभी बच्चे विद्यालय में नामांकित हैं तथा शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। महिला साक्षरता की दर अत्यधिक न्यून है। उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों की संख्या भी अत्यधिक कम है। विद्यालय में हाई स्कूल तक की शिक्षा के लिए विद्यालय उपलब्ध हैं, किंतु इंटरमीडिएट एवं उच्च शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है, जिस कारण गांव के बच्चों को कमरा किराया पर लेकर 18 से 20 किलोमीटर दूर राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज घुतू तथा उच्च शिक्षा के लिए बाल गंगा महाविद्यालय चमियाला या टिहरी जाना होता है।
गांव में राजकीय सेवा में 10-11 लोग कार्यरत हैं। एक महिला भी एएनएम के पद पर कार्यरत है। अधिकांश लोग खेती-बाड़ी पशुपालन तथा मजदूरी का कार्य कर रहे हैं। यहां के लोगों का खानपान स्थानीय उत्पादों पर आधारित है। लोकल चौलाई की रोटी, आलू , कुटो की रोटी आदि भोजन प्रमुख है। यहां के लोगों का पहनावा भी स्वनिर्मित उत्पाद आधारित है, क्योंकि यहां सर्दी बहुत होती है इसलिए ऊन एवं गर्म कपड़ों को तरहीज दी जाती है। ऊपरी हिस्से में महिलायें काली कम्बल व आंगडी़ तथा पुरुष -ऊन का गुत्थका (चोली) तथा निचले पहनावे मे बेलचा (हिजार/पजामा) ऊनी विशेषता सभी अपने हाथों से बुनाई व सिलाई का पहनावा है।
गांव मे सोमेश्वर देवता का मंदिर है, जो गांव के इष्ट देवता हैं। गांव के बीचो-बीच सोमेश्वर देवता का मंदिर एवं चौक स्थित है, जिसमें अक्सर लोग अपनी धार्मिक अनुष्ठान करने की साथ ही महत्वपूर्ण आम सभाएं किया करते हैं। गांव के सभी लोग धार्मिक प्रवृत्ति के हैं तथा सोमेश्वर देवता मे अत्यधिक आस्था रखते हैं, एवं बहुत अधिक मान्यता देते हैं। यह भी माना जाता है कि जो भी व्यक्ति गांव में गलत कार्य करता है, सोमेश्वर देवता उसे तत्काल दंड देते हैं। इसलिए सोमेश्वर देवता मंदिर के आंगन में अक्सर लोग अपनी मन्नतें लेकर आते हैं, तथा अपने खिलाफ हुए अन्याय के विरुद्ध न्याय की गुहार भी लगाते हैं।
गांव का सबसे प्रसिद्ध मेला भेड का घेरा है जो प्रत्येक 3 वर्ष में सितंबर महीने में मनाया जाता है। यह मेला सितंबर 2024 में मनाया जाएगा। ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि इस मेले को देखने के लिए अन्य गांव से हजारों की संख्या में लोग आते हैं। गांव में सोमेश्वर देवता का जतराड़ा एक वर्ष में दो बार मनाया जाता है, जिसमें सभी महिलाओं, पुरुषों व बच्चों का प्रतिभाग सामुहिक तांदी, झूमैलो, देव डोली के साथ नृत्य आदि किया जाता है।
ग्रामीणों द्वारा जानकारी दी गई कि गंगी गांव के सबसे निकटवर्ती गांव देवलांग तथा घूतु है, जो 18 से 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। पहले समय में आवागमन के साधन न होने एवं जंगल मे बसावट होने के कारण, गंगी गांव के लोगों से बाहरी गांव के लोग रिश्ते नहीं किया करते थे। इसीलिए गंगी गांव के लोगों के अधिकांश रिश्ते या तो अपने गांव में ही होते हैं या फिर बूढ़ाकेदार घाटी के पिनसवाड गांव में होते हैं। पिसवाड गांव के लिए गंगी से जंगल के रास्ते कम से कम 8 से 10 घंटे में पहुंचा जा सकता है। वह गांव भी बूढ़ा केदार घाटी में इसी प्रकार दूरस्थ एवं सीमांत ग्राम है। वह गांव भी विकास एवं समाज की दृष्टि मे गंगी की भांति अपेक्षित रहा है, किंतु अब वहां भी सड़क एवं अन्य सुविधाएं पहुंच चुकी है।
