श्रम से रुकेगा पलायन
महावीर सिंह जगवान
सुबह के नौ बज रहे थे, घर से निकलते ही मन्दिर के सामने इस परिवार को देखकर भौचक्का रह गया.
एक छोटा सवाल आप कहाँ से आये, एक फोटो खींच दूँ, उनका मुस्कराकर जबाब रूड़की से आये हैं, खींच दो बाबू जी फोटो अखबार मे देना। इनके पास जो भी सामग्री है उसका औसत मूल्य ढाई हजार होगा और इसे बेचकर इन्हे चार से पाँच हजार बनाना है, इनके पास जो भी उत्पाद हैं उनमे से रेडीमेड उत्पाद फावड़ा है वाकी सभी उत्पादों मे इनके श्रम का संयोजन है। जो भी इन्हें लाभ मिलेगा उत्पाद मे श्रम के संयोजन और ग्राहक को ढूँढ निकालने की अतिरिक्त मेहनत से ही मिलेगा। विना शिक्षा और औद्योगिक ज्ञान के साथ ब्यवसाय प्रबन्धन ज्ञान के अभाव के वावजूद, अपने श्रम कौशल और अनुभव पूँजी को आधार बनाते हुये, मेहनत मजदूरी से छोटी पूँजी जुटाई और उस छोटी पूँजी से उत्पादन हेतु सहायक वस्तुऔं (लोहे के टुकड़ों) को जोड़ा गया और अतिरिक्त शाररिक मेहनत से उसे पीट पीट कर उत्पाद बनाये गये, खून पशीने की मेहनत को करेन्शी मे कन्वर्ट करने की यह प्रक्रिया इतनी सकारात्मक है वह लाभ के लक्ष्य को रखकर दुगनी मेहनत कर ग्राहक की जरूरतों को मध्यनजर रखते हुये अपने उत्पादों की श्रृँखला तैयार करता है। यह दिखने मे भले ही छोटी हो लेकिन उद्यमिता की परिभाषा जितनी इस नमेश और उसके परिवार की मेहनत पर लागू होती है उतनी ही टाटा रिलाइन्स पर लागू होती है।
छोटा अनपढ उद्यमी मेहनत मजदूरी से उद्योग के लिये पूँजी तैयार करता है और मझला उद्यमी बैंक के कर्ज से जबकि बड़े उद्योगपति को सरकारों द्वारा रोजगार उत्पादन की नीति से जरूरत के कई गुना पूँजी प्राप्त होती है। उद्योगों के वे स्वरूप जो हिमालयी राज्य के पर्वतीय भू भाग के अनुरूप हो सकते हैं। पहले हम उद्योग की सरलतम परिभाषा को बूझने की कोशिष करते हैं। वह छोटी से छोटी इकाई जो श्रम बुद्धि और कौशल से वस्तुऔं और स्थितियों के मूल स्वरूप मे परिवर्तन कर जरूरत की पूर्ति या स्थिति परिस्थिति की सुगमता मे सहायक उत्पाद देती है वह उद्योग ही कहलायेगी। जैसे रामू आलू बेसन और मसालों के साथ तेल और ऊर्जा का समावेश कर नमकीन और पकोड़ी बनाकर लाभ सुनिश्चित करता है यही तरीका हल्दीराम जैसीं बड़ी कंपनियाँ तकनीकी श्रम और कौशल से बड़े बाजार के लिये नमकीन और अन्य उत्पाद उपलब्ध कराते हैं। जैसे नमेश और उसका परिवार लोहा पीट पीटकर विक्री योग्य उत्पाद तैयार करता है वैसे ही टाटा की फ्रैन्चाइजी कंपनियाँ बड़ी तकनीकी बड़े श्रम और कौशल से जरूरत के उत्पाद तैयार करते हैं।
