November 21, 2024



रामणी गांव की सुंदरता और आतिथ्य सत्कार

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संजय चौहान


रामणी गांव की बेपनाह सुंदरता और आतिथ्य सत्कार देख अभिभूत हुये प्रशिक्षु IAS / IPS / IRS अधिकारी. इन दिनों चमोली जनपद में आईएएस, आईपीएस, आईआरएस प्रक्षिशु अधिकारियों का दो दल चमोली के गांवो और पर्यटक स्थलों के भ्रमण करनें पहुंचा है। जिसमें एक दल बद्रीनाथ से संतोपथ और दूसरा दल रामणी से औली के भ्रमण पर है। दल में तेलांगना, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्रप्रदेश और उत्तराखंड के प्रशिक्षु अधिकारी शामिल है। आज यह दल रामणी गांव से झींझी होते हुये लार्ड कर्जन रोड से रात्रि विश्राम के लिए पाणा गांव पहुंचा है।

प्रशिक्षु अधिकारियों को भ्रमण करा रहे हिमालयन जर्नी के प्रबंधक दिनेश सिंह बिष्ट नें बताया की वो विगत पांच सालों से प्रशिक्षु अधिकारियों को चमोली के विभिन्न पर्यटक स्थलों और गांवो का भ्रमण करा रहें है। इस साल भी वो दो दलो को भ्रमण करा रहे है। उन्होने बताया की रामणी से औली के 50 किमी पैदल ट्रैक पर भ्रमण पर निकले 19 सदस्यीय प्रशिक्षु आईएएस, आईपीएस, आईआरएस अधिकारियों के दल को चमोली के गांवो की सुंदरता और लोकसंस्कृति इतनी भायी की वे अभिभूत हो गये। खासतौर पर रामणी गांव में इन प्रशिक्षुओं का जो पारम्परिक रीति-रिवाज के साथ आतिथ्य सत्कार हुआ उससे हर कोई गदगद हो गया। इस दौरान उन्होंने गांवों में रहन सहन, खान पान और लोकसंस्कृति का लुत्फ़ उठाया। खासतौर पर उन्हें पहाड़ी व्यंजन बेहद भाये। उन्होंने इसकी जमकर सराहना की।


ये है बेपनाह सौंदर्य की बानगी रामणी गांव!


सीमांत जनपद चमोली के नंदानगर ब्लाॅक में हिमालय की गोद में स्थित है रामणी गांव। समुद्र तल से 2500 मीटर ऊंचाई पर स्थित रामणी गांव के लिए ऋषिकेश से लगभग 250 किमी का सफर वाहन से तय कर पहुंचा जा सकता है। जबकि चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर से रामणी की दूरी 82 किमी है। वहीं ब्लाॅक मुख्यालय घाट से 29 किमी की दूरी पर स्थित है ये गांव । लगभग 300 परिवारों के इस गांव की जनसंख्या लगभग 1300 से अधिक है। हिमालय की गोद मे बसे इस गाँव पर प्रकृति नें अपना सबकुछ न्यौछावर किया है।

रेमजे के नाम से गांव का नाम रामणी नाम पडा!


लोगो की मानें तो रामणी गांव की सुंदरता से स्कॉटिश मूल के कमिश्नर हेनरी रेमजे अभिभूत हो गये थे जिसके कारण ही इस गाँव का नाम रेमजे से रामणी हो गया था। उत्तराखंड में कमिश्नर हेनरी रैमजे का शासन 1856-1884 तक रहा। इस दौरान वे कई बार रामणी आये थे। उन्होंने उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की सुंदरता, सांस्कृतिक व धार्मिक मान्यताओं को पूरा महत्व दिया। 132 वर्ष के अंग्रेजी राज में 70 वर्ष स्कॉटिश मूल के कमिश्नर भारत में रहे। ट्रेल, बेटन व रैमजे उत्तराखंड को अपने घर की तरह मानते थे। उन्होंने परंपरागत कानूनो को महत्ता दी, स्थानीय लोक संस्कृति व धार्मिक मान्यताओं का रखा ख्याल रखा।

कमिश्नर हेनरी रेमजे से लेकर लार्ड कर्जन को भायी थी रामणी की सुंदरता!




स्कॉटिश मूल के कमिश्नर हेनरी रेमजे के बाद लार्ड कर्जन भी रामणी के मुरीद बने थे। ग्वालदम से तपोवन 200 किमी का ऐतिहासिक पैदल लार्ड कर्जन रोड भी इस गाँव से होकर जाता है। वर्ष 1899 में लार्ड कर्जन जब उत्तराखंड की यात्रा पर आए तो वे घाट विकासखंड के रामणी गांव में भी पहुंचे। रामणी गांव की प्राकृतिक सुंदरता उन्हें इतनी भायी कि लार्ड कर्जन ने कुछ समय यहीं गुजारा। आज भी लार्ड कर्जन का बंगला रामणी गांव में मौजूद है। तब उन्होंने इस क्षेत्र के विकास के लिए पैदल ट्रैक का निर्माण भी किया। ब्रिटिश व अन्य विदेशी पर्यटक अभी भी इस ट्रैक से गुजरकर क्षेत्र के दर्जनों पर्यटन स्थलों की सैर करने के लिए प्रतिवर्ष यहां आते हैं।

रामणी गाँव के परंपरागत पठाल के मकान बरबस ही लोगों को करते हैं आकर्षित!

गांव हो या शहर, हर जगह लोगों में चकाचौंध की ओर भागने की होड़ मची है। हर ओर कंक्रीट के जंगल नजर आते हैं। लेकिन, इस सबके बीच जिले की सुदूरवर्ती गांव रामणी ने अपनी पहचान को मिटने नहीं दिया। यहां ग्रामीण आज भी सीमेंट-कंक्रीट के नहीं, बल्कि पारंपरिक पठालों (पत्थरों) के मकानों में ही रहना पसंद करते हैं।यहां के लोगों नें पठालों के मकानों को ही तवज्जो दी।यही वजह है कि 300 परिवारों वाले इस गांव में हर ओर पठालों के मकान ही नजर आते हैं। इन मकानों का फायदा सबसे बड़ा यह है कि बर्फबारी होने पर वह छतों पर नहीं टिकती। साथ ही मिट्टी व लकड़ी का प्रयोग होने के कारण वे गर्म भी रहते हैं। पठाल की छत वाले मकानों के निर्माण में स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलता है। इन मकानों के अंदर गर्मियों में शीतलता तो सर्दियों में गर्माहट का अहसास होता है। साथ ये मकान भूकंपरोधी भी होते हैं। मकान की नींव खोदकर मिट्टी और पत्थरों से भरा जाता है। चिनाई के बाद लकड़ी की बल्लियों पर लकड़ी चीर कर (तख्ते) बिछाई जाती है। उसके ऊपर घास और मिट्टी डाली जाती है। इसके बाद टॉप में पठाल बिछाई जाती है।

लेखक युवा स्वतंत्र पत्रकार हैं