गाँधी का वांग्मय है ‘कलिकथा’ कहानी
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
श्रीसाहित्य प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रसिद्ध कहानीकार बल्लभ डोभाल की कहानियों का संकलन “मेरी चयनित कहानियां” सन 2000 में प्रकाशित हुआ था. वैसे तो संकलन की सारी कथाएं विशिष्ठ तेवर लिए हुए हैं, लेकिन पृष्ठ 144 से 148 कुल जमा साड़े चार पेज की कहानी “कलिकथा” की बात निराली हैं. कहानीकार डोभाल ने कलिकथा के बहाने महात्मा गाँधी का सम्पूर्ण बांग्मय अथवा गाँधी विचारधारा, गाँधी के सपने, आशाएं, अपेक्षाएं व गाँधी के नाम के दुरुपयोग व उनके विचारों के विरुद्ध चल रहे आधुनिक भारत कि पूरी पोल पट्टी कलिकथा कहानी के माध्यम से खोल दी. यह कहानी गाँधी जी के सम्पूर्ण जीवन का बांग्मय है. दुसरे रूप में कह सकते है कि गाँधी जी के सम्पूर्ण चरित्र व संघर्ष को पाठक साड़े चार पृष्ठों में पढ़ सकते है. कलिकथा कहानी के कुछ अंश पढ़िए…
रामजी हक्का – बक्का हो बोला, “ओह ! बापूजी…तो क्या आप बोल रहे हैं ?” “हाँ में बोलता हूँ, सुनता हूँ और देखता भी हूँ”…”आप महान हैं बापू ! आप धन्य हैं. नहीं रामलाल ! मैं धन्य नहीं, रास्ट्रपिता…जिसकी हत्या हो जाय वह धन्य कैसे हो सकता है”.
रुपयों पर गाँधी के चित्रों के छपे होने के दर्द को कहानीकार डोभाल बड़े रोचक ढंग से लिखते हैं…”लाला के पास जो भी आता है वह रुपये को गद्दी ने नीचे दबोच कर रखता है. दिनभर उसकी डेढ़ क्विंटल काया के नीचे हम टूट जाते है”. कहानीकार डोभाल कहानी को विस्तार देते लिहते हैं….”यह कैसा महान जनतांत्रिक देश है रामलाल ! इन तथाकथित कुलीनों से ये बार बालाएं ज्यादा सभ्य लगती हैं जो अंततः हमें समेटती हैं, चूमती हैं और चोली के भीतर हमें दिल से लगाकर रखती हैं”. कहानीकार डोभाल कलिकथा का अंत नोटबंदी से करते हैं….यथा “पिछले दिनों नोटबंदी अभियान चला तो कुछ राहत महसूस हुई कि मेरी स्थिति पर विचार होगा”…..”यहाँ मेरी दुर्दशा होते सभी ने देखा. लोग मेरी गठरी बनाकर किस तरह कीचड़ भरे तालाबों में फैंक रहे थे. कूड़े के ढेर के अन्दर मुझे जलाने कि भी घटनाएं भी सामने आई”. “रामलाल ! मेरे जैसे आदमी को मोक्ष तो संभव नहीं है, पर में मुक्त होना चाहता हूँ”.