दक्षिण भारत की यात्रा – 7
विजय भट्ट
वायनाड जिले के पयमपल्ली गांव में अंसर भाई के घर पर हमारा डेरा जमा हुआ है। आजकल अंसर भाई का परिवार मुंबई में रह रहा है। पिछले पांच दिनों से अंसर भाई सहित हम पांच फक्क्ड़ घुमक्कड़ बेचलरर्स वाली लाईफ के मजे लेते यहां आसपास के देखने लायक जगहों पर जाकर घुमक्कड़ी कर रहे हैं । सुबह का नाश्ता, रात का खाना मिलजुल कर बनाना और दिन भर घूमना हमारी दिनचर्या है। रोज की तरह आज भी नाश्ता पानी कर हम चलने के लिये तैयार होकर घर से बाहर निकल गये। घूमने कहां जाना है कैसे जाना है ये सब तय करने की जिम्मेदारी हमने अंसर अली को सौंप रखी थी, क्योंकि एक तो वह स्थानीय थे और हमारी अभिरूचियों से परिचित थे और साथ ही दक्षिणी राज्यों की भाषा बोली बोलने में सक्षम भी। चलते हुये हमने पूछा कि -’’अंसर भाई आज कहां जाना है’’ अंसर अली बोले: ’’ आज हम पहले वैत्तिरी जांयेगे पुक्कूड झील देखने फिर वहां से लक्किडी’’। इस तरह गप्प लगाते हुये हल्की सी चढ़ाई चढ़ते हुए हम दस पन्द्रह मिनट में मुख्य सड़क पर आ गये।
कुछ ही देर में मनन्तवाड़ी जाने के लिये हमे बस मिल गई। हम भी झटपट बस में सवार हो गये। बस खचाखच भरी थी। बस में लोग खड़े थे हम भी जाकर खड़े हो गये। प्लस टू के स्टूडेन्ट्स जो अपने स्कूल से घर जा रहे थे वे भी हमारे साथ खड़े थे। इनसे बातें शुरू हो गई। बातें करते करते कुछ ही देर में मानन्तवाड़ी बस स्टेशन आ गया। यहां से हमें कलपेट्टा जाना था जो वायनाड जिले का मुख्यालय भी है और वहां से कालीकट जाने वाली बस पकड़नी थी जो वैत्तिरी होते हुये जाती है। हमें फटाफट बस मिलती गई और हम आगे का सफर तय करते गये। कलपेट्टा से हमारी बस आगे बढ़ी। कुछ ही देर में शहर पीछे छूट गया और हमें बस की खिड़की से दायें बांये चाय के खूबसूरत बागान दिखाई देने लगे। गहरी हरी रंगत लिये मखमली सा आभास देते एकसार कतार बंद चाय का पौधे बहुत ही शानदार मनमोहक नजारा पेश कर रहे थे। ऐसे समय सार्वजनिक वाहन थोड़ा इसलिये खलता है कि अपना निजी वाहन होता तो रूककर सीधे चाय बागान के बीच में घुस जाते । पर क्या किया जाय चलती बस की खिड़की से फोटो खींचकर ही संतोष करना पड़ा। कुछ ही देर में हमारी बस वैत्तिरी पहुंच गई और हम वहां उतर गये। वैत्तिरी कलपेट्टा से कोझीकोड मतलब कालीकट जाने वाले राष्ट्रीय राज मार्ग पर पड़ता है जो अपनी खूबसूरत झीलों चाय बागानों के लिये प्रसिद्ध है। यहां एक छोटा सा बाजार है। दो ढाई घंटे के सफर के बाद चाय पीने की इच्छा बलवती हो गई। यहां चाय काफी पीने के बाद खुद को तरोताजा कर हम आगे पैदल चल पड़े।
