रोजगारपरक हो शिक्षा
महावीर सिंह जगवान
क्या कोई इनकी पाती लेकर सरकार को पहुचाएगा।
ताकि इस बार की बोर्ड परीक्षाऔं को पास करने वाले बच्चों को इतनी शसक्त शिक्षा मिल जाय जितना उनका अधिकार। यह है राजकीय इण्टर काॅलेज सौंराखाल चार सौ के आस पास छात्र संख्या और शिक्षक कक्षाऔं मे छात्रों की उपस्थिति लेने को भी कम पड़ते हैं, शिक्षकों की संख्या मात्र छ:। जो वर्तमान मे यहाँ पर शिक्षक हैं इनकी जितनी प्रशंसा की जाय कम ही है इनकी अतिरिक्त मेहनत की बदौलत संभला हुआ है यह विद्यालय। पर्वतीय गाँवो मे स्कूल भवन निर्माण के लिये गाँव के ही लोग भूमि दान करते हैं ताकि शिक्षा जैसे प्रकाश का पुँज उनके गाँव मे विकसित हो और आने वाली पीढियाँ पढ लिखकर सही गलत मे फर्क बूझ सकें, अपने श्रम और कौशल से अपने भविष्य की मजबूत नींव रख सकें, भारत माता को साक्षर और शसक्त नागरिक मिल सके। विकास की आँधी ने करोड़ों के विद्यालय भवन तो दे दिये लेकिन नीतियों और ब्यवस्था की खामियों ने छात्रों को शिक्षक विहीन बना दिया। अभिवाहक चिन्तित, छात्र चिन्तित गुरूजनों पर अतिरिक्त दबाव आखिर शिक्षा जैसें अहम मसले पर क्यों लाचार सिस्टम।विगत कुछ ही सालों मे कई अभिवाहक अपने पाल्यों की शिक्षा के लिये पलायन तक कर गये और जो चाहते भी हैं पलायन ताकि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके लेकिन आर्थिकी की लाचारी है। न जाने किसकी नजर लगी इस महकमे को दिन प्रतिदिन उजाले की किरण देने वाले ये बड़े और जमीनी संस्थान खुद ही उजाले की बाट जोह रहे हैं। समय रहते इनको विषय विशेषज्ञ अध्यापकों से लैस करना अपरिहार्य है अन्यथा पलायन से बचे साठ फीसदी लोग मजबूरी मे सही लेकिन गाँवों से निकल पड़ेंगे।
पर्वतीय और सीमान्त जनपदों मे गाँवों के शसक्तीकरण की योजनायें राज्य सरकार हो केन्द्र सरकार या वर्तमान का बड़ा खजाना जिसका ब्याज देते देते आने वाली पीढियों के घुटने छिले जायेंगे वर्ल्ड बैंक की पोषित योजना क्यों आज तक वो रिजल्ट जमीन पर नहीं दे पायी जिनसे लगे तीन चौथाई पर्वतीय राज्य खुशहाल हो रहा है यहाँ तो स्थितियाँ दिनप्रतिदिन खराब हो रही हैं। इस भू भाग के लिये उत्तराखण्ड की कैबिनेट अलग से एक ऐसा विकल्प दे जो यूपी के समय पर्वतीय विकास मंत्रालय था।
स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील मुद्दै पर सरकार निरन्तर पिछड़ती जा रही है, स्पष्ट है सरकारों के लिये स्वास्थ्य का सार्वजनिक ढाँचा बोझ जैसा बनता जा रहा है और गरीब आदमी को कई गुना महँगे इलाज का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। सरकार विकट और दुरूह पर्वतीय जनपदों मे प्रत्येक नागरिक का स्वास्थ्य कार्ड बनवाये और जरूरत की सुविधाऔं के लिये स्वास्थ्य नीति विकसित करे। राज्य मे एक्सपोजर टूर की परिपाटी पर विराम लगे इसकी जगह जिस विषय की विशेषताऔं के अध्ययन के लिये एक्सपर्ट या जनसामान्य विजिट कर रहे हैं उस विषय पर आधारित माॅडलों का विकास किया जाय ताकि स्थानीय वातावरण मे उस संभावना को विकसित करने का अवसर मिले और इसका लाभ क्षेत्रवासियों को मिले। नये प्रयोंगों की अपेक्षा पारम्परिक और स्थानीय उत्पादों को ही विज्ञान और आधुनिकता दी जाय।