उत्तराखण्ड के पर्वतीय भू भाग के निवासियों की भले ही शुरूआती प्रकृति श्रम और कौशल से आजीविका की उत्पत्ति करना रही हो लेकिन धीरे धीरे शिक्षा और सहूलियतों के आकर्षण ने नौकरी की ओर गति पकड़ी। यह विकल्प पलायन, सेना, राजकीय सेवा या प्राइवेट जाॅब से प्राप्त किया है। धीरे धीरे इसश्रोत पर बढते दबाव ने परिवहन और ब्यवसाय के साथ ठेकेदारी जैसे नये विकल्पों को जन्म दिया और आज औसतन शुरूआती श्रोतों से लेकर वर्तमान तक सभी श्रोंतो पर दबाव बढा जैसे दिया है जिसकी परिणति पलायन दुगना हो गया हैऔर पहले आजीविका के लिये पलायन होता था अब एक बड़ा हिस्सा पलायन का भविष्य के हितों की रक्षा के लिये भी है।
पूरी दुनियाँ मे बदलते घटनाक्रम पर एक नजर डालें तो जिन गाँवों कस्बों की उत्पादकता बढी है वह अधिक समृद्ध और भीड़ के केन्द्र बन रहे हैं जबकि जिन गाँवों की उत्पादकता निरन्तर घटी है वह औसतन वीरान हो चुके हैं या वीरान होने के कगार पर हैं, इसी घटनाक्रम का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष प्रभाव उत्तराखण्ड के तीन चौथाई पर्वतीय भू भाग पर भी स्पष्ट तौर पर दिख रहा है। खेतों की उत्पादकता घटेगी तो हर बार जी जान से मेहनत करने वाले को एक दिन समझ आ ही जायेगा यह घाटे का शौदा है और खेत बन्जर पड़ने लगेंगे, रात दिन चारा प्रबन्धन कर कुशल हेर देख के वावजूद पशुपालन से लाभ अर्जित नही होगा तो पशुपालक की गौशाला पशु विहीन हो जायेगी, निरन्तर पढे लिखे लोग और उत्पादक लोग गाँव खेत खलिहान छोड़ जायेंगे तो कुछ समय बाद गाँव को जरूर अहसास हो जायेगा कुछ तो बात है हमे भी समय के साथ बदलकर खिसकना होगा और फिर गाँव वीरान कुछ इसी से मिलता जुलता दर्द है इस हिमालयी राज्य का। हम सरकारों पर जितनी अंगुली उठायें प्रश्न सदैव हम पर ही उठेंगे हम नेता जैसा चुनते हैं वैसी ही नीतियाँ हमे मिलती हैं स्पष्ट है जितना दोष सरकारों का उतना दोष हम सब का। यहीं पर हम सब ठहर तो नहीं सकते। पानी ठहरता है तो सड़ जाता है यह हर पल हमारे चारों ओर बहते झरने नदियाँ सिखाती रहती हैं और हम भी दषकों से नदियों की दिशाऔं मे पलायन करते जा रहे हैं।
अब एक नयें संकल्प के साथ पलायन के एक्सपोजर को संग्रहित कर उन छोटे छोटे उद्योंगो की ओर दृष्टि दौड़ानी होगी जिनसे हम सम्मान सहित अपनी आजीविका का सृजन कर सकते हैं, हाँ सतर्कता की बड़ी जरूरत है इसका भी सरल समाधान है। हम जिस भी विषय को लेकर काम शुरू करना चाहते हैं सर्वोपरि हमे उस विषय के क्षेत्र मे उस जगह पर स्वयं छोटा बनकर काम करना होगा ताकि हम उस विषय की सभी दिखने वाली और न दिखने वाली कठिनाइयों से रूबरू हो जायें, समाधान की तकनीकियों को बूझ सकें, उत्पादन से बाजार और जोखिम को नजदीकी से समझने के बाद हम अच्छी शुरूआत कर सकते हैं यहाँ सम्भावनायें हैं अनगिनत, जरूरत है अनगिनत लोंगों की, विषय भी अनगिनत हैं, यह भी सुदूर विकट हिमालय के लोंगो को बड़ा समाधान दे सकता है।
ये लेखक के विचार हैं