तीन किलोमीटर के लगभग पैदल चल कर हम एक प्रकृति की गोद में एक खूबसूरत सी दिखने वाली झील पर पहुंच गये। वायनाड जिले की हरी भरी घनी पहाड़ियों के बीच छोटी सी मीठे पानी की इस झील का नाम पूकोट झील है। पुकोड झील के पास पहुंचते ही हमे पर्यटकों की भीड़ दिखाई दे गयी। पर्यटकों को देख यह एहसास हो गया कि यहां काफी संख्या में पर्यटक इस झील का आनन्द लेने आते हैं। झील में जाने के लिये प्रवेश शुल्क लिया जाता है जहां कतार लगी हुई है। बोटिंग करने के लिये अलग से शुल्क देना पड़ता है। बोटिंग तो हमें करनी नही थी इसलिये प्रवेश शुल्क अदा कर हम इस झील की खूबसूरती निहारने चले गये। झील के चारों ओर घने वृक्षों के बीच छ सात फिटी सड़क है जिसे ठंडी सड़क कहा जाता है। हमने इसी सड़क पर चल कर चारों तरफ से झील के नजारे देखना उचित समझा, और चल दिये ठंडी सड़क पर। घने वृक्षों के बीच से झरती प्रकाश की किरणों के कारण अलग अलग कोणों से झील के बेहद खूबसूरत नजारे देखने को मिले। खूब फोटोग्राफी की और गप्प लगाते गाने गुनगुनाते हमपे झील का एक चक्कर पूरा किया।
पुकोड झील से लौट कर हम मुख्य मार्ग पर आ गये। अब हमें लक्कडि जाना है जो यहां से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पैदल चलने की जगह बस पकड़ना ही उचित समझा और बस से हम लक्कडि पहुंच गये। दोपहर का समय हो चुका था भूख लग रही थी। सड़क के किनारे दिख रहे एक ढाबे नुमा होटल में जाकर खाना खाया। केले के पत्तों में केरल का परंपरागत भोजन कर हम यहां से आगे पैदल चल पड़े। लक्कडी वायनाड जिले की सीमा पर स्थ्ति है जो पश्चिम में कालीकट की सीमा से जुड़ता है। यहां भी चाय के बागान दिख रहे है। आगे चलकर देखा तो वायनाड जिले का प्रवेश द्वार बना हुआ है। यहां काफी संख्या में लोग खड़े दिखाई दिये जो नीचे कालीकट की तरफ जा रही तेज ढलान की घुमावदार सर्पिली सी दिख रही सड़क और उस पर रेंग रहे वाहनों को देख रहे हैं। यहां से यह दृश्य देखना काफी मनमोहक सा है। लोग यहां इस नजारे को देखने काफी संख्या में रोज आते हैं। उपर से नीचे झांक कर देखना अच्छा लग रहा था। हमने भी इस नजारे का आनन्द लिया कुछ तस्वीरें भी लीं। मौसम खराब हो चला था जैसे पहाड़ों की उंचाई पर अक्सर हो जाया करता है। कोहरा और बादल घुमड़ घुमड़ कर आने लगे और हल्की बारिश भी शुरू हो गई। हम तेजी से बस स्टाप की तरफ आ गये और वहां से वापिस घर आने के लिये बस का इंतजार करने लगे।
कलपेट्टा में काफी भीड़ भाड़ नजर आ रही थी। रास्ते में जगह जगह पुलिस वाले खड़े थे और यातायात को नियंत्रित व निर्देशित कर रहे थें जबकि सामान्यतः केरल की सड़कों पर पुलिस वाले नजर नही आते। बस को आगे स्टेशन जाने से रोक दिया और हम बस से उसी चौराहे पर उतर गये। पता चला कि आज यहां राहुल गांधी आ रहे हैं, वे यहां के सांसद हैं। तब समझ में आया भीड़ भड़ाके का कारण। हमें तुरंत ही वहां से मानन्तवाडी की बस मिल गईं। बस के ड्राइवर ने भी होंशियारी दिखाते हुए तेजी से बस को शहर से बाहर निकाल दिया। हम वहां रैली की भीड़ में फंसने से बच गये, और समय पर अपने डेरे में आ गये।