पर्वतीय भू भाग को शिक्षा, तकनीकी और पर्यटन हब के रूप मे विकसित किया जाय। हाई स्कूल और इण्टर काॅलेजों के साथ डिग्री काॅलेजों मे कृषि, आई टी आई और पाॅलिटेक्निक के विषय से जोड़ा जाय ताकि शिक्षा के साथ कौशल विकास भी प्राप्त हो। ब्लाॅक स्तर तक परिवहन निगम की बसों की सेवायें हो, पर्वतीय जनपदों तक रात्रि परिवहन सेवाऔं की ब्यवस्था हो सम्मपन्न और गुणवत्ता युक्त परिवहन सुविधायें विकास की प्रथम जरूरत है। लगभग पैंसठ साल पुराना भूमिबन्दोबस्त अब दशकों बाद तमाम विसंगतियों को समेटे है जरूरत है जल्द उत्तराखण्ड राज्य के पर्वतीय जनपदों मे भूमि बन्दोबस्त हो ताकि यहाँ के मूल लोंगो के हक सुरक्षित रहें। चकबंदी जैंसे अहम सवालों के समाधान के लिये भूमि आवंटन व कृषकों को कृषि हेतु पट्टों का आवंटन हो। ऑल वेदर, रेलवे और अन्य विकास परियोजनाऔं मे प्रभिवितों के हितों की पैरवी हेतु राज्य स्तर पर शसक्त पैनल हो। राज्य के पर्वतीय और सीमन्त जनपदों में इनर लाइन परमिट सिस्टम हो ताकि यहाँ के हक हकूक धारियों के हित और भविष्य सुरक्षित हों।
कृषि और उद्योग नीति मे पर्वतीय क्षेत्रों के शसक्तीकरण के लिये जरूरी परिवर्तन हों।
पर्वतीय क्षेत्रों मे वृक्ष खेती, वृक्ष ब्यवसाय की अनुमति और वन विकास निगमों के काष्ठ विक्रय केन्द्र खुलें। काष्ठ उपलब्धता बढेगी तो इनसे सम्बन्धित उद्योंगों को ऑक्सीजन मिलेगी और भवन शैली मे पारम्परिक ईमारती काष्ठ का उपयोग बढेगा। यदि यहाँ की भवन शैली मे लकड़ी का उपयोग बढेगा तो यह भवन हल्के और आकर्षणता के साथ भूकंप से सुरक्षित कम लागत के भवनों का विकास हो।
स्थानीय उत्पाद जैंसे चीड़ से लीसा, जंगलों से जड़ी बूटी, उद्यानों से फल, कृषि की उपज इनका सीधे मैदान मे जाने से पहले प्रथम स्टेज की छंटाई और पैकेजिंग पर्वतीय जनपदों मे ही सुलभ हो। ताकि रोजगार बढे। खनन और चुगान के साथ क्रेशर के छोटे प्लाण्टो छोटे क्षेत्रफल को ही अनुमति मिले ताकि माफिया राज की अपेक्षा औद्योगिक शक्ल उभरे। विकास से सम्बन्धित परियोजनाऔं को टैम्प्रेट, सब ट्रोपिकल और ट्रोपिकल क्षेत्र कै आधार पर ही चिन्हित और पोषित किया जाय।
चाय के बागानों का वन भूमि मे ही फैलाव किया जाय ताकि वानाग्नि जैसे खतरो से बचा जाय और वनो की सेहत समृद्ध हो, स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन हो। कृषि भूमि की जोत इतनी कम है कि चाय मे आजीविका विकसित नहीं हो सकती। कृषि भूमि मे कृषि उद्यान और अन्य तकनीकी गतिविधियों से ही लाभ मिलेगा। विकास से सम्बन्धित सभी विभागों संस्थानों और स्वयंसेवी संस्थाऔं मे समन्वय हो ताकि जबाबदेहिता और उत्पादकता सुनिश्चित हो। राज्य की राजधानी आन्दोलन कारियों और जनभावना के अनुरूप और राज्य के सर्वांगीण विकास हेतु गैरसैंण हो।
ये लेखक के विचार हैं