गांव जाना चाहोगे या नगर
शैलेन्द्र नेगी
हुआ यूं कि किसी कर्मचारी की तैनाती होनी थी। उस कर्मचारी के दिमाग में एक बात चल रही थी कि यदि किसी शहर में नियुक्ति मिल जाती है तो परिवार सहित मजे से रहता। उसने सीधे अधिकारी से मुलाकात करना उचित समझा ताकि अपनी बात रख सकूं। बिना विलंब किए हुए उसने अधिकारी से मुलाकात की। अधिकारी ने उसके समक्ष विकल्प रखा कि गांव जाना चाहोगे या नगर। जैसे उसके मन की बात बोल दी हो। उसके मन में आया कि जब साहब विकल्प दे ही रहे हैं तो गांव क्यों चुनना है। नगर जाना अच्छा रहेगा और उसने एकदम से नगर के लिए हां कर दी। अधिकारी महोदय ने भी बिना विलंब किए प्रताप नगर मे उसकी तैनाती के आदेश कर दिए।
आदेश मिलते ही उसने सबसे पहले अपने घर वालों से बात की और यह खुशखबरी सुनायी। वह जिला मुख्यालय नई टिहरी से टीजीएमओ की बस में बैठा और प्रतापनगर का टिकट कटवा लिया। नई टिहरी बस अड्डे से गाड़ी कोटी कॉलोनी होते हुए डोबरा चांठी पुल होते हुए लंबगांव पहुंची। उसने देखा कि लंबगांव एक छोटा सा किंतु अच्छा बाजार है और वहां पर साफ सफाई करते हुए उसे नगर निकाय के सफाई कर्मी दिखाई दिए। बाजार में चहल-पहल थी। चार धाम यात्रा का समय चल रहा था इसलिए चार धाम यात्रा की बहुत सी गाड़ियां खड़ी थी। होटल , रेस्टोरेंट फुल चल रहे थे। उस कर्मचारी के दिमाग में एक बात आयी कि जब गांव इतना अच्छा है तो नगर कितना अच्छा होगा। तभी कंडक्टर ने आवाज दी कि प्रताप नगर की सवारी बैठ जाइए। गाड़ी चलने वाली है। सभी यात्री होटल, रेस्टोरेंट और जगह-जगह से आकर गाड़ी में चढ़ने लगे। देखते ही देखते गाड़ी भर गई।
ड्राइवर साहब भी सीट मे बैठ गए । ड्राइवर ने अंतिम चेतावनी के रूप में हॉर्न बजाया और कंडक्टर ने भी अंतिम पुकार लगा दी। 2 मिनट के इंतजार करने के बाद गाड़ी चलने लगी। 20 किलोमीटर के सफर में बस चढ़ाई चढ़ती गई। छोटे और बड़े गांव मिले। कोई रौनक नहीं दिखाई दी। आखिरकार बस प्रतापनगर पहुंच गई। प्रताप नगर की सवारी उतरने लगी। लेकिन वह कर्मचारी बैठा रहा और जब बस खाली हो गई तो उस ने कंडक्टर से कहा कि कि मुझे प्रताप नगर जाना है। बस क्यों नहीं जा रही है। कंडक्टर ने जवाब दिया कि भाई साहब यही प्रतापनगर है। आप भी उतर जाइए । आपका टिकट भी यही तक का था और बस का भी यह अंतिम पड़ाव है। अब इससे आगे बस नहीं जाएगी। वह कर्मचारी जिद्द करने लगा कि यह प्रतापनगर नहीं हो सकता है। प्रतापनगर कोई बड़ी सी सिटी का नाम है। यह तो कोई गांव है इसमें ना तो बाजार है और न ही कोई चहल पहल। दुकाने भी बहुत कम है। कंडक्टर ने समझाया कि आप हम पर भरोसा कीजिए। यही प्रताप नगर है। प्रतापनगर एक शहर तो छोड़िए एक ग्राम पंचायत भी नहीं है भाई साहब। यह एक राजस्व गांव है। वह कर्मचारी माथे पर दोनों हाथ लगाकर बैठ गया और बोला कि गांव और नगर का अंतर अब समझ आया। इसीलिए साहब ने मुझे पूछा था कि गांव जाओगे या नगर। मैं समझ नहीं पाया लेकिन अब समझ आ गया है कि गांव को गांव नहीं समझना चाहिए। कभी-कभी वह नगर से भी अच्छा होता है।
शैलेंद्र सिंह नेगी
पीसीएस 2014
एसडीएम प्रतापनगर एवं घनसाली