चौदह अगस्त का दिन था। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार यह वायनाड प्रवास का हमारा अन्तिम दिन था। एक सप्ताह का समय कब बीता पता ही न चला। आज रात को अपने पिठ्ठू में सामान की पैकिंग भी करनी थी क्योंकि अगली सुबह जल्द ही यहां से आगे मैसूर के लिये निकलना था। इसलिये पास ही आनन्तवाड़ी बाजार जाकर कुछ आयुर्वेदिक दवा व चाय पत्ती मसाले आदि लेने की सोची। हम अंसर भाई के साथ आनन्तवाड़ी बाजार चले आये। वे सबसे पहले हमें वहां के राजकीय आयुर्वेदिक औषघालय ले गये। औषधालय में प्रवेश करने पर देखा कि वहां कुछ महिलायें दो महिला प्रशिक्षकों की देखरेख में योगासन कर रही है। बगल में ही एक स्कूल भी चल रहा है जहां के तीन छात्र भी वहां बैठे दिखाई दिये। तभी भीतर से औषधालय के इंचार्ज बाहर निकल कर आये, अंसर अली ने उनसे हमारा परिचय करवाया। इंचार्ज सहाब का नाम टी सी रॉय था। हमसे मिलकर वे बहुत खुश हुए और बोले कि पहले इन छात्रों की समस्या का समाधान करता हूँ तब आपसे बाते करेंगे क्योंकि इन छात्रों की क्लास है। छात्रों को दवाई देने के बाद वे हमारी तरफ मुखातिब हुए और काफी बातें हुई। योग करवाने वाली महिलायें भी वहीं थी। उनसे भी खूब बातें हुई। हमने यहां आने का अपना प्रयोजन बताया कि हमें जोंड़ो के दर्द की दवायें चाहियें। उन्होंने हमसे होने वाले दर्द की प्रकृति के बारे में जानकर भीतर से लाकर कई प्रकार की दवायें दे दी। जिनमें कुछ खाने वाली था और कुछ मालिश करने वाली। उनके सेवन के बारे में भी हमे बताया और अपना फोन नंबर भी हमे दिया। यह औषधालय राज्य सरकार द्वारा संचालित किया जाता था जहां से हमें सारी दवायें फ्री में मिल गई।
हम कुटुम्ब श्री द्वारा संचालित भोजनालय में खाना खाने चले गये। कुटुम्बश्री केरल राज्य में स्वयं सहायता समूह की तरह ही महिलाओं का विशाल संगठन है जिसकी शुरूआत साल 1998 में केरल की सीपीएम के नेतृत्व वाली सरकार ने की थी। कुटुम्बश्री महिला केन्द्रित सूक्ष्म उद्यम के जरिये सामुदायिक त्रिस्तरीय नेटवर्क है। आर्थिक स्वाबलंबन के लिये जैविक सब्जी उगाना, मुर्गी पालन, डायरी उद्योग, खानपान व सिलाई का सामुदायिक कंपनी बनाकर काम किया जाता है। राज्य सरकार इनके उद्यम विकास के लिये ऋण भी उपलब्ध कराती है। ये अपने आप में देश का अनोखा कार्यक्रम है जिसके अध्ययन के लिये देश विदेशों से लोग यहां आते हैं। कुटुम्बश्री के भोजनालय में सभी काम महिलाये कर रही थी। यहां हमने सस्ते में साफ सुथरा स्वादिष्ठ भरपेट भोजन किया और वहां से बाजार आ गये। बाजार में एक स्कूल बच्चे स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर रैली निकाल रहे थे। बाजार से हमने कुछ सामान बहुत कम मात्रा में लिये और वहां से वापिस अपने डेरे में चले आये।
यात्रा जारी है।