गांव का रास्ता कुछ स्थान पर खड़ंजा तथा कुछ स्थान पर सीसी है। गांव में वर्ष के 6 महीने सुहाना मौसम होता है, लेकिन शेष 6 महीने कड़ाके की सर्दी पड़ती है। ग्रामीणों ने बताया कि गाँव में 5 से 10 फीट तक बर्फ पड़ती है। उन दिनों ग्रामीणों द्वारा अपने शीतकालीन प्रवास नलान तथा रीह में प्रवास किया जाता है। यदि वहां भी अधिक बर्फबारी हो जाए तो घुतु में प्रवास किया जाता है। गांव भिलंगना नदी से लगा हुआ है, तथा जनपद की भिलंग पट्टी का गांव है। इस गांव से भिलंगना नदी के उद्गम स्थल खतलिंग ग्लेशियर तथा सहस्रताल के साथ ही पवाली कांठा की ट्रैकिंग होती है। गांव के अधिकांश युवा ट्रैकर्स के साथ पोर्टर एवं गाइड के रूप में अपना रोजगार चला रहे हैं।
ग्रामीणों द्वारा जानकारी दी गई कि खतलिंग ग्लेशियर, सहस्त्रताल तथा पवाली काठा के ट्रैक बहुत खूबसूरत है। बड़ी संख्या में यहां ट्रैकर आ रहे हैं तथा स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल रहा है, किंतु इन ट्रैकों की मरम्मत एवं सुधारीकरण के लिए कार्य किए जाने की आवश्यकता है। प्रतिवर्ष भारी बर्फबारी, हिमस्खलन एवं मानसूनी वर्षा के कारण मार्ग एवं पुलियाएं क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिनकी मरमत लंबे समय से नहीं की गई है। ग्रामीणों द्वारा इन ट्रैकों पर ध्यान केंद्रित करने तथा उनके सुधारीकरण की मांग पर जोर दिया गया। साथ ही पर्यटन विभाग एवं वन विभाग के स्तर से इनका प्रचार प्रसार कर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए, विशेष योजना बनाने की भी मांग की गई। ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार प्राप्त हो सके।
गंगी गांव चारों ओर से घने जंगल से घिरा हुआ है। इस जंगल में देवदार, बुरांश, बांज, कैल आदि के वृक्ष देखने को मिलते हैं। अब धीरे-धीरे चीड भी इस जंगल में घुस चुका है। ऊपरी चोटियों में हरे भरे बुग्याल दृष्टिगोचर होते हैं जिनमें पवाँली काठा सबसे महत्वपूर्ण है। ग्रामीणों द्वारा जानकारी दी गई की उनके पूर्वज सदियों से इन जंगलों एवं बुग्यालों पर निर्भर हैं, तथा इन्हीं से अपना जीवन यापन करते हैं। पशुपालन इनका प्रमुख व्यवसाय है। उनके द्वारा यह भी जानकारी दी गई की गुर्जर समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में कुछ वर्षों से यहां लगातार आ रहे हैं, एवं पर्यटकों की संख्या भी बढ़ रही है, जिस कारण बुग्याल एवं जंगलो पर कुछ नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहे हैं। गाँव में होम स्टे चल रहे हैं तथा इसकी बहुत सम्भावनायें हैं।
ग्रामीणों द्वारा संज्ञान में लाया गया है कि, ग्राम को जोड़ने के लिए पीएमजीएसवाई के द्वारा सड़क बनाई गई है, जो गांव से जुड़ गई है किंतु केवल 50 मीटर की दूरी पर छोड़ दी गई है, जिसे तत्काल पूर्ण करने हेतु संबंधित विभाग को निर्देशित करने की मांग की गई। ग्रामीण द्वारा अवगत कराया गया कि, गांव में राजकीय हाई स्कूल संचालित है जिसमें मात्र तीन शिक्षक (हिंदी, सामाजिक विषय तथा गणित) के कार्यरत हैं, अंग्रेजी तथा विज्ञान विषय के अध्यापक के पद रिक्त चल रहे हैं, जिन्हें तत्काल भरे जाने की मांग की गई। गांव में प्राथमिक विद्यालय भी संचालित है, जिसमें दो शिक्षक कार्यरत हैं। उनके द्वारा जानकारी दी गई कि उनके शीतकालीन प्रवास ग्रामों नलान तथा रीह में भी प्राथमिक विद्यालय हैं, जो वर्तमान में गंगी में संचालित हो रहे हैं। गांव के लोग अपने शीतकालीन ग्रामों में चले जाएंगे तो प्राथमिक विद्यालय भी वही संचालित होंगे, किंतु हाई स्कूल की पढ़ाई बंद हो जाती है, क्योंकि उन गांव में हाई स्कूल शिफ्ट नहीं होता है।
