भूखे को भोजन – अंकित का अभियान
महावीर सिंह जगवान
मुझे आज एक अट्ठासी वर्ष के वृद्ध मिले, दिखने और बूझने में सम्मपन्नता और आरोग्यता प्रदर्शित हो रही थी.
जबकि उस पल का भाव मायूसी समेटे हुये था, मेरे द्वारा एक छोटा सवाल आज मुस्कराहट कहाँ खो गई, और अधिक मायूस होते हुये बुझे मन से जबाव “अधिक संवेदनशील ब्यक्ति बार बार असहज होता है जबकि संवेदन हीन ब्यक्ति खुश और बेफिक्र।” यह बात छोटी भी है और बहुत बड़ी भी, बार बार इस वाक्य ने सोचने को विवस किया लगा क्यों न यह आज की पोस्ट हो। संवेदनशीलता इस शब्द की बड़ी ब्याख्या हो सकती है लेकिन खुद मै इतना जानकार तो कतई नहीं, हाँ जो थोड़ा बहुत समझता हूँ उसे साझा कर रहा हूँ। संवेदनशीलता और भावुकता मे नजदीकी का रिश्ता है, भाव होंगे तो भावुकता आयेगी और स्थिति परिस्थिति के आधार पर यही भाव चिन्तन के लिये प्रेरित करेंगे और यह पूर्ण प्रक्रिया ही संवेदनशीलता है। संवेदनशील होने का गुण औसतन सभी प्राणियों मे उपलब्ध हैं यहाँ तक सूक्ष्म जीव से लेकर पेड़ पौधे। इनमे मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो अपनी संवेदनशीलता का परिचय दे सकता है, साझा कर सकता है, स्व के हितों की रक्षा कर सकता है, स्व द्वारा समाज और मानव जाति के हितों की रक्षा और जरूरतों की पूर्ति कर सकता है।
पूरी दुनियाँ के लोंगो के सम्मुख हर पल छोटे छोटे ऐसे दृष्य विषय और घटनाक्रम घटते हैं जिनसे वो कतई सहमत नहीं होते निश्चित रूप से इनमे सकारात्मक संवेदन शीलता है, फिर भी कुछ बस से बाहर का विषय मानकर उसे छोड़ देते हैं, कुछ लोग इस विलक्षणता को स्वहिताय् के लिये समर्पित करते हैं, कुछ लोग इस गुण को जीवन भर ढोते हैं, कुछ लोग इस विशेषता को संरक्षित रखने हेतु अपनी बात को कविता, गद्य, संगीत के रूप मे प्रकट कर उस स्थिति परिस्थिति घटनाक्रम को जीवन्त रखते है जबकि वो भी विरले रहते हैं जो इन पलों को सहेज कर छोटी छोटी पहल करते हुये उस स्थिति परिस्थिति घटनाक्रम के कालजयी समाधान के लिये स्वयं को झोंक देते हैं।
इसी परिदृष्य मे एक युवा की बड़ी पहल जिसने एक असहज दृष्य के समाधान का संकल्प लेकर अपने को साबित किया उस युवा शख्सियत का नाम है “अंकित क्वात्रा’ मै (अंकित क्वात्रा) दिल्ली मे एक सैलिब्रिटी की शादी मे गया, दस हजार मेहमानों हेतु बने छत्तीस प्रकार के ब्यन्जन, जिनमे सम्पूर्ण भारतीय ब्यन्जनों के साथ इटैलियन चायनीज स्पैनिस ब्यन्जन बने थे। खाने की इतनी विवधता देखकर यह तय था पूरा खाना समाप्त नही होता होगा और जो खाना बचता होगा उसका क्या होता होगा यह जानने की उत्तसुकता थी। जानकारी प्राप्त करने पर पता चला हर शादी पार्टी मे औसतन खाने का बड़ा हिस्सा बचता है और उसे फेंक दिया जाता है, जिस देश मे प्रतिदिन कई लोग भूखे सोते हैं उसी देश मे खाने की इस बर्बादी को देखकर बड़ा धक्का जैसा लगा। मै उस वक्त एक वैश्विक ब्यापार सलाहकार फर्म मे काम कर रहा था। बार बार उस बेकार और फेंके जाने वाले भोजन के नियोजन पर काम करने के लिये अंतस जोर दे रहा था और मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी।
शुरूआत मे मै अपने चार पाँच स्वयं सेवकों के साथ मिलकर शादी पार्टी के आयोजकों से मिलते थे और उन्हे बचे भोजन को फेंकने के बजाय हमे देने के लिये कहते थे, उस भोजन को हम जरूरतमन्दों मे बाँटते थे। फिर पाँच स्वयं सेवकों की मदद से फीडिंग इण्डिया संस्था की स्थापना की। कुछ इसी तरह कुपोषण और भूख के खिलाफ शुरू हुई मेरी लड़ाई ब्यापक होती चली गई। शुरूआत मे परिजन कतई सहमत नही थे जब मैं ठीक शुरूआत कर चुका था तब जाकर अपने परिजनो से अपना संकल्प साझा किया और वो सहमत हो गये। वैसे भी कोई विवेकवान अभिवाहक अपने बच्चों से अच्छा काम करने से क्यों रोकेगा।
शुरूआत की तमाम ब्यवहारिक कठिनाइयों और कम समझ के वावजूद हमने स्कूल के बच्चों, आश्रय गृहों और झोपड़पट्टियों को चुना, हम इन केन्द्रों को पौष्टिक और सनातुलित भोजन प्रदान करते हैं। आज भारत के 43 शहरो मे हमसे करीब पाँच हजार स्वयंसेवक जुड़ चुके हैं जो अब तक लाखों लोंगो का पेट भर चुके हैं। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र, फोर्ब्स, ब्रिटेन की महारानी द्वारा मुझे सम्मानित किया गया है, हाँ मैने कभी नहीं सोचा था मुझे इतनी सराहना मिलेगी, यह मेरे लिये एक महान उपलब्धि है। मैं बस वह आवाज बनना चाहता हूँ जो सदैव भूख के खिलाफ हो। अंकित क्वात्रा जैसे अनगिनत युवा अपनी संवेदनशीलता से समाधान के नये विकल्प दुनियाँ को दे रहे हैं। सैल्यूट ऐसी अनगिनत शख्शियतों को।