गांव में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित है तथा महिला एवं बाल विकास विभाग की योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को प्राप्त हो रहा है। ग्रामीणों द्वारा शिकायत की गई कि गांव को अभी तक विद्युतीकरण का लाभ नहीं मिल पाया है, जबकि गांव के लिए विद्युतीकरण की योजना तीन-चार वर्ष पूर्व स्वीकृत हो चुकी थी, लेकिन अभी तक गांव से 9 किलोमीटर दूर रीह चक तक बिजली के खंबे लगाए गए हैं, जो बरसात में कई स्थानों पर गिर गए हैं तथा उनकी तारे झूल रही हैं। ग्रामीण द्वारा यह भी संज्ञान में लाया गया, कि उरेडा की परियोजना निर्माणाधीन है, जिसे तत्काल पूरा किये जाने की आवश्यकता है ताकि ग्रामीणों को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से बिजली प्राप्त हो सके।
गांव में बीएसएनल का टावर स्वीकृत है तथा टावर का कार्य चल रहा था, लेकिन वन विभाग के द्वारा आधे कार्य के बाद अपनी भूमि बताते हुए कार्य को रोक दिया गया है, जबकि पूर्व में संयुक्त निरीक्षण के दौरान भूमि राजस्व विभाग की बताई गई थी। इस संबंध में उप जिलाधिकारी घनसाली द्वारा मौके पर ही लेखपाल तथा वन विभाग के वन रक्षक को निर्देशित किया कि संयुक्त निरीक्षण कर तत्काल प्रकरण का निस्तारण करें।
ग्रामीण द्वारा जानकारी दी गई कि गांव में टीकाकरण नियमित रूप से हो रहा है। स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध न होने के कारण ग्रामीण गंगी गांव से 20 किलोमीटर दूर घुतु के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर हैं। ग्रामीणों द्वारा गांव में प्रतिमाह एक दिन स्वास्थ्य शिविर लगाने की मांग की गई।
गांव में बड़ी संख्या में प्राकृतिक जल स्रोत हैं जिस कारण पानी की कोई कमी नहीं है। पेयजल लाइन भी है जो अत्यधिक बर्फबारी में क्षतिग्रस्त हो जाती है किंतु वर्तमान में ग्रामीणों को पेयजल प्राप्त हो रहा है। ग्रामीणों द्वारा अवगत कराया गया है कि उनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन है, किंतु पशुपालन विभाग की योजनाओं का सही लाभ उनको प्राप्त नहीं हो रहा है। गांव में 15000 से अधिक भेड़ एवं बकरियों का पालन किया जा रहा है। इसके साथ ही घोड़ा, खच्चर, गाय आदि का पालन भी किया जा रहा है। पशुपालन विभाग के स्तर से गांव में शिविर लगाकर विभिन्न योजनाओं से लाभान्वित करने की मांग की गई।
ग्रामीणों द्वारा गांव में आलू, मोटी दाल, चोलाई, फाफर आदि की खेती की जा रही है। ग्रामीणों द्वारा जड़ी बूटियां की खेती भी जा रही है। यदि जड़ी बूटियां की खेती को प्रोत्साहित किया जाए तो इसकी अत्यधिक संभावना बताई गई है। ग्रामीणों को स्वयं सहायता समूह तैयार कर उत्पादित अनाज को निकटवर्ती बाजार एवं मेलों में विक्रय करने का सुझाव दिया गया तथा विकासखंड के अधिकारियों को इस हेतु गांव में बैठक करने हेतु आश्वासन दिया गया ।
मुझे गंगी गांव के भ्रमण के पश्चात, भारतीय लोकतंत्र की मजबूत डोर के माध्यम से विकास के अंतिम गांव एवं अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने का एहसास हुआ है, लेकिन इसके बावजूद भी बहुत कुछ किए जाने की संभावना एवं आवश्यकता भी महसूस हुई है।
शैलेंद्र सिंह नेगी, पीसीएस, एसडीएम घनसाली एवं प्रताप नगर